लॉकडाउन के दौरान बच्चों के साथ हिंसा की रोजाना आ रहीं 8,000 से ज्यादा कॉल्स, क्या है वजह?

लॉकडाउन के दौरान हर दिन 8,000 से ज्यादा कॉल्स बच्चों के हिंसा और उत्पीड़न संबंधी आ रही हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक़ इसकी बड़ी वजह यह है कि एक बड़ी आबादी इस समय आर्थिक संकट से जूझ रही है, लोगों में अपनी नौकरी को लेकर अनिश्चितता है। छोटे घरों में ज्यादा लोग एक साथ रहने को मजबूर हैं। इस समय लोगों में तनाव और अवसाद की तनाव वजहें हैं जो बच्चों पर हिंसा के रूप में सामने आ रही हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   13 April 2020 8:45 AM GMT

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लॉकडाउन के दौरान बच्चों के साथ हिंसा की रोजाना आ रहीं 8,000 से ज्यादा कॉल्स, क्या है वजह?

इस देशव्यापी लॉकडाउन ने बच्चों की जिंदगी में अफरा-तफरी मचा दी है। कई बच्चे अपने घर में ही असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। हाल में बच्चों की हिंसा को लेकर जारी आंकड़े ये बताने के लिए काफी हैं कि इस समय बच्चे अपनों के बीच घरों में खुश नहीं हैं।

इन आंकड़ों के इतर 12 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में एक महिला अपने पांच बच्चों सहित नदी में कूद गयी। महिला तो तैरकर बच गयी पर बच्चे नहीं बच सके। कूदने की वजह यह सामने आयी कि महिला का पति शराब पीता था और भी कई तरह के नशे करता था,जिसकी वजह से दोनों में आये दिन लड़ाई होती थी। महिला ने इस लड़ाई से तंग आकर यह कदम उठाया।

अभी हाल के दिनों में चाइल्डलाइन इण्डिया हेल्पलाइन '1098' और राष्ट्रीय महिला आयोग के जारी आंकड़े ये कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान घरों में कैद बच्चों और महिलाओं के साथ हिंसा पहले की तुलना में बढ़ गयी है। भदोही की खबर इन आंकड़ों को और मजबूत बनाती है।

चाइल्डलाइन इंडिया के उप निदेशक हरलीन वालिया के अनुसार 25 मार्च से हुए लॉकडाउन के बाद से हेल्पलाइन पर आने वाली फोन कॉल्स 50 फीसदी तक बढ़ गयी हैं। जो कॉल्स अभी तीन लाख आयी हैं सामान्य दिनों में यही कॉल्स दो लाख आती हैं।

लॉकडाउन के दौरान हर दिन 8,000 से ज्यादा कॉल्स बच्चों के हिंसा और उत्पीड़न संबंधी आ रही हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक़ इसकी बड़ी वजह यह है कि एक बड़ी आबादी इस समय आर्थिक संकट से जूझ रही है, लोगों में अपनी नौकरी को लेकर अनिश्चितता है। घरों से बाहर निकलने का मौका नहीं मिल रहा है। छोटे घरों में ज्यादा लोग एक साथ रहने को मजबूर हैं। इस समय लोगों में तनाव और अवसाद की तनाव वजहें हैं जो बच्चों पर हिंसा के रूप में सामने आ रही हैं।

"इस समय देश में जो हालात हैं उससे उबरने का किसी को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। परिवार में आर्थिक संकट है। लोग अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। सभी के सामने नौकरी की अनिश्चितता है। लॉक डाउन के समय एक बड़ी आबादी अवसाद और तनाव से जूझ रही है। लोग इस मानसिक तनाव को किसी से व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। ये माहौल ही हिंसा पैदा कर रहा है जिसका शिकार बच्चे और महिलाएं हो रही हैं," बच्चों के साथ लम्बे समय से काम कर रहे सचिन कुमार जैन ने बताया।

चाइल्डलाइन इंडिया हेल्पलाइन '1098' ने देश के विभिन्न हिस्सों से आयी कॉल्स के आंकड़े साझा किये हैं। जिसमें 20 से 31 मार्च के बीच इस हेल्पलाइन पर तीन लाख कॉल्स आयीं हैं जो सामान्य दिनों की अपेक्षा काफी ज्यादा हैं। इन कॉल्स में 30 फीसदी यानि 92,105 कॉल्स बच्चों से जुड़ी थीं। जिसमें बच्चों ने हिंसा और उत्पीड़न से बचाने की मांग की थी।

"सरकार ने लॉकडाउन के समय इन हालातों से निपटने की ऐसी कोई रणनीति नहीं बनाई जिससे लोगों को ये भरोसा होता कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा। तभी घर के पुरुष बच्चों और महिलाओं को दबाकर रखने की कोशिश कर रहे हैं जिससे उन्हें सीमित संसाधनों में रहने की आदत हो जाए। दूसरा जिस घर में एक परिवार रह रहा है उस घर का आकार क्या है? छोटे घरों में एक साथ रहने पर लोगों की स्वतंत्रता छिनती है, ऐसे में भी हिंसा होने की वजह बढ़ती है," सचिन जैन ने हिंसा की एक और वजह बताई। सचिन मध्यप्रदेश के भोपाल के रहने वाले हैं। ये बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली 'विकास संवाद' नाम की संस्था के निदेशक हैं।

इस हिंसा को अभी कैसे रोका जाए इस पर सचिन ने जवाब दिया, "बच्चों के साथ संवाद बहुत जरूरी है। उनके साथ आपके रिश्ते मजबूत होने चाहिए जिससे वो आपसे हर बात साझा कर सकें। आंकड़ों के अनुसार 93 फीसदी लोग जानने वाले ही हिंसा करते हैं, ऐसे में अगर आपका बच्चा आपसे कोई बात कहता है तो उसे ध्यान से सुने और उसपर एक्शन लें, भले ही हिंसा करने वाला व्यक्ति आपका कितना ही ख़ास क्यों न हो?"

सचिन के अनुसार भारत में दो लाख बच्चों के परामर्शदाता की जरूरत है।

देशभर में अपराधों को दर्ज करने वाली संस्था एनसीआरबी की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार जितनी भी घटनाएं दर्ज होती हैं उनमें से 93 प्रतिशत जानने वालों के द्वारा की जाती हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन 'चाइल्ड एब्यूज इन इंडिया' के मुताबिक भारत में 53.22 प्रतिशत बच्चों के साथ एक या एक से ज्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न हुआ है।

ब्रेकथ्रू की प्रेसीडेंट सोहिनी भट्टाचार्य बच्चों के साथ बढ़ती हिंसा पर कहती हैं, "अभी बच्चा जिनके साथ रह रहा है वो अब्यूजर भी हो सकता है। ऐसे में बच्चों के प्रति जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। इनसे निपटने के लिए चाइल्ड हेल्पलाइन और मनोचिकित्सक को विशेष भूमिका में लाया जाए जिससे हिंसा के शिकार बच्चों को मदद मिल सके। लॉक डाउन के बाद जो परिस्थियाँ आयेंगी उसमें चीजें बदलेंगी नहीं बल्कि और गम्भीर होंगी जिसका सीधा असर बच्चों और महिलाओं पर पड़ेगा।" ब्रेकथ्रू एक स्वयंसेवी संस्था है जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने के लिए देशभर में काम करती है।

हाल में ही बाल अधिकार इकाईयों ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर बच्चों की हेल्पलाइन '1098' को टोल फ्री नंबर बनाने की मांग की है। कोविड-19 के दौरान हुए लॉक डाउन को देखते हुए इस नंबर को बच्चों, अभिभावकों और बच्चों की देखभाल करने वालों के लिए यह आपात नंबर बनाने को कहा गया था।

बच्चों के साथ लम्बे समय से काम करने वाली भोपाल की सामाजिक कार्यकर्ता कुमुद सिंह बच्चों के साथ लॉक डाउन में बढ़ी हिंसा की वजह आपसी संवाद में गैप बताती हैं। कुमुद कहती हैं, "पिछले कुछ सालों से हम लगातार भाग रहे थे, इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम दूसरे से बातचीत ही नहीं करते थे। घरों का जो आपसी संवाद खत्म हुआ उसकी वजह से भी इस समय हिंसा बढ़ गयी है। दूसरा आमदनी के सभी श्रोत बंद है,जो लोग नशा करते थे अभी वो भी नहीं मिल रहा। ऐसे में पुरुष मानसिक तनाव में है। घर में बच्चों और महिलाओं को सबसे कमजोर माना जाता है इसलिए ये सारा गुस्सा इनपर ही निकल रहा है।"

चाइल्डलाइन को लॉक डाउन के दौरान जो कॉल्स मिली हैं उसमें शारीरिक स्वास्थ्य के संबंध में 11 फीसदी, बाल श्रम के संबंध में आठ फीसदी, लापता और घर से भागे बच्चों के संबंध में आठ फीसदी और बेघर बच्चों के बारे में पांच फीसदी कॉल आईं हैं। इसके अलावा हेल्पलाइन को 1,677 कॉल ऐसी मिलीं जिनमें कोरोना वायरस के संबंध में सवाल किए गए और 237 कॉल में बीमार लोगों के लिए सहायता मांगी गई।

बाल कल्याण समिति लखनऊ की सदस्या डॉ संगीता शर्मा ने बताया, "इस समय सबका एक साथ रहना हिंसा की एक मुख्य वजह है। स्कूल बच्चों के लिए लाइफलाइन की तरह होते हैं जो अभी बंद हैं, बच्चों का मूवमेंट रुका है, वो खुद एक जगह बंधे हैं जिसकी वजह से वो भी तनाव में हैं। अभी जो हेल्पलाइन हैं 1098, 1090, 112 इन्हीं पर लोग तत्काल काल करें।"

डॉ संगीता ने इस समय बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करें? इस पर बोलीं, "बच्चों के साथ बच्चों की तरह बनकर रहना पड़ेगा। जब ऐसे समय में बड़े परेशान हो गये तो बच्चे क्यों नहीं? बच्चों को ऐसा माहौल दें कि वो खुश रहें अगर वो फिर भी खुश न हों तो ऐसे में उनका नाराज होना जायज है। इस समय बच्चों की फीलिंग को समझने की जरूरत है। उनकी समस्या सुने उनका मन बहलायें। बच्चों के साथ घर में ही कई तरह की एक्टिविटी करें जिससे उनका मन लगा रहे। घर का माहौल बिगड़ेगा तो सबकुछ बिगड़ेगा।"

कोरोना वायरस का संक्रमण अभी रुकने का नाम नहीं ले रहा है जिससे लॉक डाउन बढ़ने की संभावना है। अगर लॉक डाउन बढ़ता है तो बच्चों के साथ हिंसा देशभर में कैसे रोकी जाए इस पर लखनऊ की मनोवैज्ञानिक डॉ नेहा आनंद का कहना है, "इस समय लोग टीवी पर रामायण और महाभारत खूब देख रहे हैं। सरकार के द्वारा ये प्रयास होना चाहिए कि इन सीरियल के दौरान छोटे-छोटे विज्ञापन बनाकर लोगों को जागरूक करें। इन विज्ञापन के माध्यम से यह संदेश कि पुरुष बच्चों और महिलाओं के साथ हिंसा न करें।"

"लॉक डाउन से घरों में महिलाओं का काम बढ़ गया है। पुरुषों में अभी मदद करने का तरीका आया नहीं है। ज्यादातर पुरुषों के स्वभाव में शामिल होता है कि वो अपना तनाव और गुस्सा बच्चों और महिलाओं पर निकालते हैं। पुरुषों को अपना ये स्वभाव बदलना चाहिए। घर के कामों में महिलाओं की मदद करें, बच्चों को कविता कहानी सुनाएँ," डॉ नेहा आनंद ने कहा।

राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो (वर्ष 2001 से 2016 तक) के आंकड़ों के अनुसार भारत में 1,09,065 बच्चों ने आत्महत्या की है, 1,53,701 बच्चों के साथ बलात्कार हुआ है, 2,49,383 बच्चों का अपहरण हुआ है।

झारखंड के रांची में रहने वाली वंदना टेटे जो लम्बे समय से आदिवासियों के साथ काम करती हैं उनका कहना है, "आदिवासियों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। रोज कमाने खाने वाले परिवार इस समय घरों में बैठे हैं। सरकार कबतक मदद करेगी? नशे के आदी लोगों को नशा नहीं मिल रहा है। ये झल्लाहट बच्चों और महिलाओं पर ही निकलेगी।"

"कई घरों में बच्चों की जो जिम्मेदारी पहले केयर टेकर निभाते थे अभी वो माता-पिता को निभानी पड़ रही है। ऐसे में कामकाजी माता-पिता के ऊपर वर्क लोड और बढ़ गया है। ऐसे में वो बच्चों को फोन दे देते हैं। बच्चे पूरे टाइम फोन चलाते रहते हैं। मानव तस्करी करने वाले कई हैकर सोशल मीडिया के जरिये बच्चों को परेशान करते हैं। ऐसे समय में बच्चों के साथ बहुत वक़्त बिताने की जरूरत है, उन्हें समझने की जरूरत है," मोहम्मद इकराम ने बताया। ये ब्रेक थ्रू संस्था में चाइल्ड सेफगार्डिंग पालिसी मैनेजर हैं।

"बच्चों को घर में हमेशा कमजोर माना जाता है। किसी भी तरह की कोई गुस्सा या तनाव है तो सीधे बच्चों पर निकाल दिया जाता है। क्योंकि उन्हें पता होता है यहाँ से कोई जबाव नहीं मिलेगा। इसलिए बच्चों को पढ़ाई के साथ उनकी नियमित काउंसलिंग बहुत जरूरी है जिससे उन्हें अपने अधिकार पता हो सकें, " बच्चों के समूहों के साथ काम करने वाली यशस्वी कुमुद (21 वर्ष) ने कहा।

हिंसा को इस समय कैसे कम किया जाये इस पर सोहिनी भट्टाचार्य ने एक सुझाव दिया, "इस समय आशा कार्यकर्ता जो घर-घर जाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं अगर इसके साथ ही वो बच्चों की हेल्पलाइन का भी प्रचार-प्रसार करें तो हर घर तक इस हेल्पलाइन की पहुंच होगी। आशा के पास इस समय काम बहुत ज्यादा है लेकिन इस दौरान इनके अलावा दूसरा कोई घर-घर पहुंचने का उपाय नहीं है।"

   

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