देश में एक ऐसा बाजार जहां रुपए नहीं चलते हैं 

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   24 May 2017 1:17 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
देश में एक ऐसा बाजार जहां रुपए नहीं चलते हैं यह आदिवासियों की फोटो है। प्रतीकात्मक

बीजापुर (छत्तीसगढ़) (आईएएनएस/वीएनएस)। देश में आज एक बाजार ऐसा है जहां रुपए नहीं चलता है। आप इस बात को सुनकर चौंक जाएंगे। यह पर सामान के बदले सामान देने का चलन है। चाहे सामान की कीमत में कितना बड़ा अंतर हो। यह चलन आजादी से पहले का है जो आज भी बदस्तूर जारी है। यह स्थान है छत्तीसगढ़ के जिला बीजापुर से महज 50 किलोमीटर दूर बसे बासगुड़ा की। ये गांव पूरी तरह कैशलेस से है।

जिला मुख्यालय से महज 50 किलोमीटर दूर बसे बासगुड़ा में शुक्रवार को लगने वाले बाजार में रुपए नहीं चलते। यह इलाका आदिवासियों का गढ़ है। जिले में वनोपज के लिए दो बड़े बाजार गंगालूर और बासगुड़ा में लगते हैं। नक्सल प्रभावित बासगुड़ा गांव और यहां का बाजार अक्सर चर्चा में रहता है। इस परम्परा की वजह से यहां के आदिवासी हमेशा ही घाटे में रहते हैं। 20 रुपए किलो बिकने वाले महुए के बदले आदिवासी 10 रुपए में बिक रहा आलू ले रहे हैं।

यहां मिलने वाले वनोपज तिखुर, शहद, चिरौंजी और बहुमूल्य जड़ी बूटियों के लिए जाने जाना वाला यह गांव सन 2005 में वीरान हो गया था। यहां के बाजारों और बस्तियों में नक्सलियों का खौफ नजर आता है। 13 साल बाद यह वीरान गांव धीरे-धीरे बसने लगा और बाजार भी लगने लगे। पूर्व में पुलिस और नक्सलियों के बीच संघर्ष में ग्रामीण आदिवासी मारे गए और आज वनोपज में ग्रामीण आदिवासियों का भरपूर शोषण हो रहा है।

आवापल्ली से आए व्यापारी नारायण ताड़पल्ली ने बताया कि उनका सेठ उन्हें कनकी, आलू और प्याज देकर महुआ खरीदने भेजता है, क्योंकि यहां के लोग पैसा नहीं बल्कि सामान चाहते हैं। तालपेरू नदी के पास शुक्रवार को वर्षों से बाजार लगता है, सलवा जुडूम के बाद 10 साल तक रौनक नहीं थी। इस साल बाजार पहले जैसा तो हो गया लेकिन ये आज भी सेलर्स मार्केट नहीं बन पाया है और शोषण का दौर जारी है। लोगों का कहना है कि जब तक जागरूकता नहीं आएगी तब तक ये बायर्स मार्केट बना रहेगा।

व्यापारी करते हैं शोषण

आवापल्ली से आए व्यापारी नारायण ताड़पल्ली ने बताया कि, “उनका सेठ उन्हें कनकी, आलू और प्याज देकर महुआ खरीदने भेजता है, क्योंकि यहां के लोग पैसा नहीं बल्कि सामान चाहते हैं।”

तालपेरू नदी के पास शुक्रवार को वर्षों से बाजार लगता है, सलवा जुडूम के बाद 10 साल तक रौनक नहीं थी। इस साल बाजार पहले जैसा तो हो गया लेकिन ये आज भी सेलर्स मार्केट नहीं बन पाया है और शोषण का दौर जारी है। लोगों का कहना है कि जब तक जागरूकता नहीं आएगी तब तक ये बायर्स मार्केट बना रहेगा।

र्तेम गांव से बासगुड़ा आए आदिवासी किसान लखमू लेकाम ने बताया कि, “राशन की दुकान में अमृत नमक मिलता है, लेकिन उनके गांव में इसका चलन नहीं है। गांव के लोग खड़े नमक का इस्तेमाल करते हैं और वे इसे बासगुड़ा बाजार से लाते हैं। व्यापारी 2 किलोग्राम नमक देकर एक किलोग्राम महुआ लेते हैं। इन दिनों 10 रुपए किलो की दर पर बिक रहे आलू या प्याज के बदले व्यापारी 20 रुपए किलो का महुआ ले रहे हैं।”

देश से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप

चावल के बदले चिरौंजी : जनपद पंचायत उसूर के सीईओ बीए गौतम ने कहा कि महुआ का रेट तय नहीं है। मध्य प्रदेश में इसकी दर तय कर दी गई है। कम दर पर महुआ की खरीदी करना आदिवासियों का शोषण है। उन्हें चावल के बदले चिरौंजी खरीदे जाने की शिकायत मिली थी। इस वजह से वे बाजार में जांच के लिए आए थे।

रोचक ख़बर- पांच दशकों से असम के इस गांव में हो रहा है कैशलेस लेनदेन- पूरी ख़बर नीचे पढ़े

आसाम में गुवाहाटी से 50 किली दूर मोरिगाँव जिले में एक मेला लगता है जो पूरी तरह कैशलेस होता है

                

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.