उजाड़ा जा रहा करीब छह सौ साल पुराना ओरण, हजारों ऊंट और भेड़ों के सामने आ जाएगा चारे का संकट
लगभग छह सौ साल पुराने ओरण में पेड़ काटे जा रहे हैं, जेसीबी खुदाई कर रही है। जबकि सदियों से ओरण में पेड़ों की कटाई और खेती पर पूरी तरह से रोक है।
Divendra Singh 14 Jun 2020 11:24 AM GMT

जहां कई सौ साल से एक भी हरा पेड़ नहीं काटा गया, वहां पेड़ों को काटा जा रहा है, जेसीबी से जमीन खोदी जा रही है, यही हाल रहा तो पांच हजार से ज्यादा ऊंट और तीस हजार से ज्यादा भेड़ों के सामने चारे का संकट आ जाएगा। साथ ही लाखों पेड़-पौधों और हजारों जंगली पशु-पक्षियों के सामने के लिए भी मुसीबत आ जाएगी।
राजस्थान के जैसलमेर के सांवता गाँव में श्री देगराय माता मंदिर के लगभग 610 वर्ष पुराने इस ओरण में पेड़ों की कटाई और खेती पर पूरी तरह से रोक है। आसपास के दर्जनों गाँवों के ऊंट और भेड़ पालकों के लिए यहीं से चारा मिलता है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से सोलर प्लांट लगाने के लिए ओरण में अंधाधुंध तरीके से पेड़ काटे जा रहे हैं, जेसीबी से खुदाई चल रही है। अगर ओरण ही न बचा तो ऊंट और भेड़ पालकों का क्या होगा, जबकि पहले से ही ऊंटों की संख्या घट रही है।
सांवता गाँव में चार सौ ऊंटों के मालिक सुमेर सिंह भाटी बताते हैं, "हमारे यहां का ये ओरण जैसलमेर ही नहीं पूरे राजस्थान में सबसे बड़ा ओरण है, ये एक देव स्थल होता है। न यहां पर कोई पेड़ काट सकता है और न ही यहां पर कोई खेती कर सकता है। यह चारागाह होता है। करीब छह सौ साल पहले राजा जैसलमेर ने इस भूमि को मंदिर को दान कर दी थी, जिसका ताम्रपत्र अभी भी हमारे पास है। साल 2004 में ये जमीन सरकार के पास चली गई तो कई गाँवों के लोगों ने मिलकर प्रयास किया तो 23 हजार बीघा फिर से मंदिर के नाम हो गई, तब से हम लगातार प्रयास कर रहे हैं। कभी कोई कंपनी आ जाती है, तो कभी कोई।"
दर्जनों गाँवों के लोग ओरण बचाने की लड़ाई में आगे आ रहे हैं। उन्होंने जैसलमेर के जिलाधिकारी कार्यालय में सोलर प्लांट पर रोक लगाने के लिए ज्ञापन भी सौंपा है।
राजस्थान में ओरण की परंपरा सदियों से चली आ रही है, यहां पर लोक देवी-देवी देवताओं के नाम पर ओरण छोड़ दिए जाते हैं, जहां पर पेड़ काटने और खेती करने पर पूरी तरह से रोक होती है। ओरण संस्कृत शब्द अरण्य से लिया गया है, जिसका अर्थ है वन। ओरण में विभिन्न प्रजातियों के पुराने वृक्षों जैसे रोहिड़ा, झरबेरी (जिन्हें बोरड़ी कहते हैं), कंकाड़ी, कुमट, बबूल, कैर, आदि के पेड़ होते हैं। झाड़ियों में आक, खींप, सणिया, बूर, नागफनी, थोर आदि होते हैं। घास कुल में सेवण घास, धामन घास, मोथा, तुंबा, गोखरू, सांठी, दूब आदि होते हैं। ये राजस्थान के राज्य पक्षी गोड़ावण और तीतर, हिरण, सियार जैसे कई पशु-पक्षियों के रहने का ठिकाना भी है। अगर ओरण ही नहीं रहेंगे तो पेड़-पौधे और पशु पक्षी कहां जाएंगे।
रेगिस्तान की भयंकर गर्मी में भी खेजड़ी का पेड़ हरा भरा रहता है और इस समय पशुओं के लिए हरे चारे की कमी होती है। इन पेड़ों से पशुओं को हरा चारा मिलता है। इसी खेजड़ी के पेड़ों को बचाने लिए अमृता विश्नोई अपनी जान दे दी थी, आज फिर वहां पर पेड़ काटे जा रहे हैं।
यहां के सावता, अचला, भीखसर, भोपा, मुलाना और करडा जैसे कई गाँवों में पांच हजार से ज्यादा ऊंट और 30 हजार से ज्यादा भेड़ हैं। ओरण ही इन पशुओं को चारे का जरिया है।
सुमेर सिंह भाटी कहते हैं, "हमारे यहां पहले से ऊंटों की संख्या कम हो रखी है, अब जब चरागाह ही नहीं बचेंगे तो ऊंटों को क्या खिलाएंगे। मेरे खुद के चार सौ ऊंट हैं और आसपास के 12 गाँवों में पांच हजार ऊंट और तीस हजार भेड़ सी ओरण पर आश्रित हैं। पशुओं के लिए मुख्य चरागाह यही ओरण होते हैं, अगर ओरण ही नहीं बचे तो हमारे ऊंटों के लिए चरने के लिए कोई जगह ही नहीं बचेगी।
इस बारे में वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री सुखराम विश्नोई फोन पर कहते हैं, "अभी मुझे सोलर प्लांट और ओरण पर कब्जे की कोई जानकारी नहीं है, मैं पता करता हूं।"
ऊंट राजस्थान का राज्य पशु भी है और देश में सबसे ज्यादा ऊंट राजस्थान में ही हैं। बीते कुछ सालों में अवैध शिकार, बीमारी और चरागाह की कमी आने के कारण इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। बीसवीं पशुगणना के अनुसार देश में 2,51,956 हैं, जबकि साल 2012 में हुई 19वीं पशुगणना के अनुसार 4,00,274 ऊंट थे। वहीं राजस्थान में साल 2012 में हुई 19वीं पशुगणना के अनुसार 3,25,713 ऊंट थे, जो साल 2019 हुई बीसवीं पशुगणना में घटकर 2,12,739 ही रह गए हैं।
Grazing ground of 35 - 40,000 livestock of 12 villages. No agriculture and tree cutting since centuries. Now it's under axe and created a huge uproar in temple believers. @MlaSanchore @ParveenKaswan @sumitdookia @lifeindia2016 @NGTribunal @divendrasingh @GaonConnection @deespeak pic.twitter.com/WC4ZvqoxLW
— The ERDS Foundation (@and_ecology) June 13, 2020
जैव विविधता से भरपूर इन ओरण में कई छोटे-छोटे तालाब भी हैं, जैसलमेर में वैसे भी बहुत कम बारिश होती है, बारिश का पानी इन्हीं तालाबों में इकट्ठा हो जाता है। जो पशुओं के पीने के काम आता है। राजस्थान में लगभग 600,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 25,000 ओरण हैं। लगभग 1100 प्रमुख ओरण 100,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले हुए हैं। इनमें से, लगभग 5,370 वर्ग किलोमीटर थार रेगिस्तान में ओरण हैं।
गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के पर्यावरण विभाग के सहायक आचार्य सुमित डूकिया पिछले कई वर्षों से राजस्थान के राजकीय पक्षी गोडावण संरक्षण पर काम कर रहे हैं। सुमित बताते हैं, "यहां के गाँवों में लोगों का मुख्य पेशा ही ऊंट और भेड़ पालन है और इसी ओरण के सहारे इनके ऊंट और भेड़ पलती हैं। अगर ओरण ही नहीं बचेंगे तो ये अपने पशुओं को कहां लेकर जाएंगे। ये कई पशु-पक्षियों का ठिकाना है, ओरण कटने से वो कहां जाएंगे।"
क्योंकि ओरण को कुल देवी-देवता का स्थान माना जाता है, इसलिए ओरण का अधिकार भी मंदिर कमेटी के पास होता है।देगराय मंदिर के पुजारी गिरधर सिंह कहते हैं, "हमारा ये ओरण कई सौ साल पुराना है, इसे बचाने के लिए हम ग्रामवासी लगातार संघर्ष कर रहे हैं, सरकार से हमारी यही गुजारिश है कि इसे बचाएं, इनमें बहुत तरह के वन्य जीव, पेड़-पौधे और तालाब हैं। ये हमारी आस्था का केंद्र है।"
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