औरैया हादसा: "मजदूर थे तभी उनकी लाशों को ट्रक से भेजा गया है, मेरे भतीजे को अस्पताल में पीने का पानी तक नहीं मिला"
औरैया हादसे में झारखंड के 12 मजदूरों की मौत हुई है, कुछ अभी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। घायलों का आरोप है कि अस्पताल में उनकी ठीक से देखरेख नहीं हो रही है। वहीं झारखंड के कुछ मृतक शवों को औरैया से डीसीएम द्वारा उनके राज्य भेजा गया है जिसमें घायल मजदूर भी बैठे हैं, इसको लेकर घायल और मृतकों के परिजन काफी आहत हैं।
Neetu Singh 17 May 2020 4:00 PM GMT
"मेरे परिवार के तीन लोग इस हादसे में मरे हैं, दो अभी अस्पताल में गंभीर रूप से घायल हैं। मेरे भतीजे ने फोन करके बताया कि अभी जिस ट्रक से वो आ रहा है उसी में गाँव की पांच लाशें भी रखीं हैं। ट्रक (डीसीएम) के पीछे एक हिस्से में काले रंग की प्लास्टिक में लाशें बंधी है, दूसरी छोर पर हम लोग सो रहे हैं।"
नागराज कालिंदी (23 वर्ष) गाँव कनेक्शन को फोन पर औरैया हादसे की उस पीड़ा को बयान कर रहे थे जिससे वो आहत हैं। नागराज के परिवार के चचेरे भाई और भतीजे मिलाकर कुल तीन लोगों की इस हादसे में मौत हो गयी है जबकि दो अस्पताल में गम्भीर स्थिति में हैं।
औरैया हादसे में झारखंड के 12 मजदूरों की मौत हो गयी थी, कुछ अभी भी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। घायलों का आरोप है कि अस्पताल में उनकी ठीक से देखरेख नहीं हो रही है। वहीं झारखंड के मृतक शवों को औरैया से डीसीएम द्वारा उनके राज्य भेजा गया है जिसमें घायल मजदूर भी बैठे हैं, जिसको लेकर घायल और मृतकों के परिजन दु:खी और चिंतित हैं।
"जब मुझे पता चला कि हमारे भतीजे और पड़ोसियों की लाशें ट्रक से आ रही हैं, तो सुनकर मुझे बस यही लगा कि, "मजदूर थे तभी उनकी लाशों को ट्रक से भेजा गया है। मेरे भतीजे को अस्पताल में पीने का पानी तक नहीं मिला। मैंने ही उसको फोन करके बोला कैसे भी करके तुम गाँव आ जाओ, हम यहाँ इलाज करवाएंगे, " नागराज कालिंदी ने वो बातें बताई जो उनके घायल भतीजे विकास ने उन्हें फोन पर बताई थीं।
नागराज कालिंदी झारखंड के बोकारो जिले के खीरा बेड़ा गाँव के रहने वाले हैं। इनके एक चेचेरे भतीजे रंजन कालिंदी (21 वर्ष) का शव जिस डीसीएम से आ रहा है उसी में इनका एक और भतीजा विकास बैठा है जिसने फोन से नागराज को औरैया से निकलने के बाद पूरी घटना की जानकारी दी और उस गाड़ी की कुछ तस्वीरें भी भेजीं।
सड़क पर दर्दनाक हो रही मजदूरों की मौत से जहां इनके परिवार टूट गये हैं वहीं मजदूरों के साथ हो रहे भेदभाव से इनके परिजनों का दिल बैठ गया है।
यह स्थिति अमानवीय एवं अत्यंत संवेदनहीन है।
— Hemant Soren (घर में रहें - सुरक्षित रहें) (@HemantSorenJMM) May 17, 2020
.@BokaroDc .@JharkhandPolice झारखण्ड की सीमा में प्रवेश करते ही घायलों का उचित इलाज सुनिश्चित करें। साथ ही मृतकों के पार्थिव को पूरे सम्मान के साथ उनके घर तक पहुँचाने का इंतज़ाम कर सूचित करें। https://t.co/qzGaUtuM4A
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक ट्विट पर बोकारो डीसी और झारखंड पुलिस को टैग करते हुए लिखा, "यह स्थिति अमानवीय एवं अत्यंत संवेदनहीन है। झारखण्ड की सीमा में प्रवेश करते ही घायलों का उचित इलाज सुनिश्चित करें। साथ ही मृतकों के पार्थिव को पूरे सम्मान के साथ उनके घर तक पहुँचाने का इंतज़ाम कर सूचित करें।"
हेमंत सोरेन ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की है कि शव को सम्मान के साथ झारखंड बॉर्डर तक भेज दिया जाए।
ये उन्हीं मजदूरों की लाशें डीसीएम द्वारा घर पहुंचाई जा रही हैं जो लॉकडाउन में सैकड़ो किलोमीटर दूर पैदल चलकर अपने गाँव पहुंचने के लिए परेशान थे। इन्हें नहीं पता था जिस ट्रक पर पुलिस इन्हें 16 मई को घर सुरक्षित पहुंचने के लिए बैठा रही है वही ट्रक इनकी जिंदगियां ले लेगा।
This inhumane treatment of our migrant workers could possibly be avoided. I request .@UPGovt & Office of .@NitishKumar 'ji to arrange suitable transportation of the deceased bodies till Jharkhand border & we will ensure adequate dignified arrangements to their homes in Bokaro. https://t.co/uJL922LElP
— Hemant Soren (घर में रहें - सुरक्षित रहें) (@HemantSorenJMM) May 17, 2020
मजदूरों के शवों और कुछ हल्के-फुल्के घायल मजदूरों को झारखंड के लिए औरैया से जिस डीसीएम से भेजा जा रहा था उसमें लाशों और घायल मजदूरों के बीच की दूरी एक दो मीटर के बीच की रही होगी। तस्वीरों में दिख रहा है एक तरफ शव रखें हैं दूसरी तरफ कुछ मजदूर सो रहे हैं।
जब इस सन्दर्भ में औरैया जिलाधिकारी अभिषेक सिंह से एक स्थानीय पत्रकार ने बात की तो उन्होंने बताया, "झारखंड के शव ज्यादा थे इसलिए चार डीसीएम बुक करके उनमें चार-चार शव भेजे गये। आठ नौ जो घायल मजदूर थे उन्हें भी दो डीसीएम में आगे बैठाने को बोला था। अभी सूचना मिली है कि वो सब भी पीछे बैठे हैं। इलाहाबाद में आरटीओ से बोल दिया है कि वह घायलों को अलग से बिठाकर भेजें।"
डीसीएम में बैठे घायल मजदूरों से 17 मई की सुबह के बाद से परिजनों की बात नहीं हो पायी। अभी वो किस स्थिति में झारखंड पहुंच रहे हैं कुछ कहा नहीं जा सकता।
गाँव कनेक्शन ने औरैया जिलाधिकारी से लेकर कई जिम्मेदार अधिकारियों से दिन में कई बार कॉल की पर किसी अधिकारी का फोन नहीं उठा।
सुबह के करीब साढ़े तीन चार बजे 16 मई को उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में ट्रक और ट्राले की टक्कर में 26 मजदूरों की मौत हो गई है। इस हादसे में 40 से ज्यादा मजदूर घायल हैं। ये सभी मजदूर राजस्थान से निकले थे जो बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जा रहे थे।
उत्तर प्रदेश के औरैया घटना में दिवंगत हुए सभी 11 झारखंडी साथियों के परिवार को चार-चार लाख रुपये एवं प्रति घायल व्यक्ति को 50 हज़ार रुपये की सहायता तत्काल प्रदान की जाएगी।
— Hemant Soren (घर में रहें - सुरक्षित रहें) (@HemantSorenJMM) May 17, 2020
साथ ही घायलों के इलाज की समुचित व्यवस्था भी ज़िला प्रशासन करेगी।
"मेरे भाई की इस साल शादी होनी थी अब क्या बताएं?", ये बोलते-बोलते हादसे में मृतक गोबर्धन कालिंदी (21 वर्ष) के छोटे भाई शाल्बो कालिंदी (19 वर्ष) चुप हो गये।
गोबर्धन अपने छह भाईयों में सबसे बड़े थे। जयपुर की एक मार्बल फैक्ट्री में ये मजदूरी करते थे। शाल्बो कालिंदी कुछ देर बाद बोले, "मेरा बड़ा भाई बहुत छोटे से ही कमा रहा है। दो भतीजे और एक चचेरे भाई को मिलाकर तीन लाशें एक साथ जलेंगी। पूरे गाँव में दो दिन से लोगों के घरों में चूल्हे नहीं जले हैं।"
शाल्बो ने बताया , "गाँव के कुछ और लोग राजस्थान में फंसे है, औरैया घटना के बाद से सब सदमे में हैं। बार-बार फोन करके बोल रहे हैं हमें घर बुलवा लो। जहाँ पर मेरा भाई था वहां काम बंद था तो खाने-पीने की दिक्कत हो रही थी, तभी घर आ रहा था। उसे क्या पता था कि वो घर पहुंच ही नहीं पाएगा?"
सड़क दुर्घटना में (14 से 16 मई के बीच) देश के अलग-अलग हिस्सों में 50 से ज्यादा मजदूरों की दर्दनाक मौत हुई है। घर पहुंचने से पहले ही देशव्यापी लॉकडाउन के 51 दिनों में 500 से ज्यादा मजदूर अपनी जान गंवा चुके हैं जिसमें पैदल जा रहे मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा है।
झारखंड के पलामू जिले चीरू गाँव के सुदामा यादव को जब 16 मई को सुबह औरैया हादसे की खबर मिली तो ये सुबह से ही फोन करके औरैया जनपद के अधिकारियों से अपने बेटे की सलामती के बारे में पता करने में जुटे गये। जब दोपहर तक इन्हें अपने बेटे के बारे में कुछ नहीं पता चला तो ये बेटे को ढूढने के लिए पलामू से 700 किलोमीटर दूर औरैया के लिए निकल पड़े थे। औरैया पहुंचकर 17 मई को इन्हें पता चला की इनका इक्कीस वर्षीय बेटा नीतीश की भी इस हादसे में मौत हो गयी। कोई पहचान पत्र न मिलने से इसे अज्ञात में डाल दिया था।
"पहुंचने के बाद बेटे का पोस्टमार्टम कराया। शाम को करीब सात बजे एम्बुलेंस से बेटे को लेकर गाँव जा रहे हैं। बड़ी उम्मीद से उसे इतनी दूर उधार गाड़ी बुक करके लेने आये थे मुझे नहीं पता था वो इस हालत में गाँव वापस जाएगा। मुझे पूरा भरोसा था कि वो घायलों में अज्ञात लोगों में शामिल है पर यहाँ आकर देखा तो वो मरे हुए अज्ञात में पड़ा था, " सुदामा यादव के शब्दों में बेटे को खोने की तकलीफ थी।
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