जलवायु परितवर्तन से लक्षद्वीप में समुंद्र का स्तर हर साल समुद्र का स्तर 0.4 मिमी से 0.9 मिमी तक बढ़ेगा, जिससे द्वीप के कई हिस्से समुंद्र के जद में आ जाएंगे। एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है।
विभिन्न ग्रीनहाउस गैस परिदृश्यों का अनुमान लगाने के लिए कराए गए एक अध्ययन के अनुसार लक्षद्वीप द्वीप समूह के आसपास समुद्र का स्तर 0.4 मिमी / वर्ष से 0.9 मिमी / वर्ष के बीच बढ़ेगा।
आने वाले वर्षों में प्रमुख खतरों में से एक समुद्र के जल स्तर का बढ़ना है और छोटे द्वीपों पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव है और यह पहली बार है कि जलवायु मॉडल अनुमानों का उपयोग अरब सागर के बीच स्थित लक्षद्वीप द्वीपसमूह के द्वीपों के जलमग्न होने वाले संभावित क्षेत्रों का आकलन करने के लिए किया गया था।
डिपार्टमेंट ऑफ आर्किटेक्टचर एंड रीजनल प्लानिंग, डिपार्टमेंट ऑफ ओशन इंजीनियरिंग एंड नेवल आर्किटेक्चर, IIT खड़गपुर और भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। इसमें आयशा जेनाथ, अथिरा कृष्णन, सैकत कुमार पॉल, प्रसाद के. भास्करन शामिल हैं, इन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सहयोग से जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) के तहत, समुद्र के स्तर में वृद्धि के जलवायु अनुमानों और एक अंगूठी के आकार वाले मूंगा चट्टान के एटोल द्वीपों में तटों के जल निमग्न होने से संबंधित तटीय बाढ़ का अध्ययन किया।
इस स्टडी के अनुसार चेतलाट और अमिनी जैसे छोटे द्वीपों में बड़े पैमाने पर भूमि-नुकसान होने की आशंका है। अनुमानों के मानचित्रण (प्रोजेक्शन मैपिंग) ने संकेत दिया है कि अमिनी में मौजूदा तटरेखा का लगभग 60 प्रतिशत -70 प्रतिशत और चेतलाट में लगभग 70 प्रतिशत – 80 प्रतिशत भूमि का नुकसान सम्भव है।
अध्ययन में यह भी उल्लेख किया गया है कि मिनिकॉय जैसे बड़े द्वीप और इस केंद्र शासित प्रदेश की राजधानी कवरत्ती भी समुद्र के स्तर में वृद्धि के प्रति संवेदनशील हैं, और इनकी मौजूदा तटरेखा में भी लगभग 60 प्रतिशत भूमि का नुकसान होने की आशंका है। हालांकि सभी उत्सर्जन परिदृश्यों के अंतर्गत एंड्रोथ द्वीप पर समुद्र के स्तर में वृद्धि का सबसे कम प्रभाव बताया जा रहा है।
जर्नल ‘रीजनल स्टडीज इन मरीन साइंस, एल्सेवियर’ में हाल ही में प्रकाशित शोध से पता चला है कि तटों के डूबने का व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव हो सकता है। इस दल के अनुसार, समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण तटों पर रहने वाले द्वीपवासी सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि वर्तमान में कई आवासीय क्षेत्र समुद्र तट के काफी करीब हैं। इसके अलावा, द्वीपसमूह का एकमात्र हवाई अड्डा अगत्ती द्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित है, और समुद्र के स्तर में वृद्धि से यहाँ बाढ़ से सबसे अधिक क्षति होने की आशंका है।
यह अध्ययन समुद्री लहरों में निहित तरंग ऊर्जा की दिशात्मक प्रकृति, अरब सागर क्षेत्र में उठने वाले तूफानों के प्रभाव, जल स्तर में वृद्धि से प्रभावित और आवासीय आश्रय वाले द्वीपों को उत्पन्न आसन खतरों के साथ ही पीने योग्य पानी, स्वच्छता आदि जैसी सुविधाओं का आकलन करने के लिए भविष्य के अनुसंधान पर एक नया दृष्टिकोण और सम्भावनाएं भी बताता है।
इस उल्लेखनीय अध्ययन का व्यावहारिक महत्व है और यह नीति निर्माताओं और निर्णय लेने वाले अधिकारियों के लिए अल्प कालिक और दीर्घकालिक अवधि की ऐसी योजना बनाने के लिए बेहद उपयोगी हो सकता है जिससे लक्षद्वीप द्वीप समूह में आबादी को लाभ मिल सके।