श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ 20 मई को देशव्यापी प्रदर्शन की तैयारी, BMS ने अपनी पार्टी की सरकारों के खिलाफ उठाए कदम

कई राज्यों की ओर से श्रम कानूनों को हटाने और उनमें ढील दिए जाने के खिलाफ अब भारतीय मजदूर संघ 20 मई को राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेगा।

Kushal MishraKushal Mishra   15 May 2020 12:10 PM GMT

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श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ 20 मई को देशव्यापी प्रदर्शन की तैयारी, BMS ने अपनी पार्टी की सरकारों के खिलाफ उठाए कदमश्रम कानूनों में बदलाव को लेकर 20 मई को देशव्यापी प्रदर्शन की तैयारी। फोटो साभार : द वीक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी हुई भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर अब अपनी पार्टी की सरकारों के खिलाफ सड़क पर उतरने का फैसला ले लिया है। कई राज्यों की ओर से श्रम कानूनों को हटाने और उनमें ढील दिए जाने के खिलाफ अब भारतीय मजदूर संघ 20 मई को राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेगा।

अब तक मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात समेत कई राज्यों ने कोरोना संकट के समय उद्योग जगत और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव करने का फैसला लिया है। राज्य सरकारों की ओर से स्पष्ट किया गया कि श्रम कानूनों में बदलाव से लौट रहे प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिल सकेगा, ऐसे में मजदूरों को हितों को ध्यान में रखकर यह फैसला लिया गया है। जबकि भारतीय मजदूर संघ ने राज्यों की ओर से उठाए गए इन क़दमों को एंटी वर्कर (मजदूर हितों के खिलाफ) करार दिया है।

श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर और मजदूर संगठन भी सामने आ रहे हैं। भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (CITU) ने भी श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर सरकार के खिलाफ आवाज उठाई है। इसके अलावा विपक्षी पार्टियाँ भी केंद्र सरकार पर श्रम कानूनों को हटाये जाने को लेकर सवाल उठा रही हैं।

विरोध की वजह क्या है ?

कोरोना संकट से उद्योग धंधे बंद होने की वजह इन्हें रफ़्तार देने के लिए कई राज्य सरकारों ने श्रम कानूनों में बदलाव किये हैं। इनमें से एक मजदूरों से एक हफ्ते में 72 घंटे ओवरटाइम कराने की मंजूरी देना भी शामिल है यानी मजदूर से एक दिन में 12 घंटे तक काम लिया जा सकेगा। हालाँकि इसके तहत मजदूरों को ओवरटाइम का भुगतान किये जाने की भी बात कही गयी है, मगर उद्योग मालिक इस पर मनमानी कर सकते हैं।

यह भी पढ़ें : यूपी,एमपी सहित कई राज्यों ने दी श्रम कानूनों में बड़ी ढील, विपक्ष और मजदूर संगठनों ने बताया- 'मजदूर विरोधी'


इतना ही नहीं, कुछ राज्यों की ओर से ट्रेड यूनियनों को मान्यता देने वाला कानून भी हटा दिया गया है। ऐसे में मजदूर अपने खिलाफ होने वाले शोषण के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सकेंगे। इस फैसले से उद्योग जगत के लोगों को बड़ा फायदा पहुंचेगा मगर मजदूरों के शोषण किये जाने के मामले बढ़ने की आशंका रहेगी।

कई राज्यों ने मजदूर हितों के लिए नहीं, बल्कि मजदूर हितों के खिलाफ कदम उठाए हैं, ऐसा इतिहास में कभी भी सुना नहीं गया, यहां तक कि अलोकतांत्रिक देशों में भी ऐसा कम ही देखने को मिलता है।

विर्जेश उपाध्याय, महासचिव, भारतीय मजदूर संघ

'ऐसे इतिहास में कभी नहीं सुना'

इसके बाद भारतीय मजदूर संघ के महासचिव विर्जेश उपाध्याय ने बयान जारी करते हुए कहा, "कई राज्यों ने मजदूर हितों के लिए नहीं, बल्कि मजदूर हितों के खिलाफ कदम उठाए हैं, ऐसा इतिहास में कभी भी सुना नहीं गया, यहां तक कि अलोकतांत्रिक देशों में भी ऐसा कम ही देखने को मिलता है।"

उपाध्याय ने यह भी कहा कि भारतीय मजदूर संघ की राज्य इकाइयों ने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इस संबंघ में पत्र भी लिखा, मगर सिर्फ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हमारे प्रतिनिधिमंडल से मिलने के लिए शिष्टाचार दिखाया।

भारतीय मजदूर संघ ने अपने बयान में कहा, "प्रवासी मजदूरों के मुद्दों ने मुख्य रूप से इजाफा देखने को मिला क्योंकि अधिकांश राज्यों में प्रवासी श्रम कानून का घोर उल्लंघन किया जाता रहा है, इसलिए हमें धकेल दिया गया और अब हमारे पास आंदोलन के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता है।"

विपक्ष ने भी उठाए सवाल

कई राज्यों में श्रम कानूनों में संशोधन किये जाने को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, "अनेक राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में संशोधन किया जा रहा है। हम कोरोना के खिलाफ मिलकर संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन यह मानवाधिकारों को रौंदने, असुरक्षित कार्यस्थलों की अनुमति, श्रमिकों के शोषण और उनकी आवाज दबाने का बहाना नहीं हो सकता।"

वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, "मज़दूर विरोधी भाजपा सरकार श्रमिक क़ानून को 3 साल के लिए स्थगित करते समय तर्क दे रही है कि इससे निवेश आकर्षित होगा, जबकि इससे श्रमिक शोषण बढ़ेगा और साथ में श्रम असंतोष औद्योगिक वातावरण को अशांति की ओर ले जाएगा। सच तो ये है कि औद्योगिक-शांति निवेश की सबसे आकर्षक शर्त होती है।"

अब तक मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, गोवा जैसे राज्यों ने श्रम कानूनों को हटाने और उनमें बदलाव करने का फैसला लिया है। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य में श्रम कानूनों में कोई बदलाव न करने की बात कही।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, "कुछ भाजपा शासित राज्यों ने श्रम कानूनों को हटाने या फिर उनमें संशोधन करने का फैसला लिया है। इन राज्यों में मजदूरों को अधिक काम करना होगा और उनकी मजदूरी कम मिलेगी, साथ ही रोजगार भी सुरक्षित नहीं रहेगा। मगर हम इसका समर्थन नहीं करते और इस तरह का कोई भी कदम नहीं उठाएंगे।"

श्रम कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल

श्रम कानूनों में संशोधन किये जाने और उन्हें खत्म किये जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच चुका है। यह जनहित याचिका झारखण्ड के सामाजिक कार्यकर्ता पंकज कुमार यादव ने दाखिल की है। इसमें सुप्रीम कोर्ट से मांग की गयी है कि कई राज्य सरकारें श्रम कानूनों में बदलाव कर उद्योग जगत को बढ़ावा दे रही हैं, ऐसे में मजदूरों का शोषण बढ़ेगा। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट राज्यों की ओर बनाये गए इन अध्यादेशों को रद्द करे।

अगर राज्यों के इन नए अध्यादेशों को मंजूरी मिल जाती है तो मजदूरों को लेकर अपना देश एक बार फिर 100 साल पीछे चला जायेगा, जब बंधुआ मजदूरी को बढ़ावा दिया जाता था। ऐसे में जरूरी है कि केंद्र सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।

अश्वनी कुमार दुबे, वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट

देशव्यापी प्रदर्शन की ऐसे कर रहे तैयारी

भारतीय मजदूर संघ 16 से 18 मई तक अपनी राज्य इकाइयों के जरिये जिला प्रशासन को श्रम कानूनों में बदलाव से मजदूरों के सामने आने वाली समस्याओं को लेकर ज्ञापन सौंपेगी। भारतीय मजदूर संघ ने अपने बयान में कहा कि 20 मई को सोशल डिसटंसिंग का पालन करते हुए जिला मुख्यालयों और औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदर्शन किया जाएगा।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में श्रम कानून से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता अश्वनी कुमार दुबे 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "अगर राज्यों के इन नए अध्यादेशों को मंजूरी मिल जाती है तो मजदूरों को लेकर अपना देश एक बार फिर 100 साल पीछे चला जायेगा, जब बंधुआ मजदूरी को बढ़ावा दिया जाता था। ऐसे में जरूरी है कि केंद्र सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।"

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