शर्मनाक: भारत में हर 2 मिनट में 3 बच्‍चों की होती है मौत

बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता और उचित पोषाहार का अभाव है जिम्मेदार

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   24 Sep 2019 11:11 AM GMT

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शर्मनाक: भारत में हर 2 मिनट में 3 बच्‍चों की होती है मौत

लखनऊ। "मेरा तीन साल का बेटा बीमार पड़ गया था। हम उसे एक अस्पताल में ले गए। दो दिन बाद मेरे बेटे की मौत हो गई। पूछने के बाद भी डॉक्टरों ने मौत की वजह नहीं बताई। गांव के कुछ लोग कह रहे थे तुम्हारा बेटा कुपोषित था, इसलिए उसकी मौत हो गई।" यह बात मध्य प्रदेश के शहडोल के रहने वाले राकेश कहते हैं। वो आज भी अपने बेटे को याद कर दुखी हो जाते हैं। राकेश अकेले नहीं है जिनके बेटे की मौत असमय हो गई।

यूनाइटेड नेशन्स इंटर एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मोर्टेलिटी एस्टिमेशन (UNIGME) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता, उचित पोषाहार और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के चलते हर 2 मिनट में 3 बच्‍‍‍‍‍‍‍चों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 साल के दौरान भारत में सबसे कम नवजात शिशुओं की मौत साल 2017 में हुई। इस साल लगभग 8.02 लाख नवजात शिशुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस आंकड़े से स्थिति की भयावहता की अनुमान लगाया जा सकता है।

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इसी साल (2019 में) बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से 156 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई। मौतों के पीछे कुपोषण भी एक वजह बताई गई। पिछले साल झारखण्ड के सिमडेगा जिले के कारीमाटी गांव की संतोष कुमारी (11वर्ष) की मौत 'माई भात दे, थोड़ा भात दे'कहते-कहते हो गई थी। वह कई दिनों से भूखी थी। इन दोनों मामलों ने हमारे देश की लचर स्वास्थ्य और खाद्यान व्यवस्था की पोल खोल दी थी।

ऐसी मौतों की खबरें पूरे देश के अलग-अलग राज्यों से आती रही हैं। लेकिन, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश से कुछ ज्यादा ही आती हैं। भारत पूरी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्यान उत्पादक देश है। बावजूद इसके हमारे देश की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूखे पेट रहता है, खासकर बच्चे। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की वर्ष 2018 की रिपोर्ट अनुसार भारत भूखे देशों की सूची में 103वें स्थान पर पहुंच गया है।

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बिहार में सामुदायिक स्वास्थ्य और चमकी बुखार पर रिसर्च करने वाले डॉक्टर अरुण शाह ने गाँव कनेक्शन को बताया, " बिहार में कुपोषण गंभीर समस्या है। यहां ज्यादातर बच्चों के नाटेपन का कारण कुपोषण है। लंबे समय तक चला आ रहा कुपोषण बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा पहुंचाता है। पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में सुधार हो रहा है पर अभी भी कुपोषण की दर काफी ज्यादा है।"

बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था युनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में यदि बच्चा पैदा होने के बाद एक महीने तक जीवित रहता है तो पांच वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले उसे डायरिया, निमोनिया और टीबी जैसी बीमारी होने का खतरा बना रहता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसार बिहार में 48.3 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। इसके बाद झारखंड, मेघालय और मध्य प्रदेश हैं। मध्य प्रदेश में 5 साल से छोटी उम्र के 42 फीसद बच्चे कुपोषित हैं।

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कुपोषण के कारण ही मध्य प्रदेश के जनपद श्योपुर को भारत का इथोपिया कहा जाता है। प्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार कुपोषण से हर रोज मध्य प्रदेश में 92 बच्चों की मौत हो जाती है। विधानसभा में एक सवाल के जवाब में राज्य की तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने जनवरी 2018 तक के कुपोषण संबंधी आंकड़े पेश किए थे, जिसके अनुसार जनवरी 2016 में कुपोषण से प्रदेश में मरने वाले बच्चों की संख्या 74 थी वह जनवरी 2018 में बढ़कर 92 हो गई।

मध्य प्रदेश के भोपाल निवासी सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन ने गाँव कनेक्शन को बताया, " ऐसा नहीं है सरकार ने भोजन मुहैया कराने के लिए योजनाएं नहीं बनाई हैं। अंत्योदय अन्न योजना, मिड डे मील योजना, अन्नपूर्णा योजना, राशन वितरण प्रणाली जैसी भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करने वाली सरकारी सामाजिक योजनाएं चल रही है। लेकिन इन तमाम कोशिशों के बावजूद ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट भारत के दावों को खारिज करती है। देश में बढ़ रही आर्थिक असमानता की वजह से भी भुखमरी की समस्या काफी गंभीर हुई है। अमीर और गरीब के बीच में बढ़ती खाई ने गरीबों को भोजन जैसी बुनियादी आवश्यकता से दूर कर दिया है।"

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मध्य प्रदेश के शहडोल संभाग के महिला एवं बाल विकास विभाग के संयुक्त निदेशक बीएल प्रजापति ने गाँव कनेक्शन को बताया, प्रदेश से कुपोषण को दूर करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग अहम भूमिका निभा रहा है। शहडोल संभाग के सभी स्वास्थ्य केन्द्रों, उप स्वास्थ्य केन्द्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के माध्यमों से मरीजों को बेहतर से बेहतर उपचार मुहैया कराया जा रहा है। केंद्र सरकार भी कुपोषण मुक्त करने के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही है। "

यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि यासमीन अली हक ने एक साक्षात्कार में कहा, " शिशु मृत्यु दर के मामले में भारत में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है। लेकिन अभी और काम करने की जरूरत है। यदि 2006 से 2017 तक नवजात मृत्यु दर को देखें तो पता चलता है कि 2006 में नवजात मृत्यु दर प्रति हजार 57 था, जो 2017 में घटकर 33 प्रति हजार हो गया। यानी 11 सालों में 42 प्रतिशत की कमी आई है। लेकिन, अब भी देश में नवजात मृत्यु दर वैश्विक स्तर से ज्यादा है। वैश्विक नवजात मृत्यु दर 29.4प्रतिशत है, जबकि भारत में 33 प्रतिशत है।"

उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर काम करने वाली संस्था प्रतिनिधि के कार्यकारी अधिकारी मजहर रशीदी ने बताया, " केंद्र सरकार अपने देश को कुपोषण मुक्त करने के लिए कई कोशिशें कर रही है। कुपोषण मुक्त भारत का लक्ष्य 2022 तक हासिल करने का नारा दिया जा रहा है। लेकिन कुपोषण करीब हर तीसरा बच्चा कुपोषित है, क्योंकि कुपोषण की शुरुआत गर्भवती माता से होती है। आज कुपोषित गर्भवती महिलाओं की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। इसके लिए सामाजिक और आर्थिक पहलू दोनों जिम्मेदार हैं।"

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नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) के अनुसार वर्ष 2015-16 में झारखंड 24 प्रतिशत, बिहार 25 प्रतिशत, ओडिशा 29 प्रतिशत और मध्य प्रदेश 33 प्रतिशत जैसे कम सफाई सुविधाओं वाले राज्यों में ही डायरिया से मरने वाले पांच साल से कम उम्र के बच्चों की दर ज्यादा है।

अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका लैंसेट ने वर्ष 2015 में रिपोर्ट जारी की थी, जिसके अनुसार पांच साल से कम उम्र में सबसे ज़्यादा बच्चों की मृत्यु भारत में हुई। ये पहले की तुलना में काफी बेहतर है। वर्ष 2000 से भारत में बच्चों की मृत्यु दर घटकर आधी हो गई है, लेकिन वर्ष 2015 में भी बारह लाख बच्चों की मौत हई थी। इस बारह लाख में से आधी मौतें उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में हुई थीं।

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