सोयाबीन और बासमती किसानों पर कोरोना वायरस की मार, 25 फीसदी तक गिरी कीमतें

कोरोना वायरस से जुड़ी आपात स्थिति के उत्पन्न होने से करोड़ों लोगों पर सीधा असर पड़ा है। एक लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं और साढ़े चार हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन इन गिनतियों के परे करोड़ों लोग हैं जिनकी जिंदगियों और जीविका पर इस बीमारी का अदृश्य असर पड़ रहा है। गाँव कनेक्शन की सीरीज 'कोरोनाश' के पांचवें भाग में आज देखते हैं कि इस वायरस का असर किसानों पर कैसे पड़ रहा है

Mithilesh DharMithilesh Dhar   13 March 2020 6:43 AM GMT

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"मार्च का महीना हमारे लिए बहुत जरूरी होता है। इस महीने सारी उधारी चुकानी पड़ती है, बीज वाले को, सोसायटी को, लेकिन अब कुछ समझ नहीं आ रहा। गेहूं की फसल बेचने में भी अभी समय है। व्यापारी कह रहे हैं कि कोरोना वायरस की वजह से बासमती की कीमतें गिर गई हैं," पंजाब के किसान रूपेंद्र सिंह (40) कहते हैं।

बासमती चावल और सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों की होली इस साल फीकी रही। कोरोना वायरस के कारण इन फसलों का निर्यात नहीं हो पा रहा, खपत कम हो गई है। जिस कारण मंडियों में इनकी कीमतें लगभग 15 से 25 फीसदी तक कम हो गई हैं जिसका सीधा नुकसान किसानों को हो रहा है।

रूपेंद्र सिंह फाजिल्का के तहसील बहावल बस्सी, गांव बेगावाली में रहते हैं। उनके पास अभी 10 कुंतल बासमती चावल है जिसे उन्होंने अच्छी कीमतों के इंतजार में रोक रखा है। गांव बेगावाली के ज्यादातर किसान बासमती चावलों की ही खेती करते हैं।

वे फोन पर बताते हैं, "हमें इस समय बासमती की जो कीमत मिल रही है 10 साल पहले भी वही थी। इसी बासमती की कीमत हमारे फाजिल्का अनाज मंडी में दो महीने पहले 3200 से 3400 रुपए प्रति कुंतल थी। अब 2,300, 2,400 रुपए मिल रहा है। मार्च- अप्रैल का खर्चा इन्हीं पैसे से चलता है क्योंकि इस दौरान कोई दूसरी फसल होती नहीं।"

फोटो साभार : द इंडियन एक्सप्रेस

कोरोना वायरस की वजह से बासमती चावल के निर्यात में ऐसे समय में कमी आई है जब व्यापारी उम्मीद कर रहे थे कि ईरान के नये साल के मौके पर निर्यात बढ़ेगा। ईरान में 20 मार्च से नौरोज त्योहार मनाया जाता है।

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दुनिया भर में कोरोना वायरस से जुडी आपात स्थिति के उत्पन्न होने से करोड़ों लोगों पर सीधा असर पड़ा है। एक लाख से अधिक लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं, जिनमें से 75,000 से अधिक ठीक हो चुके हैं और लगभग साढ़े चार हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है (13 मार्च तक), लेकिन इन गिनतियों के परे करोड़ों लोग हैं जिनकी जिंदगियों और जीविका पर इस बीमारी का अदृश्य असर पड़ रहा है।

कोरोना वायरस की ही वजह से ईरान जाने वाले लगभग 60 हजार टन बासमती चावल का निर्यात रुका हुआ है। सब बंदरगाहों पर जमा है। ईरान भारतीय बासमती चावलों का सबसे बड़ा खरीदार है।

कोरोना वायरस की ही वजह से ईरान जाने वाले लगभग 60 हजार टन बासमती चावल का निर्यात रुका हुआ है। सब बंदरगाहों पर जमा है। ईरान भारतीय बासमती चावलों का सबसे बड़ा खरीदार है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-20 (अप्रैल से नवंबर तक ) में ईरान ने कुल 4,489 करोड़ रुपए का 5,91,419 कुंतल भारतीय बासमती चावल का आयात किया था। इस मामले में सऊदी अरब दूसरे जबकि ईराक तीसरे नंबर पर है।

ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक विनोद कौल गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "हमारे देश का कुल 35 फीसदी बासमती चावल ईरान जाता है। इस साल इसकी मांग 30 फीसदी तक कम हो गई है। इसका सीधा असर यह हुआ है कि मंडियों में किसानों को मिलने वाली कीमत 25 से 30 फीसदी तक कम हो गई है। लगभग 60 हजार टन की एक खेप भी इसी वजह से रुकी हुई है, हालांकि यह नियमित मांग थी लेकिन इसका असर तो पड़ेगा ही। आने वाले एक दो हफ्ते में पूरा आंकलन होगा कि कोरोना का कितना असर पड़ा है।"

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"हर साल लगभग 40 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल भारत से निर्यात किया जाता है जिसकी कीमत 22,000 करोड़ रुपए के आसपास की होती है। इसमें से हमारे सबसे बड़े खरादार यूरोपीय संघ के देश हैं, जिसमें ईरान सबसे आगे है। बासमती चावल से देश के लगभग 15-17 लाख किसान जुड़े हैं। इसका असर इन सब पर पड़ेगा," विनोद आगे कहते हैं।

भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। विश्व की 70 प्रतिशत बासमती चावल की उपज भारत में ही होती है। भारत के बाद पाकिस्तान का नंबर आता है। भारत से लगभग 40 लाख टन बासमती चावल निर्यात होता है जबकि देश में 20 लाख टन चावल की खपत है।

बासमती की आवक तो कम नहीं हुई है, लेकिन किसान भाव कम मिलने की वजह से फसल बेच नहीं रहे, लेकिन मु्श्किल है कि किसानों को आगे सही दर मिलेगी। कोरोना वायरस का असली असर एक दो हफ्ते बाद दिखेगा। मैंने भी बासमती लेना फिलहाल बंद कर दिया है।

राजकुमार गोयल, कारोबारी, कैथल चावल मंडी, हरियाणा

हरियाणा के कैथल चावल मंडी के बड़े कारोबारी और हनुमान राइस एंड जनरल मिल्स के प्रमुख राजकुमार गोयल बताते हैं, "बासमती की आवक तो कम नहीं हुई है, लेकिन किसान भाव कम मिलने की वजह से फसल बेच नहीं रहे, लेकिन मु्श्किल है कि किसानों को आगे सही दर मिलेगी। कोरोना वायरस का असली असर एक दो हफ्ते बाद दिखेगा। मैंने भी बासमती लेना फिलहाल बंद कर दिया है।"

बासमती के अलावा सोयाबीन किसानों पर भी कोरोना वायरस की मार पड़ी है। सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में पिछले साल बारिश के कारण लगभग 60 लाख एकड़ की फसल बर्बाद हो गई थी। प्रदेश सरकार ने बताया था कि इससे किसानों को लगभग नौ हजार 600 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। और अब रही-सही कसर कोरोना वायरस ने पूरी कर दी है।

मध्य प्रदेश में बारिश की वजह से भी कई सोयाबीन उत्पादक किसानों की फसलें बर्बाद हुईं। फोटो : गांव कनेक्शन

इंदौर जिले के तहसील सावेर के गांव परसपुर के रहने वाले किसान मुकेश तिवारी कहते हैं, "मैंने जून महीने में 25 एकड़ खेत में सोयाबीन लगाया था, बारिश के बाद लगभग 80 फीसदी तो चौपट ही हो गई थी। उसके बाद लगभग 10 कुंतल की उपज थी मेरे पास जिसमें से लगभग तीन कुंतल सोयाबीन को मैंने रोक रखा था कि जब और अच्छी कीमत मिलेगी तब बेचूंगा।"

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"उत्पादन कम हुआ तो इस कारण दाम भी बढ़िया मिल रहा था। मुझे लगा कि कीमत और अच्छी मिलेगी इसलिए थोड़ा अनाज रोक लिया था, लेकिन फरवरी के लास्ट में जब मंडी गया तो जो कीमत 4,000 रुपए प्रति कुंतल थी वह 3000, 3500 पर पहुंच गई। वैसे ही नुकसान बहुत हुआ है। अब जब कीमत थोड़ी बढ़ेगी तभी बेचूंगा," वे आगे कहते हैं।

इंदौर की मंडियों में सोयाबीन की कीमत 5-6 मार्च को 3600 से 3700 रुपए प्रति कुंतल थी, जबकि तीन से छह फरवरी के बीच यही कीमत 3950 से 3951 रुपए प्रति कुंतल के बीच थी।

मध्य प्रदेश में सोयाबीन खरीफ की एक प्रमुख फसल है, जिसकी खेती लगभग 53.00 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है। देश में सोयाबीन उत्पादन के क्षेत्र में मध्य प्रदेश का पहला स्थान है जिसकी हिस्सेदारी 55 से 60 प्रतिशत के बीच है। मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सोयाबीन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।

सोयाबीन का रेट इसलिए भी कम हो रहा क्योंकि देश के पोल्ट्री कारोबार पर कोरोना वायरस का बहुत बुरा असर पड़ा है। लोगों ने चिकन खाना कम कर दिया है और सोया मिल्स की सबसे ज्यादा खपत चिकन कारोबार में है जा इस समय बड़ा नुकसान झेल रहा है।

डीएन पाठक, कार्यकारी निदेशक, सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन

सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक डीएन पाठक इस बारे में कहते हैं, "सोयाबीन की कीमतों में पिछले दो महीने में 15 फीसदी की गिरावट आई है। कीमतें और गिर सकती हैं। देश से हर साल लगभग 15-20 लाख टन सोयाबीन मील का निर्यात होता है और इसमें ईरान की हिस्सेदारी 25 फीसदी है, इस साल तो पैदावार बहुत कम हुई है, ऐसे में हम अच्छे व्यापार की उम्मीद कर रहे थे।"

"सोयाबीन का रेट इसलिए भी कम हो रहा क्योंकि देश के पोल्ट्री कारोबार पर कोरोना वायरस का बहुत बुरा असर पड़ा है। लोगों ने चिकन खाना कम कर दिया है और सोया मिल्स की सबसे ज्यादा खपत चिकन कारोबार में है जा इस समय बड़ा नुकसान झेल रहा है," डीएन पाठक कहते हैं।

ऑल इंडिया पोल्ट्री ब्रीडर्स एसोसिएशन (एआईपीबीए) ने दो मार्च को सरकार से राहत पैकेज की मांग करते हुए दावा किया कि इस क्षेत्र में एक महीने में लगभग 1,750 करोड़ रुपए का भारी नुकसान हुआ है। चिकन की मांग में गिरावट के कारण पोल्ट्री बर्ड की कीमतें 10-30 रुपए प्रति किलोग्राम तक गिर गई हैं जबकि उत्पादन की औसत लागत 80 रुपए प्रति किलोग्राम है।

भाग - 4 : कोरोना वायरस : टैक्सी ड्राइवर - 'रात तक एक भी पैसेंजर नहीं मिला, नौ साल में पहली बार इतना सन्नाटा है'

(गांव कनेक्शन की सीरीज 'कोरोनाश' के छठवें भाग में पढ़िएगा- भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग पर कैसे पड़ा असर..)

     

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