ये महिला किसान कर रही हैं नर्सरी का कारोबार, गांव वाले कहते हैं- बिजनेस विमेन

Ranvijay SinghRanvijay Singh   15 Oct 2019 6:03 AM GMT

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लखनऊ। ''मैंने खुद की कमाई से अपने पति को साइकिल खरीद कर दी। मेरे बेटे की शादी हुई तो उसमें भी मदद की है। यह सब समूह की वजह से हो पाया।'' यह बात कहते हुए चंद्र कुमारी के चेहरे पर एक हल्‍की सी मुस्‍कान तैर जाती है।

चंद्र कुमारी लखनऊ के मलीहाबाद ब्लॉक के मुजासा गांव की रहने वाली हैं। वो उन लाखों महिलाओं में से एक हैं जो स्‍वयं सहायता समूह (SHG) से लाभ लेकर अपनी आजीविका कमा रही हैं। चंद्र कुमारी 'लक्ष्‍मी स्‍वयं सहायता समूह' की सचिव हैं। इस समूह में कुल 10 महिलाएं हैं। यह सभी महिलाएं किसान हैं और नर्सरी का कारोबार करती हैं।

चंद्र कुमारी बताती हैं, ''2014 में लक्ष्‍मी स्‍वयं सहायता समूह की स्‍थापना हुई थी। हम लोग पहले से नर्सरी का काम कर रहे थे, लेकिन स्‍वयं सहायता समूह बनने के बाद हमें नर्सरी की ट्रेनिंग मिली। इससे यह लाभ हुआ कि हमने वैज्ञानिक विधि से नर्सरी करनी शुरू की। पहले एक बीघे में नर्सरी लगाती थी, अब तीन बीघे में नर्सरी लगा रही हूं। अभी जितने पौधे तैयार हैं उनसे करीब 8 से 10 लाख तक की कमाई हो सकती है। समूह बनने से पहले केवल 50 हजार तक ही कमाई हो पाती थी।''

लखनऊ का मलीहाबाद आम के लिए जाना जाता है। यहां आम की कई वैरायटी मिलती है। इस वजह से इस इलाके में किसान नर्सरी का काम करते हैं। मुजासा गांव में कुल 6 स्‍वयं सहायता समूह हैं, जिनसे जुड़ी महिलाएं नर्सरी का काम कर रही हैं। यह सभी फलदार पैधों को उगाती हैं और फिर उन्‍हें बेचती हैं। इसमें आम, नींबू, अमरूद जैसे कई तरह के पेड़ शामिल हैं।

लक्ष्‍मी स्‍वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं।

हालांकि लक्ष्‍मी स्‍वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि उनके पौधे तो तैयार हैं, लेकिन उन्‍हें एक मुस्‍त पौधे खरीदने वाले ग्राहक कम ही मिल रहे हैं। वो खुले तौर पर मार्केट में पौधे बेच रही हैं, जिससे कई बार अच्‍छी कमाई होती है तो कई बार लागत के हिसाब का बेचकर संतोष करना होता है।

इस सवाल पर कि क्‍या आपको घाटा हो रहा है? यह महिलाएं कहती हैं, घाटा जैसा नहीं है। हां अगर एक मुस्‍त पौधे कहीं जाते तो ज्‍यादा फायदा होता और इससे एक मुस्‍त रकम भी मिल जाती जो ज्‍यादा सही रहता। महिलाएं बताती हैं हाल ही में मनरेगा के तहत उनके पौधे लखनऊ के ही ब्‍लॉक बख्‍शी का तालाब भेजे गए हैं, ऐसे ही और ग्राहक मिल जाएं तो बेहतर हो।

लक्ष्‍मी स्‍वयं सहायता समूह से जुड़ी मीना कुमारी बताती हैं, ''समूह से यह फायदा हुआ है कि जब हमें पैसों की जरूरत होती तो हम समूह से ही लेते हैं। इसमें 2 प्रतिशत का ब्‍याज पड़ता है। हम अपनी बचत से ही समूह का फंड तैयार करते हैं, जब जरूरत पड़ी तो समूह की मीटिंग में बात रख दी और फिर जरूरत के हिसाब का पैसा ले लिया जाता है। बाद में समय से इसे लौटा देते हैं।'' बता दें, स्‍वयं सहायता समूह की महिलाएं हर महीने कुछ पैसा बचत खाते में रखती हैं। यह एक निर्धारित राशि होती है, जो उन्‍हें जमा करनी ही है।

मीना बताती हैं, ''हम नर्सरी का कारोबार कर रहे हैं तो गांव वालों के बीच हमारी एक अलग पहचान भी बन गई है। गांव वाले हमें बिजनेस विमेन कहकर पुकारते हैं। यह बात हमें भी अच्‍छी लगती है। हमारी कमाई की वजह से हम अपने घर में सहयोग भी कर पा रहे हैं, इसलिए घर में भी सम्‍मान मिल रहा है।'' मीना कहती हैं, ''हमारे समूह से जुड़ी सभी महिलाएं अब आत्‍मनिर्भर हो गई हैं। समूह बनने से पहले सब अपने घरों पर आश्र‍ित थीं, अब खुद की कमाई कर पा रही हैं।''

चंद्र कुमारी के नर्सरी में लगे अमरूद के पौधे।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत देश भर के 691 जिलों में करीब 56 लाख 34 हजार स्‍वयं सहायता समूह चल रहे हैं। इनमें से उत्‍तर प्रदेश में 2 लाख 99 हजार के करीब हैं। मलीहाबाद में स्‍वयं सहायता समूह की संख्‍य 282 है। इन स्‍वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं अपनी आजीविका के लिए अलग-अलग काम कर सकती हैं।

मलीहाबाद के सहायक विकास अधिकारी (आईएसबी) मलिक मसूद अख्‍तर ने बताया कि, ''लक्ष्‍मी स्‍वयं सहायता समूह बहुत अच्‍छा समूह है। इन लोगों ने बहुत अच्‍छा काम किया है। चंद्र कुमारी के पास करीब 50 हजार आम के पेड़ हैं। हम लोगों ने मनरेगा के तहत उनके बहुत से पेड़ बक्‍शी का तालाब भिजवाए हैं। हम आगे भी प्रयास कर रहे हैं जिससे इनके पेड़ दूसरी जगह भी भेजे जा सकें। इसके अलावा उनके पास ओपन मार्केट तो है ही जहां वो अपने पेड़ बेच सकती हैं।''

कैसे बनाएं समूह?

सहायक विकास अधिकारी (आईएसबी) मलिक मसूद अख्‍तर बताते हैं, ''गांव की बीपीएल सूची में जिन महिलाओं का नाम है वो मिलकर एक समूह बना सकती हैं। इसके बाद समूह के नियम का पालन करें। जैसे समूह का नाम रखें, उसकी बैठक करें, बैठक में कितने पैसे की बचत करनी है वो तय करें। इस तरह जब समूह का गठन हो जाएगा तो ब्‍लॉक ऑफिस से समूह को एमआईएस पर फीड करा दिया जाएगा।''

''जब यह समूह तीन महीने तक अच्‍छे से काम करेगा जैसे- साप्‍ताहिक बैठक, साप्‍ताहिक बचत, आपसी लेन देन, समय से पैसे वापस करना, बैठक का रिकॉर्ड रखना तो उसके बचत खाते में राज्‍य सरकार की ओर से 1500 रुपए दिए जाएंगे। साथ ही 1 लाख का बैंक क्रेडिट लिंकेज भी करा दिया जाएगा। इस पैसे से समूह से जुड़ी महिलाएं अलग-अलग काम कर सकती हैं।'' , मसूद अख्तर आगे बताते हैं।

''इसके 6 महीने बाद समूह को 1 लाख 10 हजार का सीआईएफ फंड दिया जाता है। यह समूह का पैसा है। इसे निकालकर समूह की महिलाओं को दिया जाएगा, जो कि 2 प्रतिशत की ब्‍याज पर होगा। इस पैसे से महिलाएं अपना काम करें और फिर उसे लौटा दें। इस तरह से महिलाएं अलग अलग तरीकों से आजीविका कमा सकती हैं।'', मसूद अख्तर अपनी बातों को खत्म करते हैं।


 

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