ग्रामीण इलाकों में सीज़ेरियन ऑपरेशन बढ़े, पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों के प्राइवेट अस्पतालों में सीज़ेरियन की दर देश में सबसे अधिक

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-20) की रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण भारत में सीज़ेरियन ऑपरेशन में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। ये बढ़ोत्तरी प्राइवेट और सरकारी दोनों ही तरह के अस्पतालों में मिली।

Shivani GuptaShivani Gupta   29 Jan 2021 4:45 AM GMT

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Caesarean section births, NFHSगांवों में तेजी से बढ़ रहे सीजेरियन अस्पताल। (फाटो- यूनिसेफ)

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बच्चों के जन्म के मामले में सिर्फ़ 10 से 15% सीज़ेरियन ऑपरेशन ही होने चाहिए। लेकिन 2015-16 से 2019-20 के दरमियान, देश के ग्रामीण इलाक़ों में सरकारी और प्राइवेट, दोनों ही अस्पतालों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में 58% सीज़ेरियन डिलीवरी के साथ तेलंगाना देश में सबसे ऊपर है।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-20) की रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण भारत में सीज़ेरियन ऑपरेशन में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। ये बढ़ोत्तरी प्राइवेट और सरकारी दोनों ही तरह के अस्पतालों में मिली।

सीज़ेरिययन ऑपरेशन के मामले में तेलंगाना सबसे ऊपर है। राज्य के ग्रामीण इलाक़ों में सीज़ेरियन ऑपरेशन से होने वाली डिलीवरी 58.4% दर्ज की गई है। इसके बाद गोवा है जहां के ग्रामीण इलाक़ों में (प्राइवेट और सरकारी दोनों अस्पतालों में) सीज़ेरियन ऑपरेशन का प्रतिशत 2015-16 के 27% से बढ़कर 40.1% पर पहुंच गया है।

मिज़ोरम के अलावा भारत के सभी राज्यों में, बच्चों के जन्म के मामलों में सी-सेक्शन में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

जम्मू-कश्मीर के ग्रामीण इलाकों में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में सीज़ेरियन ऑपरेशन 2015-16 के 26.9% से बढ़कर 2019-20 में 37.8% हो गया। इसी दरमियान सिक्किम के ग्रामीण इलाके में सीज़ेरियन ऑपरेशन 17.1% से बढ़कर 26.9% हो गए। पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाके में यह 18.9% से बढ़कर 28.6% पर पहुंच गए।

सोर्स- NFHS

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में राज्यों के प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के अलग-अलग आंकड़े भी जारी किए गए हैं। ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। सबसे पहले पायदान पर ग्रामीण पश्चिम बंगाल है। ग्रामीण क्षेत्रों के प्राइवेट अस्पतालों में सी-सेक्शन से 84.4% प्रसव हुए। इसके ठीक बाद तेलंगाना है जहां ये 80.6% पर है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 1985 में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा समुदाय ने सीज़ेरियन ऑपरेशन से शिशु जन्म की आदर्श दर 10 से 15% निर्धारित की थी। "चिकित्सीय तौर पर आपातकालीन परिस्थितियों में ही इस पद्धति का इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि इस बात के प्रमाण नहीं मिले हैं कि सीज़ेरियन ऑपरेशन के इस्तेमाल से उन जच्चा-बच्चा को कोई फ़ायदा होता है जिन्हें इसकी ज़रूरत नहीं है। दूसरे किसी भी ऑपरेशन की तरह इसके भी अल्प और दीर्घकालिक असर होते हैं जो कई साल तक चल सकते हैं और मां और बेटे के स्वास्थ्य और भविष्य में होने वाले गर्भधारण पर असर डाल सकते हैं," विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी में कहा गया है।

यह भी पढ़ें- नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5: शरीर में खून की कमी से जूझ रहे बच्चे, 22 में से 17 राज्यों के बच्चों में बढ़े एनीमिया के मामले

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट में भारत के चार राज्यों के ग्रामीण इलाकों में ही सीजेरियन से प्रसव की दर 15% से कम रिकॉर्ड की गई है। इन राज्य में नागालैंड में 3.6%, मिज़ोरम में 4.8%, मेघालय में 6.1% और बिहार में 8.8% की दर दर्ज की गई। गुजरात और असम में ये दर क्रमशः 15.3% और 15.6% है।

सोर्स- NFHS

स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में सीज़ेरियन ऑपरेशन के बढ़ने के पीछे ज़्यादा पैसे कमाने डॉक्टरों का इच्छा है तो है ही लेकिन "दूसरे कारण भी हैं। अनीमिया उसमें से एक है, जो ग्रामीण महिलाओं में काफ़ी आम है। गर्भधारण का देरी से रजिस्ट्रेशन या प्रसव की जांच की सुविधा न होने से अकसर महिलाएं हाई रिस्क के गर्भ की श्रेणी में आ जाती हैं। जिसके वजह से गर्भ की जटिलताएं बढ़ जाती हैं और सीज़ेरियन ऑपरेशन करना पड़ जाता है। महिलाएं स्वस्थ हों और उन्हें प्रसव के दौरान देखभाल की सुविधा मिले तो बढ़ते हुए सीज़ेरियन ऑपरेशन को रोका जा सकता है," राजस्थान के जन स्वास्थ्य अभियान की सदस्य, छाया पंचौली ने गांव कनेक्शन को बताया।

सोर्स- NFHS

छाया पंचौली ने आगे कहा, "हालांकि इस प्रक्रिया की तेजी से वृद्धि के पीछे के और कारणों को जानना बेहद ज़रूरी है। महिलाओं के विविध समूहों के बीच सी-सेक्शन के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। कुछ राज्यों में , जैसे केरल में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं होने के बावजूद भी अधिकांश प्रसव सीजेरियन से ही हो रहे हैं।"

चौथे और पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के दरमियान केरल के ग्रामीण निजी स्वास्थ्य केंद्रों में सीजेरियन से शिशु जन्म 38.1% से बढ़ कर 40.4% हो गए हैं। ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में ये प्रसव 29.8% से बढ़कर 36.1% हो गए हैं।


सीज़ेरियन ऑपरेशन में बढ़ोत्तरी

सीज़ेरियन डिलीवरी आमतौर पर तब की जाती है जब नॉर्मल डिलीवरी से बच्चे या मां को कोई ख़तरा हो। स्वास्थ्य विशेषज्ञ ग्रामीण इलाकों में सीज़ेरियन ऑपरेशन बढ़ने कईं कारण बताते हैं। इनमें मरीज़ की सहनशीलता कम होना, शादी की उम्र बढ़ना और देरी से गर्भ धारण होना शामिल हैं।

कोलकाता की स्त्री रोग विशेषज्ञ सौमित्रा कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "लोग देर से शादी करते हैं। शादी के बाद भी लोग तुरंत बच्चा नहीं चाहते। उम्र के साथ अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं, जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, कोलेस्ट्रॉल और थायरॉइड आदि। डॉक्टरों के पास जब दूसरा कोई उपाय नहीं रह जाता, तब सी-सेक्शन का सहारा लेना पड़ता है।"

पटना के आशा कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष शशि यादव के अनुसार, "सरकारी अस्पतालों के अधिकांश डॉक्टरों के निजी क्लिनिक भी हैं। अधिक से अधिक पैसे कमाने की होड़ में वे नकली जटिलता वाली स्थिति पैदा कर लोगों को सीजेरियन से डिलीवरी कराने पर मजबूर कर देते हैं।"

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छाया पंचौली कहती हैं, यह भी सच है कि ग्रामीण इलाकों के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में न तो ज़रूरी सुविधाएं हैं और न ही ही जटिल मामलों के लिए विशेषज्ञ। "ग्रामीण क्षेत्रों के ज़्यादातर अस्पतालों प्रशिक्षित स्टाफ़, दाई नहीं होते, जटिल मामलों में सीज़ेरियन करने के लिए ज़रूरी उपकरणों की कमी होती है। जिसकी वजह से महिलाओं को पास के प्राइवेट अस्पताल या दूर बड़े सरकारी अस्पताल में रेफ़र कर दिया जाता है," उन्होंने कहा।

कुछ और कारण भी हैं। "पहले महिलाओं में दर्द सहने की शक्ति अधिक होती थी। वह घर के बहुत सारे काम करती थीं। जिससे गर्भ के दौरान एक्सरसाइज़ होती थी और उन्हें नॉर्मल डिलीवरी में सहायता मिलती थी," शशि यादव ने गांव कनेक्शन को बताया। शशि, पिछले 13 साल से आशा कार्यकर्ताओं के संगठन से जुड़ी हैं, वह कहती हैं कि मेडिकल जटिलताओं की वजह से भी महिलाएं सीज़ेरियन ऑपरेशन चाहती हैं।


इसी बीच भारत सरकार भी मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए संस्थागत प्रसव पर ज़्यादा (घरों पर होने वाले प्रसव के विपरीत) ज़ोर दे रही हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत अप्रैल, 2005 में जननी सुरक्षा योजना की शुरुआत की गई। इस योजना के तहत अगर एक गर्भवती महिला सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव कराती है तो उसे कैश देने का प्रावधान है। एक ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा के लिए कम सीज़ेरियन ऑपरेशन वाले राज्यों में 1,400 रुपये और ज़्यादा सीज़ेरियन ऑपरेशन वाले राज्यों में 700 रुपये और शहरी स्वास्थ्य सुविधा में 1,000 और 600 रुपये तक दिए जाते हैं।

शशि यादव ने दावा किया, "आशा कार्यकर्ताओं के सहयोग से गाँवों में संस्थागत प्रसव बढ़ा है। इससे मातृ और नवजात मृत्यु दर में कमी आई है लेकिन सीजेरियन प्रसव में वृद्धि हुई है। मामूली जटिलता होने के बावजूद भी लोग जोखिम नहीं लेना चाहते।"

सीज़ेरियन ऑपरेशन से डिलीवरी कराने पर ग्रामीणों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ता है। "घर पर नॉर्मल डिलीवरी या सरकारी अस्पतालों में सीज़ेरियन डिलीवरी में कोई ख़र्च नहीं होता है लेकिन प्राइवेट असपतालों में सीज़ेरियन से प्रसव में 60 हज़ार से 1 लाख 40 हज़ार तक का खर्च आता है" सौमित्रा कुमार ने कहा।

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पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य की रिपोर्ट बताती है कि देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी अस्पतालों में प्रति प्रसव 600 रुपये से 1,500 रुपये तक औसतन खर्च होता है। स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा के अनुसार प्रसव खर्च में अंतर होता है। निजी केंद्रों में प्रसव कराने पर ज्यादा का खर्च आता है।

हालांकि देश के शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में सीजेरियन से प्रसव तेजी से बढ़ रहा है लेकिन इस मामले में यह ग़ौर करना भी ज़रूरी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन क्या कहता है। 10% तक की वृद्धि से मातृ और नवजात शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। लेकिन अगर यह 10 प्रतिशत से अधिक हो जाता है तो इसके कोई सबूत नहीं है कि मृत्यु दर में सुधार होगा।

तब क्या यह चिंता का विषय नहीं है कि पश्चिम बंगाल और तेलंगाना में सीज़ेरियन ऑपरेशन से प्रसव की दर क्रमशः 84% और 80% है?

इस स्टोरी को आप इंग्लिश में यहां पढ़ सकते हैं-

अनुवाद- इंदु सिंह

  

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