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कोरोना की दूसरी लहर: शहरों में लॉकडाउन लगने के बाद गांव लौट रहे प्रवासी मजदूर, लेकिन क्वारंटाइन सेंटर की सुविधा कहां है?

कोरोना की दूसरी लहर में कोविड-19 कर्फ्यू और लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूर एक बार फिर गांवों में लौटे रहे हैं। लेकिन, गांवों में कोई क्वारंटाइन सेंटर की सुविधा नहीं है। इससे ग्रामीण भारत में कोरोना संक्रमण के तेजी से फैलने की संभावना बढ़ गई है।
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कर्नाटक सरकार ने 26 अप्रैल को राज्य में पूर्ण लॉकडाउन लगाने की घोषणा की। इसके तीन दिन बाद राज्य की राजधानी बेंगलुरु में ड्राइवर के रूप में काम करने वाले शेखरप्पा देवनगौड़ा ने लगभग 500 किलोमीटर दूर रायचूर में अपने गांव लौटने का फैसला किया।

आठ घंटे से अधिक समय तक यात्रा करने के बाद शेखरप्पा देवनगौड़ा अपने गांव पहुंचे। गांव पहुंचने के बाद सीधेवह अपने घर चले गए। शहरों से लौटने वाले लोगों को अलग करने के लिए गांव में कोई क्वारंटाइन सेंटर नहीं था। 30 वर्षीय शेखरप्पा देवनगौड़ा ने गांव कनेक्शन को बताया, “मैं सीधे अपने गांव पहुंचकर घर गया। मुझे क्वारंटाइन सेंटर में रहने के लिए नहीं कहा गया था।”

PHOTO-2: शेखरप्पा देवनगौड़ा, प्रवासी मजदूर

रायचूर के उत्तर-पूर्व में लगभग 2 हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित बिहार के गांवों में भी ऐसी ही स्थिति है। कोसी सेवा सदन, बिहार के सचिव राजेंद्र झा ने गांव कनेक्शन को बताया कि प्रवासी मजदूर अपने गांवों में वापस आ रहे हैं। आज सुबह मुंबई से प्रवासी मजदूरों का एक ग्रुप ट्रेन से आया फिर ऑटो से सीधे अपने घर चला गया।

उन्होंने आगे बताया, “पिछले साल शहरों से लौटने वाले लोगों का स्टेशनों और क्वारंटाइन सेंटर में कोरोना टेस्ट हुआ था। लेकिन, इस बार कुछ भी नहीं हुआ है, जिसके कारण कोरोना गांवों में फैल रहा है।”

कोविड-19 की दूसरी लहर से पूरा भारत बुरी तरह कराह रहा है। देश में पिछले 24 घंटे में  (8 मई) 401,000 से अधिक नए मामले सामने आए और 3,915 लोगों की मौतें हुई हैं। कोरोना की दूसरी लहर को लेकर विशेषज्ञ बताते हैं, पहली लहर की तुलना में यह अधिक संक्रमाक है और कोरोना वायरस ने ग्रामीण भारत में पहले से ही प्रवेश कर लिया है।

शहरों में कोरोना वायरस महामारी को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन लगाया गया है। प्रवासी मजदूर शहरों से लौटकर अपने गांवों में जा रहे हैं। लेकिन, इस बार गांवों में कोई क्वारंटाइन सेंटर नहीं बनाया गया है। आपको बता दें कि पिछले साल प्रवासी मजदूरों के लिए गांवों में क्वारंटाइन सेंटर बनाए गए थे।

बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के अटमोहन गांव के रहने वाले 21 वर्षीय सरोज कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, “पिछले बीस दिनों से प्रवासी मजदूर पंजाब, कर्नाटक और महाराष्ट्र से आ रहे हैं। किसी से कोई पूछताछ नहीं की जा रही है, किसी का कोरोना टेस्ट नहीं किया जा रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “कोरोना मामले इतने अधिक होने के बावजूद भी गांवों में कोई क्वारंटाइन सेंटर नहीं बनाए गए हैं। गांव में लगभग हर घर में सर्दी और बुखार से लोग पीड़ित हैं।”

ग्राम स्तरीय क्वारंटाइन सेंटर

पिछले साल कोरोना वायरस की पहली लहर के दौरान कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए भारत सरकार ने गांव लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को 14 दिन के लिए क्वारंटाइन सेंटर में रहने की सलाह दी थी। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार क्वारंटाइन सेंटर में प्रकाश, वेंटिलेशन, बिजली, छत वाला पंखा, पीने योग्य पानी, भोजन, नाश्ता और मनोरंजन समेत स्वच्छता की सुविधा को शामिल किया गया।

इस साल जब कोरोना वायरस की दूसरी लहर अपने चरम स्तर पर है और हर दिन हजारों लोगों की मौत हो रही है तो ये सभी क्वारंटाइन सेंटर खाली पड़े हैं, भले ही देश के कई राज्यों में कोरोना कर्फ्यू और लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों की एक बड़ी संख्या अपने गांवों में लौट रही है। अगर इन प्रवासी मजदूरों को क्वारंटाइन सेंटर में नहीं रखा जाता है तो गांवों में कोविड-19 के मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी देखी जा सकती हैं।

राजस्थान में गैर-लाभकारी संगठन ‘आजीविका ब्यूरो’ के सदस्य संतोष पुनिया ने गांव कनेक्शन को बताया कि इस बात की संभावना है कि प्रवासी मजदूर बिना किसी कोरोना टेस्ट के अपने घरों को जाते हैं तो गांवों में कोरोना के मामलों में वृद्धि होगी।’आजीविका ब्यूरो’ प्रवासी मजदूरों की भलाई के लिए काम करने वाला संगठन है।

उत्तर प्रदेश के एक गांव में क्वारंटाइन सेंटर। (फाइल फोटो)

संतोष पुनिया ने आगे बताया, “ग्रामीण क्षेत्रों में पिछले वर्ष की तुलना में कोविड-19 के मामलों में पहले से वृद्धि हुई है। कोरोना टेस्ट अभी भी कम है। अगर कोरोना टेस्ट बढ़ाया जाता है तो कोरोना के मामलों में वृद्धि होगी।

उन्होंने आगे गांव कनेक्शन को बताया, “राज्य सरकारों ने प्रवासी मजदूरों का टेस्ट कराने और 70 घंटे के अंदर रिजल्ट देने के आदेश दिए हैं। जिन मजदूरों के पास कोरोना रिपोर्ट नहीं है, उन्हें 15 दिनों के लिए क्वारंटाइन सेंटर में रहने का आदेश दिया गया है। लेकिन, इसका कड़ाई से पालन नहीं किया जा रहा है। अब तक क्वारंटाइन सेंटर की कोई व्यवस्था नहीं हुई है।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा में सीतलाखेत गांव निवासी श्रेष्ठ पाठक की भी ऐसी ही आशंका है। वह दिल्ली में एक आईटी फर्म में काम करते हैं और पिछले साल लॉकडाउन के दौरान वह घर लौटे थे। “पिछले साल जब मैं गाँव लौटा तो मुझे चौदह दिनों के लिए क्वारंटाइन सेंटर में रहना पड़ा था। इस साल ऐसा कुछ नहीं हो रहा है।” 25 वर्षीय श्रेष्ठ पाठक ने गांव कनेक्शन को बताया।

श्रेष्ठ पाठक ने दावा किया कि इस साल पहाड़ी गांवों में कोरोना वायरस अपना रास्ता बना रहा है, ग्रामीण और अधिकारी लापरवाह हो गए हैं। श्रेष्ठ पाठक ने बताया कि उनके गांव में अधिकांश लोग हाल ही में दिल्ली, जयपुर (राजस्थान) और बेंगलुरु (कर्नाटक) जैसे कोरोना-19 हॉटस्पॉट इलाकों से लौटे हैं।

ट्रेकिंग आइटम जैसे टेंट और स्लीपिंग बैग का प्रयोग करके उत्तराखंड के पहाड़ी गांवों में क्वारंटाइन सेंटर स्थापित किए गए हैं। (फाइल फोटो)

बिहार में पश्चिम चंपारण के सरोज कुमार के अनुसार प्रवासी मजदूरों के अलावा हर दिन लोग पड़ोसी देश नेपाल से भी आते हैं। उन्होंने कहा कि लोग नेपाल से सामान खरीदने और बेचने के लिए आते हैं, लेकिन सीमा पर कोई कोरोना टेस्ट नहीं होता है। केवल राहत की बात यह है कि इस साल ग्रामीण मास्क पहनने को लेकर गंभीर हैं।

गांव कनेक्शन ने सिद्धार्थनगर के जिला मजिस्ट्रेट दीपक मीणा से संपर्क किया तो उन्होंने इस तरह के आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि जिला प्रशासन लौटे रहे प्रवासी मजदूरों का कोरोना टेस्ट कर रहा है।दीपक मीणा ने यह भी बताया कि प्रशासन क्वारंटाइन सेंटर स्थापित कर रहा है और प्रवासी मजदूरों के लिए सामुदायिक रसोई शुरू कर रहा है।

“हर तहसील में इस तरह के दो केंद्र बनाए गए हैं (इस जिले में पांच तहसील शामिल हैं)। हमने यहां प्रवासी मजदूरों के खाने और रहने की व्यवस्था की है। जिनके घर में सुविधाएं नहीं हैं, उन्हें इन केंद्रों में रखा जाता है।” दीपक मीणा ने गांव कनेक्शन को बताया।

यूपी सरकार ने ग्राम प्रधानों से सरकारी भवनों में प्रवासी मजदूरों के लिए क्वारंटाइन सेंटर बनाने को कहा है। (फाइल फोटो)

सिद्धार्थनगर के जिला मजिस्ट्रेट दीपक मीणा नेआगे बताया “अगर प्रवासी मजदूरों की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आती है और लक्षण नहीं दिखते हैं तो हम उन्हें घर भेजते हैं। अगर उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आती है, लेकिन लक्षण दिखते हैं तो हम आरटी-पीसीआर जांच तक क्वारंटाइन सेंटर में रहने के लिए कहते हैं। अगर उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो उन्हें स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में भेजा जाता है या होम आइसोलेशन में रहने के लिए कहा जाता है।”दीपक मीणा नेकहा कि पिछले साल होम आइसोलेशन की अनुमति नहीं थी।

फेक कोविड-19 निगेटिव रिपोर्ट

कई राज्यों के गाइडलाइन के अनुसार सभी प्रवासी मजदूरों को आरटी-पीसीआर टेस्ट करवाना आवश्यक है। बिना कोविड-19 निगेटिव रिपोर्ट के किसी को भी अपने मूल राज्यों में जाने की अनुमति नहीं है। हालांकि, जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग है।

अल्मोड़ा के श्रेष्ठ पाठक ने आरोप लगाया कि गांव की बाड़बंदी करने वाले लोग एक हजार रुपये की रिश्वत लेते हैं और प्रवासी मजदूरों को कोविड-19 निगेटिव रिपोर्ट देते हैं। हम इसे कैसे रोक सकते हैं?

“प्रवासी मजदूर गांव में आसानी से इधर-उधर घूम रहे हैं। अगर हम उन्हें मास्क पहनने या कोरोना टेस्ट कराने को कहते हैं तो वे कहते हैं, “कोरोना निकल जाएगा तो हमारी बदनामी होगी।” श्रेष्ठ पाठक ने आगे गांव कनेक्शन को बताया।

राजस्थान के बाड़मेर जिले के सारा धनजी गांव निवासी 25 वर्षीय थाराम चौधरी ने भी इसी तरह का आरोप लगाया। उन्होंने दावा, मेरे गांव में कई लोग फेक कोविड-19 निगेटिव रिपोर्ट के साथ आंध्र प्रदेश से लौटे हैं। लौटने वाले 10 फीसदी से ज्यादा लोगों ने कोविड-19 का जांच नहीं कराया है और उनके पास फेक कोविड-19 निगेटिव रिपोर्ट हैं।

पिछले साल 64% प्रवासी मजदूर क्वारंटाइन सेंटर में गए थे

पिछले साल गांव कनेक्शन द्वारा किए गए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में पता चला कि 64 प्रतिशत से अधिक प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्यों / जिलों में लौटने पर क्वारंटाइन सेंटर में भेजा गया था।

इनमें से आधे को होम आइसोलेशन में रखा गया था और आधे को स्कूलों और अन्य सरकारी भवनों में रखा गया था, जिसे क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया था। 44 फीसदी प्रवासी मजदूरों को 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया था।

इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

अनुवाद- आनंद कुमार

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