भारत बंद- 'वोट उसी को, जो बंद के मुद्दों के समर्थन में'

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भारत बंद- वोट उसी को, जो बंद के मुद्दों के समर्थन में

लखनऊ। दलितों और आदिवासी समूहों द्वारा आज 5 मार्च 2019 को देशव्यापी धरना दिया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायलय के आदिवासियों को जंगल से निकालने के फैसले के खिलाफ ये 'भारत बंद' आयोजित हो रहा है। देश के अलग-अलग राज्यों से भारत बंद की तस्वीरें सामने आ रही हैं। हालांकि, केन्द्र सरकार द्वारा पीटिशन दायर करने के बाद सर्वोच्च न्यायलय ने अपने फैसले पर रोक लगा दी है।

बहुजन समाज के कई समूह भी इस आंदोलन का हिस्सा हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 13 पॉइंट रोस्टर पर दायर की गई रिव्यूू पीटिशन को खारिज करने के बाद एससी, एसटी, ओबीसी के प्रोफेसर केंडीडेट्स में संशय बना हुआ है। इनकी मांग है कि सरकार उनके लिए अध्यादेश लाए।

अखिल भारतीय अंबेडकर महासभा से सम्बन्धित अशोक भारती ने ट्वीट किया, "हम अब अधिक इंतज़ार नहीं करेंगे। जो हमारे अधिकारों को कुचलेगा, हमसे अन्याय करेगा, हम उनसे चुन-चुन कर हिसाब चुकता करेंगे।"

दिल्ली विश्वविद्यालय में एड-हॉक प्रोफेसर रहे रामनरेश राम बताते हैं कि भारत बंद करने के पीछे आदिवासी और दलित समुदायों की मुख्य रूप से दो मांगे हैं।

    • केंद्र सरकार आदिवासियों को विस्थापित करने के आदेश के विरुद्ध तत्काल अध्यादेश लाए।

सुप्रीम कोर्ट ने बीती 13 फरवरी को एक बेहद अहम फैसला सुनाते हुए 21 राज्‍यों को आदेश दिए हैं कि वे अनुसूचित जनजातियों और अन्‍य पारंपरिक वनवासियों को जंगल की ज़मीन से बेदखल कर के जमीनें खाली करवाएं। कोर्ट ने भारतीय वन्‍य सर्वेक्षण को निर्देश दिए हैं कि वह इन राज्‍यों में वन क्षेत्रों का उपग्रह से सर्वेक्षण कर के कब्‍ज़े की स्थिति को सामने लाए और इलाका खाली करवाए जाने के बाद की स्थिति को दर्ज करवाए।

ऐसा पहली बार हुआ कि देश की सर्वोच्‍च अदालत ने एक साथ दस लाख से ज्‍यादा आदिवासियों को उनकी रिहाइशों से बेदखल करने और जंगल खाली करवाने के आदेश सरकारों को दिए हैं। यह अभूतपूर्व फैसला है, जिसे जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्‍हा और इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने कुछ स्‍वयंसेवी संगठनों द्वारा वनाधिकार अधिनियम 2006 की वैधता को चुनौती देने वाली दायर एक याचिका पर सुनाई करते हुए सुनाया है। इन संगठनों में वाइल्‍डलाइफ फर्स्‍ट नाम का एनजीओ भी है।

वनाधिकार अधिनियम को इस उद्देश्य से पारित किया गया था ताकि वनवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक नाइंसाफी को दुरुस्‍त किया जा सके। इस कानून में जंगल की ज़मीनों पर वनवासियों के पारंपरिक अधिकारों को मान्‍यता दी गई थी जिसे वे पीढि़यों से अपनी आजीविका के लिए इस्‍तेमाल करते आ रहे थे।

स्‍वयंसेवी संगठनों ने इस कानून को चुनौती दी थी और वनवासियों को वहां से बेदखल किए जाने की मांग की थी।

    • केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं अन्य शैक्षिक संस्थानों में नियुक्ति हेतु आरक्षण को विषयवार, बिना बैकलॉग के 13 पॉइंट रोस्टर को तुरंत रद्द करते हुए उसकी जगह पुनः 200 पॉइंट रोस्टर लागू किये जाने के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश (Ordinance) या कानून लाए। ऐसा ही अध्यादेश रेलवे में लागू 13 पॉइंट रोस्टर के लिए भी लाया जाए।

मंगलवार, 22 जनवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2017 के आदेश को चुनौती देने वाले केंद्र द्वारा दायर सभी अपीलों को मंगलवार को खारिज करने के बाद विश्वविद्यालयों में संकाय पद अब किसी विश्वविद्यालय में उपलब्ध कुल पदों के अनुसार आरक्षित नहीं होंगे। कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के 5 मार्च 2018 का आदेश जिससे 200 पॉइंट रोस्टर व्यवस्था को बदल कर 13 पॉइंट विभागवार / विषयवार / बिना बैकलॉग के कर दिया था, जिसे केंद्र सरकार ने संसद में बयान देकर रोक लगाई थी, पुनः प्रभावी हो गयी है।

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अब केंद्रीय एवं अन्य विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों की नियुक्तियों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए कोटा प्रणाली के तहत आरक्षित शिक्षण पदों को लगभग समाप्त कर दिया जायेगा। यह देखते हुए कि आरक्षित संकाय पद पहले से ही भारी संख्या में खाली हैं,नई नीति से विश्वविद्यालय प्रणाली में हाशिए के वर्गों के प्रतिनिधित्व को लगभग समाप्त कर दिया जायेगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय और इससे सम्बद्ध कॉलेजों में, जहां पिछले 4 - 5 वर्षों से परमानेंट (स्थाई) नियुक्तियां नहीं हुई हैं और लगभग 4 - 5 हज़ार शिक्षक एड-हॉक नियुक्तियों के अंतर्गत काम कर रहें हैं वहाँ करीब इसके आधे यानि लगभग 2000 आरक्षित वर्गों के एसिस्टेंट प्रोफेसर पर गाज गिरने की सम्भावना है। चूंकि नियमनुसार इन एड-हॉक एसिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति प्रक्रिया हर 4 महीने पुनः किया जाना चाहिए, तो जैसे ही व्यवस्था 13 पॉइंट रोस्टर लागू होगा, इन वर्गों का आरक्षण समाप्त हो जायेगा और ये सड़क पर होंगे।

विषयवार 13 पॉइंट रोस्टर को तत्काल वापस लेने की माँग और विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों की नियुक्तियों में सम्पूर्ण पदों को एक साथ लेते हुए, आरक्षित वर्गों को क्रम में पहले रखते हुए 200 पॉइंट रोस्टर को पुनः लागू किये जाने की माँग।

केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भरोसा दिलाया कि सरकार 200 पॉइन्ट्स रोस्टर के समर्थन में है और दो दिन के भीतर इसके लिए अध्यादेश लाएगी।

देश की राजधानी दिल्ली सहित कई राज्यों में इस बंद का असर रहा। महाराष्ट्र राज्य के वर्धा शहर में स्थित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स ने भी भारत बंद में हिस्सा लिया। महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के बैकवर्ड क्‍लास टिचर्स असोसिएशन (BCTA) एवं शिक्षक संघ के बैनर तले सरकार के 13 प्‍वाइंट रोस्‍टर एवं विभागवार इकाई के रूप में नियुक्तियों का विरोध करने के लिए विश्‍वविद्यालय के प्रशासनिक भवन में धरना प्रदर्शन किया गया। भारत बंद के समर्थन में मंगलवार को शिक्षकों ने सामूहिक आकस्मिक अवकाश भी लिया था।

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में धरना देते शिक्षक। फोटो साभार- डॉ. आशीष कुमार



    

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