बिहार बाढ़: "बीवी को सांप ने काट लिया है, मर जाएगी तो इसी पानी में बहाना पड़ेगा"

बिहार में बाढ़ से हालात खराब हैं, गाँव कनेक्शन टीम ने ग्राउंड पर पहुंच के जाने क्या हैं वहां के हालात?

Mithilesh Dhar

Mithilesh Dhar   20 July 2019 11:30 AM GMT

मधुबनी (बिहार)। कमर तक के पानी में चार लोग एक खटिया सिर पर उठाकर बड़ी तेजी से सूखी जमीन की ओर भागे चले जा रहे थे। खटिया पर बेहोशी हालत में लेटी शबनम खातून (30) को सांप ने काट लिया है।

मधुबनी के बिस्फी प्रखंड के जानीपुर गाँव में रहने वाली शबनम को सांप ने काट लिया, जब वो अपने घर में कुछ काम कर रही थीं। तुरंत खाट पर लादकर झाड़-फूंक के ले जाया गया। लेकिन स्थिति अब भी गंभीर बनी रही।

शबनम के पति मोहम्मद तमन्ने आलम ने कहा, "अस्पताल की दूरी यहां से 8-10 किमी दूर है। कहीं कमर, तो कहीं तो गले तक पानी भरा है। अस्पताल तक नहीं ले जाये पाएंगे। मर जाएगी तो इसी पानी में बहा देंगे। इससे ज्यादा हम कुछ नहीं कर सकते।"

"बाढ़ हमारे लिए नई नहीं है। हर साल हमारा कोई न कोई मर ही जाता है। मेरे तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं। अब तो उन्हीं के बारे में सोच रहा हूं। लेकिन अगर मेरी बीवी मरती है, तो इसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी", आगे कहते हैं।

बाढ़ के दौरान कुछ इस तरीके से जूझ रहे हैं बिहार के लोग (फोटो- अभिषेक वर्मा)

मधुबनी जिले के बिस्फी प्रखंड में 28 ग्राम पंचायतें हैं। सभी पानी में डूबी हुई हैं। लगभग डेढ़ लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। लेकिन यहां अभी तक सरकारी मदद नहीं पहुँच सकी है। न तो एनडीआरएफ की कोई टीम है और न ही सरकार की तरफ से किसी तरह की राहत सामग्री आई।

मानसून की बारिश देर से होने के कारण कुछ दिनों पहले तक चमकी बुखार का कहर झेलने के बाद बिहार अब बाढ़ से मर रहा है। उत्तर बिहार के 12 जिलों की 831 पंचायतों में बाढ़ का कहर जारी है। अब तक 90 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। 66 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। इसमें सीतामढ़ी जिला सबसे ज्यादा प्रभावित जिला है।

मधुबनी-झंझारपुर के पास कमला नदी का बांध 14 जुलाई को टूट गया था। कई नेशनल हाईवे और गाँव की सड़कें बह गयी हैं। ऐसे में गांवों का शहर और बाजारों से संपर्क टूट गया है। लोगों के सामने इस समय ज्यादा संकट खाने और साफ़ पीने के पानी का है।

बिस्फी प्रखंड के जानीपुर गाँव तक पहुंचने के लिए नाव ही सहारा है, यहां सरकारी की ओर से उपलब्ध बोट की व्यवस्था नहीं है, न ही कहीं राहत शिविर।

पानी में जिंदगी डूबी है लेकिन फिर भी पीने के पानी का इंतजाम तो करना है (फोटो- अभिषेक वर्मा)

इसी गाँव की 56 वर्षीय मनसा देवी अपने तीन पोते-पोती और बहू को लेकर एक ऊँचे स्थान पर रह रही हैं। बारिश नहीं हो रही वरना वहां भी रहना दूभर हो जायेगा। मनसा जब गाँव कनेक्शन टीम को देखती हैं तो उन्हें लगता है कि सरकार की तरफ से कोई आया है। वो भागते हुए पास आती हैं।

"घर में कोई मरद नहीं है। मेरे पूरे घर में पानी भरा है। सांप-अजगर दिख रहे हैं। बच्चों और बहू को लेकर कहाँ जाएं? छह दिन से दाल रोटी खा रहे हैं," मनसा ने बताया।

सरकार की तरफ से आपको किसी तरह की मदद मिली, इस पर मनसा ने बिफरते हुए कहती हैं, "सरकार की तरफ से एक पन्नी तक तो मिलती नहीं। कम से कम हमारे घर में जो कुछ अनाज था उसे तो बचा पाते। अभी तक हमें अनाज का एक टुकड़ा तक नहीं मिला है। यह भी तो नहीं बताया जाता कि बाढ़ आने वाला है।"

बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग की माने हैं तो अकेले मधुबनी में 18 प्रखडों के 13,73000 लोग बाढ़ से प्रभावित हैं बावजूद इसके जिले में महज चार राहत शिविर केंद्र बनाये गये हैं। राहत शिविरों में केवल 3721 लोगों को ही शरण मिली है, मतलब 13,69,279 लोग किसी तरह जिंदा हैं।

खबर लिखे जाने के समय शबनम को होश आ गया था, लेकिन उठ कर बैठ सके इस स्थिति में नहीं थी।


'तीन दिन से भूखा हूं, कुछ खाने को नहीं मिला'

जानीपुर गाँव के ही 21 वर्षीय युवा नौशाद सरकार के रवैये को लेकर बेहद आक्रोशित हैं। वे कहते हैं, "मैं तीन दिन से भूखा हूं। चारों तरफ पानी है। मजदूरी करने भी कहीं नहीं जा सकता है। सरकार कहती है कि चूरा-मीठा दे रहे हैं, हमें आज तक कुछ नहीं मिला। पिछले साल भी मेरा घर बह गया था। आज तक उसका मुआवजा नहीं मिला है।"

इस बीच शुक्रवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़ पीड़ित परिवारों के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम को लॉन्च किया। इसके तहत हर पीड़ित परिवार को पब्लिक फाइनेंशल मैनेजमेंट सिस्टम के तहत 6-6 हजार रुपए की आर्थिक मदद दी जाएगी। उन्होंने घोषणा की कि इस स्कीम के शुरुआती चरण में तहत 3.02 लाख परिवारों में 181.39 करोड़ रुपए बांटे भी जा चुके हैं।

मधुबनी के ब्लॉक नौ के रहने वाले मोहम्मद निसार प्रदेश सरकार की इस योजना पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "2017 में बाढ़ के समय भी सरकार ने वादा किया था सभी प्रभावित परिवारों को 6-6 हजार रुपए दिए जाएंगे। मेरे खाते में एक रुपया नहीं आया। अभी इस साल के लिए आधार कार्ड और सब कागज फाइनल करवा रहा हूं, इसी में 40 रुपए खर्च हो गये। पता नहीं इस साल का मुआवजा मिलेगा भी कि नहीं।"


एडीएम मधुबनी दुर्गा नंद झा कुछ और ही कहते हैं। राहत सामग्री लोगों तक क्यों नहीं पहुँच पा रही के जवाब में वो कहते हैं, "लोग झूठ बोलते हैं। जिनको सामान मिल जाता है वे लोग भी कहते हैं कि कुछ मिला ही नहीं। हमारी टीम लगातार काम कर रही है इस कारण लोग थके हैं।"

एडीएम हमसे यह भी कहते हैं कि आप लोग भी फिल्ड में हैं, अगर आपको कोई ऐसा क्षेत्र दिखे जहां तक लोगों की मदद नहीं पहुंची हो तो बता दीजियेगा। आप लोग पैनी नजर से देखते हैं।

जिले के कई क्षेत्रों में मिथिला स्टूडेंट यूनियन के लोग काम काम कर रहे हैं। यूनियन के बिहार प्रभारी प्रिय रंजन पाण्डेय कहते हैं, "सरकार और जनप्रतिनिधियों को लोगों से मतलब ही नहीं है। यहां हजारों की संख्या में लोग फंसे हुए हैं, लेकिन सुधि लेने वाला कोई नहीं है। हालात बदतर हैं।"

मदद की आस में ग्रामीण (फोटो- अभिषेक वर्मा)

कहीं राहत तो कहीं खतरा बढ़ा

कई जिलों में जलस्तर तेजी स गिर रहा है लेकिन मधुबनी में हालात अभी भी चिंताजनक बने हुए हैं। मधेपुर में गेहुमा नदी के जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। शुक्रवार को भगवतीपुर, बगवासा, बिशे लंदुगामा सहित कई गांवों में पानी का सस्तर बढ़ा है। हालांकि कोसी और कमला नदी के जलस्तर में कमी आ रही है।

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