भारत में पहली बार दिखा मक्का को तबाह करने वाला अमेरिकी कैटरपिलर

अमेरिकी मूल का यह कीड़ा 44 अफ्रीकी देशों को अपनी चपेट में ले चुका है। एशिया में यह पहली बार भारत में दिखा है। मक्का के अलावा यह गन्ना, कपास और धान की फसल को प्रभावित कर सकता है।

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भारत में पहली बार दिखा मक्का को तबाह करने वाला अमेरिकी कैटरपिलर

देश के मक्का किसानों के लिए एक बुरी खबर है। वैज्ञानिकों ने कर्नाटक के चिकबल्लापुर जिले में एक ऐसा कैटरपिलर देखा है जो मक्का की फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। मूलत: अमेरिका में पाया जाने वाला यह कीट एशिया में पहली बार देखा गया है। इससे पहले यह पिछले साल अफ्रीका महाद्वीप के देशों में तबाही मचा चुका है। इसका भारत में पाया जाना इसलिए और भी चिंता की बात है क्योंकि मक्का के अलावा यह धान, कपास और गन्ना समेत 180 पादप प्रजातियों को बर्बाद कर सकता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों ने जुलाई में किए सर्वे में देखा कि फॉल आर्मीवर्म नामका यह कीड़ा दक्षिणी कर्नाटक के चिकबल्लापुर इलाके की 70 फीसदी मक्के की फसल को प्रभावित कर चुका है। आईसीएआर के सहयोगी संगठन नेशनल ब्यूरो ऑफ एग्रीकल्चर इन्सेक्ट रिसोर्सेज के वैज्ञानिकों डॉ. एएन शैलेश, डॉ. एसके जलाली ने इस कीट का अध्ययन करके बताया, "पीले और भूरे रंग का यह कीट बहुत तेजी से अंडे देता है और बड़ी तेजी से फैलता है।"

यह भी देखें: कीटनाशकों की जरुरत नहीं : आईपीएम के जरिए कम खर्च में कीड़ों और रोगों से फसल बचाइए

ऐसी भी खबरें हैं कि अब तक यह कीट पड़ोसी राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु तक पहुंच चुका है। लेकिन वैज्ञानिक ठीक तौर पर यह नहीं बता पा रहे हैं कि यह भारत तक आया कैसे। यह भी मुमकिन है कि यह प्रभावित इलाके से किसी इंसान के साथ चला आया हो या फिर अंडे देने वाला इसका शलभ वाला स्वरूप हवा की धाराओं के साथ भारत पहुंचा हो। माना जाता है कि इस अवस्था में यह एक रात में हवा के साथ सैकड़ों किलोमीटर का सफर कर सकता है।

संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन इस कीट की रोकथाम के लिए अब तक अपने बजट से 21 मिलियन डॉलर खर्च कर चुका है।

अफ्रीका का अनुभव: कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल से परहेज

आर्मीवर्म कैटरपिलर अफ्रीका के 44 देशों में मक्का की खेती को प्रभावित कर चुका है। एफएओ ने साल 2017 में चेतावनी दी थी कि इसकी वहज से इन देशों के 30 करोड़ निवासियों पर भुखमरी का संकट मंडरा रहा है।

इस कीड़े को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता इसलिए इस पर रासायनिक कीटनाशकों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। भारत में पहले भी कीटनाशकों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से किसानों को न केवल सेहत का नुकसान हुआ बल्कि आर्थिक बोझा बढ़ने से बहुतों ने आत्महत्या भी की।

जैविक कीटनाशक ज्यादा कारगर

अफ्रीका का अनुभव बताता है कि इस कीड़े को या तो हाथ से मारा जाए या फिर इस पर नीम और तंबाकू से बने जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाए। इसके अलावा इसके प्राकृतिक दुश्मन चीटीयां वगैरह भी इसे नियंत्रित कर सकती हैं।

यह भी देखें: धान और मक्का की फसल में कीट लगने पर कैसे करें ट्राइकोग्रामा कार्ड का प्रयोग


        

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