जब आप घरों में लॉकडाउन हैं, गांवों में क्या हो रहा है?

Arvind ShuklaArvind Shukla   9 April 2020 4:56 PM GMT

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जब आप घरों में लॉकडाउन हैं, गांवों में क्या हो रहा है?

कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए जब आप अपने घरों में लॉकडाउन हैं। दफ्तर, बाजार, मॉल्स सब बंद हैं। देश के कई शहरी इलाकों में सब्जियां और जरूरी सामान तक सरकारी एजेंसियां पहुंचा रही हैं। ऐसे में ग्रामीण भारत में क्या हो रहा है? उन गांवों में क्या हो रहा है जहां अपके माता-पिता रिश्तेदार रहते हैं? क्या हो रहा है उन खेतों में जहां से आपके लिए अनाज आता है? और क्या कर रहे हैं वो मजदूर जो शहरों से लौटकर गांव गए हैं?

गांव कनेक्शन आपको बता रहा है आम तौर पर कोरोना की महामारी के साए, लॉकडाउन में बंधे गांवों में क्या हो रहा है।

मजदूरों की वापसी और जमात प्रकरण के बाद गांवों में डर

कोरोना की लड़ाई गांव में शहरों की अपेक्षा देरी से शुरू हुई, क्योंकि ज्यादातर लोगों को लगता है जब वायरस चीन और दूसरे देशों से आया है तो उनके गांव में खतरा नहीं है। शुरुआत में बहुत से ग्रामीण ये भी कहते सुने गए कि ये कोरोना-पोरोना उनका क्या करेगा, लेकिन लॉकडाउन के बाद दिल्ली-मुंबई और बड़े शहरों के ग्रामीण इलाकों में पहुंचने के बाद हालात बदल गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गांवों में पहुंचते 10 में से 3 प्रवासी मजदूर-कामगार कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं। जिसके बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ग्रामीण में कोरोना का खौफ बढ़ा और एक बड़ी आबादी लॉकडाउन का सलीके से पालन करने लगी है।

गांव कनेक्शन ने यूपी के गोरखपुर, संतकबीर नगर, देवरिया, अयोध्या और बस्ती से लेकर बिहार के गोपालगंज जिले तक की यात्रा की इस दौरान कई ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें अब (जमात प्रकरण और मजदूरों की वापसी) के बाद कोरोना का डर लग रह है।

प्रवासी मजदूरों के पलायन के तुरंत बाद दिल्ली के निजामुद्दीन के मरकज में गए जमातियों में जैसे कोरोना प्रॉजिटिव होने के आंकड़े सामने आए, ग्रामीण इलाकों में भी दहशत है। दिल्ली के मरकज में देश के लगभग हर राज्यों से लोग पहुंच थे, और जब ये वापस गए तो, इनमें से बड़ी संख्या संक्रमित मिली। उत्तर प्रदेश से लेकर आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना, उत्तराखंड तक दर्जनों गांवों से जमात में संक्रमण होने और कम्युनिटी ट्रांशमिशन की आशंका में गांव के लोग परेशान हैं।

यूपी समेत कई राज्यों में इन दिनों गेहूं कटाई तेजी से चल रही है। सरकार ने निर्देश है कि ज्यादातर कटाई कंबाइन से हो। हालांकि इस दौरान किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। फोटो अरविंद शुक्ला

गेहूं समेत दूसरी फसलों की कटाई

भारत के ज्यादातर राज्यों में रबी की फसल कटाई चल रही है। गेहूं, सरसों, जौ, मसूर जैसे फसलों की हार्वेस्टिंग हो रही है। जिन राज्यों में सिंचाई बारिश के पानी (रेनफेड) पर निर्भर है, जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान,मध्य प्रदेश में गेहूं की कटाई मार्च के दूसरे हफ्ते में शुरू हो जाती है।

यूपी, पंजाब और हरियाणा बिहार में राज्यों सिंचाई की सुविधा वाले राज्यों में अप्रैल में गेहूं की कटाई शुरू होती है, लेकिन लॉकडाउन के चलते किसानों को फसलों की कटाई में दिक्कत आ रही है। सरकार ने कृषि कार्यों में छूट दी है और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने करते हुए ज्यादातर काम मशीन से करने की अपील की, लेकिन ग्रामीण भारत इलाकों में पुलिस की शुरुआती सख्ती के चलते किसानों और मजदूरों की परेशानी हुई। लॉकडाउन के बाद किसानों के हितों में सरकारी आदेश कई दिन बाद जारी हुए,जिसके चलते ग्रामीणों में गफलत बनी रही। फिलहाल बड़ी आबादी इन दिनों फसलों को समेटने और उन्हें घर तक पहुंचाने में व्यस्त हैं। संबंधित ख़बर और वीडियो यहां देखिए -

कोरोना को रोकने के लिए हुए लॉकडाउन में सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष नुकसान सब्जी और फल उगाने वाले किसानों को हुआ। फोटो- वीरेंद्र सिंह

सब्जी और फल वाले किसानों को भारी नुकसान

लॉकडाउन के तुरंत बाद सबसे ज्यादा अगर किसी को नुकसान हुआ है तो वे हैं, सब्जी और फल उगाने वाले किसान। फल और सब्जियां जल्द खराब होने वाले आइटम (पेरिसेबल) होते हैं, इन्हें एक निश्चित समय पर खेत से तोड़ना होता वर्ना फसल खराब हो जाती है। और खेत से निकली फसल को मंडी तक पहुंचाना भी होता है, लेकिन लॉकडाउन में कद्दू, लौकी, तरोई, खीरा, खरबूजा, तरबूज, शिमला मिर्च, हरी पत्ते दार सब्जियों के किसानों को काफी नुकसान हुआ। किसानों की सब्जियां काफी समय तक मंडी नहीं पहुंच पाईं और शहरों में लोगों को दोगुनी-तीन गुनी कीमतें पर खरीदनी पड़ीं।

शहरों में सब्जियां सामान्य दिनों की अपेक्षा दो से तीन गुना महंगी बिक रही हैं, क्योंकि मंडियों तक सभी किसान अपनी सब्जियां नहीं पहुंचा पा रहे, साथ ही सख्ती के चलते सभी वेंडर माल भी नहीं उठा रहे हैं। फोटो- अरविंद शुक्ला

सब्जियों की तरह अंगूर, संतरा, किन्नू जैसे फलों की खेती को भी काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। लॉकडाउन के बाद मध्य प्रदेश छिंदवाड़ा समेत दर्जनों जिलों में संतरे की बागों में संतरे किसान कारोबारियों का इंतजार करते रहे और फसलें बर्बाद हो गईं। इसी तरह महाराष्ट्र के नासिक में कई किसानों ने लाखों रुपए के अंगूर से लदे बाग काट डाले क्योंकि अंगूर का कारोबार ठप है। दूसरे देशों तक माल भेजना मुश्किल है तो दूसरे राज्यों में भी ट्रांसपोटशन मुश्किल भरा रहा है। समस्या अब भी जारी है।

संबंधित वीडियो यहां देखिए- https://www.youtube.com/watch?v=dmKK3MZ0F0U https://www.youtube.com/watch?v=wU1jSxjtF34

मुरछा गए फूल किसानों के चेहरे

फरवरी से लेकर मई-जून तक किसानों को फूलों की खेती मुनाफा देकर जाती है लेकिन कोरोना का साया सबसे पहले देश में फूल के किसानों पर पड़ा। भारत में कोरोना के मरीज मिलने से पहले ही फूल की खेती और कारोबार संकट में घिर गए था। भारत में फूलों की बड़ी मांग शादी समारोहों में रहती है, भारत में बड़ा डेस्टिनेशन वेडिंग प्वाइंट भी है लेकिन कोरोना के चलते उदयपुर, जयपुर और दूसरे बड़े शहरों बुकिंग कैंसल हो गई।

दूसरा देश में राजनीतिक और धार्मिक आयोजन फूलों की खपत का बड़ा जरिया बनते हैं। मार्च के पहले हफ्ते राजनीतिक कार्यक्रम बंद हैं तो लॉकडाउन में मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारे बंद हैं। जिसके चलते गेंदा, गुलाब, ग्लेडियोलस की खेती करने वाले किसान और इसके व्यवसाय से जुडे किसानों को नुकसान हुआ। कई किसानों ने अपने खेत तक जुतवा दिए। संबंधित ख़बर यहां पढ़िए-

कोरोना संकट के बीच हरियाणा में अपनी धान की नई फसल के लिए नर्सरी तैयार करने में जुटे किसान रविंद्र काजल। फोटो साभार- फेसबुक

जायद की फसलों की बुवाई और धान की तैयारी

भारत में खेती के तीन सीजन हैं, अभी जो गेहूं-जौ कटाई चल रही है वह रबी सीजन की फसलें है जबकि जून-जुलाई से लेकर अक्टूबर तक खरीफ का सीजन होता है, जिमसें धान इसकी मुख्य फसल होती है। गेहूं और धान के बीच जो फसल सीजन होता है उसमें जायद कहते हैं, जिसमें मूंग, उदड़ (गर्मियों वाला) और कुछ सब्जियों की फसलें उगाई जाती हैं।

इन दिनों मध्य प्रदेश में जैसे किसान मध्य प्रदेश में मूंग की बुवाई कर रहे हैं। यूपी के कई जिलों में मेंथा की खेती की जा रही है तो छत्तीसगढ़, दक्षिण भारत के कई इलाकों और हरियाणा में कई जगह किसान अगैती धान की खेती की तैयार कर चुके हैं।

खेती में और जो इन दिनों अहम काम हो रहा है वो है चीनी मिलों में गन्ने की पेराई का।

गन्ने की पेराई

लॉकडाउन के बाद भी चीनी मिलें बंद नहीं कई गईं, क्योंकि अगर 15-20 मई तक गन्ने की पेराई नहीं हुई हो करोड़ों गन्ना किसानों का लाखों रुपए का नुकसान हो जाएगा। हालांकि चीनी मिलों ने गन्ना तोलाई के लिए पर्ची सिस्टम बंद कर दिया और किसानों के लिए कई एहतियात बरते जा रहे हैं। मिलों ने किसानों के लिए रोस्टर बनाया है जिसमें एक क्षेत्र विशेष किसान को शिफ्ट दी गई है, ताकि वो उसी में गन्ना पहुंचाए और मिलों में भीड़ न हो।

शहरों में अपने काम छोड़कर लौटे ज्यादातर मजदूरों के हाथ खाली हैं, क्योंकि उन्हें अपने नियोक्ता, ठेकेदार से पैसे लेने का समय नहीं मिला। (दिल्ली से बिहार लौटते लौटते मजदूर) फोटो दया सागर

आर्थिक तंगी से जूझते गांव, बेरोजगारों का अड्डा बनते गांव- जिसकी है ये तीन बड़ी वजह

आपने दिल्ली से निकली मजदूरों की वो भीड़ देखी थी, वो भीड़ अब खाली हाथ गांव पहुंच चुकी है। विश्व में कामगारों और मजदूरों के लिए काम करने वाली सबसे बड़ी संस्था इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) के मुताबिक नोवल कोरोना महामारी के चलते भारत में अंसगंठित क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोगों पर गरीबी में गिरने का खतरा मंडरा रहा है, जबकि 19 करोड़ से ज्यादा लोगों के नौकरी जाने की आशंका है।

संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय की इस चेतावनी से इतर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इकोनॉमी (सीएमआइई) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो हफ्ते में 12 करोड़ लोग अपनी जॉब गंवा चुके हैं। संबंधित ख़बर पढ़िए

मोटे-मोटे आंकड़ों वाली इन रिपोर्ट को सरल शब्दों में ऐसे समझिए कि मजदूर और कामगार कोरोना संकट से पहले जब गांव लौटते थे तो उनके पास पैसे होते थे, इस बार वो खाली हाथ हैं क्योंकि जिन कंपनियों, ठेकेदारों के यहां काम करते थे ज्यादातर ने पैसे नहीं दिए। वो अब बेरोजगार हैं सरकारी सहायता और गांव मजदूरी उनका सहारा।

दूसरी वजह गांवों में चिंता इस बात की है शहरों में संगठित क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को नौकरियां गई हैं उनमे से करोड़ों ऐसे हैं जो शहर में कमाते थे, पैसे भेजते थे, जिसके बाद उनके गांव में रहने वाले परिवार पहले थे, वो भी अब संयश में है। संबंधित वीडियो देखिए

मार्च महीने में हुई बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं, सरसों, सब्जियं की फसलें और आम के बागों को काफी नुकसान पहुंचा था।

तीसरी वजह

साल 2019 मौसम के हिसाब से किसानों के लिए काफी मुश्किलों भरा था। आधा भारत बाढ और आधा सूखे से जूझ रहा था। कई फसलें चौपट हुईं, (फसल बीमा और मुआवजे की प्रक्रिया जारी है) साल 2020 में मार्च के महीने में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों को काफी नुकसान पहुंचा। (फसल बीमा और मुआवजे की प्रक्रिया शुरू होने ही वाली की कोरोना का संकट आ गया), अब जबकि किसानों के पास सब्जियों और फलों की फसलें तैयार हैं उन्हें उसका अच्छा रेट नहीं मिल रहा है, गेहूं की मुख्य कमोडिटी के लिए सरकारी खरीद की व्यवस्था अभी शुरु नहीं हो पाई है। मंडियां खुली हैं, लेकिन कारोबार प्रभावित हैं, ऐसे में किसानों के हाथ खाली हैं। संबधित ख़बर यहां पढ़िए-

       

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