सेना की मदद करने वाले गांववालों को 56 साल बाद मिला करोड़ों का मुआवजा

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सेना की मदद करने वाले गांववालों को 56 साल बाद मिला करोड़ों का मुआवजा

1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के 56 साल बाद भारत सरकार ने अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीणों को लगभग 38 करोड़ रुपयों का मुआवजा दिया है। इस युद्ध के दौरान सेना ने अपने बंकर, बैरक, सड़क, पुल वगैरह बनाने के लिए ग्रामीणों की जमीनों का अधिग्रहण किया था। 19 अक्टूबर को अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी खेमांग जिले में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरन रिजीजू और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने गांववालों को मुआवजे की राशि के चेक सौंपे। अरुणाचल के विभिन्न इलाकों में हजारों लोगों को लगभग तीन हजार करोड़ रुपए तक का मुआवजा दिया जाना है।

19 अक्टूबर को आयोजित इस कार्यक्रम में ग्रामीणों को कुल 37.73 करोड़ रुपए दिए गए। चूंकि यह सामुदायिक जमीन थी इसलिए इस रकम को गांववालों के बीच बांटा गया। जिन लोगों को मुआवजे के चेक सौंपे गए, उनमें सबसे अधिक रकम पाने वाले तीन लोग प्रमुख थे- प्रेम दोर्जी ख्रिमे (6.31 करोड़ रुपए), फुंटसो खावा (6.21 करोड़ रुपए) और खांडू ग्लो (5.98 करोड़ रुपए)।

हालांकि, 1962 की यह लड़ाई भारत हार गया था लेकिन अरुणाचल प्रदेश की स्थानीय जनता ने तन,मन, धन से देश की सेना का साथ दिया था। उस समय उन्हें पता नहीं था कि सेना को अपनी जमीन सौंपने की एवज में मुआवजा कब मिलेगा। आखिरकार लगभग पांच दशक बाद 2017 में भारत सरकार ने उन लोगों को मुआवजा देने के लिए पैसे को स्वीकृति दी जिनकी जमीनों का अधिग्रहण हुआ था। अप्रैल 2017 में सरकार ने पश्चिमी कमेंग जिले के तीन गांवों में रहने वाले 152 परिवारों को 54 करोड़ रुपए बांटे थे। सितंबर 2017 में स्थानीय गांववालों को 158 करोड़ रुपयों की एक और किश्त मिली। फरवरी 2018 में भी तवांग जिले के निवासियों को चेक के जरिए 40.80 करोड़ रूपए मुआवजे के रूप में मिले।

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भारत और चीन के बीच छिड़े इस युद्ध में अरुणाचल की जनता ने न केवल अपनी जमीन देकर सेना की मदद की थी बल्कि सेना के गोला-बारूद और भोजन को लाने ले जाने के लिए कुलियों के रूप में भी अपनी सेवाएं दी थीं। भारतीय सेना के आने के बाद इस इलाके में हिंदी का भी काफी प्रचार हुआ। इससे पहले इस इलाके में असमी बोली जाती थी।

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