आरुषि हत्याकांड से आगे : ऐसे मामलों की जांच को कोर्ट तक पहुंचने में इतना समय क्यों लगता है ?

Karan Pal SinghKaran Pal Singh   12 Oct 2017 3:36 PM GMT

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आरुषि हत्याकांड  से आगे : ऐसे मामलों की जांच को कोर्ट तक पहुंचने में इतना समय क्यों लगता है ?आरुषि तलवार समेत कई मामले जिनमें देरी को लेकर सीबीआई की आलोचना होती है, लेकिन समझना जरुरी है, ये देरी होती क्यों हैं।

लखनऊ। देश के सबसे चर्चित हत्याकांड आरुषि हेमराज हत्याकांड में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है, कोर्ट ने राजेश और नुपुर तलवार को बरी कर दिया है। लेकिन कई सवाल पीछे छूट गए हैं, आखिर आरुषि और हेमराज को मारा किसने और जांच एजेंसियों से कहां चूक हुई तो हत्यारों तक नहीं पहुंच पाईं ?

आरुषि तलवार डबल मर्डर केस मिस्ट्री से भरा रहा, कई उतार चढ़ाव आए। हाईकोर्ट ने जांच में खामियां गिनाईं हैं। करीब 9 साल तक चले इस केस की जांच पहले नोएडा पुलिस, फिर सीबीसीआईडी और आखिर में देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई को सौंपी गई। लेकिन हाई कोर्ट सीबीआई कोर्ट के फैसले को पलट दिया। देश में ऐसे हजारों मामले हैं, जो दशकों खिंचते अक्सर जांच एजेंसी पर सवाल उठते हैं, ये ऐसे मामले हैं जो जांच में देरी के लिए चर्चा में रहे, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। सीबीआई के लिए भी कई मुश्किलें होती है, क्योंकि सबूत मिट चुके होते हैं।

सीबीआई को कोई भी केस तब मिलता है जब राजनीतिक दबाव होता है या लोगों के आक्रोश बढ़ जाता है। सीबीआई को केस कई महीनों-दिनों, हफ्तों के बाद मिलता है। जैसे- रायन इंटरनेशन स्कूल में सात साल के मासूम प्रद्युम्न की हत्या मामले में लोगों के प्रदर्शन के बाद प्रद्युम्न के पिता की मांग पर सीबीआई को मामला एक हफ्ते बाद सौंपा गया। वहां घटना स्थल कई बार धुला जा चुका है। यानि संभव है काफी सबूत मिट चुके होंगे। जानकारों के मुताबिक कोई भी केस घटना के साध्य, घटना स्थल और गवाहों, केस की कड़ियां जोड़कर सुलझाया जाता है।

जब कोई केस सीबीआई को सौंपा जाता है, उससे पहले पुलिस, मीडिया और उससे जुड़े घटना स्थल पर कई बार दौरे कर चुके होंते हैं। कई बार अनजाने में तो कई बार जानबूझकर सबूत मिटा दिए जाते हैं। आपने फिल्मों में अक्सर देखा होगा अपराध होने पर कुछ एक्सपर्ट (फोरेसिंक टीम) पहुंचती है तो घटना स्थल पर बाल से लेकर, खून के धब्बों और दूसरे डीएनए संबंधित नमूने एकत्र करते हैं। लेकिन ज्यादातकर बार ने नहीं होता।

सीबीआई के सामने आती हैं दिक्कतें...

नहीं बचाया जाता फॉरेंसिक एविडेंस

सीबीआई टीम को जब मामला सौंपा जाता है तो घटना घटित हुए काफी समय बीत चुका होता है। कई बार महीने और साल तक हो जाते है, जिस वजह से क्राइम सीन पर साक्ष्य न के बाराबर मिलते हैं। क्राइम सीन पर स्थानीय पुलिस के इनवेस्टीगेशन के दौरान साक्ष्यों को बचाया नहीं जाता है जो केस से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण चीजे होती हैं। फॉरेंसिक एविडेंस जैसे- बाल, फिंगर प्रिंट, खून, थूंक, नाखून आदि को पुलिस की छानबीन में नहीं बचाया जाता है क्योंकि वो साक्ष्य अनट्रेंड पुलिसकर्मी जुटाते हैं, क्योंकि उन्हें ऐसे मामलों की ट्रेनिंग नहीं मिलती।

जैसे- तीन महीने पहले लखनऊ में कर्नाटक कैडर के आईएएस अनुराग तिवारी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के मामले में पहले तो स्थानीय पुलिस द्वारा एक एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) गठित की गई थी, लेकिन आईएएस के परिजनों ने स्थानीय पुलिस की कार्रवाई पर भरोसा नहीं किया। पीड़ित परिवार ने सीएम योगी से सीबीआई जांच की मांग की। राज्य सरकार ने जांच सीबीआई को सौंपी। जांच करने पहुंची सीबीआई टीम को पुलिस की जांच में लापरवाही बरतने के कारण कई दिक्कतों का सामना करना। सीबीआई के मुताबिक कुछ प्रमुख दिक्कतें ऐसी थीं...

  • क्राइम सीन को स्थानीय पुलिस ने खराब किया।
  • साथी आईएएस से पुलिस ने पूछताछ नहीं की थी।
  • पंचनामा भरने में पुलिस ने लापरवाही बरती।
  • पोस्टमार्टम में डॉक्टरों का एक्सपर्ट पैनल नहीं रखा गया।
  • प्रत्यक्षदर्शियों से पुलिस ने पूछताछ नहीं की।

सीबीआई

मीडिया ट्रायल से सीबीआई को होती है दिक्कत

किसी भी अपराध को सनसनीखेज बनाकर कई बार मीडिया खुद ही जांचकर्ता, वकील और जज बन जाता है, जबकि जांच टीम अभी दूर-दूर तक मामले की सच्चाई के आसपास भी नहीं पहुंचती। इस मीडिया ट्रायल का नतीजा यह होता है कि जांच करने वाली टीम दबाव में आ जाती है। ऐसा ही मामला वर्ष 2006 निठारी कांड में देखने को मिला।

बचकानी थेरेपी- निठारी कांड के समय मीडिया ने बताया कि निठारी गांव में मनिंदर सिंह पंढेर की कोठी के पास का एक डॉक्टर शरीर के अंगों का व्यापार करता था। कुछ मीडिया रिपोर्ट में यहां तक बताया गया कि पंढेर की कोठी से उस डॉक्टर के घर तक सुरंग थी, इस एंगल से भी सीबीआई को मजबूरन जांच करनी पड़ी जो निराधार थी। जिससे सीबीआई का समय बर्बाद हुआ।

जांच एजेंसी को मीडिया से बचने के लिए करना पड़ा था ड्रामा-

निठारी कांड में सीबीआई पर मीडिया का इतना दबाव था कि उसे ड्रामा करना पड़ा, सीबीआई टीम को नाले की जांच के लिए अपने एक इनवेस्टिगेशन अधिकारी को डॉक्टर के वेष में लाना पड़ा। ताकि मीडिया के कैमरे काम में अवरोध न बनें। ये बाद खुद तत्कालीन जांच अधिकारी ने बताई।

सीबीआई में अधिकारियों की कमी

9 जुलाई 2017 को कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में एक लिखित आंकड़े पेश किए जिनके मुताबिक, सीबीआई में 7,273 स्वीकृत पद हैं जबिक इसमें सिर्फ 5,868 अधिकारी ही कार्यरत हैं यानि लगभग 20 पद खाली हैं। हालांकि उन्होंने कहा ये भी कहा कि मौजूदा कर्मियों के प्रभावी उपयोग और सही तैनाती से, खाली पदों ने सीबीआई के प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला नहीं है। डाटा के मुताबिक, एक्जीक्युटिव रैंक में 18 प्रतिशत, कानूनी अधिकारियों की 27 प्रतिशत, 56 प्रतिशत कमी तकनीकी अधिकारियों की कमी है और मिनिस्टीरियल स्टाफ में 18 प्रतिशत व कैंटीन पदों में 44 प्रतिशत की कमी है।

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हो जाए वारदात तो इन बातों का रखना चाहिए ध्यान

फोरेंसिक विभाग के फील्ड प्रभारी अनूप वर्मा का कहना है कि वैज्ञानिक साक्ष्य सबसे पुख्ता सुबूत होता है इसलिए वारदात के बाद पीड़ित पक्ष के साथ ही पुलिस को भी क्राइम सीन पर सावधानी बरतनी चाहिए।

  • वारदात के बाद किसी भी चीज को नंगे हाथों से न छूएं, जरूरी हो तो दस्ताने पहनने के बाद हल्के हाथों से छूएं।
  • जिस रास्ते से बदमाश आए-गए, उन रास्तों पर भी नहीं चलना चाहिए वरना उनके फुट प्रिंट मिट जाते हैं।
  • क्राइम सीन के दस मीटर दायरे में किसी को भी प्रवेश न करने दें।
  • क्राइम सीन पर जो वस्तु जैसे पड़ी है, उसे पड़े रहने दें जब तक फोरेंसिक टीम मौके की हर कोण से तस्वीर न उतार ले।
  • हत्या के मामले में अक्सर लोग शव को उठाकर इधर-उधर कर देते हैं, परिजन अक्सर शव से लिपट जाते हैं। ऐसे हालात में खुद पर थोड़ा संयम रखते हुए, जांच पूरी होने से पहले वहां न जाएं।

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जांच सीबीआई को क्यों जाती है, पुलिस का अपना तर्क है...

यूपी में लखनऊ के पुलिस अधीक्षक विकास त्रिपाठी बताते हैं, "किसी भी केस की जांच सीबीआई नए सिरे से शुरू करता है। पीड़ित प्रतिदिन पुलिस के पास आते हैं और जानकारी मांगते रहते हैं। पुलिस के पास और भी कई केस होते हैं। सीबीआई के पास सिर्फ केस की जांच करना काम होता है। सीबीआई की पूरी टीम होती है जो एक केस पर लगती है।"

पुलिस अधीक्षक एटीएस दिनेश यादव निठारी कांड के समय नोएडा में सीओ पद पर तैनात थे बताते हैं, "सन 2006 में निठारी कांड की घटना की सूचना मिलने पर पुलिस की तरफ से हर स्तर पर जांच शुरू कर दी गई थी, लेकिन मामला गंभीर होने के चलते क्षेत्रीय लोगों को स्थानीय पुलिस पर यकीन नहीं था। साथ ही मीडिया और राजनैतिक दबाव के चलते तत्कालीन राज्य सरकार ने पूरे मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया।” वो आगे बताते हैं, “जांच के दौरान जितने भी सबूत एकत्र किए गए थे वह जांच में शामिल टीम ने सीबीआई टीम का सौंप दिए थे।”

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अपराध किसी भी समय और कहीं भी हो सकता है, अपराध दृश्य के प्रकार

आउटडोर अपराध स्थल : अपराध जो चार दिवारी के बाहर हुआ हो जैसे की मैदान में या जंगल में। आउटडोर अपराध स्थल की छानबीन करना बहुत मश्किल होता है। क्योंकि सबूत खराब होने के मौके ज्यादा होते हैं। बारिश, धुल और गर्मी के करण सबूत खराब हो जाते हैं।

इंडोर अपराध स्थल : अपराध जो चार दिवारी के अन्दर हुआ हो जैसे की घर में, ऑफिस या फैक्ट्री में। इंडोर अपराध स्थल में छानबीन करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है। क्योंकि वहां सबूत खराब या नष्ट होने के मौके ज्यादा नहीं होते हैं।

वाहन अपराध स्थल : वाहन अपराध स्थल वह है जिस में वाहन की चोरी, वाहन में अपराध हुए हो। यह अपराध स्थल में छानबीन करना मुस्किल होता है। कहां से कब चोरी हुआ और कहां जाके मिला और किस जगह वाहन से अपराध किया गया और कहां वाहन छोड़ा गया ये सब पता लगाना मुश्किल हो जाता है।

सीबीआई के पास 1,174 मामले जांच के तहत लंबित

कार्मिक एवं प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने एक सवाल के लिखित जवाब में कहा कि फरवरी 2017 तक सीबीआई के पास जांच के तहत 1,174 मामले लंबित थे। इनमें 108 मामले आय से अधिक संपत्ति के और 223 मामले धोखाधड़ी या फर्जीवाड़ा के साथ-साथ रेप, हत्या, घोटाले आदि मामले लंबित हैं। उन्होंने बताया कि इन 1,174 मामलों में 157 मामले दो साल से अधिक समय से, 36 मामले पांच साल से अधिक समय से, छह मामले 10 साल से अधिक समय से और दो मामले 15 साल से अधिक समय से लंबित हैं।

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