कोरोना से लड़ाई में सबसे आगे रहीं आशा कार्यकर्ता एक बार फिर सड़क पर क्यों ?

कोरोनाकाल में स्वास्थ्य विभाग की सबसे अहम कड़ी रही आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एक बार फिर 26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल में शामिल होंगी। ये अपनी सुरक्षा, निर्धारित मानदेय, काम के घंटे और सरकारी कर्मचारी के दर्जा को लेकर हमेशा से मांग करती आयी हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   24 Nov 2020 3:55 PM GMT

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कोरोना से लड़ाई में सबसे आगे रहीं आशा कार्यकर्ता एक बार फिर सड़क पर क्यों ?

कोविड-19 महामारी से लड़ती गुमनाम "कोरोना वॉरियर्स" एक बार फिर 26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल करने के लिए मजबूर हैं। यह कोई पहला मौका नहीं है जब स्वास्थ्य विभाग की महत्वपूर्ण कड़ी रही आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हड़ताल पर रहेंगी। इससे पहले भी ये अपनी मांगों को लेकर कई बार धरना-प्रदर्शन करके रोष जताती आयी हैं।

आशा कार्यकर्ता उषा ठाकुर गाँव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "इस समय आशा कार्यकर्ता बहुत परेशान हैं। बिना हमारी सहूलियत देखे हमें कोई भी काम दे दिया जाता है, न हमारे काम के घंटे फिक्स और न सुरक्षा को लेकर कोई इंतजाम। सबसे बड़ी बात काम के बाद पैसे के नाम पर कुछ भी नहीं। हमारे काम के घंटे निर्धारित हों और मानदेय फिक्स किया जाए। पिछली बार जुलाई में जब हमने हड़ताल की थी तब सरकार के साथ हमारे कुछ समझौते हुए थे, अभी तक उन समझौतों को लागू ही नहीं किया गया, इसलिए हम 26 नवंबर को फिर हड़ताल कर रहे हैं।"

ये मुश्किल सिर्फ उषा ठाकुर की नहीं है बल्कि देश की लगभग 10 लाख आशा कार्यकर्ता इन मुश्किलों से जूझ रही हैं। इन आशा कार्यकर्ताओं ने कोविड-19 के दौरान स्वास्थ्य विभाग की तरफ से दी गयी तमाम जिम्मेदारियों को संभाला है। जिसके बदले में इन्हें केंद्र सरकार ने अप्रैल से जून तक हर महीने 1,000 रूपये इंसेंटिव दिया। जुलाई के बाद ये पैसा भी बंद कर दिया गया, कई जगह ये पिछला पैसा इन्हें अभी तक मिला ही नहीं। ये अपनी सुरक्षा, निर्धारित मानदेय, काम के घंटे और सरकारी कर्मचारी के दर्जा को लेकर हमेशा से मांग करती आयी हैं। इनका आरोप है कि इनकी मांगों को हर बार सरकार नजरअंदाज कर देती हैं।

देशभर में 26 नवंबर को होने वाली देशव्यापी हड़ताल में सिर्फ आशा और आँगनबाड़ी ही नहीं बल्कि देश के 10 केंद्रीय श्रमिक संगठनों के कर्मचारी और राज्यों के असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं जिससे उस दिन कामकाज पूरी तरह से ठप होने की संभावना है।

हड़ताल पर क्या कहते हैं आशा संगठन? देखें पूरा वीडियो

उषा कहती हैं, "जो इंसेंटिव मिल रहा था वो पहले से ही बहुत कम था, बढ़ाने के बजाए सरकार ने बंद ही कर दिया। पिछली हड़ताल में सरकार ने हमें ये भरोसा दिलाया था कि किसी भी तरह का सर्वे अगर कोई आशा कार्यकर्ता से करवाया जाएगा तो बदले में हर घर का 10 रूपये दिया जाएगा। अगर कंटेनमेंट जोन में जो आशा काम करेगी उसे दिन का 500 रूपये दिया जाएगा। ये दोनों मांगे हमारी अबतक पूरी नहीं की गईं, कुछ मांगे पूरी हुई थीं पर मुख्य मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया।"

उषा ठाकुर दिल्ली में आशा कार्यकर्ताओं के संगठन 'दावा यूनियन' की जनरल सेक्रेटरी हैं। देशभर में अलग-अलग राज्यों में आशा कार्यकर्ताओं के बने संगठन राज्य स्तर पर 26 नवंबर को हड़ताल करेंगे। जुलाई महीने में भी इन आशा कार्यकर्ताओं ने पंजाब से लेकर दिल्ली तक अपनी मांगों को लेकर अलग-अलग तरीके से प्रदर्शन कर सरकार के रवैए पर रोष जताया था। दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रही कई आशा कार्यकर्ताओं पर एफआईआर भी दर्ज हो गयी थी।

इन संगठनो की वही मांगे हैं जिनको लेकर ये हमेशा से नाराजगी जाहिर करती आयी हैं। महामारी से लड़ती इन गुमनाम "कोरोना वॉरियर्स" की सरकार से मुख्य मांग यही है कि इन्हें निर्धारित मानदेय दिया जाए, इनके रिटायर्मेंट की उम्र को बढ़ाया जाए, इनकी सुरक्षा को लेकर सरकार संवेदनशील रहे और काम के घंटे फिक्स हों। राज्य सरकारें हमेशा इन आशा कार्यकर्ताओं की सुरक्षा में असफल रही हैं।


26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल में आशा और आँगनबाड़ी कार्यकर्ता, मिड-डे मील, बैंक, रोडवेज, रेलवे, बीएसएनएल, जीवन बीमा निगम, डाक, पेयजल, बिजली विभाग के कर्मचारियों समेत और औद्योगिक क्षेत्रों के संगठन भी शामिल रहेंगे। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार की मजदूर और श्रमिक विरोधी नीतियों और किसान विरोधी पारित कानून के खिलाफ भी कई किसान संगठन इस हड़ताल का समर्थन कर रहे हैं।

आशा कर्मचारी यूनियन, उत्तर प्रदेश की स्टेट प्रेसिडेंट डॉ वीना गुप्ता इस हड़ताल को लेकर कहती हैं, "आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की सबसे खराब स्थिति यूपी में है। कोविड की ड्यूटी में केंद्र सरकार के इंसेंटिव के अलावा कई राज्यों ने अलग से भी पैसा दिया लेकिन यूपी में ऐसा नहीं हुआ। इनके पास काम इतने सारे और पैसे के नाम पर दिन के 32-33 रुपए, सरकार खुद सोचे क्या ये पैसा इनके काम के हिसाब से पर्याप्त है, वो भी जुलाई से बंद कर दिया गया।"

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2018 तक देश में कुल आशा कार्यकर्ताओं की संख्या लगभग 10 लाख 31,751 है। इन आशा कार्यकर्ताओं के पास अपने गाँव की पूरी जानकारी है जो इन्होंने स्वास्थ्य विभाग को मुहैया कराई है। गाँव में कितने लोग दूसरे राज्यों से आये हैं, किसे खांसी-जुखाम, बुखार है, कितने लोगों की कोविड-19 की जांचे हुई हैं या होनी हैं? क्वारेंटाइन हुए लोगों का 14 दिनों तक फालोअप करना, सर्वे करना जैसे कई काम शामिल हैं। ये घर-घर जाकर लोगों को सही तरीके से हाथ धुलने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने और मास्क लगाने के फायदे भी बताती हैं।

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