छत्तीसगढ़: सैकड़ों आदिवासी ग्रामीण 300 किलोमीटर की यात्रा करके राज्यपाल से मिलने क्यों जा रहे हैं?

हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में कोयला खदानों के 'अवैध' अधिग्रहण के विरोध में सरगुजा और कोरबा जिलों के 350 से अधिक ग्रामीण पिछले 10 दिनों से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुंचने के लिए मार्च कर रहे हैं, और पेसा पेसा अधिनियम को लागू करने की मांग कर रहे हैं। वे राज्यपाल अनुसुइया उइके से मिलना चाहते हैं और उन्हें अपनी याचिका के बारे में बताना चाहते हैं।

Pratyaksh SrivastavaPratyaksh Srivastava   14 Oct 2021 10:29 AM GMT

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छत्तीसगढ़: सैकड़ों आदिवासी ग्रामीण 300 किलोमीटर की यात्रा करके राज्यपाल से मिलने क्यों जा रहे हैं?

प्रदर्शनकारी ग्रामीणों की मांग है कि पेसा की शर्तों का सम्मान किया जाना चाहिए। फोटो: आलोक शुक्ला/ट्विटर

गर्म और उमस भरे दिन में पसीने से लथपथ सरगुजा और कोरबा जिले के 350 आदिवासी ग्रामीणों की कतार छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के आवास की ओर जाने वाली सड़क पर आगे बढ़ रहे हैं। पिछले दस दिनों में 300 किलोमीटर से अधिक चलने के बाद ग्रामीण आखिरकार मंलगवार 12 अक्टूबर को पहुंचे जो राज्यपाल अनुसुइया उइके से मिलने के लिए उत्सुक थे। लेकिन इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है।

यह पदयात्रा सरगुजा जिले के अंबिकापुर के फतेहपुर गांव से 3 अक्टूबर को शुरू हुई थी। ये आदिवासी ग्रामीण एक दशक से अधिक समय से वन क्षेत्रों में कोयला खनन का विरोध कर रहे हैं, लेकिन अब वे राजधानी आए हैं ताकि उनकी आवाज सुनी जाए।

13 अक्टूबर को ग्रामीण हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में कोयला ब्लॉकों के अधिग्रहण के विरोध में राज्य की राजधानी रायपुर पहुंचे, जिसे वे अवैध कब्जा मानते हैं और जो उनकी ग्राम सभा (ग्राम परिषद) की सहमति के भी खिलाफ है।

हसदेव अरण्य वन के पत्ते के नीचे भारत में कोयले के सबसे बड़े भंडार में से एक है। भारतीय खान ब्यूरो के अनुमान के अनुसार भंडार 5179.35 मिलियन टन कोयले की है। हसदेव कोयला क्षेत्र 187,960 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।

निवासियों और वन्यजीव कार्यकर्ताओं के लंबे समय से विरोध के बावजूद, छत्तीसगढ़ सरकार ने जुलाई में 17 कोयला ब्लॉकों की नीलामी को मंजूरी दी, जिसमें हसदेव अरण्य जंगल में कोयला क्षेत्र भी शामिल हैं। इस कदम ने खनन के खिलाफ विरोध फिर से शुरू कर दिया है।

यह पदयात्रा सरगुजा जिले के अंबिकापुर के फतेहपुर गांव से 3 अक्टूबर को शुरू हुई थी।

विरोध का नेतृत्व करने वाले संगठन हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के अनुसार क्षेत्र में छह कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए हैं और उनमें से दो परसा पूर्व और केटे बसन (पीईकेबी) ब्लॉक, और चोटिया- I और –द्वितीय ब्लॉक में खनन गतिविधि शुरू हो गई है।

'पेसा कानून लागू करो'

हसदेव के कोयला ब्लॉक निरस्त करो, 'पेसा कानून लागू करो जैसे नारों के बीच 85 वर्षीय सोनाराम पैकरा ने कहा कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में मूल आबादी को खतरा हो रहा है और आने वाली पीढ़ियों के पास रहने और जीवित रहने के लिए कोई जगह नहीं होगी यदि वहां रहने वाले लोगों को विकास के नाम पर विस्थापित किया जाता है।

कोरबा जिले के गिदमुडी गांव के निवासी पैकरा ने कहा, "पंचायती राज प्रणाली लाई गई और हमें बताया गया कि शासन में हमारी हिस्सेदारी होगी। लेकिन अब अडानी जैसी कंपनियां आ गई हैं और हमारी आवाज को दबाया जा रहा है।

25 साल से भी पहले पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, जिसे आमतौर पर पेसा अधिनियम के रूप में जाना जाता है, 1996 में देश के आदिवासी क्षेत्रों में पंचायती राज प्रणाली का विस्तार करने और प्राकृतिक संसाधनों पर स्वदेशी समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने के लिए पारित किया गया था।

"प्रत्येक ग्राम सभा (ग्राम परिषद) लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधनों और विवाद समाधान के पारंपरिक तरीके की रक्षा और संरक्षण के लिए सक्षम होगी," 1996 के कानून में लिखा है।


प्रदर्शनकारी ग्रामीणों की मांग है कि पेसा की शर्तों का सम्मान किया जाना चाहिए।

लेकिन अब तक छत्तीसगढ़ इसके क्रियान्वयन के लिए नियम नहीं बना पाया है. ग्रामीण कोयला खदानों के आवंटन को रद्द करने की मांग के अलावा पेसा कानून को लागू करने की भी मांग कर रहे हैं.

खोखले वादे

पेसा लागू करने का वादा कांग्रेस पार्टी ने 2018 में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करते हुए किया था।

चुनाव के बाद सत्ता में आने के बाद कांग्रेस द्वारा नियम बनाने की शुरुआत की गई थी, लेकिन प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई है, वन क्षेत्र में कोयला ब्लॉक आवंटन को खारिज करने की मांग करने वाले कार्यकर्ताओं की शिकायत है।

इस बीच 24 दिसंबर 2020 को केंद्रीय कोयला मंत्रालय द्वारा जारी कोयला खदानों के आवंटन की अधिसूचना पर कुल 470 आपत्ति पत्र आए थे। इन आपत्तियों के जवाब में केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि केंद्र सरकार कोयला असर क्षेत्र अधिग्रहण एवं विकास अधिनियम, 1957 का पालन कर रही है और इसमें ग्राम सभा की सहमति का कोई प्रावधान नहीं है.

भारत में कोयले की कमी?

दिलचस्प बात यह है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में खनन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बीच कोयले की अभूतपूर्व कमी की खबरें भी मीडिया रिपोर्ट में बताई जा रही हैं.

केंद्रीय कोयला मंत्री जोशी ने मंगलवार 12 अक्टूबर को आज छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों का दौरा किया और कोयले के उत्पादन को बढ़ाने के आदेशों की निगरानी की, क्योंकि देश में 135 कोयला संचालित संयंत्रों में से 115 आपूर्ति की कमी का सामना कर रहे हैं, जैसा कि मीडिया में बताया गया है।

"जहाँ तक आवश्यकता का सवाल है, बिजली मंत्रालय ने 1.9 मिलियन टन (बिजली उत्पादन इकाइयों के लिए) और 20 अक्टूबर के बाद 20 लाख टन की आपूर्ति की मांग रखी थी। हमने 20 लाख टन की आपूर्ति की है और बाकी चीजों पर मैं (खदानों की) समीक्षा के बाद चर्चा करूंगा।" जोशी कहते हैं।

अंग्रेजी में खबर पढ़ें

अनुवाद: संतोष कुमार

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