सारस के आशियाने पर इंसानों का कब्ज़ा
vineet bajpai 10 Jan 2018 5:12 PM GMT
सलारपुर गाँव की झील में कभी 250 से 300 सारस पक्षी रहते थे लेकिन आगर आज आप इस झील को देखने जाएंगे तो मुश्किल से 30-40 सारस ही दिखेंगे। क्योंकि जो झील इन सारस पक्षियों का घर हुआ करती थी पिछले करीब तीन वर्षों से यहां के कुछ लोगों ने इसे भी अपनी खेती का जरिया बना लिया है।
सलारपुर गाँव बाराबंकी जिले के देवां ब्लॉक से दो किलो मीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है। यह झील 100 बीघे से भी ज्यादा क्षेत्रफल में फैली हुई है। सलारपुर गाँव के सुलीन रावत (36 वर्ष) झील के पास अपने जानवर चरा रहे थे उनसे जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, ''इस झील में पहले बहुत सारे सारस रहते थे लेकिन पिछले करीब तीन वर्षों से इसमें सिंघाड़े की खेती होने लगी, तबसे इसमें सारस बहुत कम रहते हैं।'' उन्होंने आगे बताया, ''इसमें जो सिंघाड़े लगाते हैं वो सारस को इसमें रुकने नहीं देते हैं, भगाते रहते हैं। ताकि वो सिंघाड़ों को नुकसान न पहुंचाएं।''
ये भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश के राजकीय पक्षी का जीवन संकट में
गाँव कनेक्श ने रिपोर्टर ने जब झील पर जाकर देखा तो दोपहर दो बजे से शाम चार बजे तक झील में सिर्फ 8-10 ही सारस थे।
बाराबंके जिले के जिला वन्य अधिकारी जावेद अख्तर से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा, ''इस बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं थी, आप इस बारे में मुझे लिखकर भेज दीजिए मैं इस पर कार्रवाई करवाऊंगा।''
सलारपुर गाँव के रामशंकर (65 वर्ष) इस झील के बारे में बताते हैं, ''यह झील बहुत पुरानी है। जब मैं छोटा था तब भी यह इतनी ही बड़ी थी जितनी बड़ी आज है। तब से यहां पर सारस रहते हैं, लेकिन अब संख्या बहुत कम हो गई है।''
सारस उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी है उसके बावजूद सरकार की तरफ से इसपर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सारस विश्व का सबसे बड़ा उड़ने वाला पक्षी है। पूरे विश्व में भारत में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। पूरे विश्व में इसकी कुल आठ जातियां पाई जाती हैं। इनमें से चार भारत में पाई जाती हैं। पांचवी साइबेरियन क्रेन भारत में से सन 2002 में ही विलुप्त हो गई। भारत में सारस पक्षियों की कुल संख्या लगभग 8000 से 10000 तक है।
ये अपने घोसले छिछले पानी के आस-पास में जहां हरे-भरे पौधे य झांड़ियां होती हैं वहीं बनाना पसंद करते हैं। इनके प्रजनन का समय वर्षा ऋतु का होता है और इसी समय सिंघाड़े भी होते हैं जिस वजह से सिंघाड़े लगाने वाले इन्हें वहां पर रुकने नहीं देते जिससे इनके प्रजनन करने और अपने आंडे शुरक्षित रखने में भी परेशानी होती है।
ये भी पढ़ें- जीव जंतुओं के संरक्षण के बाद डेजर्ट नेशनल पार्क दूसरे देशों से आने वाले परिंदों का करेगा संरक्षण
मादा एक बार में दो से तीन अंडे देती है। इन अंडो को नर और मादा बारी-बारी से सेते हैं। नर सारस इनकी सुरक्षा करता है। लगभग एक महीने के बाद उसमें से बच्चे बाहर आते हैं। बच्चों के बाहर आने के बाद माता-पिता 4-5 सप्ताह तक उनका पोषण नन्हे कोमल जड़ों, कीटों, सूंडियों और अनाज के दानो इत्यादि से करते हैं। इतने समय के बाद बच्चे अपने माता-पिता के जैसे अपना आहार स्वयं प्राप्त करना सीख लेते हैं। बच्चे लगभग दो महीनों में अपनी पहली उड़ान भरने के योग्य हो जाते हैं।
''सलार पुर गाँव के प्रधान ने तालाब में सिंघाड़े लगाने के लिए बाहर कुछ लोगों को दिया है। जून-जुलाई में जब बारिश होती है उस समय सिंघाड़े की नर्सरी इसमें डाली जाती है। उस समय से लेकर जनवरी तक इसमें सिंघाड़े रहते हैं जिस वजह से वो लोग सारस को इसमें रुकने नहीं देते हैं। उन्हें ढेला मार-मार कर उड़ाते रहते हैं,'' वहीं पास ही के गाँव राम शेखर (40 वर्ष) ने बताया, ''सारस दिनभर अपने खाने की तलाश में बाहर रहते थे। शाम को तीन बजे से यहां वापस आने लगते थे शाम को पांच बजे तक पूरी झील सारस से भर जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं होता।''
ये भी पढ़ें- सौ साल में पहली बार देखी गई यह विशेष चिड़िया
उसी गाँव के सुनील कुमार (22 वर्ष) ने बताया, ''अब सारस शाम को आते तो हैं लेकिन पहले जितने आते थे उतने नहीं आते हैं।'' इस झील से करीब एक किलो मीटर दूर एक खेत में झुंड में करीब 100 सारस थे। शाम के चार बज गए थे लेकिन फिर भी वो झील की तरफ वापस नहीं आ रहे थे। शायद इसी डर से कि अगर वहां जाएंगे तो वहां से भगा दिया जाएगा।
More Stories