बुंदेलखंड में पानी की किल्लत शुरू, महिलाएं मजदूरी और लड़कियां पढ़ाई छोड़ भर रहीं पानी
Neetu Singh 23 March 2018 5:12 PM GMT
जिस उम्र में लड़कियां पढ़ाई करती हैं, भविष्य बनाने के सपने देखती हैं। उस उम्र में बुंदेलखंड की लड़कियों को मजबूरन पानी भरना पड़ता है। विश्व जल दिवस पर पढ़िए गांव कनेक्शन में स्पेशल खबरों की सिरीज ‘पानी कनेक्शन’ में इनकी आप बीती...
जब भी पानी की किल्लत पर बात होती है तो हमारे जेहन में तस्वीर सिर्फ खेतों की सिंचाई और पीने के पानी की उभरकर आती है। पर इसकी एक दूसरी तस्वीर यह भी है जब पीने के पानी का इंतजाम करने की वजह से मजबूरन लड़कियों को अपना भविष्य और महिलाओं को अपनी कमाई का जरिया बंद करना पड़ता है।
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड की, जहां कई वर्षों से सूखे से जूझ रहे किसान सिर्फ आत्महत्या और पलायन करने को मजबूर तो हैं ही, यहां की महिलाओं को पीने का पानी भरने के लिए लगभग एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। जिस वजह से इनके दिन के चार से पांच घंटे ऐसे ही बर्बाद हो जाते हैं, इसकी वजह से इनके लिए कोई दूसरा काम करना सम्भव नहीं होता है।
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“हमनें तो कुछ साल पहले थोड़ी-बहुत पढ़ाई कर भी ली थी, तब पानी की इतनी समस्या नहीं थी। पिछले चार-पांच वर्षों से मार्च का महीना शुरू होते ही आसपास के नल पानी छोड़ने लगते हैं। इसलिए तीन-चार महीने लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती हैं क्योंकि उन्हें दो बर्तन पानी भरने में घंटों लाइन में खड़े रहना पड़ता है।" ये कहना है ललितपुर जिले की रचना प्रजापति (21 वर्ष) का।
वो आगे कहती हैं, “घर में मम्मी लोग मजदूरी करने चली जाती हैं, पानी भरने का काम लड़कियों को सौंप दिया जाता है। जिनके यहां लड़कियां नहीं हैं उनके यहां पानी भरने का काम मम्मी को ही करना पड़ता है, तो फिर वो मजदूरी करने नहीं जा पाती हैं। हमें पढ़ाई या मजदूरी किसी एक से समझौता करना ही पड़ता है।" रचना की तरह यहां हर लड़की का पानी को लेकर यही दर्द है क्योंकि उन्हें हर दिन पानी जैसी मूलभूत जरूरत के लिए जूझना पड़ता है। रचना मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर विरधा ब्लॉक के बजरंगगढ़ गांव की रहने वाली है।
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जहां देश के जलाशयों में 21 प्रतिशत पानी कम हो गया है, वहीं देशभर में 47 प्रतिशत कुएं भी सूख चुके हैं। जिसका नतीजा ये है कि गर्मी की अभी ठीक से शुरुआत भी नहीं हुई है इससे पहले ही ललितपुर जिले के मड़ावरा और विरधा ब्लॉक के कई गाँवों में पानी की किल्लत शुरू हो गयी है। इन इलाकों में काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था साईं ज्योति संस्थान के मुताबिक जिले के 71,610 सहरिया आदिवासियों में सिर्फ 150 लोग हाईस्कूल तक पहुंचे हैं। जबकि इनके बीच के 60 बच्चे स्नातक तक पहुंचे हैं, जिसमें 40 लड़के और 20 लड़कियां हैं।
लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम कर रही एक गैर सरकारी संस्था साईं ज्योति संस्थान के प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर महेश रिझरिया बताते हैं, “आदिवासी परिवार में 70 फीसदी महिलाओं और किशोरियों की मजदूरी और पढ़ाई दूर से पानी भरने की वजह से छूट जाती है। गर्मी के महीने इनके बहुत ही मुश्किल से कटते हैं।” वो आगे बताते हैं, "प्रशासन की तरफ से टैंकर मई-जून में पहुंचाए जाते हैं, मार्च-अप्रैल ऐसे ही किल्लत से कटता है। कभी नलों की रिबोरिंग नहीं कराई जाती जिससे पानी की समस्या जस की तस रहती है।"
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ललितपुर जिलाधिकारी मानवेन्द्र सिंह ने बताया, "मुझे अभी जानकारी नहीं है कि इन क्षेत्रों में पानी की किल्लत अभी से शुरू हो गयी है, अगर ऐसा है तो वहां हम अभी से टैंकर की सुविधा उपलब्ध कराएंगे। जिले में किसी तरह की पानी की समस्या न हो इसके लिए हर विभाग के साथ साप्ताहिक बैठक होती है, पानी की समस्या का कैसे समाधान हो इस पर चर्चा होती है।"
उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के सात जनपद बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी व ललितपुर में 2011 की जनगणना के मुताबिक, कुल जनसंख्या 96,59,718 है। इसमें महिलाओं की संख्या 45,63,831 है। बुंदेलखंड में गर्मी के मौसम में फसल तो प्रभावित होती ही है। साथ ही सबसे ज्यादा तकलीफें पानी भरने की वजह से महिलाओं और किशोरियों को होती हैं। इससे इनकी रोजी-रोटी और शिक्षा दोनों प्रभावित हो रही हैं।
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“आमदनी का कोई जरिया नहीं है, दिनभर जंगल से लकड़ी बीनकर अपनी रोजी-रोटी मुश्किल से चला पाते हैं। गर्मी में दो बर्तन पानी भरने में ही एक से दो घंटा लग जाता है। गर्मियों में एक आदमी सिर्फ पानी भरने के लिए चाहिए, जो घर में अकेला है उसकी मजदूरी ऐसे ही रुक जाती है।" ये कहना है डुगरिया गांव की प्रेमाबाई (50 वर्ष) का। प्रेमाबाई की तरह यहां हर घर की एक महिला मजदूरी करने या लकड़ी बीनने सिर्फ इसलिए नहीं जा पाती क्योंकि गर्मियों में पानी भरना भी उनके लिए पूरे दिन का एक काम है।
पानी की किल्लत से जूझ रहे जिलों के लोग पानी से आगे सरकार की किसी और योजना के बारे में सोच भी नहीं पा रहे हैं क्योंकि इनके लिए पीने के पानी का इंतजाम करना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। इसके लिए यहां की लड़कियों को अपना भविष्य दांव पर लगाना पड़ता है और महिलाओं को अपनी आमदनी का जरिया बंद करना पड़ता है।
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