उत्तर भारत में दम घोंटने वाले हाल और एक्शन प्लान के नाम पर सरकार का झुनझुना

यूपी की राजधानी लखनऊ में एक एनजीओ द्वारा लगाये गये कृत्रिम फेफड़े दो दिन में ही मटमैले पड़ गये।

Hridayesh JoshiHridayesh Joshi   14 Jan 2019 1:36 PM GMT

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उत्तर भारत में दम घोंटने वाले हाल और एक्शन प्लान के नाम पर सरकार का झुनझुना

एक ओर देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर बना हुआ है और दूसरी ओर यूपी की राजधानी लखनऊ में एक एनजीओ द्वारा लगाये गये कृत्रिम फेफड़े दो दिन में ही मटमैले पड़ गये। यह तथ्य बताते हैं कि हम बहुत ख़तरनाक प्रदूषण की ज़द में हैं और सांस की बीमारी का शिकार होने के साथ हमारे फेफड़ों और ख़ून में कई ज़हरीले तत्व पहुंच रहे हैं।

लखनऊ के लालबाग इलाके में एक एनजीओ क्लाइमेट एजेंडा ने फेफड़े के मॉडल 10 जनवरी को लगाये। इसी दिन दिल्ली में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) की घोषणा की। कृत्रिम फेफड़े 48 घंटे के अंदर काले पड़ने लगे और चार दिन पूरे होते-होते उसका जो हाल हुआ वो बताता है कि खराब हवा सिर्फ दिल्ली की नहीं देश के दूसरे महानगरों की भी है।


सरकार 2017 में यह दावा कर रही थी कि वह देश के तमाम शहरों में वायु प्रदूषण 50 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखेगी लेकिन उसने 10 जनवरी को जारी किये NCAP में प्रदूषण घटाने का यह टारगेट 20 से 30 प्रतिशत रखा है। यह लक्ष्य भी साल 2024 तक हासिल किया जाना है।

सरकार के घोषित लक्ष्य को भी कितना हासिल किया जा सकेगा यह कहना मुश्किल है लेकिन अगर यह मान भी लिया जाये कि यह टारगेट इमानदारी से हासिल हो तो भी उसका कोई बहुत मतलब नहीं रह जाता है। क्योंकि वर्तमान स्थित में जो प्रदूषण है उसे देखते हुये तब भी देश के दिल्ली और लखनऊ जैसे शहरों में प्रदूषण गंभीर स्तर से 3 गुना ऊपर रहेगा।

शहरों का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का केवल 3 प्रतिशत है लेकिन वह 75 प्रतिशत से अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा है कि सरकार ने ऐसे लक्ष्य रखे हैं जिन्हें तकनीकी रूप से हासिल कर पाना मुमकिन होगा। सरकार को उम्मीद है कि वह लक्ष्य से बेहतर प्रदर्शन कर पायेगी।

देश की राजधानी दिल्ली समेत भारत के कई शहर वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। जानकार कहते हैं कि पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण ख़तरनाक़ स्तर पर है। लेकिन NCAP की घोषणा बहुत उम्मीद जगाने वाली नहीं है। सरकार ने देश के 102 शहरों में 5 साल के लिये वायु प्रदूषण से निबटने का प्रोग्राम जारी किया है। सरकार का ये एक्शन प्लान करीब डेढ़ साल से लटका पड़ा था और जानकार कहते हैं कि सरकार ने 6 डेडलाइन मिस की हैं। इसलिये ज्यादातर जानकार NCAP की घोषणा का स्वागत तो कर रहे हैं लेकिन इसके लक्ष्य और बारीकियों को लेकर अपनी निराशा भी जता रहे हैं।

पहली शिकायत यह है कि सरकार के लक्ष्य अलग अलग सेक्टर के हिसाब से तय नहीं किये गये। यानी इसका कोई रोडमैप नहीं है कि थर्मल पावर प्लांट (कोयला बिजलीघर), परिवहन और उद्योग क्षेत्र से होने वाले प्रदूषण पर ये अलग-अलग सेक्टर कितनी रोक लगायेंगे। अगर इनके लिये लक्ष्य तय नहीं हैं तो बड़ा सवाल उठ जाता है कि कैसे वायु प्रदूषण में एक समग्र सुधार दिखाई देगा।

दूसरा सवाल पैसे को लेकर है। सरकार ने अगले दो साल के लिये कुल 300 करोड़ इस कार्यक्रम के लिये रखा है। जो कि 102 शहरों में खर्च होगा। औसतन एक साल में शहर को 1.5 करोड़ मिलेगा। वायु प्रदूषण की दिक्कत को देखते हुये यह पैसा काफी कम माना जा रहा है। हालांकि सरकार ने कहा है कि वह स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से भी कुछ पैसा निकाल कर इस कार्यक्रम पर खर्च करेगी।


यूपी में प्रदूषण के लिहाज से कुल 15 शहरों की पहचान की गई है। इसमें राजधानी लखनऊ के अलावा आगरा, कानपुर और बनारस जैसे शहरों में प्रदूषण गंभीर स्तर पर है। उधर दिल्ली के करीब नोएडा और गाज़ियाबाद देश की राजधानी को प्रदूषण के मामले में जैसे कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

सबसे हैरान करने वाली बात है कि सरकार ने प्रदूषण रोकने के लिये तय लक्ष्य को लेकर कोई कानूनी बंदिश अथॉरिटीज़ पर नहीं लगाई है। इसका मतलब ये है कि चाहे कोई राज्य या विभाग अगर इसे लागू करने और हासिल करने में नाकाम भी हो जाता है तो उसपर कोई पेनल्टी नहीं होगी।

सारा कार्यक्रम केंद्र ने राज्य सरकारों की रूचि पर छोड़ दिया है। क्लाइमेट एजेंडा के रवि शेखर कहते हैं, "पूरे उत्तर प्रदेश में फिलहाल वायु प्रदूषण की वजह से स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति बनी हुई है। इसे ठीक करने के लिये राज्य सरकर को सख्त कदम उठाने चाहिये क्योंकि ये सवाल देश की भावी पीढ़ी का भी है।"

   

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