बिहार बाढ़: कोई पानी में गृहस्थी का सामान तलाश रहा तो कोई मां का संदूक, सब बह गया

Mithilesh DharMithilesh Dhar   23 July 2019 2:24 AM GMT

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bihar flood, flood in bihar, flood in madhubaniमधुबनी के नरुआर में बाढ़ के पानी से अपने कपड़े लेकर जाती एक महिला. (फोटो- अभिषेक वर्मा)

मधुबनी/सीतामढ़ी (बिहार)। "किस रंग का था संदूक, कमरे में बस कुछ किताब-कॉपी ही बचे हैं, अच्छा रुको एक फिर से देखता हूं"। ये कहकर संदीप फ़ोन काट देते हैं और फिर से खंडहर हो चुके घर में सामान तलाशने लगते हैं।

संदीप कुमार (28) इलेक्ट्रिशियन हैं। बाढ़ की खबर मिलते ही है वो शहर से अपने घर ओझौल टोल लौट आते हैं। लेकिन उनके आते-आते सब कुछ पानी में मिल चुका था। 13 जुलाई की बाढ़ के बाद घर का एक हिस्सा तो बचा है लेकिन उसमें रखे सामान बह चुके हैं।

वे अपना दर्द बयान करते हुए कहते हैं, "मैं किसी काम से पटना गया था। 14 की सुबह लौटा, लेकिन तक तब बहुत देर हो चुकी थी। मां पड़ोसियों के साथ सुरक्षित स्थान पर तो पहुंच गयी लेकिन अपना सामान नहीं बचा पायी। एक बक्शे में मां की साड़ी और जरूरी सामान थे, वही ढूंढ रहा हूं।"

बिहार के उत्तरी हिस्से के 12 जिलों में आयी बाढ़ से जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। मधुबनी और सीतामढ़ी जिले बाढ़ से ज्यादा प्रभावित हैं। इन दोनों जिलों के 22 लाख से ज्यादा लोग अभी भी बाढ़ से प्रभावित हैं। प्रदेशभर में बाढ़ के कारण अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

अपने घर के बाहर बैठे संदीप. (फोटो- अभिषेक वर्मा)

मधुबनी और सीतामढ़ी में जलभराव धीरे-धीरे कम हो रहा है। पानी कम होते ही लोग अपने सामान की तलाश कर रहे हैं। कोई मवेशियों के लिए परेशान है तो कोई अपनी बाइक ढूंढ रहा है। कोई कपड़ा ढूंढ रहा है तो कोई बर्तन तो कोई रोजी-रोटी का साधन।

कुछ दिनों पहले जिस बस्ती में चहल-पहल रहा करती थी, मैदान में बच्चे खेला करते थे, अब हर जगह पानी ही पानी है। आँखों में आंसू हैं। बस्तियां खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं।

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मधुबनी के प्रखंड झंझारपुर के गाँव नरुआर के रहने वाले मगन मंडल डीजे चलाते थे। शादियों के इसी लगन में उन्होंने 2 लाख रुपए खर्च करके सारा सामान ख़रीदा था। लेकिन 13 जुलाई की रात कमला-बलान बांध टूटने से उनके गांव में जो तबाही मची उससे वे बहुत ही दुखी और अपने करियर को लेकर चिंतित भी हैं।


मगन कहते हैं, "अच्छी कमाई हो रही थी। मुंबई से लौट आया था। सोचा था कि अब अपना काम करूँगा लेकिन सब बर्बाद हो गया। पानी कम हुआ तो अपना सामान ढूंढने चला आया। साउंड का स्पीकर भर मिला है, लेकिन वो भी ख़राब हो चुका होगा। बाकि सब पता नहीं कहाँ गया।"

अपने टूटे घर को दिखाते मगन

मधुबनी का नरुआर गांव बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा। इस गाँव के 40 से ज्यादा घर बाढ़ में बह गये। हम जब इस गांव में पहुंचे तो रास्ते में ही एक ऑटो खड़ी थी जिसमें बेड, आलमारी वगैरह लादे जा रहे थे।

जो सामान बच गये हैं उसे दूसरी जगह ले जाया जा रहा है. (फोटो- अभिषेक वर्मा)

जिनका सामान था उन्होंने तो बात करने से मना कर दिया लेकिन उनके पड़ोसियों ने बताया कि इनके घर में दो महीने पहले ही दो लड़कों की शादी हुई है। ये सारा सामान शादी में मिला था, आधा से ज्यादा सामान बह चुका है। ढूंढ तो रहे हैं लेकिन वो अब कहाँ मिलने वाला। जो बचा था उसे ले जा रहे हैं, क्योंकि घर तो रहने लायक बचा नहीं है।

मधुबनी के नरुआर से फेसबुक लाइव


झंझारपुर प्रखंड के विनोद मंडल दिल्ली में सब्जी बेचने का काम करते हैं। यहां घर बनवा रहे थे। जल्द ही बीवी बच्चों को लेकर गांव में शिफ्ट होने वाले थे। लेकिन जब से दिल्ली से लौटे हैं, प्लास्टिक के टेंट में रह रहे हैं।

करीब पांच साल से घर बनवा रहे विनोद कहते हैं, "पूरी पूंजी चली गयी। जो पैसे बचते थे उसे घर में लगाता है। सब दहा (बह) गया। दो महीने पहले दिल्ली से एलईडी टीवी लेकर आया था, वो भी नहीं बचा। अब पानी कम हुआ है तो प्रयास कर रहा हूं कि कम से कम बर्तन मिल जाये, वो तो नहीं ख़राब हुआ होगा।"

मधुबनी के बिस्फी प्रखंड के गांव जानीपुर के पंकज मंडल के भाई के शादी इसी साल हुई थी। उन्हें विदाई में मोटरसाइकिल मिली थी जो। पंकज अपने घर के अन्य लोगों के साथ मोटरसाइकिल ढूंढने के लिए पानी में उतर गये। कड़ी मशक्कत के बाद कम से 10 लोगों ने मिलकर बाइक को पानी से निकाला।

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पंकज कहते हैं कि भाई मुंबई में काम करता है। उसकी शादी में ये बाइक मिली थी। बड़ी मुश्किल से हम इसे ढूंढ पाए हैं। लेकिन अब ये स्टार्ट नहीं हो रही, काम कराना होगा। हमारे पास तो अब पैसे भी नहीं हैं। बैंक पासबुक, एटीएम, सब बह चुका है।

पानी में से बाइक का निकालते लोग (फोटो- अभिषेक वर्मा)

नेपाल से सटा सीतामढ़ी जिला बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र है। यहां अभी भी 17 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से पीड़ित हैं। सोनबरसा प्रखंड की झीम, सिगियाही और गोगा नदी में उफान के बाद कई इलाकों में बाढ़ का पानी तेजी से फैल रहा है। सोनबरसा और कन्हौली के दर्जनों गांव अभी भी पानी में हैं।

भारत-नेपाल सड़क समेत कई प्रमुख पथों में तीन फीट तक पानी भर गया था जो अब धीरे-धीरे कम हो रहा है। झीम नदी का पानी चिलरा फरछाहिया, चिलरी और रोहुआ आदि गांवों में फैल गया है।

सोनबरसा कस्टम कार्यालय और हनुमान चौक के पास सड़क में कटाव हो रहा है। झीम, सिगियाही और गोगा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है।

हम जब परिहार प्रखंड के लपटहाँ गांव पहुंचे तो हमें रास्ते में एक दम्पति मिले जो हाथ में डंडा लेकर बड़ी तेजी से भागे जा रहे थे। हमनें उनसे पूछा कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं, तो उमेश मल्लू जो मल्लाह हैं, हमसे कहते हैं, "मेरे पास 20 सूअर थे, सब गायब हैं। मजदूरी के अलावा सूअर पालन का काम शुरू किया था। सब सूअर दहा गया। आज पानी कम हुआ तो ढूंढने निकल पड़े। अब तो हमारे पास घर बी नहीं है। स्कूल में रुके हुए हैं।"

उमेश मल्लू

बारिश रुकने के कारण बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से पानी कम तो हो रहा है लेकिन तबाही के निशां इतनी जल्दी कहाँ मिटने वाले हैं। हजारों लोग बेघर हो गये हैं, जिनके पास एक जोड़ी कपडे के अलावा कुछ बचा ही नहीं। बाढ़ के पानी में सालभर का रखा अनजा भी बह गया है। ऐसे त्रासदी का जख्म भरने में बहुत समय लगेगा।

 

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