बुंदेलखंड में घोंटा जा रहा नदियों का गला

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बुंदेलखंड में घोंटा जा रहा नदियों का गलाgaonconnection

हमीरपुर। कानपुर से हमीरपुर की ओर हाइवे से बढ़ने पर आप को एक लाइन से हरे रंग के डंफर और ट्रकों की कतार मिलेगी। जो दिन-रात नदियों से खनन करके बालू और मौरंग निकालते रहते हैं। इसका असर यह हुआ है कि केन और बेतवा नदी में खुदाई से बड़े-बड़े पोखर होने से धारा रुक गई है, या फिर ट्रकों की आवाजाही के लिए बनाए गए अवैध पुलों ने धारा का रुख मोड़ दिया है।

“पहले नदी के किनारे नवंबर से लेकर मई तक ही मजदूरों से खनन होता था, अब पोकलैंड मशीनों के जरिए पूरे साल चलता है। मशीन से नदी की तलहटी से कई फीट नीचे से मौरंग निकाले जाने से पानी को रोकने की क्षमता कम हो जाती है, और पानी पोखरों में भरने से आगे नहीं बढ़ पाता।” हमीरपुर जिले मे केन और बेतवा नदी में हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए अदालत में लड़ाई लड़ रहे विजय द्विवेदी बताते हैं।

बुंदेलखंड की पांच नदियां-चंबल केन, सिंधु, बेतवा और सोन महत्वपूर्ण हैं। इनके साथ हुई छेड़छाड़ पूरे बुंदेलखंड में सूखे का संकट लेकर आई है। चालीस साल तक बुंदेलखंड में सिंचाई परियोजनाओं पर काम करने वाले व आईआईटी से इंजीनियर केके जैन कहते हैं, “यहां की नदियों से सीमित मात्रा में बालू और मौरंग निकालना तो ठीक है, लेकिन नदी की दिशा बदल देना गलत है।” आगे कहते हैं, “नदियों को आपस में जोड़ने से ही इस समस्या का हल हो सकता है। इसको ऐसे समझ सकते हैं कि महोबा और चरखारी के तालाबों को चंदेल राजाओं ने आपस में जोड़ते हुए बनवाया था। ताकि एक में पानी ज्यादा होने पर दूसरे में जा सके।

भू-गर्भ जल विभाग के आंकड़ों के अनुसार बुंदेलखंड में हर साल औसतन तीन फिट तक जलस्तर नीचे खिसक रहा है। जो पिछले 20 वर्षों में करीब 100 फिट तक नीचे चला गया।

नदियों में अवैध खनन के साथ ही इन पर कच्चे अवैध पुल भी ट्रकों और डंफरों के आने-जाने के लिए बना दिए जाते हैं। जो नदी के बहाव को रोक देते हैं। “नदियों में अवैध खनन को रोका जा रहा है। अगर कहीं भी नदियों के ऊपर ऐसे नाजायज पुल बनते हैं तो उन्हें तोड़ दिया जाता है।” हमीरपुर के जिलाधिकारी उदयवीर सिंह यादव ने कहा, “जिले में खनन के सिर्फ छह पट्टे हैं, इससे पहले 50 पट्टे थे। नदियों में भी अवैध खनन को रोका जा रहा है।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 19 जून, 2015 को बेतवा नदी पर अवैध खनन के लिए बनाए गए अवैध 15 पुलों को जो नदी की धारा रोक रहे थे, तोड़ने का आदेश दिया था। साथ ही इन्हें बनाने वालों पर एफआईआर दर्ज़ करने के भी आदेश दिए थे।

नदियों में पानी न होने से बुंदेलखंड की नहरें भी सूखी हैं। बांदा के नरैनी ब्लॉक के शंकर बाजार में अपनी दुकान के सामने बैठे सीताशरण पटेल सामने सूखी नहर की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “हमने इसमें एक बार ही पानी देखा है। वो भी बरसात में।” दरअसल, बरियारपुर से बबेड़ू तक जाने वाली यह नहर सैकड़ों गाँवों के करीब से गुजरती है। लेकिन आसपास गाँव के लोगों को सिंचाई के लिए ट्यूबवेल या पंप पर ही निर्भर रहना होता है।” बुंदेलखंड में कुल तीन लाख हेक्टेयर क्षेत्र नहरों से सिंचित है। यहां जितनी भी नहरें बनी हैं उनमें से ज्यादातर अग्रेजों के जमाने की हैं।

“बुंदेलखंड में नहरों से सिंचाई का नेटवर्क चरमराया हुआ है। खेती के लिए भूमिगत जल पर बढ़ती निर्भरता से हालात और खराब हो रहे हैं।” बांदा कृषि विश्वविद्यालय कुलपति जीडी गोस्वामी ने कहा। बादां जिले में महुआ ब्लॉक में ग्राम विकास अधिकारी प्रमोद दि्वेदी बताते हैं, “ मध्य प्रदेश से नहरें आती हैं, तो इस साल धान में तो पानी छोड़ दिया, गेहूं को पानी नहीं मिला। हम उनके रहमो करम पर हैं। केन नहर से पानी आता है।” आगे कहते हैं, “हमारे यहां सबसे अधिक पाइप रिबोर होने के लिए मार्च में दिए गए। उसके बाद करीब दो महीने पानी नीचे नहीं गया, स्थिर हो गया। इसका मतलब है कि सबसे ज्यादा पानी सिंचाई में ही लग रहा है।”

 

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