खुलासा : इंसानों के खाने लायक नहीं है रेलवे का खाना

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खुलासा : इंसानों के खाने लायक नहीं है रेलवे का खाना(फोटो साभार : gov.in)

नई दिल्ली (भाषा)। कैग (नियंत्रक व महालेखापरीक्षक) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि रेल में यात्रियों को दी जा रही खाद्य वस्तुओं की क्वालिटी खराब है और वह इंसानों के खाने लायक नहीं है। कैग का कहना है कि ठेकेदारों ने कीमतों के साथ समझौता किया और गुणवत्ता मानकों पर ध्यान नहीं दिया। दूषित खाद्य पदार्थों, रिसाइकिल किया हुआ खाद्य पदार्थ और डब्बा बंद व बोतलबंद वस्तुओं का उपयोग उस पर लिखी इस्तेमाल की अंतिम तारीख के बाद भी किया जा रहा है।

रेलवे प्रशासन की कार्रवाई प्रभावी नहीं थी, इसके कारण यात्रियों को ज्यादा दाम देने पड़े और ठेकेदारों ने स्टेशनों पर अस्वच्छ और निम्न गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों को बेचना जारी रखा।

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संसद में शुक्रवार को पेश नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक (कैग) की ‘भारतीय रेल में खानपान सेवाओं’ पर रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे खानपान के संबंध में यह प्रावधान है कि विक्रय की गई वस्तुएं निर्धारित दरों पर बेची जाएं। इस प्रकार की प्रत्येक वस्तु का मूल्य रेल प्रशासन के द्वारा निर्धारित किया जाएगा और यात्रियों से अधिक प्रभार नहीं लिया जाएगा। इन वस्तुओं में बिस्किट, सीलबंद उत्पाद, मिठाइयां वगैरह शामिल हैं। इन्हें पीएडी वस्तुएं कहा जाता है और इन्हें लाइसेंसधारी इकाइयों के साथ-साथ विभागीय खानपान सेवा इकाईयों में बेचा जाता है।

यात्रियों से वसूले जाते हैं ज्यादा पैसे

रिपोर्ट के अनुसार, यह देखा गया है कि क्षेत्रीय रेलवे द्वारा यद्यपि ब्रांड का चयन किया जाता है लेकिन इनमें मूल्यों का उल्लेख नहीं होता है। ब्रांड के अधिकृत विक्रेता को इस शर्त के साथ एमआरपी पर विक्रय की अनुमति दी गई है कि खुले बाजार में विक्रय किए गए सामान उत्पाद की एमआरपी से अधिक नहीं हो। कैग के अनुसार, ‘यह देखा गया है कि पीएडी वस्तुएं खुले बाजार की तुलना में भिन्न वजन और मूल्य से रेलवे स्टेशनों पर बेची जा रही थीं, जिसमें रेलवे परिसरों में प्रति यूनिट लागत, बाजार के विक्रय मूल्य से बहुत अधिक थी। यह भी पाया गया कि जुर्माना लगाए जाने के बावजूद यात्रियों से ज्याद दाम लेने और शोषण के मामले जारी रहे।’

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रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005 की खानपान नीति के अनुसार, भारतीय रेल ने खानपान व्यवसाय को भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) को सौंप दिया। 2010 में इस नीति में फिर से संशोधन किया गया और भारतीय रेल ने आईआरसीटीसी से फूड प्लाजा और फास्ट फूड यूनिटों को छोड़कर सभी खानपान इकाइयों का प्रबंधन वापस लेने और उन्हें विभागीय रूप से प्रबंधित करने का निर्णय किया। चूंकि खानपान सुविधाओं की गुणवत्ता में अपेक्षानुसार सुधार नहीं हुआ था, इसलिए रेलवे बोर्ड ने एक नई खानपान नीति 2017 को प्रतिपादित की जिसे 27 फरवरी 2017 में जारी किया गया।’

कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ठेकेदारों को ठेका देने के लिये निर्धारित अधिकतम सीमा का पालन न करने से रेलवे ने कुछ फर्मों के अधिपत्य को बढावा दिया। एकाधिपत्य के कारण यात्रियों को प्रदान की जाने वाले सेवाओं और गुणवत्ता से समझौता हुआ। इसमें कहा गया है कि खानपान नीति में बार-बार परिवर्तन और खानपान इकाईयों के प्रबंधन के उत्तरदायित्व को रेलवे से आईआरसीटीसी को हस्तांतरित करने और वापस लेने के परिणामस्वरुप यात्रियों को प्रदान की जाने वाली खानपान सेवाओं के प्रबंधन में अस्थिरता की अवस्था उत्पन्न हुई है। बार बार परिवर्तन के कारण रेलवे और आईआरसीटीसी के बीच समन्वय विषयों और ठेकेदारों के साथ वैधानिक विवाद बढ़े हैं।

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कैग की सिफारिशें

कैग ने अपनी सिफारिशों में कहा कि रसोईयानों के निर्माण के दौरान इसमें गैस बर्नर से विद्युत ऊर्जा उपकरणों के अंतरण की नीति को ध्यान में रखा जाए। लम्बी दूरी की ट्रेनों के मामले में नीति के अनुसार रसोईयानों के प्रावधान पर विचार किया जाए। रेलवे खानपान इकाईयों को आईआरसीटीसी को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया को सुगम बनाया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि क्षेत्रीय रेलवे अपने दायित्वों का वहन करे। इसमें कहा गया है कि आईआरसीटीसी को स्टेशनों पर पर्याप्त संख्या में सस्ता जनता खाना प्रदान करने के लिए दायित्वबद्ध किया जाए और यात्रियों के बीच इसे प्रभावी रूप से प्रचारित किया जाए।

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कैग के सुझाव

कैग ने सुझाव दिया है कि खानपान प्रदाताओं द्वारा अनुचित पद्धतियों जैसे अधिक दाम वसूलना, निर्धारित मात्रा से कम खाना परोसना, स्टेशनों और ट्रेनों में अप्राधिकृत खाद्य सामग्री बेचना, मूल्य कार्ड का प्रदर्शन नहीं करना और बेचे गए खाने के सामान के लिए रसीद जारी करने को रोकने के लिए रेलवे द्वारा प्रभावी जांच एवं नियंत्रण सुनिश्चित किया जाए।

      

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