साल 2020 में चक्रवाती तूफान, सूखा, बाढ़, बढ़ते तापमान से जलवायु परिवर्तन ने दिखाया असर

साल 2020 में जलवायु परिवर्तन का भी भारी असर दिखा, अब वो चाहे कई राज्यों में अम्फान चक्रवात का कहर रहा हो या फिर लगातार बढ़ता तापमान। गाँव कनेक्शन की वार्षिक रिपोर्ट 'दी स्टेट ऑफ रूरल इंडिया, रिपोर्ट 2020' में पढ़िए कैसे जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ रहा है ..

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साल 2020 में चक्रवाती तूफान, सूखा, बाढ़, बढ़ते तापमान से जलवायु परिवर्तन ने दिखाया असर21 वीं सदी के अंत तक व्यवसाय सामान सामान्य परिदृश्य में, भारत का औसत तापमान, बीते 1976 से 2005 के सापेक्ष लगभग 4. 4 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा।

बाढ़, चक्रवाती तूफ़ान, सूखा, हीट वेव्स और अनियमित वर्षा जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम हैं, जिसने समस्त मानव जाति को सिर्फ़ और सिर्फ़ यातनाएं दी हैं। इस साल कोविड -19 महामारी ने उन खतरों को बढ़ावा दिया है, जिससे जलवायु परिवर्तन विश्वभर में अपना खुल कर प्रदर्शन कर सकता है। कुछ रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं कि जलवायु परिवर्तन ही नए-नए प्रकार के वायरस और बीमारियों की उत्पत्ति के जिम्मेदार हैं। वे इन दोनों के बीच सह-संबंध होने के दावे कर रहे हैं।

इस वर्ष जून में, केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने "भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के आंकलन" शीर्षक नाम की एक रिपोर्ट ज़ारी की। इस रिपोर्ट में वैश्विक तापमान में वृद्धि और भारत देश पर पड़ने वाले प्रभाव का उल्लेख किया गया है। इस रिपोर्ट में इस बात की भविष्यवाणी की गई कि 21 वीं सदी के अंत तक व्यवसाय सामान सामान्य परिदृश्य में, भारत का औसत तापमान, बीते 1976 से 2005 के सापेक्ष लगभग 4.4 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा। इसका अर्थ और अधिक हीटवेव्स, सूखा, उष्ण कटिबंधीय तूफ़ान, भारतीय समुद्रों का गर्म होना और समुद्री स्तर के बढ़ने और कुछ समय बाद अनियमित और अत्यधिक वर्षा जैसे हालात बनेंगे।

इसी साल, दिसंबर महीने में, भारत की ऊर्जा, पर्यावरण और जल पर एक और अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन 1970 से 2019 के बीच होने वाले हाइड्रो-मेट्रोलॉजिकल आपदाओं पर आधारित है। भारत में 1970 से 2005 के बीच 250 चरम मौसमी घटनाएं घटित हुईं। जबकि इसके वनिस्पत 2005 में अधिक, 310 चरम मौसमी घटनाएं घटीं। इन घटनाओं से भारत के 75% जिलों में घातक परिणाम देखने को मिला। तकरीबन 63 करोड़ 80 लाख लोग चरम मौसमी घटनाओं के चपेट में आये। साल 1970 से 2019 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक वर्षा से जल का स्तर बढ़ता गया और परिणामस्वरूप हर वर्ष आने वाले बाढ़ से 9 करोड़ 75 लाख लोग प्रभावित हुए। इसके साथ ही, लगभग 79 जिले अत्यधिक सूखा और 24 जिले अत्यधिक चक्रवात का सामना हर वर्ष करते आये हैं। अत्यधिक वर्षा ने 1950 से 2015 के बीच 82 करोड़ 75 लाख लोगों को प्रभावित किया, 1 करोड़ 70 लाख लोगों को बेघर किया और 69 हज़ार लोगों की जान ले ली।

2020 में, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा एक मसौदा प्रस्तावित किया गया । मसौदा तैयार करने की इस प्रक्रिया में, मंत्रालय द्वारा किसी विशेष परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन किया गया है। ये विशेष परियोजनाएं सिंचाई बांध, खदान, औद्योगिक इकाईयां होती हैं।

हालांकि, पर्यावरणविद इस डर में हैं कि यह प्रक्रिया, आगे की प्रक्रिया को कमज़ोर ना कर दें, क्योंकि ड्राफ्ट अनुमोदन या मसौदा तैयारी आवश्यकताओं और सार्वजनिक परामर्श से लगभग 40 परियोजनाओं को छूट देता है। जिससे माना जाता है कि इसका पर्यावरण पर घातक प्रभाव पड़ता है। जैसे कि तापमान में वृद्धि और हीटवेव्स।

तापमान में वृद्धि और हीटवेव्स

इस साल, 26 मई को राजस्थान के चुरु में अधिकतम तापमान 50 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। वहीं दिल्ली में 47. 8 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान रिकॉर्ड हुआ। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में गर्मियों के मौसम में बहुत अधिक गर्म हवाओं का प्रकोप रहा।

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 1901 से 2018 के बीच भारत का तापमान औसतन 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा था। ऐसा ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण हुआ क्यूंकि ग्रीन हाउस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन हुआ।

मंत्रालय की जून 2020 की रिपोर्ट में यह पाया गया कि हिंदु कुश हिमालय 1951 से 2014 तक 1.3 डिग्री गर्म रहा। भारतीय हिमालय क्षेत्र में रहने वाले समुदायों के लिए, जो की ढलावदार कमज़ोर इलाके हैं , मुश्किलात पैदा करते हैं। क्यूँकि अत्यधिक गर्मी यहाँ की कृषि प्रणाली की व्यवहार्यता को सीमित करती है।

रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई कि हीटवेव्स की आवृति में दो से तीन गुना वृद्धि होने का अनुमान है। इन हीटवेव्स की अवधि 1976 से 2005 की आधारभूत अवधि के सापेक्ष दोगुनी होने की उम्मीद है।

टिड्डी दल का हमला

साल 2020 एक और अनोखी परेशानी, टिड्डियों की वजह से भी याद रखा जाएगा। रेगिस्तानी टिड्डे(टिड्डों की एक प्रजाति) झुण्ड में भारत के अलग-अलग प्रांतों में अपना आतंक फैला रहे थे । टिड्डियों का ऐसा हमला भारत ने इतने दशकों में पहली बार अनुभव किया। टिड्डी दलों ने किसानों की परेशानी को और बढ़ा दिया। टिड्डियों के झुंड ने किसानों की फसलों को तो बर्बाद किया ही, साथ ही ज़मीन को भी बंजर कर दिया।

इस साल के मई महीने में, टिड्डियों ने अपना पहला हमला मध्य प्रदेश और राजस्थान में बोला। इसके बाद वे दिल्ली और आस-पास के इलाके के गन्ने के खेतों में नज़र आये। आगे की फसलों के लिए वे खतरा बन रहे थे, विशेषतौर पर ग्रामीण इलाके के किसानों के लिए , जिनके पास पहले से ही काम नहीं था।

शोध बताते हैं कि महासागरों के गर्म होने की वजह से चक्रवातीय तूफ़ान और टिड्डियों का आतंक पूरे देश में फैला। इतनी बड़ी तादाद में टिड्डियों का दल इससे पहले कभी नहीं देखा गया था। जलवायु परिवर्तन के साथ- साथ ऐसी विपत्तियाँ और बड़ी और व्यापक हो सकती है। इस वर्ष टिड्डियों का हमला केनिया से पाकिस्तान और फिर भारत में हुआ , जो इस बार पिछले 30 वर्षों से सबसे खतरनाक था।

कई राज्यों में रहा चक्रवात का कहर

जहां 2020 के मई में, देश का अधिकांश हिस्सा गर्मी और गर्म हवाओं से जूझ रहा था, वहीं ओडिशा और पश्चिम बंगाल में चक्रवात अम्फान ने तबाही मचा रखी थी। बाढ़ आया और अपने साथ कई ज़िंदगियाँ, घर-बार, और सम्पतियाँ बहा ले गया। जीवनयापन के सारे तरीके बाढ़ ने रौंद डाला। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार समुद्री तापमान और ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि की वजह से चक्रवात जैसे हालात पैदा होते हैं। चक्रवात जैसी आपदाएं, पर्यावरण को असंतुलित करते हैं और संतुलन के अभाव में जलवायु संकट की स्थिति आती है।

ओडिशा में, तकरीबन 9,833 घर क्षतिग्रस्त हुए । मछुआरों और पशुपालकों को भी काफ़ी नुकसान हुआ। सुंदरबन में, मौजूदा मूलभूत सुविधाओं का भारी नुकसान हुआ। महामारी की वजह से तो ऐसे ही रोजगार लगभग छिन्न गया था, चक्रवात ने और तबाही मचा दी।

'दी स्टेट ऑफ रूरल इंडिया, रिपोर्ट 2020 की सभी खबरें यहां पढ़िए


अभी भारत का पूर्वी तट, अम्फान से होने वाली तबाही की काट नहीं ढूंढ पाया था कि देश का पश्चिमी किनारा चक्रवात निसर्ग की चपेट में आ गया। महाराष्ट्र के कई झुग्गी-झोपड़ी और ग्रामीण आवास और कई हज़ार एकड़ भूमि इस तूफ़ान का शिकार बने। और साल के अंत में एक बार फिर चक्रवात ने अपना कहर बरपाया। नवंबर में बहुत ही घातक चक्रवात निवार, बंगाल की खाड़ी से होते हुए तमिलनाडु के तटीय इलाके में पहुँचा।

बाढ़ ने मचायी तबाही

इस साल बाढ़ अपनी पूरी रफ़्तार के साथ, देश के विभिन्न भागों में तबाही की मिसाल बन कर उभरा। मई महीने के शुरुआत से ही बाढ़ की वजह से असम ने बर्बादी का मंज़र देखना शुरू कर दिया था। लाखों लोगों की ज़िन्दगी दोराहे पर आ गई। रोजगार छिन्न गया। घर डूब गए। संपत्ति का भारी नुकसान हुआ। महामारी के दौरान, स्वास्थ्यकर्मी बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए परिवारों के इलाज के लिए मैदान में कूद पड़े। इलाज के दौरान जलजनित बीमारियों से भी वे जूझे।

अगस्त माह में केरल में भारी बारिश ने 20 लोगों की जान ले ली। भारी बारिश की वजह से मुन्नार में, भू-स्खलन में 50 लोग मरे। पशुपालन और कृषि व्यवसाय को भारी नुकसान हुआ।

इसी प्रकार से, बिहार के 16 ज़िलों में, 83 लाख लोगों ने बर्बादी झेली। सैकड़ों हेक्टेयर खेती योग्य भूमि बंजर हो गए। उत्तर प्रदेश ने भी बाढ़ का भयानक रूप देखा।

आकाशीय बिजली

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आँकड़ों के अनुसार बिजली का आघात लगने से 315 लोगों की जानें गईं। सबसे अधिक 90% मौत का आँकड़ा उत्तर प्रदेश और बिहार में दर्ज किया गया। मई और जुलाई के मध्य में ऐसे हादसे उस वक़्त होते, जब किसान खेती कर रहे होते थे। ऐसे में ज़ाहिर है कि बिजली के आघात से ज्यादातर किसान मरे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने मृतकों के परिवार को 4 लाख की राशि मुआवज़े के तौर पर देने और घायलों का मुफ़्त इलाज करवाने का ऐलान किया। भारी बारिश और बिजली के गिरने से हज़ारों लोग की मौत हुई। बिहार ने इस वर्ष जून के महीने में, बादलों की तेज और भयंकर गड़गड़ाहट भी सुनी।

मानसून की वापसी में देरी

इस वर्ष, जून से सितम्बर के बीच दक्षिण पश्चिम मानसून ने के मौसम ने देश भर में लम्बे समय के लिए 109% की वर्षा की। यह वर्ष बारिश के मामले में तीसरे पायदान पर रहा। पहले पायदान पर साल 1994 है, जिसमें 112 % और पहले स्थान पर 2019 है, जिसमें 110% लम्बी अवधि की वर्षा हुई थी। 2020 के मानसून सत्र में कुल 12 अल्पदाब तंत्र निर्मित हुए। सक्रिय मानसून की स्थिति से नदियों के बाढ़ की घटना ओडिशा, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में घटित हुई। सक्रिय मानसून की परिस्थियों ने देश भर में लगातार 4 हफ़्ते तक तेज बारिश की। सितम्बर में, दो निम्न दबाव क्षेत्रों के बनने से मानसून की सक्रियता बनी रही। इस वजह से मानसून को देश भर से वापस जाने में 28 अक्टूबर तक का समय लगा।

कोविड-19 ने जहाँ एक ओर दुनिया भर में विनाश फैला दिया वहीं दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन ने भी अपना पूरा कहर ढाया। वर्षा में बदलाव, बदलते समुद्री स्तर और मौसमी स्वरुप ने देश भर में असाधारण और दयनीय स्थिति पैदा की।

बाढ़, बारिश, सूखा, हिंसक तूफ़ान और टिड्डी दल के हमलों और महामारी जैसी अप्रिय घटनाएं इस वर्ष घटीं। सकारात्मकता के तौर पर हम कह सकते हैं कि इस वर्ष केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा तैयार रिपोर्ट "भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का आंकलन", मील का पत्थर साबित हुई , जो इस साल पहली बार मंत्रालय द्वारा प्रक्षेपण किया गया।

गाँव कनेक्शन ने जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित कुछ चुनिंदा स्टोरीज, जिसका प्रभाव हम पर पड़ा है, को क्रमबद्ध किया है।

PM Modi launches an auction process for commercial mining of 41 coal blocks. India's first climate change assessment report projects a temperature rise of 2.7°C by 2040 and 4.4°C by 2099

भारत की पहली क्लाइमेट चेंज असेसमेंट रिपोर्ट के अनुसार साल 2040 तक 2.4 सेंटीग्रेड और साल 2099 तक 4.4 सेंटीग्रेड तापमान बढ़ जाएगा।

The 'hanging village' of Bangladesh: A glaring reminder of climate change refugees

बांग्लादेश का तटीय क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगत रहा है और लगातार चक्रवात और मानसूनी बाढ़ जैसे गंभीर संकटों का सामना कर रहा है

Super Cyclone Amphan weakens to an extremely severe cyclonic storm. But, still remains strongest cyclone ever recorded in the Bay of Bengal

अम्फान चक्रवात को बंगाल की खाड़ी का सबसे तीव्र चक्रवात के रूप में दर्ज किया गया। 18 घंटे में ही इसने भयंकर रूप ले लिया।

Braving The Storm: Two Odisha villages lead the way in the Indian Ocean region with UNESCO's 'Tsunami-Ready' tag


उड़ीसा के दो तटीय गाँवों को यूनेस्को ने 'सूनामी के लिए तैयार' टैग दिया है, जोकि 22 हिंद महासागर राज्य सदस्यों के बीच बड़ी उपलब्धि है।

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साल 2020: कृषि कानून, सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि, लॉकडाउन और टिड्डियों का हमला, जानिए किसानों के लिए कैसा रहा ये साल


     

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