केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ राजस्थान में संशोधन बिल पेश, किसानों के उत्पीड़न पर 7 साल तक की जेल और 5 लाख रुपए जुर्माना

पंजाब के बाद केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ अब राजस्थान की विधान सभा में कृषि संशोधन विधेयक पेश किये गए हैं। इन बिलों के तहत किसानों का उत्पीड़न करने पर तीन से सात साल की जेल हो सकती है।

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केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ राजस्थान में संशोधन बिल पेश, किसानों के उत्पीड़न पर 7 साल तक की जेल और 5 लाख रुपए जुर्मानाराजस्थान विधानसभा में केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ बिल पेश करने के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।

पंजाब के बाद राजस्थान ने हाल में लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदेश विधानसभा में तीन कृषि संशोधन विधेयक पेश किए। इन विधेयकों के तहत किसानों का उत्पीड़न करने वाले को 3 से 7 साल की जेल और 5 लाख रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

राजस्थान वो तीसरा राज्य है जहां केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए गए हैं। सबसे पहले पंजाब में 4 कृषि बेल पास कराए गए थे, उसके बाद 27 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने केंद्र के एग्रीकल्चर एक्ट को निष्प्रभावी करने के लिए कृषि उपज मंडी संशोधन बिल 2020 पारित किया।

पंजाब में कृषि बिल पास होने के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ऐलान किया था कि उनकी सरकार केंद्रीय कानूनों के खिलाफ किसानों के हित में बिल लेकर आएगी।

31 अक्टूबर को राजस्थान में शुरू 15वीं विधानसभा के पांचवें सत्र में प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने सदन में कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण-राजस्थान संशोधन विधेयक 2020, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार- राजस्थान संसोधनः विधेयक 2020, सरल शब्दों में कांट्रैक्ट फॉर्मिंग बिल और आवश्यक वस्तु (विशेष उपबंध और राजस्थान संसोधन) विधेयक 2020 पेश किए हैं। विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान इन्हें 2 नवंबर को पास किया जा सकता है।

पंजाब में कृषि कानूनों के खिलाफ संशोधित बिल पेश होने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में भी जल्द ऐसा करने के दिए थे संकेत।

केंद्रीय कृषि कानूनों का पंजाब हरियाणा में सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है। महाराष्ट्र के वर्धा में शनिवार को भी कई किसान संगठनों की महात्मा गाँधी के आश्रम स्थल के निकट इन बिलों को लेकर चर्चा हुई। पांच नवंबर को देश भर के किसान संगठनों ने मिलकर भारत बंद का ऐलान किया है तो अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 27-28 नवंबर को चलो दिल्ली का नारा दिया है।

दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने 27 अक्टूबर को विधानसभा के विशेष संत्र में कृषि उपज मंडी (संशोधन) विधेयक 2020 पारित कर दिया गया। छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविंद्र चौबे द्वारा पेश इस बिल में कृषि, उद्यान, पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, वन संपदा से संबंधित सभी उत्पादों, चाहे वो प्रसंस्कृत या फिर विनिर्मित हों, को कृषि उपज बताया गया है। विधेयक में कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर नई मंडियां बनाई जाएंगी और निजी मंडियों क डिम्मड मंडी घोषित किया जा सकेगा।

बिल पेश करते हुए रविंद्र चौबे ने कहा था कि हम अपनी लोकतांत्रित सीमा में रहकर संसोधन ला रहे हैं, इस कानून का कोई भी प्रावधान केंद्रीय कानूनों का उल्लंघन नहीं करता है। यह कानून किसानों की मदद के लिए है।

वहीं केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ सबसे पहले विरोध पंजाब में सामने आया जहाँ राज्य के किसान इन कानूनों के खिलाफ रेल रोको आन्दोलन लम्बे समय से करते आ रहे थे। राज्य में किसानों के विरोध को देखते हुए पंजाब सरकार ने 19 और 20 अक्टूबर को विधानसभा में दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया और लंबी बहस के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने स्वयं तीन संशोधित बिल पेश किये।

पंजाब विधानसभा में राज्य सरकार द्वारा पेश बिलों के हिसाब से अगर किसी व्यापारी ने न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे किसान की फसल खरीदी तो उसे तीन साल की कैद होगी। मतलब, एमएसपी एक कानूनी प्रावधान होगा।

इसके अलावा एपीएमसी को लेकर बने कृषि कानून के विरोध में पंजाब का एपीएमसी एक्ट पूरे राज्य में लागू होगा। राज्य सरकार मंडियों के बाहर होने वाले व्यापार या ई-ट्रेडिंग पर शुल्क लगा सकती है। विवाद की स्थिति में किसानों को कोर्ट जाने का अधिकार होगा। केंद्र के कानून में किसानों को सिर्फ एसडीएम या कलेक्टर के पास जाने का प्रावधान है। साथ ही आवश्यक वस्तु के कानून में संशोधन के साथ जमाखोरी और कालाबाजारी पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार को स्टॉक लिमिट लगाने का अधिकार होगा।

पंजाब विधानसभा में यह तीनों बिल 20 अक्टूबर को पारित होने के बाद अगले दिन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह अपने मंत्रिमंडल के साथ राज्यपाल के पास भी पहुंचे। फिलहाल राज्य के इन कानूनों को लेकर कोई फैसला सामने नहीं आया है।

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