बुंदेलखंड: झांसी में कर्ज़ ने ली एक और जान, साल 2019 में पूरे देश में 139,123 लोगों ने की थी आत्महत्या

दीपचंद को पिता की मौत का गम तो है ही, इस बात की भी चिंता है कि जो कर्ज उनके पिता ने लिया है उसे वे चुकाएंगे कैसे?

Arvind ShuklaArvind Shukla   11 Oct 2020 1:12 PM GMT

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suicide in bundelkhand, bundelkhand farmers newsसाल 2019 में पूरे देश में कुल 139,123 लोगों की मौत आत्यहत्या करने से हुई है

लखनऊ। ओम प्रकाश कुशवाहा (45 वर्ष) का शव रविवार को खेत में पेड़ से लटका मिला। परिजनों के मुताबिक उन्होंने कर्ज़ से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। ओम प्रकाश उत्तर प्रदेश के बुंदलेखंड वाले हिस्से में झांसी जिले के थाना तोड़ी फतेपुर के तलपुरा गांव में रहते थे।

तीन एकड़ खेत के मालिक ओमप्रकाश के दो बेटे दिल्ली में बेलदारी का काम करते हैं। ओम प्रकाश के छोटे बेटे दीप चंद्र कुशवाहा ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "रोज की तरह आज भी खेत गए थे, वहीं फांसी लगा ली। ठीक से तो नहीं पता लेकिन वे बताते थे कि 2-3 लाख रुपए का कर्ज़ है, जिसमें से एक लाख रुपए बनियों (व्यापारियों) से लिया था। खेत में पानी की दिक्कत थी तो जमीन कटाई (ठेके पर) दे दी थी।'

दीपचंद के मुताबिक घर में उनके अलावा एक बड़ा भाई और तीन बहनें हैं। बड़े बेटे की शादी काफी पहले हो गई थी, उसके भी एक बच्चा है, जबकि पिछले जून में दीपचंद की शादी हुई, उसके लिए भी कर्ज़ लिया गया था।

"हम दोनों भाई दिल्ली में बेलदारी का काम करते हैं। 250 से 300 रुपए एक दिन का मिलता है। पिता भी राजमिस्त्री का काम कर लेते थे, लेकिन इधर उन्हें काम नहीं मिल रहा था। कोरोना में हम लग लोग दिल्ली से लौट आए थे और शादी के बाद फिर चले गए थे। अभी एक हफ्ते पहले वापस फिर झांसी आए थे। पिता जी को टेंशन रहती थी कि कर्ज़ कहां से चुकाएंगे, बाकी घर में सब ठीक था।" दीपचंद बताते हैं।

दीपचंद के मुताबिक व्यापारियों का कर्ज़ करीब एक लाख रुपए था जो करीब 3 फीसदी सैकड़ा पर होगा, क्योंकि उनके यहां (झांसी) में यही चलता है। बाकी कर्ज़ रिश्देतारों से था। बैंक का कोई कर्ज़ नहीं था। बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड पर कर्ज़ क्यों नहीं मिला था, इस सवाल के जवाब में दीपचंद ने कहा- "वो सब लोग मजदूर हैं, उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी।"

मृतक ओम प्रकाश कुशवाहा की फाइल फोटो

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झांसी के मऊ कस्बे में पोस्टमार्टम हाउस के बाहर खड़े दीपचंद को पिता की मृत्यु का शोक के साथ इस बात की भी चिंता थी उनकी मजदूरी से परिवार का गुजारा कैसे होगा और जो कर्ज़ पिता जी के सिर पर था वह कैसे चुकाएंगे।

झांसी के किसान नेता और किसान कांग्रेस के अध्यक्ष शिवनारायण परिहार सुबह मृतक के घर पहुंचे थे। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "बुंदेलखंड में कर्ज़ लोगों की आत्महत्या का बड़ा कारण है। पिछले हफ्ते एक किसान ने ललितपुर में आत्महत्या की अभी परसों (दो दिन पहले) झांसी में एक किसान ने फांसी लगा ली। मेरा मुख्यमंत्री ने निवेदन है पीड़ित परिवार की आर्थिक मदद करें, बुंदेलखंड के हालात किसी से छिपे नहीं हैं।"

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में पूरे देश में कुल 139,123 लोगों की मौत आत्यहत्या करने से हुई है। पूरे देश में मौत को गले लगाने वाले लोगों में 7.4 फीसदी लोग खेती से जुड़े (किसान और खेतिहर मजूदर) थे। साल 2019 में रोजाना 89 दिहाड़ी मजदूरों और 28 किसानों ने आत्महत्या की है। सितंबर महीऩे में आई राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आकस्मिक मौत और आत्महत्या 2019 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि किसानों की आत्महत्या में हल्की गिरावट आई है लेकिन दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या का प्रतिशत पिछले पांच वर्षों में 6 गुना बढ़ा है।

पिछले वर्ष के आंकड़े को देखें तो आत्महत्या होने वाली मौतों में कुल संख्या 1,39,123 में से 32,559 दिहाड़ी मज़दूर थे और प्रतिशत में इसे 23.4% आँका गया था। यानी कि खुद की मौत चुनने वाला हर चौथा इंसान दिहाड़ी मज़दूर था।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB), भारतीय दंड संहिता व विशेष और स्थानीय क़ानून की देख-रेख में आंकड़े एकत्र करने और उस पर गहन विश्लेषण करने के लिए उत्तरदाई होता है। एनसीआरबी के पिछले पांच वर्षों के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि आत्महत्या या खुदखुशी करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या हर वर्ष बढ़ रही है, इनमें पुरुषों की संख्या अधिक है। वर्ष 2015 में आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों का प्रतिशत 17% (23,779) था, जो वर्ष 2016 में बढ़कर 19% (21,902) हो गया। 2017 में 22.1% (28,737) और 2018 में 22.4% (30,124) बढ़ा।

कर्ज़ के चक्रव्यूह में बुंदलेखंड

सूखे और प्राकृतिक आपदाओं से जूझते बुंदेलखंड में कर्ज़ किसान ग्रामीण सबके लिए जानलेवा साबित हो रहा है। सूखे और मौसम की मार से अक्सर फसल में नुकसान उठाने वाले किसान कर्ज़ तले दबे हैं, जिनमें बैंकों से ज्यादा कर्ज़ गैरसंस्थागत यानि महाजन व्यापारियों का है जो किसानों की जमीन या कीमती वस्तु गिरवीं रखकर 2-5 फीसदी सैकड़ा (100 रुपए पर दो से 5 रुपे महीना ब्याज) पर लोन देते हैं। ये ब्याज इतना ज्यादा है कि ग्रामीण अक्सर इसे चुकाने नाकाम रहते हैं, जिसके बाद वो आत्महत्या का रास्ता चुनते हैं या फिर उनकी जमीनें चली जाती हैं।

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