बिहार सरकार ने कोरोना के मामलों को काबू में करने के लिए पूरे राज्य में 5 मई से 25 मई तक पूरी तरह से लॉकडाउन कर रखा है, जो पहले 15 मई तक था। एक पूर्ण लॉकडाउन की वजह से काम बंद होने के चलते कई लोगों के सामने खाने का संकट पैदा हो गया है, विशेष रूप से रोज कमाने वाले, जो एक दिन न कमाए तो उसके सामने अपना और अपने परिवार का पेट भरना मुश्किल हो जाता है।
इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार 38 जिलों में 405 कम्युनिटी किचन (सामुदायिक रसोई) चला रही है, जहां रोजाना 55,000 से ज्यादा लोगों को खाना खिलाया जा रहा है। इसे लेकर एक नोटिस 4 मई को जारी किया गया था, जिसमें चयनित स्थलों पर सामुदायिक रसोई स्थापित करने और गरीबों, भिखारियों और बेघरों को पका हुआ भोजन परोसने का निर्देश दिया गया था। इतना ही नहीं यहां दिन में दो बार खाना खाने के लिए आधार कार्ड या राशन कार्ड जैसे किसी आईडी की जरूरत नहीं है।
16 मई को लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने के साथ ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने अगले दिन (17 मई) विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए करीब 22 जिलों में संचालित किए जा रहे कम्युनिटी किचन की स्थिति की समीक्षा की। इस दौरान उन्होंने कम्युनिटी किचन की व्यवस्था को देखा और वहां खाना खाने वाले लोगों से सुविधा के बारे में जानकारी ली। समीक्षा में यह पाया गया कि कुछ जिलों में इनकी संख्या जरूरत के मुताबिक कम है। ऐसे में जिलाधिकारियों को संख्या का आंकलन कर अपने जिले के अंतर्गत हर प्रखंड में कम से कम एक कम्युनिटी किचन के संचालन के लिए जरूरी कार्रवाई करने के आदेश दिए। इसके अलावा राज्य सरकार ने सरकार की ओर से संचालित डेडिकेटेड कोविड अस्पताल (डीसीएच), कोविड केयर सेंटर (सीसीसी) और डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर (डीसीएचसी) में भर्ती मरीजों की देखभाल कर रहे परिजनों के लिए भी कम्युनिटी किचन में खाने की व्यवस्था करने का आदेश दिए।
400 से अधिक सामुदायिक रसोइयों में रोजाना बढ़ रही खाने वालों की संख्या
प्रदेश के 38 जिलों में चल रही इस योजना के तहत 5 मई से लेकर 16 मई तक 405 सामुदायिक रसोई के जरिए कुल 609219 लोगों को दो वक्त का खाना खिलाया जा चुका है। इन सामुदायिक रसोई के जरिए 16 मई को एक दिन में पूरे राज्य में 90642 लोगों ने खाना खाया। अकेले पटना जिले में 19 कम्युनिटी किचन के जरिए 16 मई को 14,062 लोगों ने खाना खाया, जबकि 5 मई से 16 मई तक यह संख्या 1,30,432 रही। वहीं गया में 46,905 और कटिहार में 35,689 लोगों ने 16 मई तक इसका लाभ उठाया।
10 मई को सारण जिले में सात सामुदायिक रसोई के तहत एक दिन में 504 लोगों को खाना खिलाया गया था। तो 16 मई को यह संख्या एक दिन में 2833 पहुंच गईं, उन्हें 23 सामुदायिक रसोई के जरिये भोजन मिला। इन रसोई में गरीब, रिक्शा चालक और बेघर पुरुष, महिलाएं और बच्चे ताजा पका हुआ भोजन करने आते हैं।
सारण के जिला मजिस्ट्रेट और कलेक्टर नीलेश देवरे ने बताया, “मुख्यमंत्री ने आज (17 मई) जिला स्कूल और सदर अस्पताल में चलाए गए सामुदायिक रसोई के लाभार्थियों से ली गई प्रतिक्रिया की सराहना की और संतोष व्यक्त किया। सारण में जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए हर ब्लॉक में एक और जिला मुख्यालय में 3 सामुदायिक रसोई का संचालन हो रहा है।”
नीलेश देवरे ने आगे कहा, “सामुदायिक रसोई उन लोगों के लिए भोजन मुहैया कराती है, जिनका लॉकडाउन के कारण काम छूट गया है और एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते, यह हमारी जिम्मेदारी हैं।”
सारण के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (विभागीय जांच) भारत भूषण ने बताया कि वे तालाबंदी के पहले दिन (5 मई) से ये रसोई चला रहे हैं और सरकार के अगले आदेश तक इसे जारी रखेंगे।
बिनी आईडी और आधार कार्ड दिखाए सबको मिल रहा भोजन
भूषण ने आगे बताया, “सामुदायिक रसोई में राशन कार्ड या आधार कार्ड जैसी किसी आईडी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है। कोई भी गरीब व्यक्ति आकर खाना खा सकता है। थाली में दाल, चावल और एक सब्जी होती है। हम सब्जियां बदलते रहते हैं। जैसे आज (12 मई) हमने सोयाबीन- आलू बनाया है, क्योंकि सोयाबीन प्रोटीन का अच्छा स्रोत है और महामारी में बीमारी से लड़ने के लिए स्वस्थ भोजन बेहद जरूरी है।”
सामुदायिक रसोई बिहार कोई नहीं व्यवस्था नहीं है। भारत का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य होने के कारण जब लाखों लोगों विस्थापित होते हैं तो राज्य सरकार अक्सर सामुदायिक रसोई चलाती है। पिछले मानसून में भी राज्य के 16 बाढ़ प्रभावित जिलों में सामुदायिक रसोई स्थापित की गई थी।
भूषण ने कहा, “बाढ़ के अलावा, पिछले साल जब प्रवासी श्रमिक लॉकडाउन के दौरान लौटे थे, तब भी हमने इन सामुदायिक रसोई को क्वारंटीन सेंटरों पर चलाया था।”
हालांकि यह पहली बार है कि पूरे लॉकडाउन के दौरान राज्य भर में गरीबों को खिलाने के लिए इन रसोई की स्थापना की गई है।
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