साइकिल कथा: कभी जिसके सहारे मीलों की दूरियां तय करते थे, अब उससे ही दूरियां बना ली

एक समय था जब हर किसी के घर में साइकिल हुआ करती थी, या यूं कहें कि गृहस्थी का जरूरी हिस्सा हुआ करती थी, अब तो घर के किसी कोने में पड़ी मिलेगी। हालांकि एक बार फिर साइकिल का दौर लौटा है, ग्रामीण भारत का एक बड़ा तबका अब भी साइकिल से मीलों का सफर तय करता है।

Md Abdullah SiddiquiMd Abdullah Siddiqui   3 Jun 2022 12:31 PM GMT

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साइकिल कथा: कभी जिसके सहारे मीलों की दूरियां तय करते थे, अब उससे ही दूरियां बना ली

कुछ समय पहले तक हमारे यहां साइकिल के बिना तो बचपन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। सभी फोटो: अभिषेक वर्मा 

घर में दाखिल होते ही दालान में खड़ी एक साइकिल ने मुझे अपनी तरफ आकर्षित किया। मैंने उसे खड़े हो कर देखने लगा। उधर से आवाज आयी, "आपने पहचाना नहीं, हां मैं वही साइकल हूं"।

उसकी बातों को अनसुना करते हुए मैंने आगे बढ़ना चाहा तो एक बार फिर उधर से आवाज आप हमें नहीं देखना चाहते हैं तो न देखें, लेकिन हमारे चाहने वाले आज भी हजारों में हैं।

आज से सदियों पहले स्कॉटलैंड मैकमिलन को 40 मील दूर ग्लास्गो में रहने वाली अपनी बहन की याद सताने लगी तो मेरा वजूद हुआ और मैंने ही मैकमिलन को उसकी बहन से मिलवाया, हां, मैं वही साइकल हूं।


70 के दशक से पहले मेरे भी नखरे कम नहीं थे, जिस जमाने में रेडियो के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था उम जमाने में मेरा भी पंजीयन नगरपालिका में होता था। हां, मैं वही साइकल हूं।

कभी मैं मिडिल क्लास फैमली का स्टेटस सिम्बल हुआ करती थी। लोग सीना चौड़ा कर के मेरे ऊपर बैठते थे। दहेज में भी मेरी डिमांड हुआ करती थी, आप के पिता जी ने भी तो दहेज में हमें मांगा था। हां, मैं वही साइकल हूँ।

तुम तो मेरे दिवाने बच्पन से थे तब तुमने मेरे साथ बेवफाई क्यों की, याद है तुम बचपन में मेरी डिमांड करके बाजार में लोट पोट हो गए थे और जिद करने लगे थे। हाँ, मैं वही साइकल हूं।


कभी साइकिल पर चढ़ना तुम अपनी शान समझते थे और मेरी पीठ पर बैठ कर न जाने कितनी गलियां कस्बे और पगडंडियां नाप देते थे। मेरे इस शान को चतुराई से दो पहिया मोटरीकृत वाहनों ने हथिया लिया और तुमने घर के कोने में जंग लगने के लिए मुझे छोड़ दिया। हां, मैं वही साइकल हूं।

कभी तुम स्वस्थ रहते थे, तुम तनाव महसूस नहीं करते थे, तुम्हें गठिया का रोग नहीं हुआ था, तुम्हें मधुमेह परेशान नहीं करती थी, तुम्हारा वजन संतुलित था और तुम हट्टे कट्टे और मजबूत थे क्योंकि तुम साइकिल चलाते थे। तुम अब दिल के रोगी हो गए हो, तुम मधुमेह के मरीज हो गए हो, क्योंकि साइकिल की सवारी तुम्हारे लिए शर्म की बात है। हाँ, मैं वही साइकल हूँ।

तुमने मुझसे बेवफाई की थी अब तुम पछता रहे हो, तुम्हारा पर्यावरण अब प्रदूषित हो गया है, अब जब तेल के दाम बढ़ गए हैं तो अब तुम्हें मेरी याद आने लगी है और अब सोच रहे हो काश कोई कोई साइकिल होती। हाँ, मैं वही साइकल हूँ।


मेरे फायदे अब समझ में आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र को भी मेरे फायदों की भनक लगी और उसने एक दिन मेरे लिए खास बना दिया। मेरी झोली में 3 जून का दिन आया और लोग पूरी दुनिया में मेरा दिवस मनाने लगे। हां, मैं वही साइकल हूं।

3 जून को लोग स्कूल, कॉलेज, शैक्षणिक संस्थानों, ऑफिस, सोसायटी आदि में मुझे चलाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं, ताकि पर्यावरण और स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जा सके, कुल मिला कर मैं तुम्हारा भविष्य हूं। हां मै वही साइकल हूं।

चलिए अगर अब भी आप का ध्यान हमपर नहीं गया तो कोई बात नहीं, हम आगे भी आपको याद करते रहेंगे।

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