संशोधन बिल से कमजोर होगा RTI कानून ? दिल्ली में रैली
मानसून सत्र में पेश होगा सूचना का अधिकार कानून संशोधन बिल। संशोधन बिल को लेकर देश भर से आए आरटीआई एक्टिविस्ट ने नई दिल्ली में शुरू किया विरोध प्रदर्शन।
Manish Mishra 18 July 2018 7:03 AM GMT
लखनऊ । सरकारी कामकाज पर नजर रखने के लिए मजबूत हथियार सूचना के अधिकार (आरटीआई) को अब कुंद करने की कोशिश की जा रही है। कानून में संशोधन कर अभी तक स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाले सूचना आयोग में नियुक्तियों और सैलरी का निर्धारण केन्द्र सरकार अपने हाथ में चाहती है।
बुधवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में सूचना का अधिकार कानून संशोधन बिल पेश करके सरकार इसमें कई बड़े बदलाव करना चाहती है।
भारत के पूर्व सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने गाँव कनेक्शन से कहा, "सूचना आयुक्तों और सिविल सोसाइटी के लोगों से बात किए बिना आरटीआई कानून में संशोधन का बिल सरकार को नहीं लाना चाहिए। यह संशोधन बिल न केवल आरटीआई कानून को कमजोर बनाएगा बल्कि इसे समाप्त कर देगा। मुख्य सूचना आयुक्त का दफ्तर अन्य सरकारी कार्यालयों जैसा हो जाएगा।"
"सूचना आयुक्तों और सिविल सोसाइटी के लोगों से बात किए बिना आरटीआई कानून में संशोधन का बिल सरकार को नहीं लाना चाहिए। यह संशोधन बिल न केवल आरटीआई कानून को कमजोर बनाएगा बल्कि इसे समाप्त कर देगा। " वजाहत हबीबुल्ला,पूर्व सूचना आयुक्त
सूचना का अधिकार कानून की नेशनल कन्वेनर अंजली भारद्वाज ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "आरटीआई को लागू कराने में सूचना अयोग की अहम भूमिका रहती है। ऐसा करना आयोग की स्वतंत्रता पर प्रहार है। इस बदलाव के बाद सरकार सूचना आयुक्तों का बहुत छोटा-छोटा कार्यकाल रखेगी, और जो उसकी मर्जी से काम नहीं करेगा उसका कार्यकाल फिर से रिन्यू नहीं किया जाएगा।"
अभी तक सूचना आयुक्त का कार्यकाल पांच साल या 65 साल की उम्र सीमा है, और वेतन सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर है।
अभी तक स्वतंत्र तरीके से कार्य करने वाले सूचना आयुक्त सरकार की मर्जी के अनुरूप कार्य करने को बाध्य हो सकते हैं, क्योंकि सभी पर तलवार लटकी रहेगी। जो कि सूचना आयोग की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार के साथ-साथ उसे कमजोर भी करेगा," अंजली भारद्वाज ने कहा।
मजदूर किसान शक्ति संगठन राजस्थान के संस्थापक सदस्य और आम लोगों की अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली संस्था एनसीपीआरआई के सह-संयोजक निखिल डे ने गाँव कनेक्शन से कहा, "आम लोगों के लंबे संघर्ष के बाद पास हुआ यह आरटीआई कानून अपने आप में अनोखा है, जो पूरे देश के लोगों को इस पर स्वामित्व प्रदान करता है। खुलेआम अपारदर्शी तरीके से जिस तरह सरकार द्वारा यह संशोधन बिल पारित कराया जा रहा है, वह कुछ और नहीं, बल्कि सरकार की अलोकतांत्रिक इच्छाओं का परिणाम है। बिल में इस संशोधन को तत्काल प्रभाव से नाममंजूर करना चाहिए, जबकि चर्चाएं हैं कि अभी आगे और संशोधन होने बाकी हैं। जनता के इस कानून में संशोधन आमजन की सलाह के बिना बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए।"
"खुलेआम अपारदर्शी तरीके से जिस तरह सरकार द्वारा यह संशोधन बिल पारित कराया जा रहा है, वह कुछ और नहीं, बल्कि सरकार की अलोकतांत्रिक इच्छाओं का परिणाम है। जनता के इस कानून में संशोधन आमजन की सलाह के बिना बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए।" निखिल डे, सह-संयोजक एनसीपीआरआई
वर्ष 2005 में बने सूचना का अधिकार कानून के तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी सरकारी और सरकार समर्थित संस्थाओं से किसी भी तरह की जानकारी मांग सकता है। तय समय में जानकारी उपलब्ध न कराने पर सूचना आयोग में अपील भी कर सकता है। सूचना आयोग द्वारा सुनवाई के बाद सूचना उपलब्ध न कराने वाले दोषी अधिकारियों को दंडित भी करने का प्रावधान है।
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कानून में इस प्रस्तावित संशाेधन के विरोध में दस राज्यों से आरटीआई एक्टिविस्ट और उनके परिवार वाले नई दिल्ली में एकजुट हुए हैँ। सरकार पर दबाव बनाने के लिए रैली निकालने और अनशन करने के साथ ही अलग-अलग पार्टियों के लोगों को भी बात करने के लिए बुलाया गया है।
"हम लोग इस संशोधन के विरोध में एक रैली करेंगे, साथ ही अलग-अलग राजनैतिक दलों के लोगों को बुलाया गया है जो इसके विरोध में हैँ। इसमें कांग्रेस, टीएमसी, सीपीआई, सीपीआई(एम) और आरजेडी शामिल हो रही है," नेशनल आरटीआई कन्वेनर अंजली भारद्वाज ने बताया, "हमारी मांग यह भी है कि वर्ष 2014 में मोदी सरकार व्हिसल ब्लोअर्स की सुरक्षा के लिए जो बिल लाई थी, उसे भी लागू करे। पिछले चार सालों में इसे लागू नहीं किया गया है।"
इससे पहले यूपीए सरकार भी इसे हल्का करने के लिए एक संशोधन बिल लाई थी, इसमें कहा गया था विभाग के किसी अधिकारी द्वारा फाइल पर की गई नोटिंग को नहीं देखा जा सकता। लेकिन आरटीआई एक्टिविस्ट और स्वयं सेवी संस्थाओं के दबाव में उसे पीछे हटना पड़ा था।
आरटीआई कानून में संशोधन के विरोध में हैदराबाद से शामिल होने आए प्रदीप ने गाँव कनेक्शन को बताया, "सरकार को ऐसे संशाधन के लिए लोगों की राय जाननी चाहिए, लेकिन वह सीधे ही इसे कुंद करने पर लगी हुई है।"
मौजूदा समय में केन्द्रीय मुख्य सूचना आयुक्त की सैलरी और सेवा संबंधी नियम वैसे ही हैं जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त का, और सूचना आयुक्त और राज्यों के मुख्य चुनाव आयुक्तों की सैलरी और सेवा संबंधी नियम चुनाव आयुक्तों के समान हैं।
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Proposed amendments to RTI Act will completely destroy independence of info commissions. Central govt usurping power to decide tenure, salaries & allowances of even State info commissioners- exposes jumla of 'cooperative federalism'. #SaveRTI pic.twitter.com/puWpg9I4gL
— Anjali Bhardwaj (@AnjaliB_) July 17, 2018
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