बाबरी विध्वंस मामले में आडवाणी, जोशी और उमा भारती को सुप्रीम कोर्ट से झटका, चलेगा केस

Anusha MishraAnusha Mishra   19 April 2017 4:01 PM GMT

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बाबरी विध्वंस मामले में आडवाणी, जोशी और उमा भारती को सुप्रीम कोर्ट से झटका, चलेगा केसबाबरी विध्वंस मामला।

नई दिल्ली। 25 साल पुराने बाबरी विध्वंस मामले में अाज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, भाजपा के वरिष्ठ नेता और कार सेवक दल के अगुआ लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ इस मामले में केस चलेगा। हालांकि राज्यपाल पद पर होने के कारण कल्याण सिंह को फायदा मिला है और फिलहाल उनपर कोई केस नहीं चलेगा।

आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित 13 आरोपियों पर धारा 120 बी के तहत आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने का सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार दो साल के अंदर मामले की सुनवाई पूरी होगी और फैसला आने तक जजों का ट्रांसफर नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने 4 हफ्तों में सुनवाई शुरू करने का आदेश दिया है साथ ही सीबीआई से कहा हैकि वह इस मामले में सभी गवाहों की मौजूदगी सुनिश्चित करे। विपक्ष से सरकार को इस मामले में घेरना शुरू कर दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कल्याण सिंह और उमा भारती के इस्तीफे की मांग की है।

इससे पहले बाबरी विध्वंस मामले में छह अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखते समय कोर्ट ने कहा था कि 25 साल से लंबित इस मामले को दो साल में निपटा देना चाहिए, चाहे मामले की रोजाना सुनवाई की जाए। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय अनुसार इस केस की लखनऊ हाईकोर्ट में रोजाना सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में दो अलग-अलग अदालतों में चल रही सुनवाई एक जगह क्यों न हो? कोर्ट ने पूछा था कि रायबरेली में चल रहे मामले की सुनवाई को क्यों न लखनऊ ट्रांसफर कर दिया जाए, जहां कारसेवकों से जुड़े एक मामले की सुनवाई पहले से ही चल रही है।

इस मामले में सीबीआई ने एसएलपी यानी स्पेशल लीव पिटीशन दाखिल कर ढांचा ढहने के मामले में तकनीकी आधार पर आरोपमुक्त हो गये नेताओं पर आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाए जाने की मांग की थी। सीबीआई ने हाईकोर्ट के 20 मई 2010 के आदेश को चुनौती दी थी। जिसमें हाईकोर्ट ने 21 नेताओं को आरोपमुक्त कर दिया था। इनमें से आडवाणी जोशी सहित 8 नेताओं पर रायबरेली की अदालत में मुकदमा चल रहा है लेकिन उसमें साजिश के आरोप नहीं हैं। बाकी के 13 लोग पूरी तरह छूट गए थे। 13 में 7 की मृत्यु हो चुकी है। बचे लोगों में कल्याण सिंह प्रमुख हैं जो ढांचा ढहने के समय प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और इस समय राजस्थान के राज्यपाल हैं। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति पीसी घोष व न्यायमूर्ति आरएफ नारिमन की पीठ ने की थी। बहस के दौरान पक्षकारों की ओर से निम्न दलीलें दी गईं थीं।

इससे पहले, सीबीआई ने आरोपमुक्त हुए 21 लोगों पर साजिश में मुकदमा चलाने की मांग करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने ये कह कर तकनीकी आधार पर आरोप निरस्त किये थे कि एफआइआर संख्या 198 (8 नेताओं का मामला) को रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर करने की अधिसूचना के समय हाईकोर्ट से अनुमति नहीं ली गई। लेकिन हाईकोर्ट ने ये भी कहा था कि प्रथमदृष्टया अभियुक्तों पर मामला बनता है। उसने संयुक्त आरोपपत्र को भी ठीक कहा था। सीबीआई ने कहा कि नेताओं पर रायबरेली में वापस मुकदमा चलने लगा लेकिन वहां उन पर साजिश के आरोप नहीं हैं। परन्तु बाकी 13 तो पूरी तरह छूट गए उन पर कहीं मुकदमा नहीं चल रहा।


इस मामले में नेताओं के वकील ने कहा कि मुकदमा रायबरेली से लखनऊ स्थानांतरित नहीं हो सकता न ही उन पर साजिश का केस चलाया जा सकता है। कोर्ट अनुच्छेद 142 की शक्तियों का इस्तेमाल करके भी ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि इससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन होता है। अगर मुकदमा लखनऊ स्थानांतरित हुआ तो रोजाना सुनवाई के बावजूद 2 साल मे नहीं निपटेगा क्योंकि नये सिरे से सुनवाई होगी और 800 गवाहों से जिरह होगी। सीबीआई के पास अगर साजिश के सबूत हैं तो वो रायबरेली में पूरक आरोपपत्र दाखिल कर सकती है। साथ ही कहा था कि असलम भूरे केस में कोर्ट का फैसला अंतिम हो चुका है जिसमें कोर्ट ने रायबरेली में मुकदमा चलाने की बात कही है। ये फैसला सभी पर बाध्यकारी है।

1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 13 नेताओं पर आपराधिक साजिश रचने के आरोप हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई थी और अब कल्याण सिंह को छोड़कर बाकी सारे 13 नेताओं पर आपराधिक मुकदमा चलेगा। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महज टेक्निकल ग्राउंड पर इनको राहत नहीं दी जा सकती और इनके खिलाफ साजिश का ट्रायल चलना चाहिए लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की ओर से इसका विरोध किया गया था और कहा गया कि इस मामले में 183 गवाहों को फिर से बुलाना पड़ेगा जो काफी मुश्किल है। कोर्ट को साजिश के मामले की दोबारा सुनवाई के आदेश नहीं देने चाहिए।

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