कृषि वैज्ञानिक चयन परीक्षा में देरी और पीएचडी की अनिवार्यता से टूट रहे गरीब छात्रों के सपने

एआरएस (Agricultural Research Services) की परीक्षा में देरी और पीएचडी की अनिवार्यता के खिलाफ IARI दिल्ली, NDRI करनाल, IVRI बरेली और CIFE मुंबई के छात्रों ने सोशल मीडिया पर छेड़ी मुहिम..जानिए क्या है मुद्दा..

Arvind ShuklaArvind Shukla   3 Jun 2020 2:15 PM GMT

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कृषि वैज्ञानिक चयन परीक्षा में देरी और पीएचडी की अनिवार्यता से टूट रहे गरीब छात्रों के सपने

"कृषि की पढ़ाई करने वाले ज्यादातर छात्र-छात्राएं ग्रामीण इलाके से किसान के बेटे-बेटियां होते हैं। एआरएस (Agricultural Research Services) कृषि वैज्ञानिकों के लिए आईएएस की परीक्षा जैसा है, पिछले एक तो पिछले ढाई साल से नौकरी नहीं निकाली गईं, ऊपर पीएचडी की जो अनिवार्यता है वो गरीब घरों के छात्रों के सपनों को तोड़ रही है।" भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) नई दिल्ली के छात्र संतोष कुमार (बदला नाम) ने नाम न बताने की शर्त पर कहा। संतोष, किसान के बेटे हैं और एआरएस पास करके वैज्ञानिक बनना चाहते हैं।

भारतीय कृषि अनुंसधान परिषद (ICAR) के 112 संस्थान और 74 कृषि विश्वविद्यालों को भारत दुनिया के सबसे बड़ी कृषि अनुसंधान प्रणालियों में से एक है, लेकिन ये सरकारी संस्थान कृषि वैज्ञानिकों की कमी से जूझ रहे हैं। भारत में कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल (ASRB) द्वारा होता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे आईएएस-पीएसएस का चयन यूपीएसएस (संघ लोक सेवा आयोग) होता है, लेकिन पिछले वर्ष इन वैज्ञानिकों के चयन में लेकर जो बदलाव किए गए कृषि छात्र उसका लगातार विरोध कर रहे हैं। 31 मई को आईएआरआई (पूसा), भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) बरेली, नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI) करनाल) और केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान, मुंबई (CIFE ) के हजारों छात्र-छात्राओं ने सोशल मीडिया पर अपनी आवाज उठाई।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा दिल्ली में 1,200 कृषि छात्र हैं। यहां छात्र यूनियन के अध्यक्ष जगमोहन सिंह गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "पहले पोस्ट ग्रेजुएशन (एमएससी) के बाद छात्र एआरएस की परीक्षा देते थे, लेकिन फरवरी 2019 में कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल ने बड़ा बदलाव करते हुए इसकी न्यूनतम योग्यता पीएचडी कर दी है। अब कृषि की पढ़ाई करने वाले छात्र रूरल बैकग्राउंड के होते हैं, जो पहले 4 साल की बीएसएसी, 2-3 साल की एमएससी और फिर 3 से 5 साल में पीचएडी करेंगे फिर उन्हें परीक्षा में बैठने का मिलेगा। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर छात्र, किसान के बेटे बेटियां कृषि वैज्ञानिकों के पास अवसर कम होते जाएंगे, क्योंकि उन पर सामाजिक जिम्मेदारियां ज्यादा होती हैं।"

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एआरएस की परीक्षा तीन स्तर पर होती है। पहले लिखित परीक्षा, फिर मुख्य परीक्षा और अंत में साक्षात्कार होता होता है। इस पूरी प्रोसेज में एक साल का लगभग समय लग जा जाता है। छात्रों की दूसरी समस्या लगातार चयन प्रकिया का न होना भी है। ढाई साल से छात्र इसका इंतजार कर रहे हैं, 2017 वाला नोटिफिकेश 2019 में आया था, जबकि 2018-19 के लिए अभी प्रक्रिया ही शुरू नहीं हुई है।

इन छात्रों ने कृषि छात्रों के राष्ट्रीय संगठन एग्रीविजन के जरिए 31 मई को ट्वीटर पर अपनी आवाज उठाई। एग्रीविजन के राष्ट्रीय संयोजक और कृषि छात्र गजेंद्र तोमर गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "हमारे साथ भारत एक कृषि प्रधान देश है और हमारे यहां शोध से लेकर प्रसार तक में वैज्ञानिकों की बड़ी भूमिका है। आईसीएआर जैसे संस्थानों ने काफी काम किया है लेकिन गुणवत्ता वाला बहुत काम होने की जरूरत है, इसीलिए जरूरी है लेकिन कृषि वैज्ञानिकों की भर्तियां लगातार जारी रहें। लेकिन ये काम पिछले कुछ समय से रुका हुआ है।"

वैज्ञानिक चयन परीक्षा में किए गए बदलावों के प्रभावों के बारे में गजेंद्र तोमर आगे बताते हैं, "एआरएस कृषि का आईएएस है, लेकिन आईएएस की परीक्षा मैं बैठने की योग्यता स्नातक है, हमारे यहां पहले एमएससी था, लेकिन अब पीएचडी कर दिया, एमएससी (मास्टर इन एग्रीकल्चर) तक पहुंचते पहुंचते छात्र शोधार्थी तो हो हो जाता है लेकिन बहुत सारे लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं होती कि वो 30 साल की उम्र के बाद भी पढ़ाई करें। उन्हें जॉब की जरूरत होती है। यहां 80 फीसदी लोग गांव के होते हैं, पीएचडी की अनिवार्यता ने उनकी मुश्किल हो गई हैं।'

पीएचडी करने वाले छात्रों को कुछ छात्रों को भत्ता और कुछ सुविधाएं मिलती हैं लेकिन कृषि छात्रों के मुताबिक ये संख्या महज 10 फीसदी के आसपास ही होती है।

गजेंद्र तोमर के मुताबिक इस मुद्दे को लेकर हम लोग ने आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा और कई विभाग से जुड़े मंत्रियों से मुलाकात कर चुके हैं। उनका अपना पक्ष है।

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"अधिकारियों का कहना है उन्हें गुणवत्ता वाला शोध चाहिए। दूसरा जो छात्र एमएससी के बाद एआरएस से वैज्ञानिक बनते हैं वो नौकरी करते के कुछ साल बाद ही स्टडी लीव ले लेते हैं, जिससे शोध प्रभावित होता है। मैं उनका ये पक्ष समझता हूं लेकिन इसमें सरकार को ये करना चाहिए कि वो शर्त लगा दे कि नौकरी करने के 5-6 बाद ही किसी को स्टडी लीव मिलेगी इससे दोनों का हो जाएंगे, लेकिन पीएचडी करने नौकरी की तैयारी करना गरीब छात्रों के लिए तर्कसंगत नहीं है।"

आईएआरआई छात्र संगठन के अध्यक्ष जगमोहन सिंह कहते हैं, पीएचडी की अनिवर्यता गरीब और लड़कियों दोनों के लिए मुश्किलें बन रही है। क्योंकि आप पहले 15 साल पढ़ाई करें फिर 1 साल परीक्षा के लिए इंतजार करें, इतना खर्च ज्यादातर परिवार नहीं उठा पता। और हमारे साथ पढ़ने वाले कई छात्राओं का कहना है घर वाले 30 साल उम्र के बाद लगातार शादी का दवाब डालते हैं ऐसे में उनका करियर तबाह हो सकता है।"

#ARS_Recruitment के साथ आईआएआर में रिसर्च स्कॉलर (एमएससी) श्रेया विरमानी नाम ने ट्विटर पर लिखा

"हर छात्र पीएचडी करने का जोखिम नहीं उठा सकता है। 28 साल की उम्र में भी नौकरी की कोई सुरक्षा न होना बेरोजगारी बढ़ाने का एक और तरीका है, इससे युवा पीढ़ी की कृषि सेक्टर में दिलचस्पी और कम हो जाएगी।"

एग्रीकल्चर इकनॉमिस्क में पीएचडी कर रही मौसमी प्रियदर्शनी ने इन छात्रों के समर्थन में लिखा कि न्यूनतम योग्यता मानदंडों और एआरए, की अनियमित भर्ती के चलते छात्र कृषि व्यवसाय में रुचि खो रहे हैं।"

भारत में आईसीआर के संस्थानों में ही नहीं बल्कि राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों में भी कृषि वैज्ञानिकों समेत असिस्टेंट प्रोफेसर (सहायक प्रोफेसर) की भारी कमी है, हालांकि इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों के चयन मॉडल में बड़े बदलाव को भी वजह बताया जा रहा है। आईएएस के पूर्व महानिदेशक नाम बताने की शर्त पर गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "कृषि वैज्ञानिक में बदलाव तुरंत नहीं हुआ है, लंबे समय से इस पर मंथन चल रहा था। और कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल अब पूरी तरह केंद्र के अधीन काम करता है पहले ये आईएसीआर के साथ संबंध था।"

जगमोहन कहते हैं, यूजीसी ने भी पीएचडी अनिवार्य किया है लेकिन ये फैसला 2017 में लिया गया था और 2021 में लागू होगा, उन्होंने एक काफी समय दिया है अभ्यथियों को लेकिन एआरएस के मामले में 2019 में फैसला लिया गया और तुरंत लागू कर दिया गया।

कृषि प्रसार के छात्र संतोष कुमार आखिर में कहते हैं, "आप पूरे देश घूम के देखिए, कृषि प्रसार और शिक्षा कती हालत बद्तर है, "5000 किसानों पर एक कृषि वैज्ञानिक है। अब पीएचडी लोग ज्ञान के लिए करते हैं अब उनका लक्ष्य नौकरी रहेगी, जाहिर सी बात बात है सब कुछ जल्दबाजी में होगा। दूसरा बात किसानों के बेटों के लिए कृषि वैज्ञानिक बनना अब मुश्किल होता जाएगा, या तो वो अपनी जमीन बचेंगे या फिर वो घर चलाने के लिए कोई और रोजगार करेंगे, इतना सब करने के बाद कुछ नहीं हुआ तो उनके किसान कर्ज के जाल में फंसेंगे। फिर वहीं होगा जो देश में बाकी किसानों के साथ होता है।"

नोट- खबर के लिए संबंधित अधिकारियों से बात करने की कोशिश की जा रही है, उनका पक्ष मिलते ही खबर अपडेट की जाएगी।

  

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