शिया वक्फ बोर्ड : विवादित जमीन पर राम मंदिर ही बनना चाहिए

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शिया वक्फ बोर्ड : विवादित जमीन पर राम मंदिर ही बनना चाहिएप्रतीकात्मक फ़ोटो 

खादिम अब्बास रिजवी

जौनपुर। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में मंगलवार को एक नया मोड़ आ गया है। दरअसल, शिया वक्फ बोर्ड ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करते हुए कहा है कि विवादित जमीन पर राम मंदिर ही बनना चाहिए। वहीं मस्जिद थोड़ी दूर पर मुस्लिम बाहुल्य इलाके में बनना चाहिए। वहीं शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से यह दावा किया गया कि है कि बाबरी मस्जिद शिया वक्फ की थी। इसलिए इस मामले में दूसरे पक्षकारों के साथ बातचीत और एक शांतिपूर्ण समाधान तक पहुंचने का अधिकार केवल शिया वक्फ बोर्ड के पास ही है। हालांकि बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी ने इस मामले पर कहा कि कि कानून की नजर में इस हलफनामे की कोई अहमियत ही नहीं है।

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शिया वक्फ बोर्ड ने दायर हलफमाने में कहा है कि अगर मंदिर-मस्जिद का निर्माण हो गया तो इस लंबे विवाद और रोज-रोज की अशांति से मुक्ति मिल जाएगी। उधर, अयोध्या विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय बेंच का गठन किया गया है। यह बेंच 11 अगस्त ने इन याचिकाओं की सुनवाई करेगी। इस तीन सदस्यीय खंडपीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं। यह खंडपीठ अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद भूमि के मालिकाना हक को लेकर चल रहे विवाद का निर्णय करेगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 2010 में अपनी व्यवस्था में इस भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच तीन हिस्सों में बराबर-बराबर बांटने का निर्देश दिया था। गौरतलब है कि पिछले दिनों एक घटनाक्रम में उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े मामलों में पक्ष बनने का फैसला किया है। बोर्ड अध्यक्ष वसीम रिजवी ने कहा था कि बोर्ड सदस्यों की राय है कि वक्फ मस्जिद मीर बकी, जिसे अयोध्या में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। इस मस्जिद को बाबर के समय में मीर बकी ने बनवाई थी। यहा शियाओं की मस्जिद थी। मीर बकी भी शिया थे। रिजवी ने दावा किया कि इस तथ्य के अनुसार वह शिया मस्जिद थी। केवल मस्जिद के इमाम ही सुन्नी थे। जिन्हें शिया मुतवल्ली पारिश्रमिक देते थे और वहां शिया-सुन्नी दोनों ही नमाज पढ़ते थे। बोर्ड सदस्यों के नजरिये से मीडिया को अवगत कराते हुए रिजवी ने कहा था कि 1944 में सुन्नी बोर्ड ने मस्जिद अपने नाम से पंजीकृत करा ली थी। जिसे शिया बोर्ड में 1945 में अदालत में चुनौती दी थी लेकिन शिया वक्फ बोर्ड यह मुकदमा हार गया था।

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उन्होंने कहा कि इन वर्षों में किसी ने उक्त आदेश की समीक्षा के लिए हाईकोर्ट या किसी अन्य अदालत में याचिका दायर नहीं की। अब मेरे पास आदेश की प्रति है और मुझे बोर्ड ने जिम्मेदारी दी है कि मस्जिद के स्वामित्व पर दावा पेश किया जाए। इसी क्रम में मंगलवार को शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। इस बीच शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामे पर प्रतिक्रिया देते हुए बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा, 'यह सिर्फ एक अपील है और कानून में इसकी कोई अहमियत नहीं है।'

क्या था हाईकोर्ट का फैसला

आपको बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने वर्ष 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों में बांटने का आदेश दिया था। उसने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में समान रूप से बांटने का आदेश दिया था। हालांकि इस फैसले के खिलाफ सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इस नाते सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी।

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