बाइक एंबुलेंस से लावारिसों को अस्पताल पहुंचाता है यह युवा, सैकड़ों लोगों की बचा चुका है जान
लावारिस और बेसहारा घायलों को अस्पताल में भर्ती कराना, मरहम-पट्टी और उन्हें परिजनों से मिलाने की चला रहे मुहिम
Chandrakant Mishra 11 Oct 2019 11:14 AM GMT
जिनका कोई नहीं उनका खुदा है यारों...यह गाना यूपी के जनपद वाराणसी निवासी अमन कबीर(24वर्ष) पर सटीक बैठता है। अमन कबीर असहाय, सड़क दुर्घटना में घायल, मानसिक दिव्यांग लोगों की सेवा के लिए हर वक्त जुटे रहते हैं।वाराणसी शहर के किसी नुक्कड़ या चौराहे पर कोई बेहसहारा घायल नजर आता है तो लोग एंबुलेंस या पुलिस की जगह अमन को फोन करते हैं। जिन लावारिस मरीजों के पास जाने से लोग कतराते हैं, उन मरीजों अमन गले लगाकर उनका इलाज करते हैं। ऐसे लोगों की सेवा के लिए उन्होंने अपनी बाइक को एंबुलेंस में बदल दिया है। अमन अब तक करीब एक हजार असहाय लोगों को अस्पताल पहुंचा चुके हैं।
अमन ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, " वर्ष 2007 में मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था। 23नवंबर 2007 को कचहरी परिसर में एक बम विस्फोट हुआ था। मुझे जब इसकी जानकारी हुई तो मैं शिव प्रसाद मंडलीय अस्पताल पहुंचा, जो मेरे स्कूल के पास था। मैं वहां इलाज के लिए लाए गए घायलों की मदद करने लगा। मुझे लोगों की मदद करने में काफी खुशी मिल रही थी। उस घटना ने मेरे जीवन को बदल दिया। तभी से मैंने बेसहारा, गरीब, लावारिश लोगों की मदद करने को जीवन का लक्ष्य बना लिया।"
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गर्मी हो, सर्दी हो या बारिश हर मौसम में किसी असहाय के तड़पने की सूचना मिलते ही अपना बैग लेकर दौड़ पड़ता हूं। सबसे पहले पीड़ित के घाव साफ करता हूं, मरहम-पट्टी करता हूं और जरूरत पड़ने पर उसे अपनी बाइक एंबुलेंस से लेकर अस्पताल पहुंचाता हूं। मैं तब तक उसकी सेवा करता रहता हूं जब तक वह स्वस्थ नहीं हो जाता या उसके कोई परिजन नहीं आ जाते। मैं अपनी बाइक एम्बुलेंस में लगे बाक्स में दवाइयां, मलहम-पट्टी, बिस्किट और कुछ पानी की बोतलें रखता हूं। "
अमन ने अब 'बिछड़ो को अपनों' से मिलाने की एक मुहिम शुरू की है। अमन ने चौक इलाके में असहाय पड़े एक वृद्ध को न सिर्फ मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराया बल्कि उनके परिवार से भी मिलवाया। मवइया (सारनाथ) के रहने वाले मोहित मिश्र ने बताया," 25 मई की सुबह मेरे पिता ऋषि कुमार मिश्र टहलने निकले थे। इनका दिमागी संतुलन ठीक नहीं होने के कारण वे भटक गए होंगे। काफी खोजबीन के बाद भी वह नहीं मिले। कुछ दिन बाद अमन ने हम लोगों से संपर्क किया और हमारे पिता जी से मिलाया।"
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गंदे कपड़े, बजबजाते घाव और शरीर से आने वाली दुर्गंध को से मन विचलित नहीं होता, इस सवाल पर अमन कहते हैं, " शुरुआत में थोड़ी दिक्कत होती थी, लेकिन अब नहीं। ऐसे लोगों की सेवा करते वक्त मेरी नजर उनके चेहरे पर होती है। लावारिस पीड़ितों के घाव साफ करने, उनके बाल काटने और उन्हें नहलाने-धुलाने में मुझे खुशी मिलती है। जब मेरे पास बाइक नहीं थी तो कई बार पीड़ितों को कंधे पर लादकर उन्हें अस्पताल भी पहुंचाया हूं।"
हमारे समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जो गरीबों और जरुरतमंदों की सेवा और मदद करना चाहते हैं, लेकिन कैसे की जाए यह नहीं पता होता है। अब ऐसे लोग मुझसे संपर्क करते हैं। लोग मेरे साथ जाकर अस्पताल में भर्ती लावारिस मरीजों को खाने-पीने की चीजें देते हैं। उनके दवा के लिए दवा भी लाते हैं। सर्दियों में गर्म कपड़े वितरित करते हैं। बहुत से लोग अब मेरे काम से प्रभावित होकर मेरे साथ आ रहे हैं। " अमन ने आगे बताया।
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अमन ने लावारिस, अज्ञात और मानसिक विक्षिप्त लोगों की इलाज के साथ-साथ उन्हें आश्रय देने के लिए अपने घर को शेल्टर हाउस बना दिया है। अमन बताते हैं, " कई बार इलाज के बार मरीज के स्वस्थ्य होने पर उन्हें अस्पताल से छुटटी मिल जाती थी, लेकिन उनके पास रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं होता था। ऐसे लोगों के लिए मैंने अपने घर को शेल्टर होम की तरह बना दिया है। जहां लोग आराम से रह सकेंगे।"
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