बैंक कर्मचारियों की हड़ताल: निजीकरण पर क्या बैकफुट पर आएगी सरकार?

बैंक कर्मचारियों ने अपनी दो दिन की हड़ताल को पूरी तरफ सफल बताया है। प्रस्तावित निजीकरण का बीजेपी सांसद वरुण गांधी और संसद के शीतकालीन सत्र से बर्खास्त चल सांसदों ने भी विरोध किया है। बैंक कर्मचारियों ने अल्टीमेटम दिया है कि अगर सरकार बैंक बिल लेकर आई तो अनिश्चितकालीन हड़ताल पर भी जा सकते हैं।

Arvind ShuklaArvind Shukla   17 Dec 2021 2:23 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। दो सरकारी बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ बैंक कर्मचारियों ने दूसरे दिन भी देशभर में प्रदर्शन किया और सरकार संसद में बैंकिंग बिल (Banking Laws (Amendment) Act 2021) न लाने की मांग की। बैंक कर्मचारियों की हड़ताल को कई संगठनों ने समर्थन दिया तो बीजेपी सांसद राहुल गांधी ने इनके हक में आवाज़ उठाई। संसद के शीतकालीन सत्र से बर्खास्त चल रहे सांसदों ने सांसद के बाहर निजिकरण और बैंकों के विलय की योजना का विरोध किया।

दो दिन की हड़ताल के दूसरे दिन बैंक कर्मचारी सुबह अपने शाखाओं और बैंक मुख्यालयों के बाहर प्रदर्शन करते नजर आए। मुंबई समेत कई बड़े शहरों में प्रदर्शनकारियों ने रैली भी निकाली। लखनऊ में हजरतगंज स्थित इंडियन बैंक (इलाहाबाद) मुख्यालय में जोरदार प्रदर्शन किया तो गोमतीनगर में बड़ौदा हाउस समेत कई बैंक मुख्यालयों में बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया।


लखनऊ में बैंककर्मियों को संबोधित करते हुए ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पवन कुमार ने कहा, "आपकी हड़ताल की सफलता पिछले दिनों के नतीजे बताते हैं कि सरकार को आपकी शक्ति का अहसास होने लगा है। खबर मिली है कि भारत सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से संपर्क किया है कि बैंकिंग बिल इस संसद के इस सत्र में लाया जाए या नहीं। इसके एकमात्र कारण आप (बैंककर्मी) नहीं हैं लेकिन असर हुआ है।

उन्होंने आगे कहा, "अभी संसद के सत्र के चार दिन बाकी हैं। अगर सरकार इन दिनों बिल लेकर आती है तो मैं अह्वान करूंगा कि हर बैंकर, एक एक वोटर और एक ग्राहक से जाकर कहेगा कि हमें बैंक बेचने वाली सरकार नहीं चाहिए। बैंक बिक गए तो देश बिक जाएगा।"

दो दिन की पड़ताल को पूरी तरह सफल बताते हुए उत्तर प्रदेश में बैंक ऑफ बडौदा एंप्लाई यूनियन के महामंत्री विनय सक्सेना ने कहा, "दो दिन सारी बैंक बंद रहीं। इन दिनों में अरबों रुपए की क्लिरेंस नहीं हो सकी। अरबों रुपए का नुकसान भी हुआ होगा। हम लोग बैंक बंद करना नहीं चाहते। हम नहीं चाहते कि नुकसान हो लेकिन सरकार ने हमें मजबूर किया है।"

निजीकरण की खामियां गिनाते हुए विनय सक्सेना ने राष्ट्रीयकृत बैंकों की खूबियां भी गिनाईं और बताया कि कैसे सरकार बैंकों के संबंध में गलत आंकड़े बताती हैं।


सक्सेना ने कहा, सरकार कहती है कि बैंक घाटे में जा रहे हैं। लेकिन सरकारी बैंक आज भी सरकार को कमाकर दे रहे हैं। पिछले 12 वर्षों से सरकार को बैंकों ने 19 लाख करोड़ रुपए का लाभ दिया है। लेकिन दिखाया ये जाता है कि हमने (सरकार) ने 3 लाख करोड़ रुपए बैंकों को खड़ा करने के लिए दिए हैं। अगर उन्होंने 3 लाख करोड़ या 3.5 लाख करोड़ की मदद की है तो हमने 19 लाख करोड़ का लाभांस दिया है। बीच का गैप कौन खाता है? लेकिन अब पब्लिक सब समझने लगी है।"

साल 2021-22 के बजट सत्र के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने दो पब्लिक सेक्टर की बैंक के विनिवेश की बात की था। 12 राष्ट्रीकृत बैंकों में 2 बैंक कौन सी होंगी ये अभी तय नहीं है। सरकार ने शीतकालीन सत्र में एक सवाल के जवाब में कहा कि निजीकरण को लेकर गठित मंत्रिमंडल समिति ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है।

बैंककर्मचारियों के मुताबिक सरकार इसी सत्र में बैंकिंग बिल लाने वाले थी, जिसका वो विरोध कर रहे हैं। इंडियन नेशनल बैंक ऑफिसर्स कांग्रेस (INBOC) के राष्ट्रीय महासचिव संदीप सिंह ने गांव कनेक्शन से कहा, "सरकार बैकफुट पर तो है क्योंकि ये बिल सत्र के शुरुआत में ही आना था लेकिन सरकार का स्टेटमेंट (सदन में जबाव) भ्रमित करने वाला है। सरकार की मंशा साफ नहीं है। बैंक कर्मियों को लिखित में चाहिए कि बिल नहीं आएगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम लोग सड़क पर भी उतर सकते हैं।" बैंक कर्मियों ने इससे पहले निजीकरण के मुद्दे पर मार्च 2021 में भी दो दिन प्रदर्शन किया था।

ये भी पढ़ें- बैंक हड़ताल : कर्मचारी बोले, "बैंक नहीं बिकने देंगे भले सरकार बदलनी पड़ जाए"

बैंक ऑफ बड़ौदा कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश करुणेश शुक्ला कहते हैं, "राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों ने जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की प्रगति की है मोदी सरकार उस प्रगति को शून्य करना चाहती है। गांव में रोजगार नहीं होंगे तो ये सरकार निश्चिततौर पर हार होगी। देश की अर्थव्यवस्था को चलाने वाले राष्ट्रीयकृत बैंक हैं। इन बैकों के निजीकरण किसान, रिक्शा चालक, मजदूर, उद्योगपति सरकार के मंसूबे को सफल होने नहीं देंगे।"

बैंक कर्मचारियों की हड़ताल को सामाजिक संगठनों, संयुक्त किसान मोर्चा, ट्राइबर आर्मी, हल्ला बोल, बीएसएनएल, यूपी में कर्मचारियों के संगठन अटेवा के साथ कई राजनीतिक लोगों का भी समर्थन मिला और उन्होंने निजीकरण का विरोध किया।

बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने 17 दिसंबर को ट्वीटर कर कहा, "जैसा कि हम सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की ओर बढ़ रहे हैं। हमें ध्यान देना चाहिए कि वे (सरकारी बैंक) ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिग सेवाएं देते हैं, स्वयं सहायता समूहों की मदद करते हुए, लघु उद्योंगो को (SMS) लोन देते हुए लगभग एक मिलियन लोगों को रोजगार देते हैं। जो शायद निजी बैंक न करें।

उन्होंने आगे लिखा, "एनपीए वसूली में केवल बैंको की विफलता को आधार मानकर, बैंकों के निजीकरण के प्रस्ताव का कोई औचित्य नहीं है। मेरी वित्त मंत्री जी से मार्मिक अपील है कि इससे प्रभावित सभी वर्गों से समग्र वार्ता करने के पश्चात ही बैंकिंग कानून (संसोधन) अधिनियम 2021 पर विचार किया जाए।

वहीं संसद के शीतकालीन सत्र में बर्खास्त चल रहे सांसद ने संसद भवन में निजीकरण और बैंकों विलय की योजना के विरोध में प्रदर्शन किया।

वहीं कांग्रेस ने कहा कि "आज बैंक कर्मी हड़ताल पर हैं, कल आपका नंबर हो सकता है। पूरे देश को निजीकरण के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी और सार्वजनिक क्षेत्र को बचाना होगा।"

आदिवासियों समेत कई घटकों की आवाज़ उठाने वाले संगठन ट्राइबल आर्मी ने कहा कि बैंकों के बेचने के पीछे नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सरकारी घाटे से उबारने का तर्क दिया जा रहा है, जो कि निराधार है। घाटे में तो मित्र पूंजीपतियों को बेहिसाब लोन देकर किया जा रहा है। असल में ये लाखों SC, ST, OBC सरकारी नौकरीयों व आरक्षण को खत्म करने की साजिश है।"

खबर- अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

ये भी पढ़ें- बैंकों के निजीकरण से किसका फायदा किसका नुकसान? बैंक कर्मचारियों से लाइव चर्चा

#Bank strike banks privatisation Bank #story #video 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.