बिलासपुर नसबंदी कांड : छह साल बाद भी बड़ा सवाल, आखिर 18 लोगों की मौतों का दोषी कौन?

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित बिलासपुर नसबंदी कांड में 13 महिलाओं समेत 18 लोगों की मौत होने के छह साल बाद भी अपनों को खोने वाले पीड़ित परिवार सरकार से दोषियों को सजा दिलाने की गुहार लगा रहे हैं।

Kushal MishraKushal Mishra   7 Nov 2020 9:17 AM GMT

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बिलासपुर नसबंदी कांड : छह साल बाद भी बड़ा सवाल, आखिर 18 लोगों की मौतों का दोषी कौन?बिलासपुर नसबंदी शिविर में अपनी बहू दुलारिन को खोने के बाद अब उसके दोनों बच्चों की जिम्मेदारी लछमनबाई पर है। दो साल पहले उनके बेटे दिनेश की भी मौत हो गयी।

फूलबाई अपने पीछे तीन बच्चों को छोड़ गयी। आज छह सालों बाद भी रामस्वरूप जब घर की दीवार पर टंगी फूलबाई की तस्वीर देखते हैं तो यही सोचते हैं कि अच्छा होता कि उस दिन फूलबाई उस नसबंदी शिविर में नहीं जाती।

आठ नवंबर, 2014 का दिन, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के सकरी गाँव में लगे सरकारी नसबंदी शिविर में 83 महिलाओं का ऑपरेशन हुआ था। इस ऑपरेशन के बाद 13 महिलाओं समेत 18 लोगों की मौत हो गयी। इनमें रामस्वरूप की पत्नी फूलबाई भी थीं।

इस बहुचर्चित नसबंदी कांड में ऑपरेशन के बाद जिन महिलाओं की मौत हुई, उन सभी महिलाओं की उम्र 30 साल से कम थीं। ये सभी मृतक महिलाएं गरीब थीं और अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखती थीं। आज छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के बहुचर्चित नसबंदी कांड के छह साल बीत चुके हैं। मगर इतने सालों बाद भी सरकार इस नसबंदी कांड के दोषियों को सजा नहीं दिला सकी है।

इस शिविर में अपनी पत्नी खो चुके रामस्वरुप श्रीवास 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "जैसे हम भुगत रहे हैं, वैसे ही दोषियों को भी भुगतना चाहिए, यह कैसा न्याय है जो छह सालों बाद भी हमें नहीं मिल सका।"

बिलासपुर नसबंदी शिविर में अपनी बेटी शिवकुमारी को खोने के बाद शिवकुमारी की माँ अब उसके दोनों बच्चों को संभाल रही हैं। शिवकुमारी के पति बहोरिक ने दूसरी शादी कर ली।

बिलासपुर के अमसेना गाँव के रहने वाले रामस्वरूप गाँव में घूम-घूम कर नाई का काम करते हैं। फूलबाई की मौत के बाद कुछ रिश्तेदारों ने रामस्वरूप से एक और शादी करने की भी जिद की, मगर अपने दो बेटों और एक बेटी के लिए रामस्वरुप ने दोबारा शादी नहीं की।

रामस्वरूप कहते हैं, "जो हुआ अच्छा नहीं हुआ, या कहें भगवान की मर्जी थी, सब कुछ भूल कर भी हमने सरकार से नौकरी की मांग की थी ताकि कम से कम बच्चों का भविष्य बना सकूँ, वो भी नहीं मिली, न न्याय मिला और न नौकरी।"

जो हुआ अच्छा नहीं हुआ, या कहें भगवान की मर्जी थी, सब कुछ भूल कर भी हमने सरकार से नौकरी की मांग की थी ताकि कम से कम बच्चों का भविष्य बना सकूँ, वो भी नहीं मिली, न न्याय मिला और न नौकरी।

रामस्वरूप, फूलबाई के पति

आठ नवम्बर 2014 को बिलासपुर के सकरी गाँव में लगे इस नसबंदी शिविर में न सिर्फ सरकार द्वारा निर्धारित स्वास्थ्य संबंधी सभी मानकों की अनदेखी की गयी, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की भी अवेहलना की गयी। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस शिविर में मुख्य सरकारी सर्जन आरके गुप्ता ने चार घंटे से भी कम समय में 83 महिलाओं की नसबंदी का ऑपरेशन कर दिया।

इस घटना के सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार से नसबंदी कांड के अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की मांग की गयी। तब सरकार ने मुख्य सर्जन आरके गुप्ता को गिरफ्तार किया, मगर दवा कंपनी के खिलाफ सरकार की ही एक जांच रिपोर्ट में दवा में जहर की पुष्टि होने के आधार पर मुख्य सर्जन को जमानत मिल गयी। हालांकि सरकार ने जिस नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी की रिपोर्ट को आधार बनाकर दवा में जहर होने की पुष्टि की थी, उसी ने ऐसी किसी जांच रिपोर्ट न किये जाने की बात कही। कई रिपोर्ट में इन मौतों के पीछे अस्पताल में गंदगी और संक्रमण को भी बड़ी वजह माना गया।

हाल में बिलासपुर नसबंदी कांड को लेकर जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े अमूल्य निधि की 'जस्टिस डिनाइड – स्टरलाईजेशन डेथ्स इन बिलासपुर' नाम से एक रिपोर्ट भी सामने आई। इस बहुचर्चित नसबंदी कांड पर छह सालों बाद आई इस रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आये हैं वो न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि दोषियों को अब तक सजा न दिए जाने को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हैं।

बिलासपुर नसबंदी शिविर में विन्धासर गाँव के राजाराम ने अपनी पत्नी नीरा को खो दिया। नीरा अपने पीछे चार बच्चों को छोड़ गयी।

जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े अमूल्य निधि 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "इस घटना के समय भाजपा सरकार थी, तब कांग्रेस से राहुल गांधी भी बिलासपुर पीड़ितों से मिलने के लिए पहुंचे थे और तब उन्होंने दोषियों पर कठोर कार्रवाई करने की मांग की थी, मगर आज जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार है, तब भी मुख्य अभियुक्त डॉ. गुप्ता को मिली जमानत को रद्द करने के लिए कोई पहल नहीं की है और न ही उनका लाइसेंस रद्द करने की सिफारिश की।"

"इतना ही नहीं, कई जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद भी न तो घटिया दवा बनाने वाली कंपनी के खिलाफ लैब टेस्ट को सार्वजनिक किया गया और न ही इस दवा को बिना किसी परीक्षण के खरीदने वाली मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन के जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई," अमूल्य निधि कहते हैं।

इस नसबंदी शिविर में अपनों को खोने वाले रामस्वरुप जैसे कई पीड़ित आज भी सरकार से न्याय की गुहार लगा रहे हैं। बिलासपुर के सिकरा गाँव की ही रहने वाली लछमनबाई ने इस नसबंदी शिविर में न सिर्फ अपनी बहू दुलारिन को खो दिया, बल्कि दो साल पहले एक सड़क हादसे में उनके बेटे दिनेश की भी मौत हो गयी। अब दुलारिन और दिनेश के दोनों बच्चों की जिम्मेदारी बुजुर्ग लछमनबाई और उनके पति पर है।

लछमनबाई बताती हैं, "हमारा तो सब कुछ छिन गया, जब तक हम जिन्दा हैं, तब तक बच्चों को संभाल रहे हैं, न जाने उसके बाद क्या होगा," दोषियों को अब तक सजा न मिलने के सवाल पर लछमनबाई आगे सिर्फ इतना ही कहती हैं, "सरकार को दोषियों को सजा दिलानी चाहिए।"

बिलासपुर नसबंदी शिविर में आपनी जान गंवाने वाली पुष्पा ने अपनी बेटी को पीछे छोड़ दिया। उसकी चाची चंदन अब उसकी देखभाल करती हैं।

इसी बिलासपुर जिले में कानूनी मार्गदर्शन केंद्र संस्था की प्रमुख गायत्री सुमन भी इन पीड़ितों को सरकार से मदद दिलाने के लिए लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ती आई हैं।

गायत्री सुमन 'गाँव कनेक्शन' से बताती हैं, "उस नसबंदी शिविर में जो भी डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्वास्थ्यकर्मी शामिल थे, उन सब पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए थी, मगर यह दुखद है कि छह सालों बाद भी सरकार अब तक कुछ नहीं कर सकी, कैसे एक अस्पताल जहाँ गंदगी फैली हुई थी, वहां पर शिविर का आयोजन किया गया, मरीजों का पहले बिना कोई टेस्ट किये कैसे चार घंटे में 83 महिलाओं का ऑपरेशन कर दिया गया।"

उस नसबंदी शिविर में जो भी डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्वास्थ्यकर्मी शामिल थे, उन सब पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए थी, मगर यह दुखद है कि छह सालों बाद भी सरकार अब तक कुछ नहीं कर सकी, कैसे एक अस्पताल जहाँ गंदगी फैली हुई थी, वहां पर शिविर का आयोजन किया गया, मरीजों का पहले बिना कोई टेस्ट किये कैसे चार घंटे में 83 महिलाओं का ऑपरेशन कर दिया गया।

गायत्री सुमन, प्रमुख, कानूनी मार्गदर्शन केंद्र, बिलासपुर

"जो मुख्य डॉक्टर थे वो अभी भी खुले आम घूम रहे हैं और डॉक्टरी कर रहे हैं, जो अधिकारी थे उनकी तो पदोन्नति भी हुई है, किसी भी बड़े अधिकारी को सजा नहीं मिली तो भला कैसे समाज के सामने नजीर पैदा होगी, ये सवाल सब ऐसे हैं जो हमारी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर सवाल उठाते हैं," गायत्री सुमन कहती हैं।

इस रिपोर्ट के हवाले से बिलासपुर नसबंदी कांड पर छत्तीसगढ़ में माकपा के राज्य सचिव संजय पराते भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हैं।

संजय पराते 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "इस रिपोर्ट में सामने आया है कि कैसे पहले छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार मामले की लीपापोती करती रही, और जब कांग्रेस आई तो पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाना तो दूर दोषियों पर भी कार्रवाई नहीं कर रही, यहाँ तक कि सरकार ने इस मामले पर अपना कोई रिएक्शन भी नहीं दिया।"

"यह बड़ी बात है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के मानकों की अनदेखी होती रही और कई परिवार बर्बाद हो गए। सरकार पीड़ितों को न्याय दिलाने की बजाये सिर्फ मामले को दबाने में लगी रही," संजय पराते कहते हैं।

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