बक्से में पैक सामान के साथ रह रहा इस बॉलीवुड एक्टर का परिवार, सोशल मीडिया पर बताया अपना दर्द

Shefali SrivastavaShefali Srivastava   12 Jun 2017 1:12 PM GMT

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बक्से में पैक सामान के साथ रह रहा इस बॉलीवुड एक्टर का परिवार, सोशल मीडिया पर बताया अपना दर्दइनामुल हक इससे पहले फिल्म जॉली एलएलबी-2 और एयरलिफ्ट में किरदार निभा चुके हैं

लखनऊ। मुंबई... अपने सपनों को पूरा करने के लिए हर कोई इस शहर की भीड़ में शामिल तो हो जाता है लेकिन ये शहर इतनी जल्दी आपको नहीं अपनाता। न सिर्फ आम व्यक्ति के लिए बल्कि कलाकारों के लिए यहां किराए पर घर लेना किसी चुनौती से कम नहीं है। जॉली एलएलबी-2, एयरलिफ्ट और फिल्मिस्तान जैसी फिल्मों में छोटी भूमिकाएं निभा चुके एक्टर इनामुल हक इन दिनों इसी तरह की परेशानियों से घिरे हैं और हाउसिंग सोसाइटी की प्रताड़ना झेलते हुए वो और उनका परिवार बॉक्स में पैक सामान के साथ रहने को मजबूर है।

हालांकि एक्टर ने एक्शन लेते हुए वर्सोवा हाउसिंग सोसाइटी के खिलाफ उन पर और उनके परिवार वालों पर मानसिक शोषण की शिकायत दर्ज की है। हाउसिंग सोसाइटी ने इनाम और उनके परिवार को बिना किसी ठोस वजह के किराए पर फ्लैट देने से मना कर दिया। 37 वर्षीय अभिनेता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर पूरी घटना का जिक्र करते हुए अपनी व्यथा बताई है। उनका ये पोस्ट दिखाता है कि मुंबई जैसे महानगर में कलाकारों के लिए किराए पर घर लेना कितना जोखिम भरा है।

वैसे मुंबई में मकान ढूँढना कोई मुश्किल काम नहीं है, एक कहावत सुनी थी कि “मुंबई में आँख बंद करके कहीं भी कंकर फेंकोगे तो ‘एक्टर’ पर ही गिरेगी.” ग़लत! आप फ़ेंक कर देखिये ‘एक्टर’ पर नहीं ‘ब्रोकर’ पर गिरेगी, ‘ब्रोकर’ जिसे ‘दलाल’ कहने से गूगल ट्रांसलेटर भी नहीं हिचकिचाता, आप सभ्यता के मारे उसे प्रॉपर्टी डीलर या एजेंट कहकर आगे बढ़ जाते हैं और मकान ढूँढना शुरू करते हैं।

शिकायत दर्ज होने के बाद वर्सोवा पुलिस स्टेशन के सीनियर इंस्पेक्टर उनके घर गए तो देखा कि अभिनेता व उनका परिवार बॉक्स में पैक सामान के साथ अपना जीवन बिता रहा है। मुंबई मिरर से बातचीत में अभिनेता ने बताया, मैं अपने नए घर में शिफ्ट होने वाला था लेकिन दीप्ति शक्ति मुक्ति हाउसिंग सोसाइटी के मैनेजमेंट ने मुझे कमेटी मेंबर से मिलने नहीं दिया।

आगे बढ़ जाने के विकल्प को नज़रअंदाज़ करके मैंने लड़ने का फैसला किया है। हालाँकि लड़ाई के अपने ख़तरे हैं। ख़ासतौर पर तब जब लड़ाई सिस्टम से हो। एक बात तो तय है कि अपने घर से पन्द्रह सौ किलोमीटर दूर मैं इस शहर में झंडा उठाने या सिस्टम सुधारने नहीं, एक लक्ष्य लेकर आया हूँ। लेकिन ‘एक्टर’ होने से पहले एक इंसान और एक नागरिक हूँ इसलिए मात्र स्वार्थी होकर आगे नहीं बढ़ सकता। कभी-कभी लड़ना ज़रूरी हो जाता है।

पांच रविवार से उन्होंने मुझे इंतजार कराया, हर बार अलग-अलग वजह बताकर मीटिंग टालते गए। पहले उन्होंने कहा कि हम बैचलर को घर नहीं है और अगर आप मैरिड हैं तो सबूत के रूप में अपने बीवी-बच्चों को सामने लाएं जबकि इनाम के परिवार वाले छुट्टियों में मुंबई से बाहर गए हुए थे। बल्कि जब वे वापस मुंबई लौट आए तो भी सोसाइटी ने अपॉइंटमेंट देने से मना कर दिया।

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इतना ‘बैचलर’ मैंने आपने आपको शादी से पहले भी महसूस नहीं किया जितना पिछले डेढ़ महीने में किया। ये सुख आपको मुंबई की ‘नॉन को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाईटीज़’ ही दे सकती हैं।

अपनी लिखित शिकायत में इनाम ने यह भी बताया कि न सिर्फ उन्हें बल्कि फ्लैट की 78 वर्षीय मालकिन को भी सोसाइटी वालों ने तीन बार बुलाया और जब इस बात की शिकायत लोकल एमएलए भारती लावहेकर से की गई तो सोसाइटी वालों ने फ्लैट की मालकिन को हमें फ्लैट देने से मना कर दिया।

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छोटे शहरों के बड़े अहातों के पौधों को छोड़कर हम सिर्फ़ इसलिए आते हैं ताकि अपने सपनों को पानी दे सकें। पौधों को पानी देने से पेड़ बनते हैं, सपनों को पानी देने से ‘हाईली पेड़’। हमारे सपने पलते हैं महानगरो के हवा में लटकते इन दडबों में, जिनकी छतें, ऊपर वालों के फ़र्श होती है और फ़र्श, नीचे वालों की छतें। अपनी होती है तो बस सामने वाली एक बड़ी सी खिड़की जिसमें से अपने से हिस्से के थोड़े से आसमान के अलावा रोज़ सिर्फ़ एक ही नज़ारा दिखता है, आपकी पसंद ना पसंद को ठेंगा सा दिखता हुआ।

वहीं हाउसिंग सोसाइटी इन आरोपों से इनकार कर रही है। डीएसएम सोसाइटी के सेकेटरी इरफान लखाड़िया कहते हैं, हमारे 168 फ्लैट मालिक हैं। हम ऐसे किसी व्यक्ति को अपनी सोसाइटी में नहीं रहने देंगे तो सारे नियम और इंटरव्यू प्रक्रिया के बिना यहां आना चाहेगा। ये सिक्योरिटी का मामला है।

         

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