चुनावी नतीजों पर त्वरित टिप्पणी : भाजपा का घर जला खुद के चिराग से

अब सवाल है 2019 में क्या होगा? इतना निश्चित है कि गरीब जनता को साधू सन्तों का उग्र रूप और विश्वहिन्दू परिषद की हुंकार पसन्द नहीं है। यदि मन्दिर बनाना ही हो तो पटेल के मार्ग पर चलकर कानूनी रास्ता अपनाकर अध्यादेश लाना चाहिए जिससे राम जन्मभूमि का मुद्दा कांग्रेस छीन न पाए

Dr SB MisraDr SB Misra   11 Dec 2018 1:19 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
चुनावी नतीजों पर त्वरित टिप्पणी : भाजपा का घर जला खुद के चिराग से

जब 2014 में नरेन्द्र मोदी चुनाव लड़े तो नारा दिया ''सब का साथ, सब का विकास "। बहुत ही सार्थक अपील थी अचूक अस्त्र की तरह काम कर गई। लेकिन सत्ता में आने के बाद उनका कुनबा उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ा जिस पर चलते चलते ''हम दो हमारे दो" के पड़ाव पर पहुंचे थे। उसके बाद अडवाणी ने जिस तरह सीमित आबादी को उद्वेलित करके भाजपा को 120 तक पहुंचाया था, वह चरम था। मोदी का नारा सम्पूर्ण जन मानस को छूने वाला था परन्तु संघ परिवार के कुछ लोगों को शायद मंजूर नहीं था।

ये भी पढ़ें: सिमट गया बीजेपी का कुनबा, जानिए कहां- कहां है बीजेपी और कांग्रेस की सरकार


आम जनता को लगने लगा कि मोदी की चलती नहीं है जब तथाकथित गोरक्षकों की भीड़ ने राजस्थान में आतंक मचा दिया, महिलाओं के साथ अभद्रता की सीमाएं पार होने लगीं, गायों और नीलगायों ने किसानों को क्रोधित किया, और बदहाली ने दुखी किया। कांग्रेस ने उसी प्रकार सदन नहीं चलने दिया जैसे भाजपा कांग्रेस के साथ करती थी और जनकल्याण की अनेक योजनाए पास नहीं हो सकीं। भाजपा ने कांग्रेस से गांधी और पटेल छीना था तो राहुल गांधी ने भाजपा से जनेउ और शिव भक्ति छीन लिया। जनता को लगा उग्र हिन्दुत्व से सहज हिन्दुत्व ठीक है।

ये भी पढ़ें: कांग्रेस ने मंदिर और धर्म की खूब राजनीति की है...


भाजपा ने एक प्रकार से ''यूज़ ऐण्ड थ्रो " के कथन को चरितार्थ किया जब आडवाणी, जोशी, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और महेश्वरी जैसे नेताओं को रिटायर कर दिया और राजस्थान में कटारिया जैसे तपे तपाए नेताओं को दरकिनार करके अनेकों को टिकट नहीं दिया और राजा रानी को तरजीह दिया। छत्तीसगढ़ ने तो भाजपा को हक्का-बक्का कर दिया होगा लेकिन वहां के किसान इतना वाचाल नहीं हैं, सीधे-सादे लोग हैं, मौन भाषा में उत्तर दे दिया जो भारत के सरल लोगों ने अनेक बार किया है। मोदी ने बहुत संभाला, नहीं तो मध्य प्रदेश की भी छत्तीसगढ़ जैसी हालत होती, आखिर छत्तीसगढ़ कुछ ही साल पहले तक मध्यप्रदेश ही तो था।

ये भी पढ़ें: आरक्षण वोट बैंक बना सकता है, विकसित देश नहीं


अब सवाल है 2019 में क्या होगा? इतना निश्चित है कि गरीब जनता को साधू सन्तों का उग्र रूप और विश्वहिन्दू परिषद की हुंकार पसन्द नहीं है। यदि मन्दिर बनाना ही हो तो पटेल के मार्ग पर चलकर कानूनी रास्ता अपनाकर अध्यादेश लाना चाहिए जिससे राम जन्मभूमि का मुद्दा कांग्रेस छीन न पाए। ध्यान रहे अडवाणी की रथयात्रा मंजिल तक नहीं पहुंच पाई थी जब कि अटल जी का आह्वान ''आओ मिलकर दिया जलाएं" काम कर गया। यदि मोदी को अपने ढंग से काम न करने दिया गया और उग्र हिन्दुत्व का मार्ग अपनाया गया तो उत्तर प्रदेश और बिहार में भी वही प्रतिकिया होगी जा राजस्थान में हुई है।

ये भी पढ़ें: जिन्ना भारत के प्रधानमंत्री बनते तो शायद टल जाता बंटवारा मगर रुकता नहीं

भाजपा नोटबन्दी और जीएसटी के कारण नहीं हारी है बल्कि कथनी और करनी में भेद के कारण हार का मुंह देखना पड़ा। कश्मीर पर निर्णायक कदम नहीं उठा सके, समान नागरिक संहिता की दिशा में मंथर गति से बढ़े और मन्दिर की अचानक तब याद आई जब कुछ करने का समय नहीं बचा। याद रखना होगा ''भूखे भगति न होए गोपाला " और इसलिए महंगाई, भुखमरी, अशिक्षा, उद्दंडता, बेरोजगारी और रोगों पर उतनी ही करारी चोट करनी चाहिए जितनी मन्दिर निर्माण के लिए कर रहे हैं। यदि संघ परिवार के कुछ सदस्य अधीर हो गए और 1992 जैसा कुछ कर बैठे तो मोदी सरकार भी उसी तरह शहीद होगी जैसे कल्याण सिंह की सरकार हुई थी, '' च्वाएस इज़ योर्स " ।

ये भी पढ़ें:आरक्षण में खोट नहीं, उसे लागू करने में खोट है



    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.