इनके हाथों का हुनर जीआई-टैग चन्नापटना खिलौनों को बनाता है खास

कर्नाटक में चन्नापटना को प्यार से गोम्बेगला ऊरु या खिलौनों का शहर भी कहा जाता है। चन्नापटना की लगभग 35% आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लकड़ी के खिलौने उद्योग में शामिल है। जावेद सैय्यद ऐसे ही एक शिल्पकार हैं।

Pankaja SrinivasanPankaja Srinivasan   30 Dec 2021 10:37 AM GMT

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इनके हाथों का हुनर जीआई-टैग चन्नापटना खिलौनों को बनाता है खास

चन्नापटना को प्यार से गोम्बेगला ऊरु या खिलौनों का शहर भी कहा जाता है। फोटो: अरेंजमेंट

इकतालीस वर्षीय जावेद सैय्यद पिछले 20 वर्षों से अधिक समय से चन्नापटना लकड़ी के खिलौने बना रहे हैं। "मेरे पिता सैय्यद मियां ने मुझे यह हुनर सिखाया और कुछ समय बाद मैंने अपने हुनर को सुधारने और खिलौनों के आधुनिकीकरण के लिए आगे भी सीखता रहा, "जावेद सैय्यद ने कहा। जावेद अपने परिवार के साथ कर्नाटक के बेंगलुरु से करीब 60 किलोमीटर दूर रामनगर जिले के चन्नापटना में रहते हैं। वह लगभग दो से तीन सौ अलग-अलग तरह के खिलौने, जार, लकड़ी और जहर मुक्त रंगों से सजावटी सामान बनाते हैं।

चन्नापटना को प्यार से गोम्बेगला ऊरु या खिलौनों का शहर भी कहा जाता है। और वे सभी लोग जो कभी बेंगलुरु और मैसूर के बीच की यात्रा को अगर याद करें, जब ट्रेन छोटे स्टेशन पर कुछ मिनटों के लिए रुकी थी, वे रंगीन लकड़ी के रसोई सेट, स्किपिंग रस्सियां, लट्टू जो टोकरियों को याद जरूर करेंगे।

2005 में, इन पारंपरिक लकड़ी के चन्नापटना खिलौनों को जियोग्राफिकल टैग (जीआई) मिला। यह टैग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उत्पाद (जैसे हस्तशिल्प) के लिए उपयोग किया जाता है, जो गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है।

जावेद के खिलौने चमकीले, आकर्षक और मेहनत से बनाए गए हैं। फ़ोटो: निधि जाम्वाल

जहर मुक्त जीआई टैग वाले खिलौने

18 वीं शताब्दी में टीपू सुल्तान के संरक्षण में चन्नापटना में लकड़ी के बने खिलौने बनाना लोकप्रिय हो गया। "वर्तमान में, चन्नापटना की लगभग 35 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खिलौना उद्योग में शामिल है। और वर्षों से खिलौनों की फिनिश बेहतर और बेहतर होती गई है, "जावेद ने कहा।

"हम धातु स्प्रिंग्स का उपयोग नहीं करते हैं जैसे हमने एक बार किया था। हम इसे बेहतर बनाने के लिए पूरे खिलौने को लकड़ी से बनाते हैं, "उन्होंने कहा। यही नहीं इनको रंगने में इस्तेमाल होने वाले रंग भी जहर मुक्त होते हैं और प्राकृतिक स्रोतों से बने होते हैं, जो खिलौनों को पूरी तरह से सुरक्षित बनाते हैं, यहां तक ​​​​कि उन बच्चों के लिए भी जो उन्हें अपने मुंह में डाल सकते हैं, खिलौना निर्माता ने समझाया।

एक पारिवारिक व्यवसाय जावेद का पूरा परिवार - उसके पिता, उसकी पत्नी जमरुत बानो और उसका बेटा, जो एक कॉलेज में कॉमर्स की पढ़ाई कर रहा है - खिलौना बनाने में मदद करता है। "केवल जब परिवार एक साथ काम करता है, तभी हम बेहतर कमाई कर सकते हैं। सरकार हमें जो राशन देती है, उससे हम किसी तरह मैनेज करते हैं।

चन्नापटना को प्यार से गोम्बेगला ऊरु या खिलौनों का शहर भी कहा जाता है। फ़ोटो: निधि जाम्वाल

जावेद ने कहा कि ऑर्डर के आधार पर वे एक दिन में 30 से 50 खिलौनों बनाते थे और जो कुछ लोगों को काम पर रखते थे, उन्हें भी उनके द्वारा बनाए गए खिलौनों की संख्या और आकार के हिसाब से भुगतान किया जाता था।

खिलौना बनाने की खुशी

जावेद के खिलौने चमकीले, आकर्षक और मेहनत से बनाए गए हैं। वह एक छोटी सी वर्कशॉप में काम करते हैं जिसे उन्होंने किराए पर लिया है। "हम सफेद लकड़ी का उपयोग करते हैं जो स्थानीय रूप से उपलब्ध है। हम एक टन लकड़ी खरीदते हैं और उसे सुखाते हैं, लेकिन आखिर में वेस्ट मटेरियल निकालने के बाद, हमारे पास काम करने के लिए 500 किलो लकड़ी बचती है, "उन्होंने बताया।

खिलौना बनाने की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए जावेद ने कहा कि लकड़ी को पूरी तरह से सुखाना होगा नहीं तो खिलौनों पर लगे रंग टिकेंगे नहीं और उड़ जाएंगे। "हमें प्राकृतिक रंग तमिलनाडु से मिलते हैं जहां उनके पास सुरक्षा के लिए परीक्षण करने के लिए प्रयोगशालाएं हैं। खिलौना पूरी तरह से हाथ से तैयार किया गया है और हम अपने खिलौने को पूरा करने के लिए चार से पंद्रह उपकरणों का उपयोग करते हैं, "उन्होंने कहा।

"हमारे खिलौने बच्चों को उनके मोबाइल से दूर कर देंगे। मुझे इस बात की खुशी है कि हम आधुनिक, रंगीन खिलौने बनाते हैं जो बच्चों को मोबाइल स्क्रीन पर समय बिताने के बजाए इससे खेलने को लुभाते हैं, "सैय्यद ने मुस्कुराते हुए कहा।


व्यापार बढ़ाने में मदद कर रहा सोशल मीडिया

जावेद ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया उनके उत्पादों को बढ़ावा देने का एक बड़ा माध्यम बन गया है।

"मेरे पिता और दादा उनसे पहले उन कुछ दुकानों को खिलौनों की आपूर्ति करते थे जो वहाँ थीं। अब यह बिल्कुल अलग है। हमारे खिलौने देश भर में बेचे जाते हैं, "खिलौना निर्माता ने कहा। "उत्तर प्रदेश के मथुरा और लखनऊ में हुनर हाट के माध्यम से मुझे कुछ अच्छा व्यवसाय मिला। और मैंने कुछ लोगों संपर्क बनाया है जो मेरी मदद करते हैं। "

लेकिन जावेद खिलौने बनाने वाले अधिकांश शिल्पकारों के साथ जिस तरह से व्यवहार किया जाता है, उसकी कड़वाहट को भी याद करते हैं।"हमने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते होंगे। लेकिन, हम छोटे से किराए के क्वार्टर में रहते हैं। यहां तक ​​​​कि अगर इससे मुट्ठी भर लोगों को पहचान मिली होगी, बाकी लोग अभी भी वैसे ही हैं, "उन्होंने कहा।

महामारी की समस्या

COVID19 महामारी ने चन्नापटना के खिलौना निर्माताओं पर भारी असर डाला है। अधिकांश ऋण चुकाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और बस चलते रहते हैं और अपने दैनिक जीवन के साथ आगे बढ़ते हैं।

जावेद ने कहा, "किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह, हम तीन से चार साल पीछे हट गए हैं।"

उन्होंने आगे यह भी जोड़ा कि सिर्फ वही अकेले नहीं हर कोई लॉकडाउन के दौरान परेशानी में रहा। "हमें किराए, ट्यूशन फीस, मजदूरी का भुगतान करना पड़ा ... बिना किसी आमदनी के और सभी की बची रकम भी चली गई। हम में से ज्यादातर कर्ज में हैं, हम में से अधिकांश के पास कोई बीमा नहीं है। अगर खिलौने बनाते समय किसी की उंगलियां चली जाती हैं, तो उन्हें आजीविका के अन्य साधन खोजने पड़ते हैं, "उन्होंने जारी रखा।

जावेद ने बताया कि ऑर्डर के हिसाब से वे एक दिन में 30 से 50 खिलौनों बनाते हैं। फ़ोटो द्वारा: निधि जामवाल

जावेद के अनुसार, सरकार द्वारा दी जाने वाली कोई भी छूट या योजना बाजार के कुछ चुनिंदा लोगों तक ही पहुंच पाती है। उन्होंने शिकायत की कि छोटे खिलौना निर्माताओं को कोई लाभ नहीं मिलता है।

जहां आम दिनों में खिलौने बनाने में हर महीने करीब आधा टन लकड़ी का इस्तेमाल होता है, वहीं दिसंबर के इस महीने में उन्होंने सिर्फ 100 किलो लकड़ी का ही इस्तेमाल किया है। महामारी के कारण ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं और यह एक संघर्ष है, उन्होंने स्वीकार किया।

औसतन, जावेद ने कहा कि अगर वह किस्मत वाले हुए, तो वह लगभग 15,000 रुपये प्रति माह कमा लेते। उन्होंने बताया, "मेरे किराए के घर का किराया 3,000 रुपये प्रति माह है और जो खिलौना बनाने की जगह ली है उसके लिए 4000 रुपए हर महीने किराए के लिए देने होते हैं।"

"यह मिडिल वर्ग के लिए सबसे मुश्किल भरा है। हम इतने अमीर नहीं हैं कि महामारी जैसे संकट से आराम से निपट सकें, न ही हम बहुत गरीबों की तरह हैं जो मदद के लिए भीख मांग सकते हैं। हमारे पास तमाम बंदिशे हैं, "वह हंसते हुए अपने खराद का काम करते हुए कहते हैं।

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