प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बदलाव के बाद किसानों पर क्या फर्क पड़ेगा?

Arvind ShuklaArvind Shukla   20 Feb 2020 3:21 PM GMT

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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बदलाव के बाद किसानों पर क्या फर्क पड़ेगा?

किसानों के लिए संकट मोचक बताकर शुरु की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा फिर चर्चा में है। केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्यण लेते हुए इसके प्रारूप में बदलाव कर दिया है। जिसके बाद न सिर्फ फसल बीमा योजना स्वैच्छिक यानि किसान की इच्छा पर हो गई है, बल्कि केंद्र ने प्रीमियम अपनी तरफ दी जाने वाली सब्सिडी की भी लिमिट तय की है। इसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या किसान के हिस्से का प्रीमियम बढ़ जाएगा? या फिर राज्य इस योजना से खुद को अलग करना शुरु कर देंगे?

19 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली कैबिनेट बैठक में फसल बीमा में बदलाव किए गए। पहले जो किसान केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) के तहत लोन लेते थे उनसे बैंक में बिना बताए भी प्रीमियम काट लिया जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। इसके साथ ही पीएमएफबीवाई और आरडब्ल्यूबीसीआईएस के तहत केंद्रीय सब्सिडी को गैर सिंचित क्षेत्रों में 30 फीसदी और सिंचित क्षेत्रों में 25 फीसदी तक कर दिया है। इसके साथ नए फैसले के तहत 50 फीसदी सिंचित क्षेत्र सिंचित में ही गिना जाएगा।

अंग्रेजी अख़बार द हिंदू की ख़बर के मुताबिक केद्र के अपनी प्रमुख फसल बीमा योजनाओं में अपना अंशदान काम कर दिया है। अब सिंचित क्षेत्र में केंद्रीय 50 फीसदी की अपनी हिस्सेदारी की जगह 25 फीसदी और असिचिंत क्षेत्रों में 30 फीसदी करेगा। नई योजना 2020 के खरीफ सीजन से लागू होगी।

ये भी पढ़ें- किसान खुद तय कर पाएंगे कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ लें कि नहीं, केसीसी से सीधे नहीं कटेगा पैसा


कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने नरेंद्र मोदी कैबिनेट के फैसले के दूसरे दिन सरकार पर गुपचुप तरीके से बीमा योजनाओं में प्रीमियम कटौती का आरोप लगाया।

सुरजेवाला ने कहा, "अभी तक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 2 प्रीमियम राशि किसान देता था जबकि बाकी का 98 फीसदी प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर (50-50 फीसदी) देती थीं। लेकिन मोदी कैबिनेट ने केंद्र की हिस्सेदारी 50 की बजाए 25 प्रतिशत कर दी है। मतलब कि अब किसान को 2 फीसदी की जगह (25 प्रतिशत प्लस 2 फीसदी-27 फीसदी ) का भुगतान करना पड़ेगा। ऐसे में किसान न इनता प्रीमियम भर पाएगा और न बीमा करवा पाएगा।"

हालांकि कृषि जानकार नए बदलावों को अलग तरीके से देख रहे हैं। कृषि अर्थशास्त्री रमनदीप मान ने सोशल मीडिया पर लिखा, मुझे नहीं लगता कि केंद्र सरकार ने केंद्र अपने हिस्से के प्रीमियम में 25 फीसदी की कटौती की है लेकिन सिंचित जिलों में अगर फसल बीमा का प्रीमियम 25 फीसदी से ज्यादा होगा तो केंद्र सरकार बीमा में अपनी सब्सिडी का नहीं देगी। या तो तो 25% से ज्यादा जो राशि बनती है वो, राज्य सरकार अदा करे, या फिर उस जिले में फसल बीमा नहीं हो पायेगा।

उन्होंने आगे लिखा कि साथ ही अगर असिंचित भूमि वाले जिलों में, फसल बीमा का प्रीमियम 30% से ज्यादा होगा तो मोदी सरकार फसल बीमा में अपनी सब्सिडी का हिस्सा नहीं देगी, या तो 30% से ज्यादा जो राशि बनती है वो, राज्य सरकार अदा करे,या फिर उस जिले में फ़सलों का बीमा नहीं हो पायेगा अंत में नुकसान किसान का होगा।

कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, "फसल बीमा योजनाओं को और प्रभावी बनाने के लिए कुछ बदलाव किए गए हैं। पिछले तीन सालों में बीमा कराने वालों में लोन लेने वाले किसानों का प्रतिशित 58 औऱ गैर ऋणी किसानों का प्रतिशत 42 था। 2015 से पहले गैर ऋणी किसानों का प्रतिशत सिर्फ 5 था। लेकिन राज्य सरकारों और किसान संगठनों की मांग थी, इसलिए स्वैच्छिक बनाया गया है।"

नरेंद्र सिंह तोमर ने ये भी कहा कि नार्थ ईस्ट के राज्यों के लिए केंद्र की हिस्सेदारी 50 फीसदी से बढ़ाकर 90 फीसदी तक की गई है, बाकी 10 फीसदी राज्य को देना होगा। हालांकि केंद्रीय मंत्री ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेस और सोशल मीडिया पर कहीं पर भी देश के बाकी राज्यों के लिए देय प्रीमियम में केंद्र का अंश काटे जाने का जिक्र नहीं किया। कैबिनेट बैठक के बाद की प्रेसवाता यहां देखिए

केंद्रीय मंत्रियों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद राज्यसभा टीवी रिपोर्टर ने केंद्रीय कृषि मंत्री से पूछा कि ऐसा तो नहीं कि अगर किसानों की संख्या कम हो तो प्रोमियम बढ़ जाएगा? इसके जवाब में उन्होंने कहा अभी सामान्य तौर पर इसकी उम्मीद नहीं है लेकिन ये सही है कि पहले साल संख्या कम हो सकती है, लेकिन बाद में बढ़ सकती है। हम इसके लिए जागरुकता अभियान भी चलाएंगे।

साल 2016 में जब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरु हुई थी उस वक्त किसान के लिए रबी की फसल के लिए प्रीमियम की हिस्सेदारी 1.5 फीसदी जबकि खरीफ के लिए 2 फीसदी थी। जबकि नगदी फसलों के लिए 5 फीसदी प्रीमियम किसान को देय होता था। वर्ष 2016 में शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अगले साल ही 2017-18 में इसमें पंजीकरण कराने वाले किसानों की संख्या वर्ष 2015 चल रही बीमा योजना में हुए पंजीकरण से भी कम हो गई। पीआईबी की प्रेस रिलीज यहां पढ़ें


पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि फसल बीमा योजना में केंद्र का अपना योगदान कम करना किसान विरोधी फैसला है। कांग्रेस ने फसल बीमा योजना में बदलावों को लेकर सरकार पर किसानों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए कई सवाल भी पूछे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बाकायदा पिछले तीन वर्षों के आंकड़े जारी करते हुए सरकार से सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि 12 फीसदी प्रीमियम लिया जाता था तो उसे प्रधानमंत्री लूट बताते थे, लेकिन अब 27 फीसदी वसूलने पर क्या कहा जाएगा?

उन्होंने सरकार से सवाल पूछा कि अगर केंद्र सरकार अपनी प्रीमियम राशि का भुगतान नहीं करेंगी तो राज्य सरकारों को 50 फीसदी के लिए कौन बाध्य करेगा। अगर राज्य सरकारों ने भी अपने हिस्से के देय प्रीमियम राशि में केंद्र की तर्ज पर 25 फीसदी की कटौती कर दी तो किसान के हिस्से में आने वाले प्रीमियम 27 से बढ़कर 52 हो जाएगा, जो किसान के लिए असंभव होगा यानि इस योजना पर तालेबंदी की तैयारी है।


केंद्र सरकार ने अपने नए फैसले में कहा कि और महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, जिसमें अब राज्यों में बीमा कंपनियों के लिए 3 साल का टेंडर भरना होगा दूसरा अगर राज्य सरकारों को भी तय वक्त में प्रीमियम देना होगा।

नरेंद्र सिंह तोमर ने पत्रकारों से बाचतीत में कहा था कि पिछले तीन साल के अनुभवों में ये देखा गया कि जिन राज्य सरकारों ने अपने यहां एक साल के लिए बीमा कंपनी को टेंडर दिया वहां कई दिक्कतें आईं। इसलिए अब जब राज्य सरकारें कंपनियों से टेंडर मागेंगी तो उन्हें तीन साल तक काम करना होगा। इसके साथ ही कई बार राज्य सरकारें भी अपने हिस्से का प्रीमियम कंपनी को नहीं देती है, जिसका नुकसान किसानों को होता ऐसे में राज्यों के लिए तय कर दिया गया है कि खरीफ के लिए 31 मार्च और रबी के लिए 30 सितंबर तक अपना हिस्सा देना होगा। खरीफ के लिए 31 मार्च और रबी में 30 सितंबर तक राज्यों को अपने हिस्से का प्रीमियम करना ही होगा, लापरवही बरतने वाले राज्य योजना का हिस्सा नहीं होंगे।

कांग्रेस इस निर्णय पर भी सवाल उठाएं हैं। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि अगर प्रीमियम में देरी होने पर राज्यों को योजना से बाहर किया गया तो इन राज्यों में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मौसम आधारित फसल बीमा योजना बंद हो जाएगी, जिसका किसानों को नुकसान होगा।

कैबिनेट के बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि देश में कुल बुवाई का 30% क्षेत्र बीमिम हुआ है। पिछले तीन वर्षों में किसानों का प्रीमियम लगभग 13000 करोड़ रूपए जमा हुआ और किसानों को उनके दावों का भुगतान लगभग 60 हज़ार करोड़ रूपए (45 गुना) हुआ। ऐसे में योजना ने लिए जोखिम के वक्त मददगार साबित हुई है।

कैबिनेट के फैसले को लेकर गांव कनेक्शन ने कई राज्यों में किसानों से बात की थी। यूपी के प्रगतिशील किसान अमरेंद्र सिंह ने कहा, "बीमा स्वैच्छिक होना सही फैसला क्योंकि जिनती बार किसान बैंक के लोन खाते लेनदेना करता था, प्रीमियम कट जाता था। अब हम अपनी मर्जी से कर सकेंगे।'

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि योजना से बीमा कंपनियों को लाभ हुआ। सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेस में आंकड़े जारी करते हुए कहा कि तीन साल में बीमा कंपनियों ने पीएम फसल बीमा योजना से 77,801 करोड़ रु. प्रीमियम लिया तथा 19,202 करोड़ रु. का मुनाफा कमाया।

केंद्र सरकार ने किए ये बड़े बदलाव

1.प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मौसम आधारित फसल बीमा योजना अब स्वैच्छिक होगा, केसीसी से पैसा नहीं कटेगा।

2.किसान अपनी पसंद और जरुरत के मुताबिक बीमा ले सकें। जैसे सूखा या बाढ़ के लिए अलग-अलग या फिर दोनों में में कोई एक भी।

3.PMBFY और RWBCIS के तहत सिंचित क्षेत्रों में केंद्रीय सब्सिडी 25 और गैर सिंचित क्षेत्र के लिए बीमा केंद्रीय सब्सिडी 30 फीसदी तक सीमित होगी।

4.तय समय में बीमा राशि का भुगतान न करने वाले राज्यों को योजना से बाहर किया जाएगा।

5.राज्यों में बीमा कंपनियां एक साल के बजाए कम से कम तीन साल के लिए टेंडर भरेंगी।

4.देश के आपदाग्रस्त ( बाढ़ और जलभराव आदि) 151 जिलों से लिए विशेष बीमा योजना बनेगी।

6.नुकसान आंकलन और दावा निपटान के लिए मौसम उपग्रह जैसी तकनीकी का सहारा लिया जाएगा।

7. फसल बीमा योजना में पहले प्रशासनिक व्यय शामिल नहीं था, जब 3 फीसदी होगा।

कांग्रेस के आरोप

1.सरकार गुपचुप तरीके से बीमा योजना के अपने हिस्सें के देय प्रीमियम में 100 फीसदी की कटौती की।

2.पहले प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसान 2 फीसदी प्रीमियम भरते थे अब 27 फीसदी भरना होगा।

3.प्रीमियम के लिए राज्यों पर अधिक सख्ती से राज्य योजना से पीछे हटेंगे और उस राज्य में योजना बंद होने से किसानों को नुकसान होगा।

4.जिस तरह केंद्र ने अपने हिस्से के प्रीमियम में कटौती की अगर वैसे ही राज्य सरकारों ने भी अपने हिस्से के प्रीमियम में कटौती कर दी तब किसानों का क्या होगा?

गांव कनेक्शन ने कई बीमा कंपनियों और कई राज्य सरकारों के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की है, उनका जवाब मिलते ही ख़बर में जोड़ दिया जाएगा। फसल बीमा योजना की मौजूदा गाइडलाइन यहां पढ़ें

     

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