ग्रीन गैंग : ये महिलाएं जहां लाठी लेकर पहुंचती हैं, न नेता का फोन काम करता है न दबंग का पैसा

Diti BajpaiDiti Bajpai   2 March 2018 8:58 PM GMT

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ग्रीन गैंग : ये महिलाएं जहां लाठी लेकर पहुंचती हैं, न नेता का फोन काम करता है न दबंग का पैसाग्रीन गैंग से उत्तर प्रदेश की 14 हजार 252 महिलाएं जुड़ी हुई है। 

"मैं जब सड़क पर आ गई। तब मैंने सोचा कि मैं फूलनदेवी बनूंगी और उसका सर्वनाश करूंगी। लेकिन बच्चों का भविष्य खराब न हो इसके मैंने अपना ये विचार बदल दिया। और ठान लिया जो मेरे साथ हुआ वो मैं किसी और के नहीं होने दूंगी।"

हरे रंग की साड़ी में ये महिलाएं जहां भी पहुंचती हैं, समझो वहां की महिलाओं को न्याय मिलना पक्का है, जहां पर आसानी से न्याय नहीं मिलता ये महिलाएं लाठी चलाने से भी नहीं झिझकती हैं। ये है अंगूरी दहाड़िया की महिलाओं का ग्रुप 'ग्रीन गैंग'।

कन्नौज जिले के तिर्वा कस्बे में रहने वाली अंगूरी दहाड़िया वर्ष 2010 से इस संगठन को चला रही है। यह उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में चल रहा है और इससे वर्तमान समय में 14 हजार 252 महिलाएं जुड़ी हुई है। ग्रीन गैंग को शुरू करने के बारे में अंगूरी बताती हैं, "मेरी शादी एक बहुत गरीब परिवार में हुई थी। घर की स्थिति आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी मेरे पति भी मेरे बीमार रहते थे। घर चलाने के लिए मैंने साड़ी , जूते, शीशे के डिब्बे बनाना का काम शुरू किया। उसी काम से मैं बच्चों का पालन-पोषण करती थी और उसी पैसे से अपने पति का इलाज भी कराया।"

मैंने कस्बे के पंडित जी से किश्तों में प्लाट लिया। दिन-रात मेहनत करके मैंने उस मकान की किश्तों को पूरा किया। लेकिन प्लाट मालिक ने हमें कमजोर और गरीब देखकर बेईमानी कर ली, उसके कहने पर मैने बैनामा ( रजिस्ट्री ) नहीं कराया था, बाद में उसने मुझे और मेरे बच्चों को मारकर भगा दिया, मकान पक कब्जा कर लिया।'

अपनी बात को जारी रखते हुए अंगूरी बताती हैं, "मैंने कस्बे के पंडित जी से किश्तों में प्लाट लिया। दिन-रात मेहनत करके मैंने उस मकान की किश्तों को पूरा किया। लेकिन प्लाट मालिक ने हमें कमजोर और गरीब देखकर बेईमानी कर ली, उसके कहने पर मैने बैनामा ( रजिस्ट्री ) नहीं कराया था, बाद में उसने मुझे और मेरे बच्चों को मारकर भगा दिया, मकान पक कब्जा कर लिया।'

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अपनी मेहनत से बनाए मकान पर कब्जा होने के बाद अंगूरी न्याय मांगने के लिए कस्बे के हर व्यक्ति के पास मदद मांगने के लिए गईं। लेकिन गरीबी देखकर किसी ने उसकी फरियाद नहीं सुनी।

"मैं जब सड़क पर आ गई। तब मैंने सोचा कि मैं फूलनदेवी बनूंगी और उसका सर्वनाश करूंगी। लेकिन बच्चों का भविष्य खराब न हो इसके मैंने अपना ये विचार बदल दिया। और ठान लिया जो मेरे साथ हुआ वो मैं किसी और के नहीं होने दूंगी।" अंगूरी ने बताया, "तब मैंने महिलाओं का एक संगठन तैयार किया।"

संगठन को तैयार करने में आने वाली दिक्कतों के बारे में अंगूरी ने बताया, "गाँव-गाँव जाकर मैं लोगों को अपने साथ हुए अन्याय के बारे में बताती थी लोग सुनते थे। लेकिन जब मैं यह कहती थी कि अपनी पत्नी को मेरे साथ जोड़ो मैं यह लड़ाई लड़ना चाहती हूं। तो वो लोग पूरी बात सुनने के बाद यही कहते थे कि बहन जी आपको आपका संगठन मुबारक हो मैं अपनी पत्नी को घर से बाहर नहीं निकलने दूंगा।"

हर जगह से निराशा लगने के बाद भी अंगूरी ने हार नहीं मानी। वो गाँव-गाँव भटकती रही और साथ हुए अन्याय के बारे में लोगों को बताती रही। अंगूरी बताती हैं, "जब मैं उन घरों में जाने लगी जिनके साथ उत्पीड़न हो रहा था। तब उन्हीं घरों से महिलाएं निकलना शुरू किया और महिलाओं का समूह बनना शुरू हो गया। आज मैं इसी संगठन से डॉन, माफिया, नेता, अधिकारी शासन प्रशासन हर व्यक्ति से सच की लड़ाई लड़ती हूं।"

अपने अनुभव को गाँव कनेक्शन से साझा करती अंगूरी दहाडिया।

अपने संगठन के काम करने के बारे में अंगूरी बताती हैं, "जब कोई मेरे पास अपनी समस्या लेकर आता है। तो वो मैं सुनती तो हूं लेकिन वो सच है कि नहीं इसके लिए मैं अपनी टीम भेजती हूं और गाँव जाकर सर्वे कराती हूं। जब हमारी टीम बताती है तब मैं संगठन की महिलाओं और उस महिला के साथ थाने जाती हूं कि आपकी रिपोर्ट क्यों नहीं लिखी गई क्यूं कोई कार्रवाई नहीं की गई।"

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अपनी बात को जारी रखते हुए अंगूरी बताती हैं, "घर-घर में नेता पैदा हो गया है, दबंग आदमी पैसा भर देता है नेता फोन कर देता है और जो सच्चा होता है तो वहां का दरोगा उसे गाली देकर भागा देता है। उसका मुकदमा दर्ज नहीं किया जाता है। जब मैं लाठी डंडे के साथ महिलाओं को लेकर पहुंचती हूं तब वहां न तो नेता का फोन काम करता है और न दंबग का पैसा काम करता है। वहीं होता है जो सच्चाई होती है मैं तुरंत मुकदमा दर्ज कराती हूं और उस दबंग को मैं जेल भेजती हूं और उस गरीब का न्याय दिलाती हूं।"

जब महिलाओं के साथ मैं लाठी-डंडा लेकर थाने पहुंचती हूं तो वहां न तो नेता का फोन काम करता है और न दंबग का पैसा काम करता है।
अंगूरी दहाडिया, मुखिया, ग्रीन गैंग

अंगूरी का ग्रीन गैंग सिर्फ कब्जा दिलाने के लिए ही लोगों की मदद नहीं करता बल्कि किसी के भी साथ हो रहे उत्पीड़न को लेकर लड़ाई लड़ता है। "मैंने अपनी ज़िदंगी में एक बार चोरी की है। जब मेरे पति बीमार थे और मेरे बच्चों को जब तीन दिन से अन्न नसीब नहीं हुआ था तो मैंने राई की चोरी की थी। मैं सुबह चार बजे उठकर एक पन्नी लेकर एक खेत से राई तोड़कर लाई और चूल्हे पर उसको गला कर अपने बच्चों को खिलाया।" अंगूरी ने बताया।

ग्रीन गैंग से जुड़ने के बाद महिलाओं में आए बदलाव के बारे में अंगूरी कहती हैं, "जब मैं किसी मामले को लेकर थाने जाती थी और गाँव में प्रशासन जाता था पुलिस जाती थी तो वो महिलाएं डर की वजह से अपना गेट अंद कर लेती थी, बात नहीं करती थी, डरती थी। अब वहीं महिलाएं जब थाने पहुंचती है और दूसरों के हक के लिए पुलिस और प्रशासन से लड़ाई लड़ती है।"

इस संगठन को चलाने के लिए अंगूरी के परिवार ने उनका पूरा साथ दिया, लेकिन उनके संगठन से जुड़ी गाँवों की महिलाओं बहुत दिक्कतों को सामना करना पड़ा। महिलाओं के साथ होने वाली टिप्पणियों के बारे में अंगूरी बताती हैं, "जब गाँव की महिलाएं घर से बाहर निकलती थी तो महिलाओं से कहते है कि कहो भई चाची आज कहां बाजेगी, किस पर बाजेगी, कहां जा रही हो, बड़ी बत्तमीजी करते थे। उनके पतियों ने भी मना किया। लेकिन मैंने उन महिलाओं को समझाया और आज बेफ्रिक होकर महिलाएं निकलती है और उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।"

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जब उस दबंग के घर 50 महिला लाठी लेकर उसके दरवाजे पर खड़ी हो गई और मैंने बोला कि तू कितना बड़ा गुंडा है जैसे चाहे वैसे लड़ ले आकर के तेरे पास अगर 10 लाठियां है तो मेरे पास 14 हजार लाठियां है।

एक महिला के साथ हुए हादसे के बारे में अंगूरी बताती हैं, "एक गाँव में एक दबंग के सात बेटे थे और एक गरीब घर में दो ही लोग है। आए दिन वो दंबग उसको परेशान करते थे मारते पीटते थे। वो महिला जो हमसे जुड़ गई। और जब उस दबंग के घर 50 महिला लाठी लेकर उसके दरवाजे पर खड़ी हो गई और मैंने बोला कि तू कितना बड़ा गुंडा है जैसे चाहे वैसे लड़ ले आकर के तेरे पास अगर 10 लाठियां है तो मेरे पास 14 हजार लाठियां है। अगर तू मुकदमा करेगा तो उसमें तेरे बाप और बाबा कि कमाई खर्च होगी। लेकिन अगर हम संगठन से मुकदमा करेंगे और हमारे ऊपर तू मुकदमा करेगा तो हम एक अंगोछा बिछा करके और संगठन से एक-एक रुपया डालकर लड़ाई लड़ लूंगी और तेरे बाप की खेती बिकवा दूंगी।"

गरीबों के लिए हक की लड़ाई लड़ने वाली अंगूरी जेल भी गई है। "मैं पांच बार जेल गई हूं सिर्फ जनता के लिए। जब गरीब की बात प्रशासन नहीं सुनता है तो हम भी कानून तोड़ देते है। जब संगठन की महिलाओं को पता चलता है कि मैं जेल में हूं तो सभी महिलाएं थाने पंहुच जाती है और बोलती है हमारी गलती है हमको भी अंदर करो। तब उनको मुझे छोड़ना ही पड़ता है। कभी ऐसा नहीं हुआ कि मैं तीन से ज्यादा जेल में रूकी हूं।" अंगूरी बताती हैं।

संगठन मे सभी महिलाएं हरे रंग की साड़ी पहनती हैँ। जिनकी साड़ी में लाल पट्टी होती है वो पदाधिकारी महिलाएं है। अंगूरी अपने संगठन को आगे बढ़ाने के बारे में बताती हैं, "पार्टी चलाना आसान है लेकिन एक संगठन चलाना उतना ही मुश्किल है मैं बहुत सी परेशानी से जूझ रही हूं क्योंकि पैसे का कोई साधन नहीं है। सभी महिलाओं के परिवार में बच्चे है। तो अब मैंने सोचा हैं कि मैं राजनीति में जाऊं और तब इस संगठन पर पैसा लगाकर मदद कर सकूं।

वर्ष 2014 में हुई एक घटना के बारे में अंगूरी बताती हैं, "रमज़ान का महीना चल रहा था। मुस्लिम समुदाय के लोग आठ दिन से कस्बे में पानी और ट्रांसफार्मर फूंकने की मांग को लेकर धरना कर रहे थे। जबकि इस समस्या से मैं जेई को अवगत करा चुकी थी। मैं भी उस धरने में गई और जेई को बोला कि अगर आप नहीं रखवा पा रहे हैं तो बता दीजिए मैं अपनी महिलाओं को लेकर लखनऊ जाती हूं और अपनी समस्या रखती हूं। तो जेई ने मुझसे बद्तमीजी की। मैंने जेई को दो झापड़ मारे। पेटीकोट पहनाया, बिंदी लगाई और चूड़ी पहनाई और वहीं बिठा दिया।"

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अंगूरी आगे बताती हैं, "एसडीओ साहब आए वो भी बद्तमीजी करने लगे। तो उनके ऊपर भी जूता चला दिया। मेरे ऊपर छह मुकदमे लगाए गए। मेरे बेटे ने कहा मम्मी छह मुकदमे लगे है मैंने उससे कहा 50 मुकदमे लगे कोई चिंता की बात नहीं है। मैं 50 बार जेल जा चुकी हूं। मैं चोरी करके नहीं गई गलत काम करके नहीं गई।"

महिलाओं को संगठन से जोड़ने के लिए ट्रेनों में करती है सफर

अंगूरी बताती हैं, "अपने संगठन से महिलाओं को जोड़ने के लिए मैं ट्रेनों में सफर करती हूं। विजिटिंग कार्ड मेरे पास है। जब ट्रेनों में बैठते है तो कई जिलों के लोगों से मिलते है आपस में बातचीत करते है। ड्रेस में रहते हैं तो लोग खुद पूछने लगते हैं कि मैडम ये काहे कि संस्था है काहे की ड्रेस है तो मैं अपनी बात बताने के लिए शुरू हो जाती हूं। मैं अपना पूरा काम भी बताती हूं। इस तरह लोग जुड़ते है।"

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अंगूरी आगे बताती हैं, "मैं उन लोगों के नंबर ले लेती हूं। बस उनसे ये बोलती हूं। कि दो दिन आपके घर की रोटी खाएंगे गाँव में हमारी 20 महिलाओं की मीटिंग करवा दीजिए। संगठन से जुड़े या न जुड़े वो मेरे ऊपर है। जब 20-30 महिलाओं की मीटिंग करो तो पांच छह महिलाएं निकल ही आती है। जो महिलाएं निकल आती है उनको मैं पदाधिकारी बना देती हूं। उनको काम बताती हूं। कोई दिक्कत हो उसके लिए उनको फोन करने के लिए बोलती हूं। अगर फोन से नहीं होता है तो मैं वहां पर जाती हूं।"

         

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