बनारस में ललिता घाट पर कॉरिडोर निर्माण से पानी का रंग बदलने के बाद क्या गंगा के अर्धचंद्राकार रूप पर पड़ेगा असर?

कहा जा रहा है काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनकर जब तैयार होगा तो बनारस की खूबसूरती में 4 चांद लग जाएंगे। लेकिन निर्माण कार्य के बाद जिस तरह से ललिता घाट पर गंगा के पानी का रंग बदला है। नदी के जानकार और बनारस प्रेमी गंगा और उसके बहाव में कई बदलावों की आशंका जता रहे हैं।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। बनारस में ललिताघाट के आसपास गंगा के पानी के रंग बदलने को लेकर बनारस और गंगा के प्रेमियों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। प्रशासन इस हरे रंग (काई-शैवाल) के लिए मिर्जापुर के सीवर प्लांट की गंदगी को जिम्मेदार बता रहा है लेकिन नदी के जानकारों के मुताबिक घाटों पर हो रहे निर्माण से न सिर्फ गंगा का पानी ठहरा है बल्कि आने वाले समय में गंगा घाटों से दूर होंगी बल्कि उसका अर्धचंद्राकार रूप भी संकट में पड़ सकता है।

बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुचर्चित प्रोजेक्ट ‘काशी विश्वनाथ कॉरिडोर’ का निर्माण विश्वनाथ मंदिर से ललिता घाट तक हो रहा है। इस कॉरिडोर में नदी के भीतर लगभग 100 फीट लंबा और 150 फीट चौड़ा रैंप बनाया गया है, जिससे पानी का बहाव रुक गया है। ललिता घाट के आस पास के कई घाटों पर पानी हरा हो गया है। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि यह काई और अन्य मलबा मिर्जापुर के एसटीपी ( Sewage treatment plant) से आया है।

मिर्जापुर से बनारस की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है तो काई ललिता घाट के निर्माणाधीन क्षेत्र के आसपास ही क्यों जम रही है? लोगों के मन ये सवाल भी उठ रहे हैं।

ललिता घाट से सटे मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार में प्रयोग होने वाले सामान बेच रहे देव कुमार बताते हैं, “हम रोज सुबह गंगा जी जाते हैं, लेकिन पानी का हरा होना हम नहीं देखे थे। यह जो भी हो रहा है पहली बार है। कॉरिडोर के चलते गंगा जी का पानी रुक गया है, हमारी दुकानदारी रुक गई है। हम लोगों में इसकी कोई खुशी नहीं है।”

वाराणसी के अपर नगर आयुक्त देवी दयाल वर्मा ने पानी के हरे होने के लिए मिर्जापुर से आई काई को जिम्मेदार बताया तो पानी के ठहराव होने से इनकार किया।

गांव कनेक्शन से उन्होंने कहा, ‘दरअसल, मिर्जापुर का एसटीपी पुराने मॉडल पर चल रहा है। यह काई वहीं से आई है। ये पानी जमने के कारण नहीं है। फिलहाल पानी का केमिकल ट्रीटमेंट किया गया है। नदी का फ्लो बना हुआ है। हमारे यहां से पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आर.ओ. कालिका सिंह और एसीएम महेंद्र श्रीवास्तव जी भी गए थे, पूरा सर्वे किया था। इस पर डीएम साहब का वर्जन भी आया था। जो ये कह रहे हैं कि पानी कॉरिडोर के रैंप से रुक गया है वो निगेटिव लोग हैं।” 

वर्मा के मुताबिक गंगा के पानी का रंग हरा होने पर जिलाधािकारी वाराणसी कौशल राज शर्मा ने 8 जून को 5 सदस्यीय कमेटी गठित कर रिपोर्ट मांगी थी, इस समिति को 3 दिन में रिपोर्ट देना था। समिति ने  पाया कि पानी को हरा करने वाले शैवाल मिर्जापुर की विंध्याचल एसटीपी से बहकर आए हैं। 

काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के पांच लाख वर्ग फीट के एरिया में सिर्फ 30 फीसदी क्षेत्र में निर्माण हो रहा है। इस कॉरिडोर के लिए गंगा किनारे ललिता घाट से मणिकार्णिका घाट के बीच सीढ़ी बननी है। साथ ही जलासेन घाट के पास कॉरिडोर के खुला मंच का भी निर्माण प्रस्तावित है। नदी के भीतर हो रहे इस निर्माण से पड़ने वाले प्रतिकूल असर को लेकर बनारस और नदी के लोग चिंतित हैं।

“निर्माण के लिए पहले मां गंगा के भीतर ललिता घाट पर कॉरिडोर का मलबा भरा गया है। नदी के भीतर ही दो-दो दीवारें बनाई गई हैं, इस मलबे और दीवार से ही धार बदल रही है और पानी रुका हुआ है। यही कारण है कि पानी हरा हो गया है और पानी में काई पड़ रही है।” गंगा पर लंबे समय से रिसर्च कर रहे संकटमोचन मंदिर के महंत और आईआईटी बीएचयू में फिजिक्स भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर पं. विश्वंभरनाथ मिश्र कहते हैं।

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वाराणसी में नदी के किनारे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के तहत जारी निर्माण कार्य। फोटो- शाश्वत उपाध्याय

गंगा को लेकर पिछले कई वर्षों से लगातार खबरें लिख रहे और आईटीआई लगाने वाले स्वतंत्र पत्रकार अवधेश दीक्षित के मुताबिक नदी के धार को प्रभावित कर दिया गया लेकिन कोई रिसर्च नहीं की गई है। वो कहते हैं, ” जब आप नदी के भीतर कोई निर्माण कर रहे हैं तो उसके फ्लो पर तो असर पड़ेगा ही। इसकी रिसर्च हुई ही नहीं है। हुई है तो रिसर्च सार्वजनिक की जाए। कौन किया मेंबर का ही नाम बता दिया जाए।”

गंगा के भीतर हो रहे निर्माण पर रिसर्च की टीम या अन्य सर्वेक्षणों की जानकारी के लिए नगर आयुक्त गौरंग राठी से बात करने की कोशिश की। गांव कनेक्शन की बात अपर नगर आयुक्त देवी दयाल वर्मा से हुई। उनके मुताबिक वैज्ञानिकों की टीम ने रिसर्च किया है। उन्होंने कहा, ‘देखिए, बकायदे वैज्ञानिक प्रशिक्षण हुआ है। गंगा के किसी भी निर्माण में ये होता है। एक्सपर्ट ने सर्वे किया है।”

बनारस में गंगा उत्तरवाहिनी हैं और पौराणिक महत्वों वाला अर्धचंद्राकार रूप लेती हैं। यानी फ्लो के विपरीत बहती हैं। नदी प्रमियों को आशंका है पक्के निर्माण से उनकी दिशा बदल सकती है। फोटो कॉरिडोर का जारी निर्माण कार्य। 

बदल जाएगा अर्धचंद्राकार रूप?

कहा जाता है कि बनारस में गंगा उत्तरवाहिनी हैं और पौराणिक महत्वों वाला अर्धचंद्राकार रूप लेती हैं। यानी फ्लो के विपरीत बहती हैं। ललिता घाट पर ही गंगा अर्धचंद्राकार स्वरूप लेती हैं। अब वहीं पर बांधनुमा रैंप बन रहा है। क्या इसका असर गंगा का अर्धचंद्राकार स्वरूप पर भी पड़ेगा?

“ललिता घाट का स्वरूप बिगड़ जाएगा, यहीं से धारा का डाइवर्ज़न होता है। इस रैंप से नदी घाट छोड़ देगी और पानी की गहराई कम हो जाएगी। इससे दशाश्वमेध से लेकर अस्सी तक बालू व सिल्ट भारी मात्रा में जमा हो जाएगी। ललिता घाट के बाद वरुणा पार तक मालवीय पुल के पास कटाव होगा।” आईआईटी बीएचयू में प्रोफेसर रहे और नदी विज्ञान पर लंबे समय से काम कर रहे प्रो. यू के चौधरी कहते हैं।

वे आगे कहते हैं, “ललिता घाट पर बनाया गया बांध 90 डिग्री के कोण पर बनाया गया है। यह सीधे प्रवाह को रोकेगा। इससे जो हानियां होंगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। नदी का प्रवाह पूरब की तरफ हो जाएगा। यह स्वरूप एसा हो जाएगा कि आगे कई घाटों पर फिर मिट्टी हटाते नहीं बनेगा।”

आईआईटी बीएचयू के दोनों प्रोफेसर यूके चौधरी और प्रोफेसर पं. विश्वंभरनाथ मिश्र गंगा के अर्धचंद्राकार स्वरूप पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित नजर आते हैं।

प्रोफेसर पं. विश्वंभरनाथ मिश्र कहते हैं, ”धीरे-धीरे इसका असर नदी के अर्धचंद्राकार स्वरूप पर पड़ने वाला है। यहां कुछ ही समय में ललिता घाट के आस पास ठीक वैसे ही मिट्टी जमा हो जाएगी जैसे आज नये अस्सी घाट से गंगा महल घाट के बीच में देखने को मिलती है। गंगा नदी नहीं हैं ये बनारस का जीवन हैं। यह निर्माण बिना काशी की महत्ता को देखे समझे किया जा रहा है जिसका नुकसान आने वाले कुछ सालों में ही सामने आ जाएगा।”

एक तरह जहां गंगा के विशेषज्ञ आशंकाएं जता रहे हैं सरकारी और इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोग इन आशंकाओं को नकार रहे।

सर्वे की रिपोर्ट और उसमें शामिल वैज्ञानिकों अथवा एक्सपर्ट्स के बारे में जानने के लिए हमने काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के सीइओ सुनील वर्मा से बात करने की कोशिश की, उन्होंने कहा कि गंगा की धार में हमारे निर्माण कार्य की वजह से काई नहीं जमी है, वहां तो काम चल रहा है। इन्वॉयरमेंटल इम्पैक्ट एसिस्मेंट रिपोर्ट और प्री फिज़बलीटि रिपोर्ट पर सुनील वर्मा ने कहा, “यहां के निर्माण के लिए 2018 में ही जल प्राधिकरण, नगर निगम सहित जहां-जहां से जरूरी थी हमें NOC वगैरह मिला हुआ है। पीडब्ल्यूडी कार्यदायी संस्था है।”

नदी के घाट छोड़ देने की आशंका और उसके प्रभावों पर सुनील वर्मा ने कहा, “अभी तो ये निर्माणाधीन है। अभी इस पर कैसे कमेंट कर दूं। बाकी जो इंजिनियर्स हैं वे चीजों को देख कर ही बना रहे हैं। वहां एसे पत्थर लगाए जा रहे हैं जिसपर काई लगती ही नहीं है। निर्माण के बाद कुछ प्रभाव पड़ता है तो वो कैसे ठीक करना है ये हमारी जिम्मेदारी होगी।”

ललिता घाट पर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए जारी निर्माणकार्य। फोटो शाश्वत

नदी के भीतर निर्माण पर उठ रहे हैं सवाल

बनारस घाटों और गलियों शहर है। काशी विश्वनाथ की नगरी का पौराणिक महत्व के साथ ही इसकी इसकी खूबसूरती और पर्यटन का आर्कषण घाटों को छूती गंगा है।

बनारस के प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक और कवि व्योमेश शुक्ल कहते हैं कि यह विकास की परियोजनाएं एक डेड एंड की तरफ बढ़ रही हैं। शायद यहां से वापस पांव खींचना असंभव हो जाए और ललिता घाट के इस निर्माण से पेयजल और बनारस के आध्यातमिक वैभव को भारी नुकसान होगा।

वे कहते हैं, “बनारस की खूबसूरती घाट से लगी हुई बहती गंगा थी। इस रैंप के निर्माण से पानी के धार मे बदलाव होगा और गंगा घाट छोड़ देंगी।”

वे आगे कहते हैं, “गंगा में किसी भी निर्माण के लिए कुछ चीज़ें बहुत जरुरी होती हैं। इन्वॉयरमेंटल इम्पैक्ट एसिस्मेंट रिपोर्ट (ENVIRONMENT IMPACT ASSESSMENT REPORT) और प्री फिज़िबलटी रिपोर्ट (PRE FEASIBILITY REPORT)। इसमें प्री फिज़िबलटी रिपोर्ट तो एकदम बुनियादी रिपोर्ट होती है जिसके बिना काम शुरू ही नहीं होना चाहिए। वहीं इन्वॉयरमेंटल इम्पैक्ट एसिस्मेंट रिपोर्ट विशेषज्ञों के हवाले से तैयार एक एसी रिपोर्ट होती है जो किसी भी प्राकृतिक वस्तु में मानवीय हस्तक्षेप के प्रभाव का आंकलन करती है। आश्चर्य की बात है कि ये रिपोर्ट न सिर्फ इस बार बल्कि पिछले चालीस साल से सामने नहीं आयी है। रिपोर्ट मांगने जाइए तो प्रशासन बगलें झांकने को विवश है।”

ललिता घाट के सामने नदी के उप पार नहर भी निकाली जा रही है। फोटो- शास्वत 

नाविक भी हैं सशंकित

गंगा के भीतर हो रहे इस निर्माण से ललिता घाट पर नाव चलाने वाले कई नाविक भी सशंकित हैं। अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं है कि ये क्या बन रहा है। गंगा में बीस साल से नाव चलाने वाले राम कुमार का घर कॉरिडोर वाले क्षेत्र में था।

कॉरिडोर के जद में घर टूटने के बाद वह विस्थापित हो कर नदी के उस तरफ चले गये हैं। वो कहते हैं, “ये पता नहीं क्या बन रहा है। हमारा तो घर भी चला गया और 5 लाख रुपया मिला। जब ये कॉरिडोर बन रहा और इसी टाइम इसमें जाने नहीं दे रहे तो जब बन जाएगा तो हम गरीब लोगों को कैसे जाने दिया जाएगा? और नदी घाट छोड़ देंगी तो हमारी नावें कहां लगेगी? हमारी रोजी रोटी बंद हो जाएगी।”

अपनी नाव की तरफ ताकते रामकुमार कहते हैं, “सुन रहे हैं कि उस पार भी कोई नहर बन रही है। अब तो दो – दो गंगा नदी हो जाएंगी। हमारा तो इस पार आना-जाना ही मुश्किल हो जाएगा।”

कॉरिडोर निर्माण के क्षेत्र में किसी भी आमजन को जाने नहीं दिया जाता है। इस पूरे इलाके में तस्वीरें खींचने पर भी कड़ा प्रतिबंध है।

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