ये हैं 'चमकी बुखार' के लक्षण, ऐसे कर सकते हैं अपने बच्चे का बचाव
गाँव कनेक्शन 17 Jun 2019 5:32 AM GMT
लखनऊ/मुजफ्फरपुर। बिहार में बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। चमकी बीमारी से पीड़ित बच्चों की संख्या सरकारी अस्पतालों में बढ़ती जा रही है। मस्तिष्क ज्वर (चमकी बुखार, दिमागी बुखार, जापानी इंसेफलाइटिस, नवकी बीमारी) एक गंभीर बीमारी है। इसका समय रहते इलाज होना चाहिए। यह बीमारी अत्यधिक गर्मी एवं नमी के मौसम में फैलता है। 1 से 15 साल की उम्र के बच्चे इस बीमारी से ज्यादा प्रभावित होते हैं। गौरतलब है कि बिहार के मुजफ्फरपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज और निजी अस्पतालों में इस संदिग्ध बुखार से अब तक 100 से अधिक बच्चों की जान जा चुकी है।
मस्तिष्क ज्वर (चमकी बुखार) के लक्षण...
तेज बुखार आना, पूरे शरीर या किसी खास अंग में ऐंठन होना, दांत पर दांत लगना, बच्चे का सुस्त होना, बेहोश होना व चिउंटी काटने पर शरीर में कोई हरकत नहीं होना। ये लक्षण दिखते ही अपने नजदीक स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर डॉक्टर को दिखाएं। अगर इन लक्षणों को नजरअंदाज किया जा रहा है तो आगे चलकर ये गंभीर हो सकती है।
चमकी बुखार होने पर क्या करें...
तेज बुखार होने पर पूरे शरीर को ताजे पानी से पोछें एवं पंखा से हवा करें ताकि बुखार कम हो सके। बच्चे के शरीर से कपड़ें हटा लें एवं गर्दन सीधा रखें। पेरासिटामोल की गोली व अन्य सीरप डॉक्टर की सलाह के बाद ही दें। अगर मुंह से लार या झाग निकल रहा है तो उसे साफ कपड़े से पोछें, जिससे सांस लेने में कोई दिक्कत न हो। बच्चों को लगातार ओआरएस का घोल पिलाते रहें। तेज रोशनी से बचाने के लिए मरीज की आंखों को पट्टी से ढंके। बेहोशी व मिर्गी आने की अवस्था में मरीज को हवादार स्थान पर लिटाएं। अगर दिन में बच्चे ने लीची खाई है तो उसे रात में भरपेट भोजन कराएं। चमकी आने की दशा में मरीज को बाएं या दाएं करवट लिटाकर ले जाएं।
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चमकी बुखार होने पर क्या न करें...
बच्चे को खाली पेट लीची न खिलायें, अधपके अथवा कच्ची लीची को खाने से बचें। बच्चे को कंबल अथवा गर्म कपड़ों में न लपेटें, बच्चे की नाक न बंद करें। बच्चे की गर्दन झुकाकर न रखें। मरीज के बिस्तर पर न बैठे साथ ही ध्यान रखें की मरीज के पास शोरगुल न हो।
जानलेवा बुखार के लिए सामान्य उपचार व सावधानियां...
1.अगर आपके बच्चे में चमकी बीमारी के लक्षण दिखें तो सबसे पहले बच्चे को धूप में जाने से बचाएं।
2.बच्चा तेज धूप के संपर्क में न आने पाए।
3.बच्चों को दिन में दो बार स्नान कराएं।
4.गर्मी के दिनों में बच्चों को ओआरएस अथवा नींबू-पानी-चीनी का घोल पिलाएं।
5.रात में बच्चों को भरपेट खाना खिलाकर ही सुलाएं।
खाली पेट न खाएं लीची...
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर (ICAR से संबंधित) के अऩुसार बिहार में लाखों किसान को लीची से रोजगार मिला हुआ है, और सालाना करीब 6 लाख टन उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर इसका केंद्र है, इसके साथ ही समस्तीपुर, वैशाली और मोतिहारी में भी बड़े पैमाने पर लीची के बाग हैं।
लीची रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. विशाल नाथ ने लीची खाने के बारे में कुछ सावधानियां बरते की भी सलाह देते हैं। उन्होंने बताया कि "लीची गर्मी के मौसम का फल है। इसलिए इसे ठंडा करके ही खाना चाहिए। गर्मी का कोई भी फल हो उसे पानी आदि से पहले ठंडा करें फिर खाना चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा कि "ये जो चमकी बुखार है बारिश न होने से हो रही है, एक बार बारिश हो जाएगी तो तापमान गिरेगा और बीमारी पर लगाम लग जाएगी। इसके लिए जरूरी है, कि लोग अपने बच्चों की गर्मियों के मौसम में ख्याल रखें और खाली पेट न बाहर जाने दें, रात में कार्बोहाइड्रेट जरूर खिलाएं।" उन्होंने कहा, "लीची तो ऐसा फल है कि इसे जामुन की तरह ही डायबिटीज के मरीज भी खा सकते हैं।"
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