कोवैक्सीन के थर्ड ट्रायल के आंकड़े जारी किये बिना वैक्सीन लगाना कितना सही? जानिए क्या है विवाद और क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
कोरोना महामारी को लेकर भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन, इन दोनों वैक्सीन को आधिकारिक मंजूरी मिलने के बाद विवाद शुरू हो गया है। तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजे आए बिना भारत बायोटेक की स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन को मंजूरी देने पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि बिना प्रमाणिक नतीजे आये बिना लोगों को वैक्सीन दिया जाना कितना सही है, आइए जानते हैं क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स ...
Kushal Mishra 9 Jan 2021 4:19 AM GMT
कोरोना महामारी को लेकर भारत में दो वैक्सीन को आधिकारिक मंजूरी मिल चुकी है। एक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की कोविशील्ड है और दूसरी भारत बायोटेक की स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन है, मगर इन दोनों वैक्सीन को ड्रग रेगुलेटर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से आपातकाल मंजूरी मिलने के बाद विवाद शुरू हो गया है।
इन दोनों वैक्सीन की प्रभावशीलता यानी एफिकेसी को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं यानी ये वैक्सीन कोरोना वायरस पर कितनी प्रभावी है। इनमें भी सबसे ज्यादा भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को मंजूरी दिए जाने को लेकर मतभेद की स्थिति बनी हुई है क्योंकि इस वैक्सीन के थर्ड फेज के ट्रायल अभी भी चल रहे हैं, ऐसे में बड़ा सवाल है कि कोई डाटा सामने न आने के बावजूद वैक्सीन को मंजूरी कैसे दी जा सकती है?
ऐसे में कई बड़े नेता और विशेषज्ञ कोवैक्सीन को मंजूरी दिए जाने को लेकर अपना विरोध जता रहे हैं। एक ओर ये सरकार की मंशा पर सवालिया निशान उठा रहे हैं तो दूसरी ओर सरकार भी वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर रही है। मगर बड़ा सवाल यही है कि क्या प्रमाणिक नतीजे जारी हुए बिना लोगों को वैक्सीन लगाया जाना सही है?
अब तक क्या हुआ ?
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को आधिकारिक मंजूरी मिलने के बाद कांग्रेस नेता शशि थरूर और जयराम रमेश जैसे कई बड़े विपक्षी नेताओं ने वैक्सीन के ट्रायल पर सवाल उठाते हुए मंजूरी दिए जाने को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से स्पष्टीकरण माँगा।
दूसरी ओर कोरोना वैक्सीन बनाने वाली दोनों कंपनियों के बीच भी विवाद गहरा गया। कोविशील्ड वैक्सीन कितनी प्रभावी है? के सवाल पर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने एक टीवी चैनल को दिए एक बयान में कहा कि इस वक़्त दुनिया में तीन वैक्सीन हैं जिन्होंने अपनी प्रभावकारिता सिद्ध की है, फाईजर, मॉडर्ना और कोविशील्ड क्योंकि इनकी एफिकेसी 70, 80 और 90 प्रतिशत है। पूनावाला ने अपने बयान में अन्य वैक्सीन को पानी जैसा सुरक्षित करार दिया। इसके बाद भारत बायोटेक के एमडी कृष्णा एल्ला ने प्रेस कांफ्रेंस कर कई दलीलें देकर अपनी कोवैक्सीन का बचाव किया।
हालांकि एक दिन बाद दोनों कंपनियों की ओर से साझा बयान भी जारी किया गया जिसमें दोनों कंपनियों ने कहा कि हम दुनिया में कोरोना महामारी के समय में वैक्सीन की अहमियत को समझते हैं और हमने प्रण लिया है कि वैक्सीन की कोविड-19 वैक्सीन की उपलब्धता वैश्विक स्तर पर हो।
This should clarify any miscommunication. We are all united in the fight against this pandemic. https://t.co/oeII0YOXEH
— Adar Poonawalla (@adarpoonawalla) January 5, 2021
मगर सवाल है कि वैक्सीन कितनी सुरक्षित है?
देश में दोनों कंपनियों की वैक्सीन को मंजूरी मिलने के बाद अब लोगों के मन में सवाल यही है कि यह वैक्सीन कितनी सुरक्षित है? एक ओर कोविशील्ड वैक्सीन के थर्ड फेज के नतीजे आ गए हैं और सीरम इंस्टीट्यूट की ओर से इस वैक्सीन की एफ़ीकेसी यानी प्रभावकारिता को लेकर 70 % से ज्यादा होने का दावा किया गया है।
दूसरी ओर भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के थर्ड फेज के ट्रायल अब तक पूरे नहीं हुए हैं, ऐसे में इस वैक्सीन की एफिकेसी को लेकर अभी तक डाटा जारी नहीं किया गया है क्योंकि आंकड़ें आना अभी बाकी हैं।
ऐसे में कोवैक्सीन को मंजूरी दिए जाने पर सरकार की इतनी जल्दबाजी कितनी सही है? आखिर वैक्सीन के थर्ड फेज का डाटा सामने आने के बाद क्यों नहीं मंजूरी दी गयी?
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
वैक्सीन ट्रायल को लेकर मेडिकल एथिक्स के भारतीय पत्र के एडिटर अमर जेसानी 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "पारदर्शिता बहुत जरूरी है। अगर वैक्सीन के ट्रायल पूरे हुए बिना ही मंजूरी देनी थी तो फिर सरकार ने इतना इंतजार क्यों किया, सितम्बर में ही भारत बायोटेक के सेकंड फेज के ट्रायल पूरा होने पर ही मंजूरी दे देते, मगर उस वक़्त सरकार ने थर्ड फेज के ट्रायल को जरूरी समझा और अब जल्दबाजी में बिना ट्रायल के नतीजे जाने मंजूरी दे रहे हैं।"
हो सकता है कि भारत बायोटेक की वैक्सीन बहुत अच्छी हो, मगर आम आदमी विज्ञान पर तभी भरोसा करता है जब उसके सामने कोई सबूत होता है, और अगर आप बिना किसी डाटा के मंजूरी देंगे तो सवाल उठना तय हैं? सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी के विशेषज्ञों ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत बायोटेक को अपना थर्ड फेज का ट्रायल पूरा करना चाहिए, नहीं तो कम से कम अपने नतीजों की प्रारंभिक रिपोर्ट जारी करनी चाहिए, मगर ऐसा भी नहीं किया गया।
अमर जेसानी, एडिटर, इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल एथिक्स
"हो सकता है कि भारत बायोटेक की वैक्सीन बहुत अच्छी हो, मगर आम आदमी विज्ञान पर तभी भरोसा करता है जब उसके सामने कोई सबूत होता है, और अगर आप बिना किसी डाटा के मंजूरी देंगे तो सवाल उठना तय हैं? सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी के विशेषज्ञों ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत बायोटेक को अपना थर्ड फेज का ट्रायल पूरा करना चाहिए, नहीं तो कम से कम अपने नतीजों की प्रारंभिक रिपोर्ट जारी करनी चाहिए, मगर ऐसा भी नहीं किया गया," अमर जेसानी बताते हैं।
वैक्सीन को लेकर क्या होती है प्रक्रिया ?
किसी भी वैक्सीन को विकसित करने के लिए कई चरणों से गुजरना पड़ता है। इन चरणों को पूरा करने में आमतौर पर दो से तीन साल तक लग जाते हैं। मगर जनजीवन पर कोरोना वायरस के भारी प्रभावों के कारण नियामक ढांचे पर शिथिलता बरती गयी है। ये चरण इस प्रकार हैं ...
1. प्रीक्लिनिकल
2. फेज 1 (सुरक्षा परीक्षण)
3. फेज 2 (विस्तारित परिक्षण)
4. फेज 3 (दक्षता परीक्षण)
5. विनियामक समीक्षा
6. स्वीकृति और वितरण
इस बारे में भारत के पीपल्स साइंस मूवमेंट से जुड़े राष्ट्रीय नेटवर्क आल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क के कार्यकारी सदस्य और पूर्व अध्यक्ष डी. रघुनंदन 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "किसी भी वैक्सीन का फेज 1 के ट्रायल में सुरक्षा का परिक्षण होता है यानी यह देखा जाता है कि वैक्सीन देने पर कोई खतरा तो नहीं है, जबकि फेज 2 के ट्रायल में यह देखा जाता है कि जिस रोग के लिए वैक्सीन दी जा रही है, शरीर पर उसकी इम्यून प्रतिक्रिया पैदा होती है या नहीं और तीसरे फेज में यह देखा जाता है कि टीका लेने के बाद इन्फेक्शन को कितना रोका जा सका।"
"तो यह तीन पैरामीटर तो फॉलो करने ही होंगे ताकि टीके की एफिकेसी पता चले, वरना टीका लगाया गया और उसके बाद फिर कोरोना हो जाता है तो फिर इन कोशिशों का क्या फायदा होगा, इसलिए जरूरी है कि वैक्सीन को लेकर दोनों वैक्सीन का डाटा सामने लाना चाहिए," डी. रघुनंदन आगे कहते हैं।
कोविशील्ड वैक्सीन पर 70 फीसदी से ज्यादा एफिकेसी का दावा किया गया है, मगर कोविशील्ड को लेकर भारत में हुए ट्रायल का डाटा भी सामने लाना चाहिए, और कोवैक्सीन के थर्ड फेज के ट्रायल के हमें और इंतजार करना चाहिए ताकि एक प्रमाणिक डाटा आने पर लोगों का विश्वास भी जीता जा सके।
डी. रघुनंदन, पूर्व अध्यक्ष, आल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क
केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन ने अपनी गाइडलाइन्स में कहा है कि किसी भी वैक्सीन को लेकर कम से कम 50 प्रतिशत प्रभावकारिता जरूरी है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी अपनी गाइडलाइन्स पर टीके के लिए 50 फीसदी एफिकेसी को अनिवार्य किया है।
आल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क के कार्यकारी सदस्य डी. रघुनंदन कहते हैं, "कोविशील्ड वैक्सीन पर 70 फीसदी से ज्यादा एफिकेसी का दावा किया गया है, मगर कोविशील्ड को लेकर भारत में हुए ट्रायल का डाटा भी सामने लाना चाहिए, और कोवैक्सीन के थर्ड फेज के ट्रायल के हमें और इंतजार करना चाहिए ताकि एक प्रमाणिक डाटा आने पर लोगों का विश्वास भी जीता जा सके।"
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन स्वदेशी वैक्सीन है और इस वैक्सीन के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने सहयोग किया है। भारत बायोटेक ने नवंबर में अपने थर्ड फेज के ट्रायल शुरू किये और देश भर में 25,000 से ज्यादा स्वयं सेवकों पर अपने ट्रायल कर रहे हैं।
'सुरक्षित है वैक्सीन'
हालांकि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से आपात इस्तेमाल को लेकर इन दोनों वैक्सीन को स्वीकृति मिलने के बाद अधिकारियों ने कहा कि यह वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित हैं।
वैक्सीन को लेकर DCGI के निदेशक वीजी सोमानी ने कहा, "दोनों ही वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित हैं और इन वैक्सीन का इस्तेमाल आपात स्थिति में किया जा सकेगा। अगर सुरक्षा से जुड़ा कोई भी संशय होता तो हम मंजूरी नहीं देते। ये वैक्सीन 110 प्रतिशत सुरक्षित हैं।"
#WATCH I We'll never approve anything if there's slightest of safety concern. Vaccines are 110 % safe. Some side effects like mild fever, pain & allergy are common for every vaccine. It (that people may get impotent) is absolute rubbish: VG Somani,Drug Controller General of India pic.twitter.com/ZSQ8hU8gvw
— ANI (@ANI) January 3, 2021
एक ओर जहाँ कई विशेषज्ञ बिना नतीजे जाहिर किये वैक्सीन को मंजूरी दिए पर सवालिया निशान उठा रहे हैं, वहीं कई विशेषज्ञ सरकार की ओर से इन कोरोना वैक्सीन को स्वीकृति दिए जाना सही मानते हैं।
पिछले करीब 50 वर्षों से भारत सरकार के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम से जुड़े रहे और भारत में कई वैक्सीन पर काम कर चुके पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट के. सुरेश किशनराव 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के ट्रायल को लेकर भले ही सवाल उठ रहे हैं, मगर इतना निश्चित है कि यह वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है।"
के. सुरेश किशनराव कहते हैं, "भारत बायोटेक की ओर से 22,500 स्वयं सेवकों पर ट्रायल किये गए हैं और अब तक वैक्सीन की सुरक्षा पर कोई सवाल नहीं उठा है, दूसरा सवाल उठता है इम्युनिटी का कि कोरोना से बचाएगा या नहीं, तो भारत बायोटेक की वैक्सीन एक किल्ड वैक्सीन है यानी जो वायरस के रोगाणु को मार देती है या वापस बीमारी नहीं लाती, जबकि विदेशों की वैक्सीन रोगाणु को लगभग मृत अवस्था में छोड़ देती है।"
भारत बायोटेक के अब तक के नतीजे भले ही जग जाहिर न किये गए हों, मगर विशेषज्ञों की कमेटी ने अब तक के आंकड़ों को देखते हुए ही कोवैक्सीन को अप्रूवल दी, इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि जब पूरा भारत कोरोना महामारी से जूझ रहा है, तो हमें लोगों तक जल्द वैक्सीन देने के लिए कदम उठाने होंगे, सरकार ने वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को लेकर मंजूरी दी है, यह सही कदम है और जनता की ही भलाई के लिए है।
के. सुरेश किशनराव, पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट
"ऐसे में भारत बायोटेक के अब तक के नतीजे भले ही जग जाहिर न किये गए हों, मगर विशेषज्ञों की कमेटी ने अब तक के आंकड़ों को देखते हुए ही कोवैक्सीन को अप्रूवल दी, इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि जब पूरा भारत कोरोना महामारी से जूझ रहा है, तो हमें लोगों तक जल्द वैक्सीन देने के लिए कदम उठाने होंगे, सरकार ने वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को लेकर मंजूरी दी है, यह सही कदम है और जनता की ही भलाई के लिए है," के. सुरेशराव आगे बताते हैं।
For those spreading rumours let it be known that EUA for COVAXIN is differently conditional – in clinical trial mode
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) January 3, 2021
EUA for COVAXIN is different from COVISHIELD because its use will be in clinical trial mode.
All COVAXIN recipients to be tracked,monitored as if they're in trial pic.twitter.com/1N8LGnhC3w
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