अनिल माधव दवे की लिखी एक किताब ‘शिवाजी एंड सुराज’, पीएम ने लिखी थी जिसकी प्रस्तावना

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अनिल माधव दवे की लिखी एक किताब ‘शिवाजी एंड सुराज’, पीएम ने लिखी थी जिसकी प्रस्तावनापुस्तक का कवर पेज

ये एक दुर्भाग्य ही है कि जब ये समीक्षा पूरी हुई तो इस पुस्तक के लेखक अनिल माधव दवे जी हमारे बीच नहीं रहे। मैंने उन्हें मेल भी किया था, इससे पहले वह जवाब दे पाते, दुःखद समाचार प्राप्त हुआ। पुस्तक के समीक्षा के रूप में अनिल जी को ये मेरी श्रद्धांजलि है।

शिवाजी को जानने का बेहतरीन अवसर इस पुस्तक के जरिए मुझे मिला। एक अद्भुत शख्सियत पर लिखी गई अद्भुत पुस्तक है। इसे पढ़ना मेरे लिए किसी महाकाव्य (एपिक) को पढ़ने के समान रहा। गहन शोध के बाद लेखक ने बङ़ी ही सादगी से इतने विराट व्यक्तित्व को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया है।

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पुस्तक को पाँच भागों में विभक्त करते हुए दो सौ चौबीस पेजों में शिवाजी के सुराज को बताया गया है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद लगा कि हमारे संविधान निर्माताओं को अन्य देशों से नियम कायदे बटोरने के बजाय यदि वे शिवाजी को सही तरीके से पढ़ व समझ लेते तो उन्हें संविधान बनाना आसान हो जाता। साथ ही हमारे देश की तासीर के अनुरूप संविधान बनाया जा सकता था। बहरहाल लेखक ने शिवाजी के सुशासन को गहन अध्ययन के बाद उनकी राज्य व्यवस्था के सभी कारकों को सम्मिलित किया है। इनमें वित्त, व्यापार व उद्योग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सङक व नौ-परिवहन, श्रम व रोजगार, रक्षा, जनसंपर्क, वन एवं पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण, भाषा व संस्कृति, अल्पसंख्यक, भ्रष्टाचार तथा स्वप्रेरित राज्य रचना जैसी व्यवस्था का विस्तार से ज़िक्र किया गया। स्वप्रेरित राज्य रचना को छोङ़ दिया जाए तो ऐसा लगता है कि ये सारे विभाग आज की राजकीय व्यवस्था के अंग है।

शिवाजी ने शासन चलाने के लिए इन तमाम अंगों पर बराबरी से ध्यान दिया। मुझे ताज्जुब है कि सुराज या सुशासन के प्रणेता शिवाजी को हमारे देश के नेताओं या शासकों ने समझने की कोशिश ही नहीं की। शिवाजी को एक वर्ग विशेष का हितैषी मानकर उनके साथ ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान के साथ घोर अन्याय किया गया है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इन नेताओं ने देश को अजीब से आवरण से ढक दिया।

शिवाजी की लङ़ाई यद्यपि मुगल, कुतुब शाही और आदिल शाही से रही। लेकिन वे मुस्लिम विरोधी कभी भी नहीं रहे। शिवाजी की सेना में दौलत खान, नूर खान बेग, सिद्दी हिलाल और मुल्ला हैदर जैसे लोग सेना में शीर्ष पदों पर रहे।यह बात उनकी वैचारिक स्पष्टता को जाहिर करती है। साथ ही सही मायने में उन्हें धर्मनिरपेक्ष बनाती है।

शिवाजी के सुराज में छोटी-छोटी सी बातें सम्मिलित थीं। जैसे उस दौरान भी उन्होंने स्त्री सशक्तिकरण पर ध्यान दिया या भाषा और संस्कृति को लेकर कार्य किया। लेखक ने बताया है कि शिवाजी ने 1400 शब्दों का शब्दकोष तैयार करवाया। उनका मानना था कि भाषा अकेली नहीं आती। वह अपने साथ सोच और संस्कृति भी लाती है। स्वराज की स्थापना व संचालन में स्वभाषा न हो तो स्वराज कैसा। यह बात वाकई विचारणीय है कि अंग्रेजी की गुलामी ने आजादी के सत्तर बरस बाद भी हमें स्वराज का अनुभव नहीं होने दिया। इसके अलावा शिवाजी का महत्वपूर्ण कार्य यह था कि उन्होंने स्वप्रेरित राज्य की रचना की। सुराज के विचार को जन-जन का विचार बना दिया, इस कारण शिवाजी के न रहने पर भी औरंगजेब जैसा कुटिल राजा भी सह्याद्रि की घाटियों में घूमता रहा लेकिन सुराज के साम्राज्य को भेद नहीं पाया।

राजनीति कोयले की खान न बने। एक स्वच्छ और पारदर्शी शासन क्या होता है, सही मायने में सुशासन क्या है... आदि बातों को जानने के लिए यह पुस्तक देश के सभी नेताओं, अधिकारियों और जनता को अवश्य पढ़नी चाहिए। जैसा की शिवाजी और मराठा साहित्य के प्रसिद्ध लेखक व नाट्यकार बाबा साहब पुरंदरे ने कहा कि "छत्रपति शिवाजी महाराज की शासन व्यवस्था एक सप्रयोग सिद्ध किया हुआ महाकल्प है। अनिल माधव दवे ने इस पुस्तक में हमें उसी से परिचित करवाया है। भारत की संसद और प्रत्येक विधानसभा के सदस्यों को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए।"

वंदना दवे

अन्य मूलभूत जानकारी- प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, मूल्य- 300 रूपए (पेपर बैक), पुस्तक की प्रस्तावना नरेंद्र मोदी ने लिखी है

साभार- ऑफप्रिंट

    

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