वीडियो : अब स्वदेशी तकनीकी से भारत में ही बनेगा नोट छापने वाला कागज़

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वीडियो : अब स्वदेशी तकनीकी से भारत में ही बनेगा नोट छापने वाला कागज़सरकार को होगी करोड़ों की बचत।

नई दिल्ली। आऩे वाले दिनों में भारत को नोट छापने की कागज़ी सामग्री खरीदने के लिए यूरोपियन देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। भारत के वैज्ञानिकों ने वो लुगदी तैयार कर ली है, जिससे नोट छापे जाते हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) आईसीएआर के अधीन केंद्रीय कपास प्रोद्योगिकी अनुसंधान, मुंबई के वैज्ञानिकों ने छोटे-छोटे कपास के कटाई योग्य टुकड़ों को कच्ची सामग्री की तरह प्रयोग कर करेंसी ग्रेड पल्प के रूप में विकसित किया है। कपास की इस कच्ची सामग्री में रसायनिक प्रयोग करके इससे लुगदी बनाई जाती है, जो लंबे समय तक टिकती है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने वैज्ञानिकों स्वदेशी तरीकों का इस्तेमाल कर बनाई गई इस लुगदी को प्रधानमंत्री की महात्वाकांक्षी योजना मेक इन इंडिया को आगे बढ़ाने के लिए एक सार्थक कदम बताया है।

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार भारत पूरी दुनिया में कागज़ी मुद्रा का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोग करने वाला देश है। भारत में प्रतिवर्ष 220 करोड़ मुद्रा कागज़ी नोट छापे जाते हैं। भारत में कागज़ी नोट बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लुगदी यूरोपियन देशों से मंगवाई जाती है। ये लुगदी भी पूरी तरह स्वदेशी तकनीकी से बनाई गई है।

केंद्रीय कपास प्रोद्योगिकी अनुसंधान के वैज्ञानिकों का मानना है कि इस लुगदी की मदद से जहां एकओर विदेशों से लुगदी मंगवाने का खर्च बचेगा वहीं दूसरी तरफ जाली नोटों का कारोबार भी कम होगा। आईसीएआर व्दारा विकसित की गई इस कागज़ी मुद्रा सामग्री के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन ने ट्वीट कर वैज्ञानिकों को बधाई दी है। कृषि मंत्री ने इस संबंध में वीडियो भी जारी किया है आईसीएआर के कल यानि 16 जुलाई को 89 साल पूरे हुए हैं।

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