किसान की आय दोगुनी कैसे होगी, सरकार को इस पर ठोस रोडमैप के साथ आना चाहिए: अरुणा रॉय

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किसान की आय दोगुनी कैसे होगी, सरकार को इस पर ठोस रोडमैप के साथ आना चाहिए: अरुणा रॉयअरुणा रॉय (फोटो साभार: इंटरनेट)

धीरज मिश्रा

लखनऊ। इस समय देश में हर ओर किसान उग्र हो रहे हैं और अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। किसानों की मांगों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी मुख्य मुद्दा है। इस पर गांव कनेक्शन से धीरज मिश्रा ने मज़दूर किसान शक्ति संगठन की संस्थापक और सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय और इसके सदस्य नचिकेत उडुपा से बात की। इस दौरान दोनों ने एमएसपी के साथ स्वामिनाथन सिफारिशें और दूसरी कृषि समस्याओं पर अपनी राय दी।

सवाल- पिछले चालीस ‍वर्षों में फ़सलों की एमएसपी को सिर्फ़ 21 गुना ही बढ़ाया गया है वही दूसरी तरफ़ सरकारी कर्मचारियों का वेतन 150 गुना तक बढ़ाया गया है। आपको क्या लगता है, इसकी क्या वजह है? क्यों तमाम सरकारों ने दोनों में इतना अंतर रखा?

वर्तमान एमएसपी पर्याप्त नहीं है। इसे स्वामिनाथन आयोग की सिफ़ारिश के आधार पर बढ़ाया जाना चाहिए कि ये किसान को उसकी फ़सल की खेती की लागत में 50 प्रतिशत जोड़कर के मिलना चाहिए। जिन खेती की समस्याओं का देश सामना कर रहा है उन्हें कम करने के लिए यह बहुत ज़रूरी है की इस सिफ़ारिश को लागू किया जाए।

जवाब- दुर्भाग्य से सरकारी तंत्र (उपकरण) पर कॉरपोरेट और मुक्त बाज़ार की वकालत करने वाले अर्थशास्त्रियों का वर्चस्व है। इस प्रकार के लोग सोचते हैं कि अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से किसानों को मिलने वाला लाभ के मुकाबले मुद्रास्फीति (महंगाई) भारत के ग़रीब, जिनमें की ज़्यादातर छोटे किसान ही हैं, को ज़्यादा हानि पहुंचाती है इसलिए इस ग़लत तर्क की वजह से सरकार किसानों के नुकसान, जिसका वे सामना कर रहे हैं और जिसकी वजह से वे आत्महत्या करने की कगार पर पहुंच गए हैं, के बारे में सोचने के बजाय महंगाई दर को कम रखने के नाम पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कम रखती हैं।

सवाल- आपको क्या लगता है कि कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) फ़सलों की एमएसपी में सभी ज़रूरी मानकों को शामिल करती है? क्यों हर साल देश का किसान एमएसपी बढ़ाने की माँगों को लेकर सड़कों पर होता है?

जवाब- कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की कार्यप्रणाली पेपर पर काफ़ी हद तक सही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिभाषा के हिसाब से, एमएसपी को खेती की लागत और किसान की मज़दूरी के लिए अतिरिक्त राशि को शामिल करते हुए तय किया जाना चाहिए। इसलिए सैद्धांतिक रूप से कृषि लागत और मूल्य आयोग का न्यूनतम समर्थन मूल्य उस फ़सल की पैदावार की लागत से कम नहीं हो सकता है। समस्या ये है कि सीएसीपी द्वारा इस सिद्धांत के आधार पर की जाने वाली एमएसपी की सिफ़ारिश सरकार पर बाध्यकारी नहीं है और सरकार इस सिफ़ारिश को निर्धारित करने के लिए बाध्य नहीं है।

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सवाल- क्या फ़सलों की वर्तमान एमएसपी पर्याप्त है? यदि नहीं, तो एमएसपी को कितना बढ़ाया जाना चाहिए? फ़सलों की एमएसपी को बढ़ाना क्यों ज़रूरी है?

जवाब- नहीं, वर्तमान एमएसपी पर्याप्त नहीं है। इसे स्वामिनाथन आयोग की सिफ़ारिश के आधार पर बढ़ाया जाना चाहिए कि ये किसान को उसकी फ़सल की खेती की लागत में 50 प्रतिशत जोड़कर के मिलना चाहिए। जिन खेती की समस्याओं का देश सामना कर रहा है उन्हें कम करने के लिए यह बहुत ज़रूरी है की इस सिफ़ारिश को लागू किया जाए।

सवाल- बीज, उर्वरक और कीटनाशकों के दाम बहुत तेज़ी से बढ़े हैं लेकिन एमएसपी महंगाई दर से भी काफ़ी कम है। ऐसा क्यों है?

जवाब- सरकार कथित रूप से महंगाई कम रखने के लिए एमएसपी कम रखती है जबकि बीजों के दाम, उर्वरक (यूरिया को छोड़कर) और कीटनाशकों के दाम को समान तरीक़े से नहीं नियंत्रित किया जाता है। इन सब रसायनों का उत्पादन करने वाली बड़ी कृषि-रसायन कंपनिया बाध्यकारी नहीं हैं कि वे किसानों के अर्थशास्त्र को समझे और दाम उसी हिसाब से बढ़ाए जहां तक कि वे अपने लाभ की सीमा तक पहुंच जाएँ। बल्कि, अप्रैल 2016 में सरकार ने फॉस्फेटिक उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी को महंगाई नियंत्रित करने के नाम पर लगभग आधा कर दिया था। इस प्रकार किसान दोनों तरफ़ से मार खा रहा है। एक तरफ़ लागत बढ़ती जा रही और और दूसरी तरफ़ उसके उत्पादन का सही दाम नहीं मिल रहा है। बजट घाटा और दूसरे भ्रामक आर्थिक मंत्रों (जिस पर देश के शासक वर्ग की सोच का वर्चस्व है) की वेदी पर किसानों की बलि दी जाती है।

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सवाल- छह अप्रैल 2016 को भारत सरकार ने जवाब दिया की वे स्वामिनाथन रिपोर्ट की सिफ़ारिश के आधार पर एमएसपी नहीं तय कर सकते हैं क्योंकि इससे मंडी में विकृति आ जाएगी। आपको क्या लगता है कि ये भारत सरकार का तर्कपूर्ण और स्वीकारयोग्य कथन है?

जवाब- सरकार का ये कहना कि स्वामिनाथन आयोग की एमएसपी से सम्बंधित सिफ़ारिश को लागू करने से मंदी में विकृति आ जाएगी, इस बात को सुनिश्चित करता है कि सरकार की प्राथमिकता महंगाई को कम रखने की है ना कि किसानों की समस्या को कम करने की। यह बिलकुल भी न्यायसंगत नहीं है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि सरकार किसानों की पीड़ा को जाने बग़ैर चाहती है कि किसान, जो कि पहले से ही भयानक समस्याओं से गुज़र रहे हैं, महंगाई को कम करने के आगे और बोझ को झेले। सरकार किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए कुछ भी नहीं कर रही है।

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सवाल-राष्ट्रीय किसान आयोग, जिसके अध्यक्ष एमएस स्वामिनाथन थे, रिपोर्ट को अभी तक क्यों लागू नहीं किया गया? जबकि भाजपा ने आम चुनाव 2014 में अपने घोषणा-पत्र में इसे लागू करने का वादा किया था? क्यों भाजपा और कांग्रेस दोनो ने ही इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया?

जवाब- चाहे जो भी पार्टी सत्ता में हो, आर्थिक विचारों को लेकर कोई ख़ास अंतर नहीं है। एक पार्टी दूसरी पार्टी से ज़्यादा बुरी हो सकती है लेकिन हक़ीक़त ये है कि चाहे जो भी सत्ता में हो ये कॉर्पोरेट और मुक्त बाज़ार की वकालत करने वाले अर्थशास्त्रियों के आर्थिक विचारों को ही लागू करती है जिन्हें कठोर ज़मीनी हक़ीक़त की बहुत कम जानकारी है जिसे ग़रीब हर रोज़ सामना करता है। ग़रीब को अपने लाभ के लिए हर पल लड़ना पड़ता है। इस रिपोर्ट को लागू करने में वैसे भी पहले से ही बहुत देरी हो चुकी है और किसान की हालत हर गुज़रते दिन के साथ बदतर होती जा रही है। यदि हम चाहते है कि इस देश में किसान बचा रहे तो इस रिपोर्ट का लागू करना बहुत आवश्यक है। किसान के बच्चे और आज के युवा ने किसान की स्थिति को देखा है इसलिए वे खेती को अपने लिए रोज़गार नहीं बनाना चाहते हैं। हमें ये सोचना चाहिए की आने वाली नस्लों को हम कहां से भोजन खिला पाएंगे।

सवाल- सरकार ने दूसरी बार कहा है कि वे 2022 तक किसानों की आय को दोगुना कर देंगे। क्या आप इसके लिए कोई रोडमैप देखती हैं?

जवाब- ऐसी किसी नीति घोषणाओं के साथ शैतान इसके विवरण में है। क्या कुल आय दोगुनी होगी या शुद्ध आय? यदि एमएसपी दोगुनी होती है तो फिर सरकार दोगुनी आय का दावा कर सकती है। साथ ही, यदि महंगाई से जीने का स्तर दोगुना से ज़्यादा बढ़ा देती है तो किसानों की आय केवल दोगुनी होगी लेकिन किसान और लोगों के मुक़ाबले और ग़रीब हो जाएंगे। इसकी बहुत कम तस्वीर साफ़ है सरकार इससे क्या समझती है। यह बिलकुल साफ़ है कि इसका कोई रोडमैप नहीं है कि वह इसे कैसे हासिल करेगी। किसानों की आय वास्तविक मायनों में दोगुनी होनी चाहिए (महंगाई के अनुकूल)। सरकार को इस नीति के लिए एक ठोस रोडमैप के साथ आना चाहिए।

सवाल-खेती की वर्तमान हालत की वजह से भारत का किसान देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन कर रहा है। सरकार को इसके हल के लिए कौन से क़दम उठाने चाहिए?

जवाब- एक तत्काल और आवश्यक क़दम सरकार उठा सकती है कि सरकार फ़सलों की एमएसपी को स्वामिनाथन रिपोर्ट की सिफ़ारिश के आधार पर तय करे और इस रिपोर्ट को लागू करे। नहीं तो हम थोड़े समाज के लिए कृषि समस्या पर उत्तेजक होते रहेंगे और लम्बे समय के लिए देश की खाद्य सुरक्षा को बर्बाद कर देंगे।

        

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