मध्य प्रदेश: कोरोना काल में कमजोर हुई कुपोषण से जंग, पोषण पुनर्वास केंद्र पर नहीं पहुंच रहे बच्चे

पोषण पुनर्वास केंद्र पर बच्चों के साथ माँ को भी रखा जाता है। इन माँओं को कम से कम एक हफ्ते का समय यहां पर देना होता है। ऐसी स्थिति में मजदूर परिवार की महिलाएं बिना किसी सूचना दिए केंद्र से कई बार चली जाती हैं।

Prem VijayPrem Vijay   14 July 2020 6:08 AM GMT

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मध्य प्रदेश: कोरोना काल में कमजोर हुई कुपोषण से जंग, पोषण पुनर्वास केंद्र पर नहीं पहुंच रहे बच्चे

भोपाल (मध्यप्रदेश)। पिछले कुछ महीनों में आदिवासी बहुल जिलों से लेकर पूरे प्रदेश में कोरोना काल में कुपोषण की जंग बेहद कमजोर हो चुकी है। पिछले 3 माह में कुपोषित बच्चे पोषण पुनर्वास केंद्र पर नहीं पहुंच पाए। इसकी एक बड़ी वजह यही कि इन स्थानों पर कोई सुविधा ही नहीं थी कि सुरक्षा के साथ में कुपोषण से दूर किया जाए। जून के अंत में स्वास्थ्य विभाग ने इन केंद्र को खोलने का निर्णय लिया। अब कोरोना वायरस संक्रमण के डर के साथ-साथ आंगनबाड़ी शुरू नहीं होने के कारण इन केंद्रों पर बच्चे बहुत कम संख्या में पहुंच रहे हैं। ऐसे में कुपोषित बच्चों को अपनी जिंदगी से संघर्ष करने के लिए छोड़ दिया गया है।

इस बारे में कार्ड संस्थान के गगन मुद्गल बताते हैं, "कुपोषण को लेकर पिछले कुछ समय में चिंताएं बढ़ी हैं। लॉक डाउन के दौरान जो बच्चे पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती थे। उनकी छुट्टी कर दी गई थी। उसके बाद में उनको ला पाना संभव नहीं हुआ। अब जबकि वापस से व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं तो सबसे बड़ी चुनौती है कि किसी तरह से उनके माता-पिता को तैयार करना होगा। नई परिस्थितियों में यदि कोई संक्रमण फैलता है तो वह अपने आप में चिंता का विषय होगा। इसलिए इन केंद्रों पर बच्चों की संख्या फिलहाल कम ही रह रही हैं।"

मध्यप्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के आदिवासी बहुल धार, झाबुआ व आलीराजपुर जिले में अति गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक है। राष्ट्रीय पोषण केंद्र हैदराबाद द्वारा 2018 में जारी किए गए आंकड़ों के तहत अलीराजपुर में 54.6%, झाबुआ में 48.6% और धार में 38.5% बच्चे कुपोषित पाए गए हैं। उसके बाद से कोई कुपोषण की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है बल्कि निरंतर जनता की स्थिति बनी हुई है।

सरदारपुर पोषण पुनर्वास केंद्र की कौशल प्रशिक्षण शीतल अग्निहोत्री कहती हैं, "अब कोविड-19 की परिस्थितियों में 25 जून से पुनः पोषण पुनर्वास केंद्र में प्रवेश देना शुरू कर दिया गया है। वर्तमान में आंगनबाड़ी केंद्र बंद हैं। ऐसे में इन बच्चों को वहां से रेफर करने की स्थिति ठीक नहीं है। शासन द्वारा 108 एंबुलेंस के साथ-साथ जननी वाहन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वर्तमान में आंगनबाड़ी से जो मदद मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पा रही है। आंगनबाड़ी केंद्रों का अभी संचालन नहीं हो रहा है, उन्हें सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर रखा है। अभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका हैं। मैदानी स्तर पर अन्य काम कर रही हैं।"


इधर इस बारे में जो माताएं उपचार करवा रहे हैं उनकी भी अपनी चिंताएं हैं। ग्राम धुलेट की संगीता कहती हैं कि उनका बच्चा कुपोषित पैदा हुआ है। हम चाहते हैं कि बच्चे का उपचार हो। हम यहां रहने को भी तैयार हैं, लेकिन हमारी भी कई तरह की परेशानी है। यहां रहने के कारण मजदूरी का नुकसान होता है। जल्द से जल्द आने का बंदोबस्त करना पड़ता है।

पोषण पुनर्वास केंद्र पर माताओं को भी रखा जाता है। इन माताओं को कम से कम एक पखवाड़े का समय यहां पर देना होता है। ऐसी स्थिति में मजदूर परिवार की महिलाएं बिना किसी सूचना दिए केंद्र से कई बार रवाना हो जाती हैं। वर्तमान में सरदारपुर सहित जिले के सभी पोषण पुनर्वास केंद्र की स्थिति बेहद चिंताजनक है। 20 सीट वाले इन पोषण पुनर्वास केंद्र पर क्षमता के विपरीत 50% बच्चे भी दर्ज नहीं है।

-ग्राम भानगढ़ की 12 माह के बच्चे भीषण की माँ पैमली कुंवर सिंह कहती हैं, "हम लोग कोरोना की डर में भी आए हैं। ताकि हमारा बच्चा ठीक हो सके। बच्चे की जिंदगी बच जाती है तो हमारा यह प्रयास सफल होगा। यहां पर जो सीखा है उसको हम घर पर भी प्रयोग करेंगे, ताकि बच्चों की जिंदगी बच सकें।"

ग्राम रिंगनोद की सुमन बाई पति मुकेश का कहना है कि मेरे 21 माह के बच्चे आंसू की जिंदगी कुपोषण के कारण खतरे में है। उसका उपचार हम करवा रहे हैं। दो तीन माह हमें परेशान होना पड़ा, क्योंकि लॉकडाउन के कारण केंद्र बंद था। आंगनबाड़ी पर हमने संपर्क किया तो वहां पर भी कोई सुविधा नहीं थी।

कुपोषण मामलों की विशेषज्ञ इंदिरा दीक्षित ने बताती हैं, "आंगनबाड़ी बंद होने के कारण कुपोषित बच्चों पर बुरा असर पड़ा है। रेडी टू ईट जैसी सामग्री भी बच्चों को नहीं मिल पाई। अन्य कई शासकीय योजनाओं का लाभ भी इस दौरान नहीं मिल पाया है और कुछ व्यवस्था ठीक हो रही हैं। कुपोषण से जंग लड़ने के लिए नई परिस्थितियों में भी तैयार रहना होगा। जब तक हालात ठीक नहीं होते हैं, तब तक हम कुपोषित बच्चों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकते। वर्तमान में अभी किसी तरह की जानकारी सरकार के पास नहीं कि कुपोषण से कितने बच्चों ने लॉक डाउन के दौरान दम तोड़ा है। ज्यादा से ज्यादा बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र पर रेफर किया जाए। वहां पर कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर अतिरिक्त व्यवस्था की जाए। ताकि किसी तरह की परेशानी नहीं आए।"

धार के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट आलोक कुमार सिंह इस बारे में कहते हैं, "हमने संबंधित विभाग और मैदानी कर्मचारी और अधिकारियों को हिदायत दी है कि वह पोषण पुनर्वास केंद्र पर बच्चों को लाकर उपचार करने में विशेष रुप से ध्यान दें। जिसको लेकर सभी केंद्रों पर अब बच्चे आने भी लगे हैं। कोरोना सुरक्षा के लिए नियमों का पालन करवाने के आदेश है।"

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