धान, गेहूं का स्टॉक जरूरत से बहुत ज्यादा, फुल हो चुके हैं गोदाम, किसानों के सामने नया संकट

Mithilesh DharMithilesh Dhar   1 Feb 2020 12:45 PM GMT

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बजट 2020-21 पेश करते हुए देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किसानों के लिए 16 सूत्रीय फॉर्मूले की घोषणा की थी। 16 सूत्रीय फॉर्मूले में वेयर हाउस और कोल्ड स्टोरेज का भी जिक्र था। वित्त मंत्री ने कहा कि नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) नये वेयर हाउस बनायेगा और इसकी संख्या बढ़ाने के लिए पीपीपी मॉडल को अपनाया जायेगा। ब्‍लॉक स्‍तर पर भंडार गृह बनाये जाने का प्रस्‍ताव दिया गया है।

ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार पहली बार भंडारण को लेकर सजग दिख रही है। वर्ष 2017 में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत 100 लाख टन क्षमता के स्टील साइलो के निर्माण लक्ष्य रखा था लेकिन 31 मई 2019 तक सरकार महज 6.75 लाख टन क्षमता के ही स्टील साइलों बना सकी। इसमें मध्य प्रदेश में 4.5 लाख टन और पंजाब में 2.25 लाख टन की क्षमता वाले स्टील साइलो बनाये गये।

भारत के पास अप्रैल 2020 तक गेहूं और चावल का स्टॉक जरूरत से ढाई गुना ज्यादा हो जायेगा और हमारे गोदाम लगभग भर चुके हैं। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ सकता है। सरकार ने गोदाम बनाने की बात तो की है, लेकिन उसे बनने में कितना समय लगेगा और निर्धारित लक्ष्य को कब तक पूरा किया जायेगा इसका भी जिक्र कहीं नहीं है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि नाबार्ड, भारतीय खाद्य निगम और केंद्रीय भंडारण निगम की मदद से गोदाम बनाये जायेंगे, लेकिन गोदामों की स्थिति पहले से ही खराब है। धान की खरीदी चल रही है जबकि मार्च के आखिरी हफ्ते से मंडियों में गेहूं की आवक शुरू हो जायेगी। इस बीच केंद्र सरकार ने पंजाब एमएसपी पर गेहूं कम खरीदने को कहा है।

आखिर क्यों जरूरी हैं वेयरहाउस और कोल्ड स्टोरेज?

भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (ऐसोचैम) की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में कोल्ड स्टोरेज की क्षमता बहुत कम है जिस कारण 11 फीसदी ही खराब होने वाली उपज को सुरक्षित रखा जा पाता है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा फल, सब्जी उत्पादक देश है, लेकिन आश्चर्च वाली बात यह है कि इसमें कुल 40 से 50 फीसदी उपज खराब हो जाती है जिसकी कुल कीमत करोड़ों में होती है।

ऐसोचैम की रिपोर्ट में संस्था के पूर्व महासचिव डीएस रावत कहते हैं, "भारत के पास कोल्ड स्टोरेज की संख्या बहुत कम है। ऐसे में जो फसलें जल्दी खराब हो जाती हैं उन्हें स्टोर नहीं जा पाता। हमारे पास 30.11 मिलियन टन उपज स्टोर करने की ही क्षमता है।"

"पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी, प्रशिक्षित कर्मियों की कमी, पुरानी तकनीक और बिजली आपूर्ति में कोल्ड स्टोरेज की राह में बाधा है।" रावत आगे कहते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात में 60 फीसदी कोल्ड स्टोरेज हैं।

नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड चेन डेवलपमेंट, उत्तर प्रदेश के खाद्य उद्योग विकास अधिकारी एसके चौहान गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, " बात अगर उत्तर प्रदेश की करेंगे तो हमारे यहां आलू के लिए पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज हैं, लेकिन दूसरी खराब होने वाली फसलों के लिए व्यवस्था नहीं है। बजट में सरकार ने कहा तो है लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि इसे कैसे बढ़ाया जाता है। दूसरी फसलों के लिए बड़ी संख्या में कोल्ड स्टोरेज बनाने की जरूरत है।"


ऊपर दिये चार्ट को देखिये। रिपोर्ट अक्टूबर 2019 तक की है। इसके अनुसार छत्तीसगढ़, तेलंगाना के गोदाम 98 फीसदी तक फुल हैं, जबकि हरियाणा के गोदाम में बस 11 फीसदी की जगह बची है। पंजाब के गोदाम भी 84 फीसदी तक भर चुके हैं।

देश में पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और गोदाम न होने से सरकार और किसान दोनों को नुकसान उठाना पड़ता है। पिछले साल जब प्याज की कीमत 200 रुपए प्रति किलो तक पहुंची तब सरकार ने दूसरे देशों में प्याज खरीदने का फैसला लिया। सरकार महंगी दरों में प्याज आयात करती है लेकिन तब तक राज्यों की फसल बाजार में आ जाती है जिस कारण राज्यों ने केंद्र से प्याज खरीदने से मना कर दिया। इसके बाद सरकार वही प्याज कम कीमत में निर्यात करने का फैसला लेती है, क्योंकि हमारे यहां उसे रखने की व्यवस्था ही नहीं है। कई जगहों से प्याज सड़ने की भी खबरें आ रही हैं।

इस साल सरकार के पास सबसे बड़ी चुनौती गेहूं और धान को सुरक्षित रखने की होगी।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) 2013 के सर्वे के अनुसार भारत में होने वाली कुल खेती में 23 फीसदी क्षेत्र में धान की खेती होती तो वहीं 16 फीसदी में गेहूं की। भारत में पैदा होने वाली कुल उपज में इन दो फसलों का योगदान लगभग 40 फीसदी है।

यही नहीं देश के 59 फीसदी कृषि परिवार धान और 39 फीसदी कृषि परिवार अलग-अलग समय पर गेहूं की खेती से अपनी अजीविका चलाते हैं। ऐसे में अगर धान और गेहूं रखने की जगह ही नहीं होगी तो जाहिर सी बात है कि सरकार अपने खरीद लक्ष्य को घटा सकती है। शायद यही वजह है कि केंद्र सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच धान खरीद को लेकर गहमागहमी चल रही तो उधर हरियाणा सरकार ने बिना बताये ही धान की खरीद बंद कर दी।

यह भी पढ़ें- बजट 2020-21: किसानों के लिए बजट में 16 सूत्रीय फॉर्मूला, जानिये इसमें क्या है खास ?

हरियाणा के जिला करनाल, ब्लॉक गरौंदा के गांव शाहजानपुर के रहने वाले किसान सुकर्ण पाल बहुत परेशान हैं। उन्होंने इस साल 13 एकड़ में धान लगाया था। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, " 1750 रुपए प्रति कुंतल की दर से सरकार धान खरीद रही थी। मैं आधी उपज ही बेच पाया था लेकिन फिर खरीद केंद्रों पर मेरा धान नहीं लिया गया। मैंने कुछ दिनों तक इंतजार किया फिर धान को 1500 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से व्यापारियों को बेच दिया।"

"हमे तो वैसे भी नुकसान में रहते हैं। सोचा था कि रेट बढ़ा तो कुछ फायदा होगा, लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। हमें तो यह भी कहा जा रहा है कि धान की खेती कम करो।" सुकर्ण पाल आगे कहते हैं।

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने अलग-अलग समय के लिए गेहूं और चावल के भंडारण का नियम बनाया हुआ जिसे बफर नॉर्म्स भी कहा जाता है। इस नियम की मानें तो एफसीआई के पास 1 जनवरी 2020 को अधिकतम 214 लाख मीट्रिक टन का स्टॉक होना चाहिए लेकिन 1 जनवरी 2020 के पास केंद्रीय पुल का कुल स्टॉक 565.11 लाख मीट्रिक टन पहुंच चुका है, यानी की नियम से लगभग ढाई गुना ज्यादा। इसमें चावल का स्टॉक होना 56.10 लाख मीट्रिक टन होना चाहिए और है 237.15 लाख मीट्रिक टन, इसी तरह गेहूं का स्टॉक 108 लाख मीट्रिक टन होना चाहिए जो 327.96 लाख मीट्रिक टन हो चुका है।


पंजाब के किसानों को सबसे ज्यादा मुश्किलों को सामना करना पड़ सकता है क्योंकि धान और गेहूं, दोनों की खेती में पंजाब काफी आगे है। एक हेक्टेयर खेत में 40.4 कुंतल धान पैदा करके पंजाब पूरे देश में नंबर एक राज्य बना हुआ है। लेकिन लागत और मूल्य आयोग की रिपोर्ट ही कहती है कि पंजाब में धान की खेती को लेकर जो तेजी आई है वह चिंताजनक है।

पंजाब में चावल उत्पादकता में वर्ष 2009 से 2013 के बीच 2.8 फीसदी की वृद्धि हुई थी जबकि 2013 से 2018 के बीच चावल उत्पादन में 37.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। पंजाब देश का 11.2 फीसदी चावल पैदा करता है।

खरीफ सीजन वर्ष 2019-20 के लिए एक जनवरी 2020 तक एफसीआई पंजाब से 108 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद कर चुका है। 43 लाख मीट्रिक टन के साथ हरियाणा इस मामले में दूसरे नंबर पर है। खरीफ सीजन वर्ष 2018-19 में एफसीआई ने पंजाब से 113.34 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था।


एफसीआई की रिपोर्ट के अनुसार धान और गेहूं का सबसे ज्यादा स्टॉक पंजाब के गोदामों में है। एक जनवरी 2020 तक पंजाब में 195.38 लाख मीट्रिक टन, हरियाणा के गोदामों में 104.70 लाख मीट्रिक टन, मध्य प्रदेश में 77.63 लाख मीट्रिक टन अनाज जमा है।

भारतीय खाद्य निगम की जून 2019 की रिपोर्ट देखेंगे तो पता चलता है कि भंडारण की क्षमता से ज्यादा का स्टॉक तो पहले से ही है। मतलब जब गेहूं की आवक शुरू होगी तब हमारे गोदामों में उसे रखने की जगह ही नहीं होगी।

एक जून 2019 के अनुसार भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकार की एजेंसियों की भंडारण क्षमता 878.55 मिलियन टन है, इसमें 133.55 मिलियन टन कैप (खुले) की है। वहीं एफसीआई के कुल भंडारण क्षमता 407.31 मिलियन टन है।

पंजाब में कुल अनाज का भंडारण 253.89 मिलियन टन है जबकि इस राज्य की भंडारण क्षमता 234.51 मिलियन टन ही है। ऐसे में सवाल यह है कि 20 मिलियन टन अनाज कहां रखा है और जो अनाज खुले में हैं उसकी स्थिति क्या है? यह उदाहरण बस एक राज्य का है।

हालांकि सरकार कहती है उनका द्वारा खुले में रखा गया अनाज भी सुरक्षित रहता है। 16 जुलाई 2019 को लोकसभा में वीके श्रीकंदन और राजेंद्र अग्रवाल ने सरकार से इस संदर्भ में सवाल पूछा था। तब सरकार की ओर से खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री दानवे रावसाहेब दादाराव ने जवाब दिया था।

मंडियों में अभी भी चावल की खरीदी चल रही है जबकि मार्च के आखिरी सप्ताह से मंडियों में गेहूं की आवक शुरू हो जाती है।

उन्होंने कहा, " केंद्रीय पूल के लिए खरीदे गए व भारतीय खाद्य निगम में उपलब्ध खाद्यान्नों का भंडारण वैज्ञानिक तरीके से कवर्ड गोदामों में कीटनाशकों के उपचार के साथ किया जाता है। सभी सावधानियों के बावजूद खाद्यान्नों की कुछ मात्रा विभिन्न कारणों जैसे प्राकृतिक आपदा, ढुलाई के दौरान नुकसान के कारण जारी न करने योग्य हो जाती है। भारतीय खाद्य निगम में रखे हुए 1165 टन क्षतिग्रस्त (खराब) में से केवल 15 टन खाद्यान्न एक वर्ष पुराना है और 1150 टन खाद्यान्न एक वर्ष से कम पुराना है।"

एफसीआई के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर (फोन पर) बताया, " पहले कभी इतना स्टॉक नहीं था, लेकिन इस बार की स्थिति बिगड़ गई है। मैं आपको कुछ आंकड़े बताता हूं, एक जुलाई 2016 को केंद्रीस पुल में 495.95 मिलियन टन अनाज था जो एक जुलाई 2017 को 533.19 मिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। यह स्टॉक एक जुलाई 2018 को 650.53 मिलियन टन और 1 जुलाई 2019 को 742.52 मिलियन टन पहुंच गया।

अधिकारी ने बताया कि पिछले कुछ सालों के मुकाबले यह पहली बार हो रहा है कि इतना अनाज स्टॉक में पड़ा है। एफसीआई के आंकड़े बताते हैं कि 1 जुलाई 2016 को केंद्रीय पूल (भंडारण) में 495.95 मिलियन टन अनाज जमा था, जो 1 जुलाई 2017 में यह 533.19 मिलियन रिकॉर्ड किया गया। इसी तरह 1 जुलाई 2018 में यह 650.53 मिलियन टन और 1 जुलाई 2019 को 742.52 मिलियन टन पहुंच गया। चावल की खरीद शुरू हो गई है लेकिन हमारे गोदाम में लगभग फुल हो चुके हैं। चावल तो खुले में नहीं रखा जा सकता, ऐसे में उसे कहां रखेंगे इस पर कोई रणनीति नहीं बनी है।"


पिछले साल 19 नवंबर को बिहार, कटिहार के सांसद दुलाली चंद्र गोस्वामी ने सरकार से सवाल पूछा था कि क्यों देश में अपर्याप्त भंडारण क्षमता के कारण हर साल प्याज, टमाटर, आलू, गेहूं, मक्का, धान और दालों की बड़ी मात्रा बर्बाद हो जाती है जिस कारण किसानों को भी नुकसान हो रहा है।

उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री दानवे रावसाहेब दादाराव ने सरकार की ओर से जवाब दिया और बताया, " भंडारण की क्षमता की कमी के कारण प्रतिवर्ष कृषि उत्पादों की होने वाले बर्बादी का कोई विशेष आंकलन नहीं है। लेकिन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय कटाई की मात्रा और कटाई-उपरांत होने वाले नुकसान वाले नुकसान के बारे में वर्ष 2015 में एक अध्ययन किया था।"

"इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कटाई के बाद 4.65 से 12.44 फीसदी तक प्याज, टमाटर, आलू, गेंहू, मक्का, धान और दाल की उपज खराब हो जाती है। सरकार के पास 8038 शीत-भंडारगृह (कोल्ड स्टोरेज) है जिनकी क्षमता 36.77 मिलियन मीट्रिक टन है। इसके अलावा केंद्रीय भंडारण निगम और राज्य एजेंसियों (सरकारी और किराये पर ली गई) के पास कुल भंडारण क्षमता 753.93 लाख मीट्रिक टन (30-09-2019 तक) है।"

एक जनवरी 2020 तक केंद्रीय पूल में कुल खाद्यान


  

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